02 September 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

02 September 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

1 September 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप का फरमान है तुम एक बाप से ही सुनो, अविनाशी ज्ञान रत्न सुनने से तुम्हारे कान भी मीठे हो जायेंगे''

प्रश्नः-

ड्रामा के ज्ञान से तुम बच्चों को अभी कौन सी रोशनी मिली है?

उत्तर:-

तुम्हें रोशनी मिली कि इस बेहद ड्रामा में हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक का पार्ट दूसरे से मिल नहीं सकता। बुद्धि में है सब दिन होत न एक समान… 5000 वर्षो के ड्रामा में दो दिन भी एक जैसे नहीं हो सकते हैं। यह ड्रामा अनादि बना हुआ है जो हूबहू रिपीट होता है। ड्रामा की सदा स्मृति रहे तो चढ़ती कला होती रहेगी।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

महफिल में जल उठी शमा.

ओम् शान्ति। बेहद के सच्चे बाप की है बेहद की महफिल। बाप आते ही तब हैं जब बड़ी महफिल होती है। सब आत्मायें यहाँ आ जाती हैं तब बाप आते हैं। भल थोड़ी सी आत्मायें ऊपर होंगी भी, वह भी आ जायेंगी। अब यह तो समझाया गया है – बाबा कौन है? पहले-पहले हमेशा बाबा की महिमा सुनानी है। वह सच्चा बेहद का बाप है। बेहद का सच्चा शिक्षक है, बेहद का सच्चा सतगुरू है। यह एक की ही महिमा है। यह पक्का याद कर लेना है। नाम भी हमेशा शिवबाबा का लो। जब गिनती करते हैं तो बिन्दी को शिव भी कहते हैं। तो बेहद का बाप शिव है, वह है बेहद का शिक्षक। हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त तीनों कालों की समझानी देते हैं। हिस्ट्री और जाग्रॉफी होती है ना। सतयुग में कौन राज्य करते थे, कितने इलाके पर करते थे। तुम कहेंगे कि सतयुग में देवी-देवतायें सारे विश्व पर राज्य करते थे। दिखलाया जाता है ना – कौन-कौन, कहाँ-कहाँ राज्य करते थे। जैसे बड़ौदा वाले बड़ौदा पर राज्य करेंगे। यहाँ तो टुकड़े-टुकड़े हैं। वहाँ ऐसे नहीं हैं। वहाँ हैं सारे विश्व के मालिक और कोई धर्म नहीं होता। बाकी राजायें क्यों नहीं होते। हर एक को अपना वर्सा मिलेगा। पहली-पहली मुख्य बात है – ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा, जो सच्चा बेहद का बाप, बेहद की शिक्षा देने वाला है। जो सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज समझाकर त्रिकालदर्शी बनाते हैं। दुनिया में त्रिकालदर्शी कोई मनुष्य नहीं, जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानता हो। वह बेहद का सतगुरू है। सबको साथ ले जाने वाला पण्डा भी है। वह सब हैं जिस्मानी पण्डे। यह है रूहानी। गीत में भी सुना चारों धामों का जन्म-जन्मान्तर चक्र लगाया। तीर्थ कोई कहाँ, कोई कहाँ चारों तरफ हैं ना। चारों तरफ के चक्र लगाये फिर भी भक्त लोग भगवान से मिल न सके। भगवान आते ही हैं इस समय। उनको पतित-पावन कहा जाता है। कलियुग को सतयुग बनाने हमारा बाबा भारत में आते हैं। भारतवासियों को फिर से हीरे जैसा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। ऐसे बाप को न जानने कारण साधू सन्त आदि परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं।

तुम बच्चे कहते हो – बाप ने ब्रह्मा के मुख द्वारा हमको अपना बनाया है। हम ईश्वर के कुटुम्ब के ठहरे। तुम हो शिव वंशी फिर बनते हो ब्रह्माकुमार कुमारी। इनको कहा जाता है अविनाशी सन्तान। आत्मा भी अविनाशी, बाप भी अविनाशी। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। देवी-देवता जो सतोप्रधान थे वही सतो रजो तमो में आये हैं। विकारों की खाद पड़ने से फिर तमोप्रधान बन जाते हैं। खाद पड़ती है आत्मा में। ऐसे नहीं कि आत्मा निर्लेप है। आत्मा ही पुण्य आत्मा और पाप आत्मा बनती है। बोलो, हम जो आपको सुनाते हैं वही सुनो। हमको और किसका सुनना नहीं है। बाप का फरमान है तुम किसी का नहीं सुनो। तुम जो बोलेंगे शास्त्रों की ही बात बोलेंगे। वह तो जन्म-जन्मान्तर हम सुनते ही आये, धक्के खाते ही आये हैं। बेहद का बाप तो एक ही है। हम ऐसे बाप की सुनेंगे वा तुम्हारी सुनेंगे? हम आपको सुनाने वाले हैं, न कि सुनने वाले। समझाना है प्रजापिता ब्रह्मा के इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो जरूर भाई बहन ठहरे। दादे का वर्सा मिलता है ब्रह्मा द्वारा। दादे का वर्सा बाप बिगर कैसे मिलेगा? बहुत कहते हैं हम तो सीधा दादे से ही लेंगे। परन्तु मिलेगा कैसे? ब्रह्माकुमार कुमारी जब तक न बनें तब तक दादे से वर्सा कैसे मिलेगा। पोत्रे और पोत्रियां दोनों को हक मिलना है। बाप बिगर फिर दादा कहाँ से आयेगा? पहले-पहले है बाप का परिचय। वह गीता का भगवान बेहद का सच्चा बाप, बेहद की शिक्षा देने वाला है। बाप बूढ़ी माताओं के लिए बहुत सहज करके समझाते हैं। यह है संगम, जबकि बाप बैठ पतितों को पावन बनाते हैं। इनको कुम्भी पाक नर्क कहा जाता है। यह सारी दुनिया विषय वैतरणी नदी है। बाकी कोई पानी की नदी नहीं है, इनको विषय सागर भी कहते हैं। परमपिता परमात्मा है ज्ञान का सागर और रावण है विषय सागर। उनसे विकारों की नदियां बहती हैं। इस समय जो आसुरी सम्प्रदाय हैं, वह विषय सागर में गोता खा रहे हैं। दु:ख ही दु:ख है। इन बातों को भी कोटों में कोई ही समझेंगे। कई तो बहुत अच्छे बनकर भी फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं। कहते भी हैं हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं, फिर भागन्ती हो जाते हैं। युद्ध के मैदान में कोई सबकी जीत नहीं होती है। दोनों तरफ से कोई मरेंगे, कोई जीतेंगे। हाँ, पहलवान होंगे तो जास्ती को मारेंगे। कमजोर जो होते हैं वह जास्ती मरते हैं। यहाँ भी जो कमजोर हैं वह झट मर पड़ते हैं। यहाँ तुम्हारी है ही रावण से लड़ाई। काम से हराया तो बहुत बड़ी चोट लग पड़ती है। बॉक्सिंग होती है ना। कोई तो बेहोश हो जाते हैं फिर आवाज करते हैं। कोई फिर खड़े हो जाते हैं। यहाँ भी काम की चोट खाई तो बड़ा जोर से धक्का आ जाता है। काला मुँह हो गया, क्रोध पर इतना नहीं कहेंगे जितना काम पर। यह है बहुत बड़ा दुश्मन। बहुत दु:ख देने वाला है। काम कटारी से ही बहुत दु:खी हुए हैं। काम विकार से ही पतित बनते हैं। नानक ने भी कहा है – मूत पलीती कपड़ धोए। बाप ही आकर कपड़े धोते हैं। अभी तुम्हारा भी यह पुराना शरीर है। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक न मिले दूसरे से। ड्रामा है ना। सब दिन होत न एक समान। पांच हजार वर्ष का ड्रामा है, इसमें कितने दिन होंगे! दो दिन भी एक जैसे नहीं हो सकते। यह फिर पांच हजार वर्ष बाद हूबहू रिपीट होता है। यह अनादि ड्रामा है – सेकेण्ड बाई सेकेण्ड पार्ट बजता जाता है। फिर फिर रिपीट होता है। कहाँ सतयुग, कहाँ कलियुग। वहाँ क्या होता है, यहाँ क्या होता है -यह तुम बच्चों को अब रोशनी मिली है। अभी तुम्हारी चढ़ती कला शुरू होती है। बाप कहते हैं दे दान तो छुटे ग्रहण, विकारों का। सीधी सी बात है। बाप तुम्हारे विकारों का दान लेते हैं फिर उनके बदले में देखो तुम क्या देते हो! तुम कौड़िया देते हो बाप तुम्हें ज्ञान रत्न देते हैं। बाप को कहा भी जाता है रत्नागर, सौदागर। बाप का भी पार्ट है। आत्मा कितनी छोटी है, उसमें कितनी ताकत है। कितना ज्ञान है। यह ज्ञान देने की भी ड्रामा में नूँध है अविनाशी। फिर कल्प बाद यही ज्ञान देंगे। यह ड्रामा कब विनाश होने वाला नहीं है। वन्डर है ना – आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। इतनी छोटी बिन्दी में कितना पार्ट भरा हुआ है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। वह रूप भी है, बसन्त भी है। निराकार आत्मा जरूर मुख से ज्ञान सुनायेगी। कानों से आत्मा सुनेगी। नहीं तो ज्ञान सागर कैसे ज्ञान सुनाये! जरूर ब्रह्मा मुख से सुनाना पड़े। विष्णु वा शंकर तो ज्ञान दे न सकें। ज्ञान का सागर कहा ही जाता है – एक निराकार को। उनसे तुम ज्ञान गंगायें बनती हो। सागर तो एक है ना। बाप ही ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हैं। सतयुग में सूर्यवंशी राजायें थे, 8 बादशाही चली। फिर वही सूर्यवंशी चन्द्रवंशी… बनते हैं। यह ज्ञान तुम ब्राह्मणों में ही है। तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण। बाप सबका एक है। वह ब्राह्मण हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली। वह जिस्मानी यात्रा कर फिर घर लौट जाते हैं। हमारी एक ही यात्रा है। एक ही बार यह अमरलोक की यात्रा करते हैं, फिर लौट कर इस मृत्युलोक में आना नहीं है। अमरलोक स्वर्ग को कहा जाता है। वहाँ कोई यात्रा होती नहीं। वहाँ भक्ति ही नहीं। यह है ब्रह्मा की रात, जिसमें भक्ति के धक्के हैं। चारों तरफ फेरे लगाये परन्तु हरदम दूर रहे। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला बाप नहीं मिला। तुम पुकारते हो हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ। फिर तुम गंगा स्नान करने क्यों जाते हो? वह तुम्हें पावन कैसे बनायेगी? अगर गंगा से पावन हो सकते तो पतित-पावन को क्यों बुलाते हो? कितनें लाखों आदमी जाते हैं गंगा स्नान करने। पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता एक है। बाकी हैं भक्ति के धक्के। तो युक्ति से प्रश्न पूछना चाहिए तो समझेंगे यह तो बड़े कायदे से पूछते हैं। जबकि एक पतित-पावन को बुलाते हैं तो फिर अनेकों के पास धक्के क्यों खाते हैं? बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको पावन बनाकर स्वर्ग का मालिक बनाने। तो अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए – बाबा हमको पावन बनाकर स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं। लक्ष्मी-नारायण बरोबर स्वर्ग के मालिक थे। उन्हों को बाबा से वर्सा मिला था। तुम यह भी पूछ सकते हो कि यह जो लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे तो जरूर उन्हों की प्रजा भी होगी। सतयुग आदि में तो था ही उन्हों का राज्य। अभी तो संगम पर बैठे हो। यहाँ तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। विनाश भी सामने खड़ा है। कल्प-कल्प के संगमयुगे बाप आते हैं। बाप ही आकर सहज राजयोग सिखलाते हैं। तुम जीवन-मुक्ति पाते हो, बाकी सब मुक्ति में जायेंगे। भारत सुखधाम था ना। अब तो दु:खधाम है। देवी-देवता धर्म तो है नहीं। फिर स्थापना होनी है। तुम बच्चे राजयोग की शिक्षा ले राज्य भाग्य ले रहे हो। कांटें से फूल बन रहे हो। यहाँ तो सब कांटे हैं। एक दो को कांटा लगाते अर्थात् काम कटारी चलाते रहते हैं। अब बाबा फूल बनाते हैं, तो कांटा लगाना छोड़ देना है। हिम्मत रखनी है। हिम्मत वाले भी खड़े हो जाते हैं। बाबा देखते हैं इनकी हिम्मत अच्छी है, कभी गिरेंगे नहीं। तो ऐसे हिम्मत वाले को शरण भी दे देते हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि फिर पति वा बच्चे आदि आकर याद पड़ें। शुरू में भट्ठी थी। भट्ठी में भी सब ईटें तो पकती नहीं हैं। यहाँ भी ऐसे ही नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पक कर तैयार होते हैं। बाप कहते हैं यह ज्ञान यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते ही रहेंगे, कल्प पहले मुआफिक। कोई-कोई नाफरमानबरदार बच्चे भी हैं। जो बाबा का कहना कभी मानेंगे नहीं। रूठ पड़ेंगे। गोया अपनी तकदीर से रूठते हैं। फिर ऊंच तकदीर बनती ही नहीं है। देह-अभिमान के कारण अपनी मत पर चलने लग पड़ते हैं। कदम-कदम श्रीमत पर चलना चाहिए। श्रीमत देते हैं ब्रह्मा द्वारा। ऐसे थोड़ेही कि प्रेरणा द्वारा किसको मत देंगे। अगर ऐसे होता तो फिर इनमें आकर इतने बच्चे पैदा करने की दरकार ही क्या? अच्छे-अच्छे पुराने बच्चे समझते हैं हम तो शिवबाबा से सीधा ही लेंगे। देह-अभिमान बहुत है। तो यह पक्का याद कर लो – हमारा सच्चा बेहद का बाबा बेहद का वर्सा देने वाला है। बेहद का वर्सा माना नर से नारायण बनाने वाला। वहाँ हेल्थ वेल्थ दोनों हैं तो खुशी रहती है। यहाँ किसको हेल्थ है तो वेल्थ नहीं है। किसको वेल्थ है तो हेल्थ नहीं है। बच्चा पैदा न हो तो दूसरे का लेना पड़े। वहाँ यह सब बातें होती नहीं। वहाँ तो एक बच्चा जरूर होगा। यह है ही दु:खधाम। रावण से दु:ख का श्राप मिलता है। बाप आकर वर्सा देते हैं।

यहाँ तुम बच्चों का मुख रोज़ मीठा किया जाता है, सेन्टर्स पर तो गुरूवार के दिन मुख मीठा कराते होंगे। यहाँ तो कान भी मीठे किये जाते हैं, मुख भी मीठा किया जाता है। आत्मा कानों से अविनाशी ज्ञान सुनती है। नयनों से देखती है, मुख से खाती है तो उनका स्वाद आता है। आत्म-अभिमानी बनना पड़ता है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) फूल बनकर सबको सुख देना है। किसी को कांटा नहीं लगाना है। कभी भी बाप की अवज्ञा नहीं करनी है, रूठना नहीं है।

2) कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलना है। अपनी मत नहीं चलानी है। देह-अभिमान में आकर नाफरमानबरदार नहीं बनना है।

वरदान:-

अभी समय प्रति समय विश्व में हलचल बढ़नी ही है। अशान्ति वा हिंसा के समाचार सुनते हुए आप रूहानी सोशल सेवाधारी बच्चों को विशेष अलर्ट बनकर अपने पावरफुल वायब्रेशन द्वारा सबमें शान्ति की, सहन शक्ति की हिम्मत भरनी है, लाइट हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट देनी है। यह फर्जअदाई अब तीव्रगति से पालन करो जिससे आत्माओं को रूहानी राहत मिले। जलते हुए दु:ख की अग्नि में शीतल जल भरने का अनुभव करें।

स्लोगन:-

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