22 October 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
21 October 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें जो नॉलेज पढ़ाते हैं, इसमें रिद्धि सिद्धि की बात नहीं, पढ़ाई में कोई छू मन्त्र से काम नहीं चलता है''
प्रश्नः-
देवताओं को अक्लमंद कहेंगे, मनुष्यों को नहीं – क्यों?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। बाप ने बच्चों को समझाया है कि यह पाठशाला है। यह पढ़ाई है। इस पढ़ाई से यह पद प्राप्त होता है, इनको स्कूल वा युनिवर्सिटी समझना चाहिए। यहाँ दूर-दूर से पढ़ने के लिए आते हैं। क्या पढ़ने आते हैं? यह एम ऑबजेक्ट बुद्धि में है। हम पढ़ाई पढ़ने के लिए आते हैं, पढ़ाने वाले को टीचर कहा जाता है। भगवानुवाच है भी गीता। दूसरी कोई बात नहीं है। गीता पढ़ाने वाले का पुस्तक है, परन्तु पुस्तक आदि कोई पढ़ाते नहीं हैं। गीता कोई हाथ में नहीं है। यह तो भगवानुवाच है। मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता। भगवान ऊंच ते ऊंच है एक। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन – यह है सारी युनिवर्स। खेल कोई सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में नहीं चलता है, नाटक यहाँ ही चलता है। 84 का चक्र भी यहाँ है। इनको ही कहा जाता है 84 के चक्र का नाटक। यह बना-बनाया खेल है। यह बड़ी समझने की बातें हैं क्योंकि ऊंच ते ऊंच भगवान उनकी तुमको मत मिलती है। दूसरी तो कोई वस्तु है नहीं। एक को ही कहा जाता है सर्व शक्तिमान्, वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी। अथॉरिटी का भी अर्थ खुद समझाते हैं। यह मनुष्य नहीं समझते क्योंकि वह सब हैं तमोप्रधान, इसको कहा ही जाता है कलियुग। ऐसे नहीं कि कोई के लिए कलियुग है, कोई के लिए सतयुग है, कोई के लिए त्रेता है। नहीं, जबकि अभी है ही नर्क तो कोई भी मनुष्य ऐसे नहीं कह सकता कि हमारे लिए स्वर्ग है क्योंकि हमारे पास धन दौलत बहुत है। यह हो नहीं सकता। यह तो बना-बनाया खेल है। सतयुग पास्ट हो गया, इस समय तो हो भी नहीं सकता। यह सब समझने की बातें हैं। बाप बैठ सब बातें समझाते हैं। सतयुग में इनका राज्य था। भारतवासी उस समय सतयुगी कहलाते थे। अभी जरूर कलियुगी कहलायेंगे। सतयुगी थे तो उसको स्वर्ग कहा जाता था। ऐसे नहीं कि नर्क को भी स्वर्ग कहेंगे। मनुष्यों की तो अपनी-अपनी मत है। धन का सुख है तो अपने को स्वर्ग में समझते हैं। मेरे पास तो बहुत सम्पत्ति है इसलिए मैं स्वर्ग में हूँ। परन्तु विवेक कहता है कि नहीं। यह तो है ही नर्क। भल किसके पास 10-20 लाख हों परन्तु यह है ही रोगी दुनिया। सतयुग को कहेंगे निरोगी दुनिया। दुनिया यही है। सतयुग में इनको योगी दुनिया कहेंगे, कलियुग को भोगी दुनिया कहा जाता है। वहाँ हैं योगी क्योंकि विकार का भोग-विलास नहीं होता है। तो यह स्कूल है इसमें शक्ति की बात नहीं। टीचर शक्ति दिखलाते हैं क्या? एम ऑबजेक्ट रहता है, हम फलाना बनेंगे। तुम इस पढ़ाई से मनुष्य से देवता बनते हो। ऐसे नहीं कि कोई जादू, छू मन्त्र वा रिद्वि-सिद्धि की बात है। यह तो स्कूल है। स्कूल में रिद्धि सिद्धि की बात होती है क्या? पढ़कर कोई डॉक्टर, कोई बैरिस्टर बनता है। यह लक्ष्मी-नारायण भी मनुष्य थे, परन्तु पवित्र थे इसलिए उन्हों को देवी-देवता कहा जाता है। पवित्र जरूर बनना है। यह है ही पतित पुरानी दुनिया।
मनुष्य तो समझते हैं पुरानी दुनिया होने में लाखों वर्ष पड़े हैं। कलियुग के बाद ही सतयुग आयेगा। अभी तुम हो संगम पर। इस संगम का किसको भी पता नहीं है। सतयुग को लाखों वर्ष दे देते हैं। यह बातें बाप आकर समझाते हैं। उनको कहा जाता है सुप्रीम सोल। आत्माओं के बाप को बाबा कहेंगे। दूसरा कोई नाम होता नहीं। बाबा का नाम है शिव। शिव के मन्दिर में भी जाते हैं। परमात्मा शिव को निराकार ही कहा जाता है। उनका मनुष्य शरीर नहीं है। तुम आत्मायें यहाँ पार्ट बजाने आती हो तब तुमको मनुष्य शरीर मिलता है। वह है शिव, तुम हो सालिग्राम। शिव और सालिग्रामों की पूजा भी होती है क्योंकि चैतन्य में होकर गये हैं। कुछ करके गये हैं तब उनका नामाचार गाया जाता है अथवा पूजे जाते हैं। आगे जन्म का तो किसको पता नहीं है। इस जन्म में तो गायन करते हैं, देवी-देवताओं को पूजते हैं। इस जन्म में तो बहुत लीडर्स भी बन गये हैं। जो अच्छे-अच्छे साधू-सन्त आदि होकर गये हैं, उनकी स्टैम्प भी बनाते हैं नामाचार के लिए। यहाँ फिर सबसे बड़ा नाम किसका गाया जाए? सबसे बड़े ते बड़ा कौन है? ऊंच ते ऊंच तो एक भगवान ही है। वह है निराकार और उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। देवताओं की महिमा अलग है, मनुष्यों की अलग है। मनुष्य को देवता नहीं कह सकते। देवताओं में सर्वगुण थे, लक्ष्मी-नारायण होकर गये हैं ना। वे पवित्र थे, विश्व के मालिक थे, उनकी पूजा भी करते हैं क्योंकि पवित्र पूज्य हैं, अपवित्र को पूज्य नहीं कहेंगे, अपवित्र सदैव पवित्र को पूजते हैं। कन्या पवित्र है तो पूजी जाती है, पतित बनती है तो सबको पांव पड़ना पड़ता है। इस समय सब हैं पतित, सतयुग में सब पावन थे। वह है ही पवित्र दुनिया, कलियुग है पतित दुनिया तब ही पतित-पावन बाप को बुलाते हैं। जब पवित्र हैं तब नहीं बुलाते हैं। बाप खुद कहते हैं मुझे सुख में कोई भी याद नहीं करते हैं। भारत की ही बात है। बाप आते ही भारत में हैं। भारत ही इस समय पतित बना है, भारत ही पावन था। पावन देवताओं को देखना हो तो जाकर मन्दिर में देखो। देवतायें सब हैं पावन, उनमें जो मुख्य-मुख्य हेड हैं, उन्हों को मन्दिरों में दिखाते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में सब पावन थे, यथा राजा-रानी तथा प्रजा, इस समय सब पतित हैं। सब पुकारते रहते हैं – हे पतित-पावन आओ। संन्यासी कभी श्रीकृष्ण को भगवान वा ब्रह्म नहीं मानेंगे। वह समझते हैं भगवान तो निराकार है, उनका चित्र भी निराकार तरीके से पूजा जाता है। उनका एक्यूरेट नाम शिव है। तुम आत्मा जब यहाँ आकर शरीर धारण करती हो तो तुम्हारा नाम रखा जाता है। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा जाकर लेती है। 84 जन्म तो चाहिए ना। 84 लाख नहीं होते। तो बाप समझाते हैं यही दुनिया सतयुग में नई थी, राइटियस थी। यही दुनिया फिर अनराइटियस बन जाती है। वह है सचखण्ड, सब सच बोलने वाले होते हैं। भारत को सचखण्ड कहा जाता है। झूठखण्ड ही फिर सचखण्ड बनता है। सच्चा बाप ही आकर सचखण्ड बनाते हैं। उनको सच्चा पातशाह, ट्रूथ कहा जाता है, यह है ही झूठ खण्ड। मनुष्य जो कहते हैं वह है झूठ। सेन्सीबुल बुद्धि हैं देवतायें, उन्हों को मनुष्य पूजते हैं। अक्लमंद और बेअक्ल कहा जाता है। अक्लमंद कौन बनाते हैं फिर बेअक्ल कौन बनाते हैं? यह भी बाप बताते हैं। अक्लमंद सर्वगुण सम्पन्न बनाने वाला है बाप। वह खुद आकर अपना परिचय देते हैं। जैसे तुम आत्मा हो फिर यहाँ शरीर में प्रवेश कर पार्ट बजाते हो। मैं भी एक ही बार इनमें प्रवेश करता हूँ। तुम जानते हो वह है ही एक। उनको ही सर्वशक्तिमान कहा जाता है। दूसरा कोई मनुष्य नहीं जिसको हम सर्वशक्तिमान कहें। लक्ष्मी-नारायण को भी नहीं कह सकते क्योंकि उन्हों को भी शक्ति देने वाला कोई है। पतित मनुष्य में शक्ति हो न सके। आत्मा में जो शक्ति रहती है वह फिर आहिस्ते-आहिस्ते डिग्रेड होती जाती है अर्थात् आत्मा में जो सतोप्रधान शक्ति थी वह तमोप्रधान शक्ति हो जाती है। जैसे मोटर का तेल खलास होने से मोटर खड़ी हो जाती है। यह बैटरी घड़ी-घड़ी डिस्चार्ज नहीं होती है, इनको पूरा टाइम मिला हुआ है। कलियुग अन्त में बैटरी ठण्डी हो जाती है। पहले जो सतोप्रधान विश्व के मालिक थे, अभी तमोप्रधान हैं तो ताकत कम हो गई है। शक्ति नहीं रही है। वर्थ नाट पेनी बन जाते हैं। भारत में देवी-देवता धर्म था तो वर्थ पाउण्ड थे। रिलीजन इज माइट कहा जाता है। देवता धर्म में ताकत है। विश्व के मालिक हैं। क्या ताकत थी? कोई लड़ने आदि की ताकत नहीं थी। ताकत मिलती है सर्वशक्तिमान बाप से। ताकत क्या चीज़ है?
बाप समझाते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान थी, अब तमोप्रधान है। विश्व के मालिक बदले विश्व के गुलाम बन गये हो। बाप समझाते हैं – यह 5 विकार रूपी रावण तुम्हारी सारी ताकत छीन लेते हैं इसलिए भारतवासी कंगाल बन पड़े हैं। ऐसे मत समझो साइन्स वालों में बहुत ताकत है, वह ताकत नहीं है। यह रूहानी ताकत है। जो सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाने से मिलती है। साइंस और साइलेन्स की इस समय जैसे लड़ाई है। तुम साइलेन्स में जाते हो, उसका तुमको बल मिल रहा है। साइलेन्स का बल लेकर तुम साइलेन्स दुनिया में चले जायेंगे। बाप को याद कर अपने को शरीर से डिटैच कर देते हो। भक्ति मार्ग में भगवान के पास जाने के लिए तुमने बहुत माथा मारा है। परन्तु सर्वव्यापी कहने के कारण रास्ता मिलता ही नहीं। तमोप्रधान बन गये हैं। तो यह पढ़ाई है, पढाई को शक्ति नहीं कहेंगे। बाप कहते हैं पहले तो पवित्र बनो और फिर सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है उनकी नॉलेज समझो। नॉलेजफुल तो बाप ही है, इसमें शक्ति की बात नहीं। बच्चों को यह पता नहीं है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, तुम एक्टर्स पार्टधारी हो ना। यह बेहद का ड्रामा है। आगे मनुष्यों का नाटक चलता था, उसमें अदली बदली हो सकती है। अभी तो फिर बाइसकोप बने हैं। बाप को भी बाइसकोप का मिसाल दे समझाना सहज होता है। वह छोटा बाइसकोप, यह है बड़ा। नाटक में एक्टर्स आदि को चेन्ज कर सकते हैं। यह तो अनादि ड्रामा है। एक बार जो शूट हुआ है वह फिर बदल नहीं सकता। यह सारी दुनिया बेहद का बाइसकोप है। शक्ति की कोई बात ही नहीं। अम्बा को शक्ति कहते हैं परन्तु फिर भी नाम तो है। उनको अम्बा क्यों कहते हैं? क्या करके गई है? अभी तुम समझते हो कि ऊंच ते ऊंच है अम्बा और लक्ष्मी। अम्बा ही फिर लक्ष्मी बनती है। यह भी तुम बच्चे ही समझते हो। तुम नॉलेजफुल भी बनते हो और तुमको पवित्रता भी सिखलाते हैं। वह पवित्रता आधाकल्प चलती है। फिर बाप ही आकर पवित्रता का रास्ता बताते हैं। उनको बुलाते ही इस समय के लिए हैं कि आकर रास्ता बताओ और फिर गाइड भी बनो। वह है परम आत्मा, सुप्रीम की पढ़ाई से आत्मा सुप्रीम बनती है। सुप्रीम पवित्र को कहा जाता है। अभी तो पतित हो, बाप तो एवर पावन है। फर्क है ना। वह एवर पावन ही जब आकर सबको वर्सा दे और सिखलाये। इसमें खुद आकर बतलाते हैं कि मैं तुम्हारा बाप हूँ। मुझे रथ तो जरूर चाहिए, नहीं तो आत्मा बोले कैसे। रथ भी मशहूर है। गाते हैं भाग्यशाली रथ। तो भाग्यशाली रथ है मनुष्य का, घोड़े-गाड़ी की बात नहीं है। मनुष्य का ही रथ चाहिए, जो मनुष्यों को बैठ समझाये। उन्होंने फिर घोड़े गाड़ी बैठ दिखा दी है। भाग्यशाली रथ मनुष्य को कहा जाता है। यहाँ तो कोई-कोई जानवर की भी बहुत अच्छी सेवा होती है, जो मनुष्य की भी नहीं होती। कुत्ते को कितना प्यार करते हैं। घोड़े को, गाय को भी प्यार करते हैं। कुत्तों की एग्जीवीशन लगती है। यह सब वहाँ होते नहीं। लक्ष्मी-नारायण कुत्ते पालते होंगे क्या?
अभी तुम बच्चे जानते हो कि इस समय के मनुष्य सब तमोप्रधान बुद्धि हैं, उन्हें सतोप्रधान बनाना है। वहाँ तो घोड़े आदि ऐसे नहीं होते जो मनुष्य कोई उनकी सेवा करें। तो बाप समझाते हैं – तुम्हारी हालत देखो क्या हो गई है। रावण ने यह हालत कर दी है, यह तुम्हारा दुश्मन है। परन्तु तुमको पता नहीं है कि इस दुश्मन का जन्म कब होता है। शिव के जन्म का भी पता नहीं है तो रावण के जन्म का भी पता नहीं है। बाप बतलाते हैं त्रेता के अन्त और द्वापर के आदि में रावण आते हैं। उनको 10 शीश क्यों दिये हैं? हर वर्ष क्यों जलाते हैं? यह भी कोई जानते नहीं। अभी तुम मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ते हो, जो पढ़ते नहीं वह देवता बन न सकें। वह फिर आयेंगे तब जब रावणराज्य शुरू होगा। अभी तुम जानते हो हम देवता धर्म के थे अब फिर सैपलिंग लग रहा है। बाप कहते है मैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद तुमको आकर ऐसा पढ़ाता हूँ। इस समय सारे सृष्टि का झाड़ पुराना है। नया जब था तो एक ही देवता धर्म था फिर धीरे-धीरे नीचे उतरते हैं। बाप तुम्हें 84 जन्मों का हिसाब बताते हैं क्योंकि बाप नॉलेजफुल है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रुहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) साइलेन्स का बल जमा करना है। साइलेन्स बल से साइलेन्स दुनिया में जाना है। बाप की याद से ताकत लेकर गुलामी से छूटना है, मालिक बनना है।
2) सुप्रीम की पढ़ाई पढ़कर आत्मा को सुप्रीम बनाना है। पवित्रता के ही रास्ते पर चल पवित्र बनकर दूसरों को बनाना है। गाइड बनना है।
वरदान:-
बापदादा को खुशी होती है कि मेरा एक-एक बच्चा विशेष आत्मा है – चाहे बुजुर्ग है, अनपढ़ है, छोटा बच्चा है, युवा है या प्रवृति वाला है लेकिन विश्व के आगे विशेष है। दुनिया में चाहे कोई कितने भी बड़े नेता हो, अभिनेता हो, वैज्ञानिक हों लेकिन अल्फ को नहीं जाना तो क्या जाना! आप निश्चयबुद्धि हो फलक से कहते हो कि तुम ढूढ़ते रहो, हमने तो पा लिया। प्रवृत्ति में रहते पवित्रता के स्वधर्म को अपना लिया तो पवित्र आत्मा विशेष आत्मा बन गये।
स्लोगन:-
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