25 Apr 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

April 24, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - यह पुरूषोत्तम युग ही गीता एपीसोड है, इसमें ही तुम्हें पुरूषार्थ कर उत्तम पुरूष अर्थात् देवता बनना है''

प्रश्नः-

किस एक बात का सदा ध्यान रहे तो बेड़ा पार हो जायेगा?

उत्तर:-

सदा ध्यान रहे कि हमें ईश्वरीय संग में रहना है तो भी बेड़ा पार हो जायेगा। अगर सगंदोष में आये, संशय आया तो बेड़ा विषय सागर में डूब जायेगा। बाप जो समझाते हैं उसमें बच्चों को जरा भी संशय नहीं आना चाहिए। बाप तुम बच्चों को आप समान पवित्र और नॉलेजफुल बनाने आये हैं। बाप के संग में ही रहना है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम शान्ति। भगवानुवाच – बच्चे जानते हैं कि बाप वही राजयोग सिखला रहे हैं जो 5 हज़ार वर्ष पहले समझाया था। बच्चों को मालूम है, दुनिया को तो मालूम नहीं है तो फिर पूछना चाहिए गीता का भगवान् कब आया? भगवान् जो कहते हैं मैं राजयोग सिखलाकर तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ, वह गीता एपीसोड कब हुआ था? यह पूछना चाहिए। यह बात कोई भी नहीं जानते हैं। तुम अब प्रैक्टिकल सुन रहे हो। गीता का एपीसोड होना भी चाहिए कलियुग अन्त और सत-युग आदि के बीच में। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं तो जरूर संगम पर ही आयेंगे। पुरुषोत्तम संगमयुग है जरूर। भल पुरुषोत्तम वर्ष गाते हैं परन्तु बिचारों को पता नहीं है। तुम मीठे-मीठे बच्चों को मालूम है, उत्तम पुरुष बनाने के लिए अर्थात् मनुष्य को उत्तम देवता बनाने के लिए बाप आकर पढ़ाते हैं। मनुष्यों में उत्तम पुरुष ये देवतायें (लक्ष्मी-नारायण) हैं। मनुष्यों को देवता बनाया इस संगमयुग पर। देवतायें जरूर सतयुग में ही होते हैं। बाकी सब हैं कलियुग में। तुम बच्चे जानते हो हम हैं संगमयुगी ब्राह्मण। यह पक्का-पक्का याद करना है। नहीं तो अपना कुल कभी किसको भूलता नहीं है। परन्तु यहाँ माया भुला देती है। हम ब्राह्मण कुल के हैं फिर देवता कुल के बनते हैं। अगर यह याद रहे तो बहुत खुशी रहे। तुम पढ़ते हो राजयोग। समझाते हो अब फिर भगवान् गीता का ज्ञान सुना रहे हैं और भारत का प्रचीन योग भी सिखा रहे हैं। हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप ने कहा है काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनते हो। पवित्रता की बात पर कितनी आरग्यु करते हैं। मनुष्यों के लिए विकार तो जैसे एक खज़ाना है। लौकिक बाप से यह वर्सा मिला हुआ है। बालक बनते हैं तो पहले-पहले बाप का यह वर्सा मिलता है, शादी बरबादी कराते हैं। और बेहद का बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, तो जरूर काम को जीतने से ही जगत जीत बनेंगे। बाप जरूर संगम पर ही आये होंगे। महाभारी महाभारत लड़ाई भी है। हम भी यहाँ जरूर हैं। ऐसे भी नहीं, सब फट से काम पर जीत पाते हैं। हर बात में टाइम लगता है। मुख्य बात बच्चे यही लिखते हैं कि बाबा हम विषय वैतरणी नदी में गिर गये तो जरूर कोई ऑर्डीनेन्स है। बाप का फ़रमान है – काम को जीतने से तुम जगतजीत बनेंगे। ऐसे नहीं, जगत जीत बनकर फिर विकार में जाते होंगे। जगत-जीत यह लक्ष्मी-नारायण हैं, इनको कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। देवताओं को सब निर्विकारी कहते हैं, जिसको तुम राम राज्य कहते हो। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। यह है विशश वर्ल्ड, अपवित्र गृहस्थ आश्रम। बाबा ने समझाया है तुम पवित्र गृहस्थ आश्रम के थे। अब 84 जन्म लेते-लेते अपवित्र बने हो। 84 जन्मों की ही कहानी है। नई दुनिया जरूर ऐसी वाइस-लेस होनी चाहिए। भगवान्, जो पवित्रता का सागर है, वही स्थापना करते हैं फिर रावण राज्य भी जरूर आना है। नाम ही है राम राज्य और रावण राज्य। रावण राज्य माना ही आसुरी राज्य। अभी तुम आसुरी राज्य में बैठे हो। यह लक्ष्मी-नारा-यण हैं दैवी राज्य की निशानी।

तुम बच्चे प्रभात फेरी आदि निकालते हो। प्रभात सवेरे को कहा जाता है, उस समय मनुष्य सोये रहते हैं इसलिए देरी से निकालते हैं। प्रदर्शनी भी अच्छी तब हो जब वहाँ सेन्टर भी हो। जहाँ आकर समझें कि काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से जगत जीत बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण का चित्र साथ में जरूर होना चाहिए – ट्रांसलाइट का। इनको कभी भूलना नहीं चाहिए। एक यह चित्र और सीढ़ी। ट्रक में जैसे देवियों को निकालते हैं ऐसे तुम यह दो-तीन ट्रक सजाकर उसमें मुख्य चित्र निकालते हो तो अच्छा लगता है। दिन-प्रतिदिन चित्रों की वृद्धि भी होती जाती है। तुम्हारा ज्ञान वृद्धि को पाता रहता है। बच्चों की भी वृद्धि होती जाती है। उसमें गरीब साहूकार सब आ जाते हैं। शिवबाबा का भण्डारा भरता जाता है। जो भण्डारा भरते हैं, उनको वहाँ रिटर्न में कई गुणा मिल जाता है। तब बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, तुम हो पद्मापद्म पति बनने वाले सो भी 21 जन्मों के लिए। बाबा खुद कहते हैं तुम जगत का मालिक बन जायेंगे 21 पीढ़ी। मैं खुद डायरेक्ट आया हूँ। तुम्हारे लिए हथेली पर बहिश्त लाया हूँ। जैसे बच्चा जब पैदा होता है तो बाप का वर्सा उनकी हथेली पर ही है। बाप कहेंगे यह घर-बार आदि सब कुछ तुम्हारा है। बेहद का बाप भी कहते हैं तुम जो मेरे बनते हो तो स्वर्ग की बादशाही तुम्हारे लिए है – 21 पीढ़ी क्योंकि तुम काल पर जीत पा लेते हो इसलिए बाप को महाकाल कहते हैं। महाकाल कोई मारने वाला नहीं है। उनकी तो महिमा की जाती है, समझते हैं भगवान् ने यमदूत भेज मंगा लिया। ऐसी कोई बात है नहीं। यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। बाप कहते हैं मैं कालों का काल हूँ। पहाड़ी लोग महाकाल को भी बहुत मानते हैं। महाकाल के मन्दिर भी हैं। ऐसे झण्डियां लगा देते हैं। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। यह भी समझते हो कि राइट बात है। बाप को याद करने से ही जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म होते हैं। तो उसका प्रचार करना चाहिए। कुम्भ के मेले आदि बहुत लगते हैं। स्नान करने का भी बहुत महत्व बताया है। अब तुम बच्चों को यह ज्ञान अमृत 5 हज़ार वर्ष के बाद मिलता है। वास्तव में इसका अमृत नाम है नहीं। यह तो पढ़ाई है। यह सब हैं भक्ति मार्ग के नाम। अमृत नाम सुनकर चित्रों में पानी दिखाया है। बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। पढ़ाई से ही ऊंच पद मिलता है। सो भी मैं पढ़ाता हूँ। भगवान् का कोई ऐसा सजा हुआ रूप तो है नहीं। यह तो बाप इसमें आकर पढ़ाते हैं। पढ़ाकर आत्माओं को आप समान बनाते हैं। खुद लक्ष्मी-नारायण थोड़ेही हैं जो आप समान बनायेंगे। आत्मा पढ़ती है, उनको आप समान नॉलेजफुल बनाते हैं। ऐसे नहीं, भगवान् भगवती बनाते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण को दिखाया है। वह कैसे पढ़ायेंगे? सतयुग में पतित थोड़ेही होते हैं। श्रीकृष्ण तो होता ही है सतयुग में। फिर कभी भी श्रीकृष्ण को तुम नहीं देखेंगे। ड्रामा में हर एक के पुनर्जन्म का चित्र बिल्कुल न्यारा होता हैं। कुदरत का ड्रामा है। बनी बनाई…. बाप भी कहते हैं तुम हूबहू इस फीचर से इसी कपड़े में कल्प-कल्प तुम ही पढ़ते आयेंगे। हूबहू रिपीट होता है ना। आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा वही लेती है, जो कल्प पहले लिया था। ड्रामा में कुछ फ़र्क नहीं पड़ सकता है। वह होती हैं हद की बातें, यह हैं बेहद की बातें। जो बेहद के बाप सिवाए कोई समझा नहीं सकते हैं। इसमें कोई संशय नहीं हो सकता है। निश्चयबुद्धि हो फिर कोई न कोई संशय में आ जाते हैं। संग लग जाता है। ईश्वरीय संग चलता चले तो पार हो जायें। संग छोड़ा तो विषय सागर में डूब पड़ेंगे। एक तरफ है क्षीरसागर, दूसरे तरफ है विषय सागर। ज्ञान अमृत भी कहते हैं। बाप है ज्ञान सागर, उनकी महिमा भी है। जो उनकी महिमा है वह लक्ष्मी-नारायण को नहीं दे सकते हैं। बाप है पवित्रता का सागर। भल वह देवतायें सतयुग-त्रेता में पवित्र हैं परन्तु सदैव के लिए तो नहीं रहते हैं। फिर भी आधाकल्प के बाद गिरते हैं। बाप कहते हैं मैं आकर सबकी सद्गति करता हूँ। सद्गति दाता मैं एक हूँ। तुम सद्गति में जाते हो फिर यह बातें ही नहीं होती। अब तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। तुम भी शिवबाबा से पढ़कर टीचर बने हो। मुख्य प्रिंसीपल वह है। तुम आते भी उनके पास हो। कहते हैं हम शिवबाबा के पास आये हैं। अरे, वह तो निराकार है। हाँ, वह आते हैं, इनके तन में इसलिए कहते हैं बापदादा के पास जाते हैं। यह बाबा है उनका रथ, जिस पर उनकी सवारी है। उनको रथ, घोड़ा, अश्व भी कहते हैं। इस पर भी एक कथा है – दक्ष प्रजापिता ने यज्ञ रचा। कहानी लिख दी है। परन्तु ऐसे तो है नहीं।

शिवभगवानुवाच – मैं तब आता हूँ जब भारत में अति धर्म ग्लानि होती है। गीतावादी भल कहते हैं – यदा यदाहि…. परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं। तुम्हारा यह बहुत छोटा झाड़ है, इनको त़ूफान भी लगते हैं। नया झाड़ है ना, फिर यह फाउण्डेशन भी है। इतने अनेक धर्मों के बीच में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाते हैं। कितनी मेहनत है। औरों को मेहनत नहीं लगती है। वह ऊपर से आते रहते हैं। यहाँ तो जो सतयुग-त्रेता में आने वाले हैं, उन्हों की आत्मायें बैठ पढ़ती है। जो पतित हैं, उनको पावन देवता बनाने लिए बाप बैठ पढ़ाते हैं। गीता तो यह भी बहुत पढ़ते थे। जैसे अब आत्माओं को याद कर दृष्टि दी जाती है तो पाप कट जायें। भक्ति मार्ग में फिर गीता के आगे जल रखकर बैठ पढ़ते हैं। समझते हैं पित्रों का उद्धार होगा इसलिए पित्रों को याद करते हैं। भक्ति में गीता का बहुत मान रखते थे। अरे, बाबा कोई कम भक्त था क्या! रामायण आदि सब पढ़ते थे। बहुत खुशी होती थी। वह सब पास्ट हो गया।

अब बाप कहते हैं बीती को चितवो नहीं। बुद्धि से सब निकाल दो। बाबा ने स्थापना, विनाश और राजधानी का साक्षात्कार कराया तो वह पक्का हो गया। यह सब ख़लास होना है – यह पता नहीं था। बाबा ने समझा – यह सब होगा। देरी थोड़ेही है। हम जाकर फलाना राजा बनूँगा। पता नहीं, बाबा क्या-क्या समझते रहते थे। तुम बच्चे जानते हो बाबा की प्रवेशता कैसे हुई। यह बातें मनुष्य नहीं जानते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का नाम तो लेते हैं परन्तु इन तीनों में से भगवान् किसमें प्रवेश करते हैं, अर्थ नहीं जानते। वो लोग विष्णु का नाम लेते हैं। अब वह तो हैं देवता। वह कैसे पढ़ायेंगे। बाबा खुद बतलाते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ इसलिए दिखाया है – ब्रह्मा द्वारा स्थापना। वह पालना और वह विनाश। यह बड़ी समझने की बातें हैं। भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। वह भगवान् कब आया जो राजयोग सिखलाया और राजाई पद दिलाया, यह अभी तुम समझते हो। 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है। पूज्य-पुजारी का भी समझाया है। विश्व में शान्ति का राज्य इन लक्ष्मी-नारायण का था ना, जो सारी दुनिया चाहती है। जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो उस समय सब शान्तिधाम में थे। अब हम श्रीमत पर यह कार्य कर रहे हैं। अनेक बार किया है और करते रहेंगे। यह भी जानते हैं – कोटों में कोई निकलेगा। देवी-देवता धर्म वालों को ही टच होगा। भारत की ही बात है। जो इस कुल के होंगे वह निकल रहे हैं और निकलते रहेंगे। जैसे तुम निकले हो, वैसे और प्रजा भी बनती रहेगी। जो अच्छा पढ़ते वह अच्छा पद पाते हैं। मुख्य है ज्ञान-योग। योग के लिए भी ज्ञान चाहिए। फिर पावर हाउस के साथ योग चाहिए। योग से विकर्म विनाश होंगे और हेल्दी-वेल्दी बनेंगे। पास विद् ऑनर भी होंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) जो बात बीत गई, उसका चिंतन नहीं करना है। अब तक जो कुछ पढ़ा उसे भूलना है, एक बाप से सुनना है और अपने ब्राह्मण कुल को सदा याद रखना है।

2) पूरा निश्चयबुद्धि होकर रहना है। किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है। ईश्वरीय संग और पढ़ाई कभी भी नहीं छोड़ना है।

वरदान:-

माशूक अपने खोये हुए आशिकों को देख खुश होते हैं। रूहानी आकर्षण से आकर्षित हो अपने सच्चे माशूक को जान लिया, पा लिया, यथार्थ ठिकाने पर पहुंच गये। जब ऐसी आशिक आत्मायें इस मोहब्बत की लकीर के अन्दर पहुंचती हैं तो अनेक प्रकार की मेहनत से छूट जाती हैं क्योंकि यहाँ ज्ञान सागर के स्नेह की लहरें, शक्ति की लहरें… सदा के लिए रिफ्रेश कर देती हैं। यह मनोरंजन का विशेष स्थान, मिलने का स्थान आप आशिकों के लिए माशूक ने बनाया है।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top