09 November 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
8 November 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - बाप आया है तुम बच्चों को भक्ति तू आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा बनाने, पतित से पावन बनाने''
प्रश्नः-
ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। यह किसने कहा? आत्मा ने। अविनाशी आत्मा ने कहा शरीर द्वारा। शरीर और आत्मा में कितना फर्क है। शरीर 5 तत्व का इतना बड़ा पुतला बन जाता है। भल छोटा भी है तो भी आत्मा से तो जरूर बड़ा है। पहले तो एकदम छोटा पिण्ड होता है, जब थोड़ा बड़ा होता है तब आत्मा प्रवेश करती है। बड़ा होते-होते फिर इतना बड़ा हो जाता है। आत्मा तो चैतन्य है ना। जब तक आत्मा प्रवेश न करे तब तक पुतला कोई काम का नहीं रहता है। कितना फर्क है। बोलने, चालने वाली भी आत्मा ही है। वह इतनी छोटी-सी बिन्दी ही है। वह कभी छोटी-बड़ी नहीं होती। विनाश को नहीं पाती। अब यह परम आत्मा बाप ने समझाया है कि मैं अविनाशी हूँ और यह शरीर विनाशी है। उनमें मैं प्रवेश कर पार्ट बजाता हूँ। यह बातें तुम अभी चिन्तन में लाते हो। आगे तो न आत्मा को जानते थे, न परमात्मा को जानते थे सिर्फ कहने मात्र कहते थे हे परमपिता परमात्मा। आत्मा भी समझते थे परन्तु फिर कोई ने कहा तुम परमात्मा हो। यह किसने बतलाया? इन भक्ति मार्ग के गुरुओं और शास्त्रों ने। सतयुग में तो कोई बतलायेंगे नहीं। अभी बाप ने समझाया है तुम मेरे बच्चे हो। आत्मा नैचुरल है शरीर अननैचुरल मिट्टी का बना हुआ है। जब आत्मा है तो बोलती चालती है। अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं को बाप आकर समझाते हैं। निराकार शिवबाबा इस संगमयुग पर ही इस शरीर द्वारा आकर सुनाते हैं। यह आंखे तो शरीर में रहती ही हैं। अभी बाप ज्ञान चक्षु देते हैं। आत्मा में ज्ञान नहीं है तो अज्ञान चक्षु है। बाप आते हैं तो आत्मा को ज्ञान चक्षु मिलते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा कर्म करती है शरीर द्वारा। अभी तुम समझते हो बाप ने यह शरीर धारण किया है। अपना भी राज़ बताते हैं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ भी बताते हैं। सारे नाटक का भी नॉलेज देते हैं। आगे तुमको कुछ भी पता नहीं था। हाँ, नाटक जरूर है। सृष्टि का चक्र फिरता है। परन्तु कैसे फिरता है, यह कोई नहीं जानते हैं। रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान अभी तुमको मिलता है। बाकी तो सब है भक्ति। बाप ही आकर तुमको ज्ञानी तू आत्मा बनाते हैं। आगे तुम भक्ति तू आत्मा थे। तू आत्मा भक्ति करते थे। अभी तुम आत्मा ज्ञान सुनते हो। भक्ति को कहा जाता है अन्धियारा। ऐसे नहीं कहेंगे भक्ति से भगवान मिलता है। बाप ने समझाया है भक्ति का भी पार्ट है, ज्ञान का भी पार्ट है। तुम जानते हो हम भक्ति करते थे तो कोई सुख नहीं था। भक्ति करते धक्का खाते रहते थे। बाप को ढूँढते थे। अभी समझते हो यज्ञ, तप, दान, पुण्य आदि जो कुछ करते थे, ढूँढ़ते-ढूँढ़ते धक्का खाते-खाते तंग हो जाते हैं। तमोप्रधान बन जाते हैं क्योंकि गिरना होता है ना। झूठे काम करना छी-छी होना होता है। पतित भी बन गये। ऐसे नहीं कि पावन होने के लिए भक्ति करते थे। भगवान से पावन बनने बिगर हम पावन दुनिया में जा नहीं सकेंगे। ऐसे नहीं कि पावन बनने बिगर भगवान से नहीं मिल सकते। भगवान को तो कहते हैं आकर पावन बनाओ। पतित ही भगवान से मिलते हैं पावन होने के लिए। पावन से तो भगवान मिलता नहीं। सतयुग में थोड़ेही इन लक्ष्मी-नारायण से भगवान मिलता है। भगवान आकरके तुम पतितों को पावन बनाते हैं और तुम यह शरीर छोड़ देते हो। पावन तो इस तमोप्रधान पतित सृष्टि में रह नहीं सकते। बाप तुमको पावन बनाकर गुम हो जाते हैं, उनका पार्ट ही ड्रामा में वन्डरफुल है। जैसे आत्मा देखने में आती नहीं है। भल साक्षात्कार होता है तो भी समझ न सकें। और तो सबको समझ सकते हैं यह फलाना है, यह फलाना है। याद करते हैं। चाहते हैं फलाने का चैतन्य में साक्षात्कार हो और तो कोई मतलब नहीं। अच्छा, चैतन्य में देखते हो फिर क्या? साक्षात्कार हुआ फिर तो गुम हो जायेगा। अल्पकाल क्षण भंगुर सुख की आश पूरी होगी। उसको कहा जायेगा अल्पकाल क्षण भंगुर सुख। साक्षात्कार की चाहना थी वह मिला। बस यहाँ तो मूल बात है पतित से पावन बनने की। पावन बनेंगे तो देवता बन जायेंगे अर्थात् स्वर्ग में चले जायेंगे।
शास्त्रों में तो कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है। समझते हैं कलियुग में अजुन 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। बाबा तो समझाते हैं सारा कल्प ही 5 हज़ार वर्ष का है। तो मनुष्य अन्धियारे में हैं ना। उसको कहा जाता है घोर अन्धियारा। ज्ञान कोई में है नहीं। वह सब है भक्ति। रावण जब से आता है तो भक्ति भी उनके साथ है और जब बाप आते हैं तो उनके साथ ज्ञान है। बाप से एक ही बार ज्ञान का वर्सा मिलता है। घड़ी-घड़ी नहीं मिल सकता। वहाँ तो तुम कोई को ज्ञान देते नहीं। दरकार ही नहीं। ज्ञान उनको मिलता है जो अज्ञान में हैं। बाप को कोई भी जानते ही नहीं। बाप को गाली देने बिगर कोई बात ही नहीं करते। यह भी तुम बच्चे अभी समझते हो। तुम कहते हो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है, वह हम आत्माओं का बाप है और वह कहते कि नहीं परमात्मा ठिक्कर-भित्तर में है। तुम बच्चों ने अच्छी तरह समझा है – भक्ति बिल्कुल अलग चीज़ है, उनमें जरा भी ज्ञान नहीं होता। समय ही सारा बदल जाता है। भगवान का भी नाम बदल जाता है फिर मनुष्यों का भी नाम बदल जाता है। पहले कहा जाता है देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। वह दैवी गुणों वाले मनुष्य हैं और यह हैं आसुरी गुणों वाले मनुष्य। बिल्कुल छी-छी हैं। गुरु नानक ने भी कहा है अशंख चोर…… मनुष्य कोई ऐसा कहे तो उनको झट कहेंगे तुम यह क्या गाली देते हो। परन्तु बाप कहते हैं यह सब आसुरी सम्प्रदाय हैं। तुमको क्लीयर कर समझाते हैं। वह रावण सम्प्रदाय, वह राम सम्प्रदाय। गांधी जी भी कहते थे हमको राम-राज्य चाहिए। रामराज्य में सब निर्विकारी हैं, रावण राज्य में हैं सब विकारी। इनका नाम ही है वेश्यालय। रौरव नर्क है ना। इस समय के मनुष्य विषय वैतरणी नदी में पड़े हैं। मनुष्य, जानवर आदि सब एक समान हैं। मनुष्य की कोई भी महिमा नहीं है। 5 विकारों पर तुम बच्चे जीत पाकर मनुष्य से देवता पद पाते हो, बाकी सब खत्म हो जाते हैं। देवतायें सतयुग में रहते थे। अभी इस कलियुग में असुर रहते हैं। असुरों की निशानी क्या है? 5 विकार। देवताओं को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी और असुरों को कहा जाता है सम्पूर्ण विकारी। वह हैं 16 कला सम्पूर्ण और यहाँ नो कला। सबकी कला काया चट हो गई है। अब यह बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। बाप आते भी हैं पुरानी आसुरी दुनिया को चेन्ज करने। रावण राज्य वेश्यालय को शिवालय बनाते हैं। उन्हों ने तो यहाँ ही नाम रख दिये त्रिमूर्ति हाउस, त्रिमूर्ति रोड… आगे थोड़ेही यह नाम थे। अब होना क्या चाहिए? यह सारी दुनिया किसकी है? परमात्मा की है ना। परमात्मा की दुनिया है जो आधाकल्प पवित्र, आधाकल्प अपवित्र रहती है। क्रियेटर तो बाप को कहा जाता है ना। तो उनकी ही यह दुनिया हुई ना। बाप समझाते हैं मैं ही मालिक हूँ। मैं बीजरूप, चैतन्य, ज्ञान का सागर हूँ। मेरे में सारा ज्ञान है और कोई में नहीं। तुम समझ सकते हो इस सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज बाप में ही है। बाकी तो सब हैं गपोड़े। मुख्य गपोड़ा बहुत खराब है, जिसके लिए बाप उल्हना देते हैं। तुम मुझे ठिक्कर-भित्तर कुत्ते बिल्ली में समझ बैठे हो। तुम्हारी क्या दुर्दशा हो गई है।
नई दुनिया के मनुष्यों और पुरानी दुनिया के मनुष्यों में रात दिन का फर्क है। आधाकल्प से लेकर अपवित्र मनुष्य, पवित्र देवताओं को माथा टेकते हैं। यह भी बच्चों को समझाया है पहले-पहले पूजा होती हैं शिवबाबा की। जो शिवबाबा ही तुमको पुजारी से पूज्य बनाते हैं। रावण तुमको पूज्य से पुजारी बनाते हैं। फिर बाप ड्रामा प्लैन अनुसार तुमको पूज्य बनाते हैं। रावण आदि यह सब नाम तो हैं ना। दशहरा जब मनाते हैं तो कितने मनुष्यों को बाहर से बुलाते हैं। परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते। देवताओं की कितनी निंदा करते हैं। ऐसी बातें तो बिल्कुल हैं नहीं। जैसे कहते हैं ईश्वर नाम-रूप से न्यारा है अर्थात् नहीं है। वैसे यह जो कुछ खेल आदि बनाते हैं वह कुछ भी है नहीं। यह सब हैं मनुष्यों की बुद्धि। मनुष्य मत को आसुरी मत कहा जाता है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। सब ऐसे बन जाते हैं। इनको कहा ही जाता है डेविल वर्ल्ड। सब एक-दो को गाली देते रहते हैं। तो बाप समझाते हैं – बच्चे, जब बैठते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। तुम अज्ञान में थे तो परमात्मा को ऊपर में समझते थे। अभी तो जानते हो बाप यहाँ आया हुआ है तो तुम ऊपर में नहीं समझते हो। तुमने बाप को यहाँ बुलाया है, इस तन में। तुम जब अपने-अपने सेन्टर्स पर बैठते हो तो समझेंगे शिवबाबा मधुबन में इनके तन में हैं। भक्ति मार्ग में तो परमात्मा को ऊपर में मानते थे। हे भगवान….. अभी तुम बाप को कहाँ याद करते हो? क्या बैठकर करते हो? तुम जानते हो ब्रह्मा के तन में है तो जरूर यहाँ याद करना पड़ेगा। ऊपर में तो है नहीं। यहाँ आया हुआ है – पुरूषोत्तम संगमयुग पर। बाप कहते हैं तुमको इतना ऊंच बनाने मैं यहाँ आया हूँ। तुम बच्चे यहाँ याद करेंगे। भक्त ऊपर में याद करेंगे। तुम भल विलायत में होंगे तो भी कहेंगे ब्रह्मा के तन में शिवबाबा है। तन तो जरूर चाहिए ना। कहाँ भी तुम बैठे होंगे तो जरूर यहाँ याद करेंगे। ब्रह्मा के तन में ही याद करना पड़े। कई बुद्धिहीन ब्रह्मा को नहीं मानते हैं। बाबा ऐसे नहीं कहते ब्रह्मा को याद न करो। ब्रह्मा बिगर शिवबाबा कैसे याद पड़ेगा। बाप कहते हैं मैं इस तन में हूँ। इसमें मुझे याद करो इसलिए तुम बाप और दादा दोनों को याद करते हो। बुद्धि में यह ज्ञान है, इनकी अपनी आत्मा है। शिवबाबा को तो अपना शरीर नहीं है। बाप ने कहा है मैं इस प्रकृति का आधार लेता हूँ। बाप बैठ सारे ब्रह्माण्ड और सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाते हैं और कोई ब्रह्माण्ड को जानते ही नहीं। ब्रह्म जिसमें हम और तुम रहते हो, सुप्रीम बाप, नानसुप्रीम आत्मायें रहने वाली उस ब्रह्म लोक शान्तिधाम की हैं। शान्तिधाम बहुत मीठा नाम है। यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं। हम असुल के रहवासी ब्रह्म महतत्व के हैं, जिसको निर्वाणधाम, वानप्रस्थ कहा जाता है। यह बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं, जब भक्ति है तो ज्ञान का अक्षर नहीं। इनको कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग जबकि चेन्ज होती है। पुरानी दुनिया में असुर रहते हैं, नई दुनिया में देवतायें रहते हैं तो उनको चेन्ज करने लिए बाप को आना पड़ता है। सतयुग में तुमको कुछ भी पता नहीं रहेगा। अभी तुम कलियुग में हो तो भी कुछ पता नहीं है। जब नई दुनिया में होंगे तो भी इस पुरानी दुनिया का कुछ पता नहीं होगा। अभी पुरानी दुनिया में हो तो नई का मालूम नहीं है। नई दुनिया कब थी, पता नहीं। वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाप इस संगमयुग पर ही कल्प-कल्प आते हैं, आकर इस वैराइटी झाड़ का राज़ समझाते हैं और यह चक्र कैसे फिरता है वह भी तुम बच्चों को समझाते हैं। तुम्हारा धन्धा ही है यह समझाने का। अब एक-एक को समझाने से तो बहुत टाइम लग जाए इसलिए अभी तुम बहुतों को समझाते हो। बहुत समझते हैं। यह मीठी-मीठी बातें फिर बहुतों को समझानी हैं। तुम प्रदर्शनी आदि में समझाते हो ना अब शिव जयन्ती पर और भी अच्छी रीति बहुतों को बुलाकर समझाना है। खेल की ड्युरेशन कितनी है। तुम तो एक्यूरेट बतायेंगे। यह टॉपिक्स हुई। हम भी यह समझायेंगे। तुमको बाप समझाते हैं ना – जिससे तुम देवता बन जाते हो। जैसे तुम समझकर देवता बनते हो वैसे औरों को भी बनाते हो। बाप ने हमको यह समझाया है। हम किसकी ग्लानि आदि नहीं करते हैं। हम बतलाते हैं ज्ञान को सद्गति मार्ग कहा जाता है, एक सतगुरू ही है पार करने वाला। ऐसी-ऐसी मुख्य प्वाइंट्स निकालकर समझाओ। यह सारा ज्ञान बाप के सिवाए कोई दे नहीं सकता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) बहुत-बहुत आज्ञाकारी, मीठा होकर चलना है। देह-अहंकार में नहीं आना है। बाप का बच्चा बनकर फिर कोई भी भूल नहीं करनी है। माया की बॉक्सिंग में बहुत-बहुत खबरदार रहना है।
2) अपने वचनों (वाक्यों) में ताकत भरने के लिए आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। स्मृति रहे – बाप का सिखलाया हुआ हम सुना रहे हैं तो उसमें जौहर भरेगा।
वरदान:- |
विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है – इस स्मृति से सदा उड़ते चलो। कुछ भी हो जाए – ये स्मृति में लाओ कि मैं सदा विजयी हूँ। क्या भी हो जाए – यह निश्चय अटल हो। नशे का आधार है ही निश्चय। निश्चय कम तो नशा कम इसलिए कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी। निश्चय में कभी-कभी वाले नहीं बनना। अविनाशी बाप है तो अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी बनो। हर कर्म में विजय का निश्चय और नशा हो।
स्लोगन:-
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