10 November 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
9 November 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन और सफलता का आधार - निश्चयबुद्धि
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज समर्थ बाप अपने चारों ओर के समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा समर्थ बन बाप समान बनने के श्रेष्ठ पुरुषार्थ में लगे हुए हैं। बच्चों की इस लगन को देख बापदादा भी हर्षित होते रहते हैं। बच्चों का यह दृढ़ संकल्प बापदादा को भी प्यारा लगता है। बापदादा तो बच्चों को यही कहते कि बाप से भी आगे जा सकते हो क्योंकि यादगार में भी बाप की पूजा सिंगल है, आप बच्चों की पूजा डबल है। बापदादा के सिर के भी ताज हो। बापदादा बच्चों के स्वमान को देख सदा यही कहते वाह श्रेष्ठ स्वमानधारी, स्वराज्यधारी बच्चे वाह! हर एक बच्चे की विशेषता बाप को हर एक के मस्तक में चमकती हुई दिखाई देती है। आप भी अपनी विशेषता को जान, पहचान विश्व सेवा में लगाते चलो। चेक करो – मैं प्रभु पसन्द, परिवार पसन्द कहाँ तक बना हूँ? क्योंकि संगमयुग में बाप ब्राह्मण परिवार रचते हैं, तो प्रभु पसन्द और परिवार पसन्द दोनों आवश्यक हैं।
आज बापदादा सर्व बच्चों के ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन देख रहे थे। फाउण्डेशन है निश्चयबुद्धि इसलिए जहाँ हर संकल्प में, हर कार्य में निश्चय है वहाँ विजय हुई पड़ी है। सफलता जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में स्वत: और सहज प्राप्त है। जन्म सिद्ध अधिकार के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। सफलता ब्राह्मण जीवन के गले का हार है। ब्राह्मण जीवन है ही सफलता स्वरूप। सफलता होगी वा नहीं होगी यह ब्राह्मण जीवन का क्वेश्चन ही नहीं है। निश्चयबुद्धि सदा बाप के साथ कम्बाइन्ड है, तो जहाँ बाप कम्बाइन्ड है वहाँ सफलता सदा प्राप्त है। तो चेक करो – सफलता स्वरूप कहाँ तक बने हैं? अगर सफलता में परसेन्टेज़ है तो उसका कारण निश्चय में परसेन्टेज़ है। निश्चय सिर्फ बाप में है, यह तो बहुत अच्छा है। लेकिन निश्चय – बाप में निश्चय, स्व में निश्चय, ड्रामा में निश्चय और साथ-साथ परिवार में निश्चय। इन चारों निश्चय के आधार से सफलता सहज और स्वत: है।
बाप में निश्चय सभी बच्चों का है तब तो यहाँ आये हैं। बाप का भी आप सबमें निश्चय है तब अपना बनाया है। लेकिन ब्राह्मण जीवन में सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने के लिए स्व में भी निश्चय आवश्यक है। बापदादा के द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ आत्मा के स्वमान सदा स्मृति में रहे कि मैं परमात्मा द्वारा स्वमानधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। साधारण आत्मा नहीं, परमात्म स्वमानधारी आत्मा। तो स्वमान हर संकल्प में, हर कर्म में सफलता अवश्य दिलाता है। साधारण कर्म करने वाली आत्मा नहीं, स्वमानधारी आत्मा हूँ। तो हर कर्म में स्वमान आपको सफलता सहज ही दिलायेगा। तो स्व में निश्चयबुद्धि की निशानी है – सफलता वा विजय। ऐसे ही बाप में तो पक्का निश्चय है, उसकी विशेषता है “निरन्तर मैं बाप का और बाप मेरा।” यह निरन्तर विजय का आधार है। “मेरा बाबा” सिर्फ बाबा नहीं, मेरा बाबा। मेरे के ऊपर अधिकार होता है। तो मेरा बाबा, ऐसी निश्चयबुद्धि आत्मा सदा अधिकारी है – सफलता की, विजय की। ऐसे ही ड्रामा में भी पूरा-पूरा निश्चय चाहिए। सफलता और समस्या दोनों प्रकार की बातें ड्रामा में आती हैं लेकिन समस्या के समय निश्चयबुद्धि की निशानी है – समाधान स्वरूप। समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप द्वारा परिवर्तन कर देना। समस्या का काम है आना, निश्चयबुद्धि आत्मा का काम है समाधान स्वरूप से समस्या को परिवर्तन करना। क्यों? आप हर ब्राह्मण आत्मा ने ब्राह्मण जन्म लेते माया को चैलेन्ज किया है। किया है ना या भूल गये हो? चैलेन्ज है कि हम मायाजीत बनने वाले हैं। तो समस्या का स्वरूप, माया का स्वरूप है। जब चैलेन्ज किया है तो माया सामना तो करेगी ना! वह भिन्न-भिन्न समस्याओं के रूप में आपकी चैलेन्ज को पूरा करने के लिए आती है। आपको निश्चयबुद्धि विजयी स्वरूप से पार करना है, क्यों? नथिंग न्यू। कितने बार विजयी बने हो? अभी एक बार संगम पर विजयी बन रहे हो वा अनेक बार बने हुए को रिपीट कर रहे हो? इसलिए समस्या आपके लिए नई बात नहीं है, नथिंग न्यू। अनेक बार विजयी बने हैं, बन रहे हैं और आगे भी बनते रहेंगे। यह है ड्रामा में निश्चयबुद्धि विजयी। और है – ब्राह्मण परिवार में निश्चय, क्यों? ब्राह्मण परिवार का अर्थ ही है संगठन। छोटा परिवार नहीं है, ब्रह्मा बाप का ब्राह्मण परिवार सर्व परिवारों से श्रेष्ठ और बड़ा है। तो परिवार के बीच, परिवार के प्रीत की रीति निभाने में भी विजयी। ऐसा नहीं कि बाप मेरा, मैं बाबा का, सब कुछ हो गया, बाबा से काम है, परिवार से क्या काम! लेकिन यह भी निश्चय की विशेषता है। चार ही बातों में निश्चय, विजय आवश्यक है। परिवार भी सभी को कई बातों में मजबूत बनाता है। सिर्फ परिवार में यह स्मृति में रहे कि सब अपने-अपने नम्बरवार धारणा स्वरूप हैं। वैरायटी है। इसका यादगार 108 की माला है। सोचो – कहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वाँ नम्बर, क्यों बना? सब एक नम्बर क्यों नहीं बने? 16 हजार क्यों बना? कारण? वैरायटी संस्कार को समझ नॉलेजफुल बन चलना, निभाना, यही सक्सेसफुल स्टेज है। चलना तो पड़ता ही है। परिवार को छोड़कर कहाँ जायेंगे। नशा भी है ना कि हमारा इतना बड़ा परिवार है। तो बड़े परिवार में बड़ी दिल से हर एक के संस्कार को जानते हुए चलना, निर्माण होके चलना, शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से चलना… यही परिवार के निश्चयबुद्धि विजयी की निशानी है। तो सभी विजयी हो ना? विजयी हैं?
डबल फारेनर्स विजयी हैं? हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हैं। बहुत अच्छा। बापदादा को खुशी है। अच्छा – टीचर्स विजयी हैं? या थोड़ा-थोड़ा होता है? क्या करें, यह तो नहीं! ‘कैसे’ के बजाए ‘ऐसे’ शब्द को यूज़ करो, कैसे करें नहीं, ऐसे करें। 21 जन्म का कनेक्शन परिवार से है इसलिए जो परिवार में पास (उत्तीर्ण) है, वह सबमें पास है।
तो चार ही प्रकार का निश्चय चेक करो क्योंकि प्रभु पसन्द के साथ परिवार पसन्द भी होना अति आवश्यक है। नम्बर इन चारों निश्चय के परसेन्टेज़ अनुसार मिलना है। ऐसे नहीं मैं बाबा की, बाबा मेरा, बस हो गया। ऐसा नहीं। मेरा बाबा तो बहुत अच्छा कहते हो और सदा इस निश्चय में अटल भी हो, इसकी मुबारक है लेकिन तीन और भी हैं। टीचर्स, चार ही जरूरी हैं कि नहीं? ऐसे तो नहीं तीन जरूरी है एक नहीं? जो समझते हैं चारों ही निश्चय जरूरी हैं वह एक हाथ उठाना। सभी को चारों ही बातें पसन्द हैं? जिसको तीन बातें पसन्द हों वह हाथ उठाओ। कोई नहीं। निभाना मुश्किल नहीं है? बहुत अच्छा। अगर दिल से हाथ उठाया तो सब पास हो गये। अच्छा।
देखो, कहाँ-कहाँ से, भिन्न-भिन्न देश की टालियां मधुबन में एक वृक्ष बन जाता है। मधुबन में याद रहता है क्या, मैं दिल्ली की हूँ, मैं कर्नाटक की हूँ, मैं गुजरात की हूँ…! सब मधुबन निवासी हैं। तो एक झाड़ हो गया ना। इस समय सब क्या समझते हैं, मधुबन निवासी हो या अपने-अपने देश के निवासी हो? मधुबन निवासी हो? सभी मधुबन निवासी हो, बहुत अच्छा। वैसे भी हर ब्राह्मणों की परमानेन्ट एड्रेस तो मधुबन ही है। आपकी परमानेन्ट एड्रेस कौन सी है? बॉम्बे है? दिल्ली है? पंजाब है? मधुबन परमानेन्ट एड्रेस है। यह तो सेवा के लिए सेवाकेन्द्र में भेजा गया है। वह सेवा के स्थान हैं, घर आपका मधुबन है। आखिर भी एशलम कहाँ मिलना है? मधुबन में ही मिलना है, इसीलिए बड़े-बड़े स्थान बना रहे हैं ना!
सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो सारे दिन में यह ड्रिल करो – मन की ड्रिल। शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज़ आवश्यक है। वह तो करो और खूब करो टाइम पर। सेवा के टाइम एक्सरसाइज़ नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज़ करना अच्छा है। लेकिन साथ-साथ मन की एक्सरसाइज़ बार-बार करो। जब बाप समान बनना है तो एक है निराकार और दूसरा है अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा। तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज़ करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा – डबल लाइट। सेवा का भी बोझ नहीं। अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी। अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो? (बापदादा ने ड्रिल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पॉवरफुल योग की स्थिति में भी बहुत मदद मिलेगी। अच्छा।
डबल फारेनर्स से:- देखो डबल फारेनर्स को इस सीज़न में कारणे-अकारणे सब ग्रुप में चांस मिला है। हर ग्रुप में आ सकते हैं, फ्रीडम है। तो यह भाग्य है ना, डबल भाग्य है। तो इस ग्रुप में भी बापदादा देख रहे हैं कुछ पहली बारी भी आये हैं, कुछ पहले वाले भी आये हैं। बापदादा की दृष्टि सभी फारेनर्स के ऊपर है। जितना प्यार आपका बाप से है, बाप का प्यार आपसे पदमगुणा है। ठीक है ना! पदमगुणा है? आपका भी प्यार, दिल का प्यार है तब यहाँ पहुंचे हो। डबल फारेनर्स इस ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार हैं। स्पेशल श्रृंगार हो। हर देश में बापदादा देख रहे हैं – याद में बैठे हैं, सुन भी रहे हैं तो याद में भी बैठे हैं। बहुत अच्छा।
टीचर्स:- टीचर्स का झुण्ड भी बड़ा है। बापदादा टीचर्स को एक टाइटल देते हैं। कौन सा टाइटल देते हैं? (फ्रैण्ड्स) फ्रैण्ड्स तो सभी हैं ही। डबल फारेनर्स तो पहले फ्रैण्ड्स हैं। इन्हों को फ्रैण्ड का सम्बन्ध अच्छा लगता है। टीचर्स जो योग्य हैं, सभी को नहीं, योग्य टीचर्स को बापदादा कहते हैं – यह गुरूभाई हैं। जैसे बड़े बच्चे बाप के समान हो जाते हैं ना, तो टीचर्स भी गुरूभाई हैं क्योंकि सदा बाप की सेवा के निमित्त बने हुए हैं। बाप समान सेवाधारी हैं। देखो, टीचर्स को बाप का सिंहासन मिलता है मुरली सुनाने के लिए। गुरू की गद्दी मिलती है ना! इसलिए टीचर्स अर्थात् निरन्तर सेवाधारी। चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा कर्मणा – सदा सेवाधारी। ऐसे है ना! आराम पसन्द तो नहीं ना! सेवाधारी। सेवा, सेवा और सेवा। ठीक है ना? अच्छा।
सेवा में दिल्ली, आगरा का टर्न है:- आगरा साथी है। दिल्ली का लश्कर तो बहुत बड़ा है। अच्छा – दिल्ली में स्थापना का फाउण्डेशन पड़ा, यह तो बहुत अच्छा। अभी प्रत्यक्षता बाप की करने का फाउण्डेशन कहाँ से होगा? दिल्ली से या महाराष्ट्र से? कर्नाटक से, लण्डन से… कहाँ से होगा? दिल्ली से होगा? करो निरन्तर सेवा और तपस्या। सेवा और तपस्या दोनों के बैलेन्स से प्रत्यक्षता होगी। जैसे सेवा का डायलॉग बनाया ना, ऐसे दिल्ली में तपस्या का वर्णन करने का डायलॉग बनाओ तब कहेंगे दिल्ली, दिल्ली है। दिल्ली बाप की दिल तो है लेकिन बाप के दिल पसन्द कार्य करके भी दिखायेंगे। पाण्डव करना है ना? करेंगे, जरूर करेंगे। तपस्या ऐसी करो जो सब पतंग बाबा-बाबा कहते दिल्ली के विशेष स्थान पर पहुंच जाएं। परवाने बाबा-बाबा कहते आवें तब कहेंगे प्रत्यक्षता। तो यह करना है, अगले साल यह डायलॉग करना है, यह रिजल्ट सुनानी है कि कितने परवाने बाबा-बाबा कहते स्वाहा हुए। ठीक है ना? बहुत अच्छा, मातायें भी बहुत हैं।
कुमार-कुमारियां:- कुमार और कुमारियां, तो आधा हॉल कुमार-कुमारियां हैं। शाबास कुमार कुमारियों को। बस कुमार कुमारियां ज्वाला रूप बन – आत्माओं को पावन बना देने वाले। कुमार और कुमारियों को तरस पड़ना चाहिए, आज के कुमार और कुमारियों पर, कितने भटक रहे हैं। भटके हुए हमजिन्स को रास्ते पर लगाओ। अच्छा, जो भी कुमार और कुमारी आये हैं उनमें से इस सारे वर्ष में जिसने आत्माओं को सेवा में आप समान बनाया है वह बड़ा हाथ उठाओ। कुमारियों ने आप समान बनाया है? अच्छा प्लैन बना रही हैं। यह हॉस्टल वाली हाथ उठा रही हैं। अभी सेवा का सबूत नहीं लाया है। तो कुमार और कुमारियों को सेवा का सबूत लाना है। ठीक है! अच्छा।
चारों ओर के विजयी रत्नों को, सदा निश्चय बुद्धि सहज सफलता मूर्त बच्चों को, सदा मेरा बाबा के अधिकार से हर सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सफलता मूर्त बच्चों को, सदा समाधान स्वरूप, समस्या को परिवर्तन करने वाले परिवर्तक आत्मायें, ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को सदा बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार, मुबारक, अक्षोणी बार मुबारक और नमस्ते।
दादी जी से:- सबका आपसे प्यार है, बाप का भी आपसे प्यार है। (रतनमोहिनी दादी से) सहयोगी बनने से बहुत कुछ सूक्ष्म में प्राप्त होता है। ऐसे है ना! आदि रतन हैं। आदि रतन अब तक भी निमित्त हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:- |
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) बहुत-बहुत आज्ञाकारी, मीठा होकर चलना है। देह-अहंकार में नहीं आना है। बाप का बच्चा बनकर फिर कोई भी भूल नहीं करनी है। माया की बॉक्सिंग में बहुत-बहुत खबरदार रहना है।
2) अपने वचनों (वाक्यों) में ताकत भरने के लिए आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। स्मृति रहे – बाप का सिखलाया हुआ हम सुना रहे हैं तो उसमें जौहर भरेगा।
वरदान:- |
किसी भी प्रकार का मेरापन – मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचर…कुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता। यह मेरा-मेरा ही मैला बनाने वाला है इसलिए अब तेरा-तेरा कह स्वच्छ बनो। फरिश्ता माना ही मेरे पन का अंशमात्र नहीं। संकल्प में भी मेरेपन का भान आये तो समझो मैला हुआ। तो इस मैलेपन के बोझ को समाप्त कर, डबल लाइट बनो।
स्लोगन:-
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