18 February 2025 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
17 February 2025
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - तुम्हारी फ़र्ज-अदाई है घर-घर में बाप का पैगाम देना, कोई भी हालत में युक्ति रचकर बाप का परिचय हरेक को अवश्य दो''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को किस एक बात का शौक रहना चाहिए?
उत्तर:-
गीत:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बच्चे, यह अक्षर एक बाप ही कह सकते हैं। रूहानी बाप बिगर कभी कोई किसको रूहानी बच्चे कह नहीं सकते। बच्चे जानते हैं सब रूहों का एक ही बाप है, हम सब भाई-भाई हैं। गाते भी हैं ब्रदरहुड, फिर भी माया की प्रवेशता ऐसी है जो परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं तो फादरहुड हो पड़ता है। रावण राज्य पुरानी दुनिया में ही होता है। नई दुनिया में राम राज्य अथवा ईश्वरीय राज्य कहा जाता है। यह समझने की बातें हैं। दो राज्य जरूर हैं – ईश्वरीय राज्य और आसुरी राज्य। नई दुनिया और पुरानी दुनिया। नई दुनिया जरूर बाप ही रचते होंगे। इस दुनिया में मनुष्य नई दुनिया और पुरानी दुनिया को भी नहीं समझते हैं। गोया कुछ नहीं जानते हैं। तुम भी कुछ नहीं जानते थे, बेसमझ थे। नई सुख की दुनिया कौन स्थापन करता है फिर पुरानी दुनिया में दु:ख क्यों होता है, स्वर्ग से नर्क कैसे बनता है, यह किसको भी पता नहीं है। इन बातों को तो मनुष्य ही जानेंगे ना। देवताओं के चित्र भी हैं तो जरूर आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था। इस समय नहीं है। यह है प्रजा का प्रजा पर राज्य। बाप भारत में ही आते हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि शिवबाबा भारत में आकर क्या करते हैं। अपने धर्म को ही भूल गये हैं। तुमको अब परिचय देना है त्रिमूर्ति और शिव बाप का। ब्रह्मा देवता, विष्णु देवता, शंकर देवता कहा जाता है फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: तो तुम बच्चों को त्रिमूर्ति शिव का ही परिचय देना है। ऐसी-ऐसी सर्विस करनी है। कोई भी हालत में बाप का परिचय सबको मिले तो बाप से वर्सा ले लेवें। तुम जानते हो हम अभी वर्सा ले रहे हैं। और भी बहुतों को वर्सा लेना है। हमारे ऊपर फर्ज-अदाई है घर-घर में बाप का पैगाम देने की। वास्तव में मैसेन्जर एक बाप ही है। बाप अपना परिचय तुमको देते हैं। तुमको फिर औरों को बाप का परिचय देना है। बाप की नॉलेज देनी है। मुख्य है त्रिमूर्ति शिव, इनका ही कोट ऑफ आर्मस भी बनाया है। गवर्मेंन्ट इनका यथार्थ अर्थ नहीं समझती है। उसमें चक्र भी दिया है चरखे मिसल और उसमें फिर लिखा है सत्य मेव जयते। इनका अर्थ तो निकलता नहीं। यह तो संस्कृत अक्षर है। अब बाप तो है ही ट्रूथ। वह जो समझाते हैं उससे तुम्हारी विजय होती है सारे विश्व पर। बाप कहते हैं मैं सच कहता हूँ तुम इस पढ़ाई से सच-सच नारायण बन सकते हो। वो लोग क्या-क्या अर्थ निकालते हैं। वह भी उनसे पूछना चाहिए। बाबा तो अनेक प्रकार से समझाते हैं। जहाँ-जहाँ मेला लगता है वहाँ नदियों पर भी जाकर समझाओ। पतित-पावन गंगा तो हो नहीं सकती। नदियाँ सागर से निकली हैं। वह है पानी का सागर। उनसे पानी की नदियाँ निकलती हैं। ज्ञान सागर से ज्ञान की नदियाँ निकलेगी। तुम माताओं में अब ज्ञान है, गऊमुख पर जाते हैं, उनके मुख से पानी निकलता है, समझते हैं यह गंगा का जल है। इतने पढ़े-लिखे मनुष्य समझते नहीं कि यहाँ गंगा जल कहाँ से निकलेगा। शास्त्रों में है कि बाण मारा और गंगा निकल आई। अब यह तो हैं ज्ञान की बातें। ऐसे नहीं कि अर्जुन ने बाण मारा और गंगा निकल आई। कितना दूर-दूर तीर्थों पर जाते हैं। कहते हैं शंकर की जटाओं से गंगा निकली, जिसमें स्नान करने से मनुष्य से परी बन जाते हैं। मनुष्य से देवता बन जाते, यह भी परी मिसल हैं ना।
अब तुम बच्चों को बाप का ही परिचय देना है इसलिए बाबा ने यह चित्र बनवाये हैं। त्रिमूर्ति शिव के चित्र में सारी नॉलेज है। सिर्फ उन्हों के त्रिमूर्ति के चित्र में नॉलेज देने वाले (शिव) का चित्र नहीं है। नॉलेज लेने वाले का चित्र है। अभी तुम त्रिमूर्ति शिव के चित्र पर समझाते हो। ऊपर है नॉलेज देने वाला। ब्रह्मा को उनसे नॉलेज मिलती है जो फिर फैलाते हैं। इसको कहा जाता है ईश्वर के धर्म के स्थापना की मशीनरी। यह देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। तुम बच्चों को अपने सत्य धर्म की पहचान मिली है। तुम जानते हो हमको भगवान पढ़ाते हैं। तुम कितना खुश होते हो। बाप कहते हैं तुम बच्चों की खुशी का पारावार नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम्हें पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है, भगवान तो निराकार शिव है, न कि श्री कृष्ण। बाप बैठ समझाते हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। सद्गति सतयुग को कहा जाता है, दुर्गति कलियुग को कहा जाता है। नई दुनिया को नई, पुरानी को पुरानी ही कहेंगे। मनुष्य समझते हैं अभी दुनिया को पुराना होने में 40 हज़ार वर्ष चाहिए। कितना मूँझ पड़े हैं। सिवाए बाप के इन बातों को कोई समझा न सके। बाबा कहते हैं मैं तुम बच्चों को राज्य-भाग्य दे बाकी सबको घर ले जाता हूँ, जो मेरी मत पर चलते हैं वह देवता बन जाते हैं। इन बातों को तुम बच्चे ही जानते हो, नया कोई क्या समझेगा।
तुम मालियों का कर्तव्य है बगीचा लगाकर तैयार करना। बागवान तो डायरेक्शन देते हैं। ऐसे नहीं बाबा कोई नयों से मिलकर ज्ञान देगा। यह काम मालियों का है। समझो, बाबा कलकत्ते में जाये तो बच्चे समझेंगे हम अपने ऑफीसर को, फलाने मित्र को बाबा के पास ले जायें। बाबा कहेंगे, वह तो समझेंगे कुछ भी नहीं। जैसे बुद्धू को सामने ले आकर बिठायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं नये को कभी बाबा के सामने लेकर न आओ। यह तो तुम मालियों का काम है, न कि बागवान का। माली का काम है बगीचे को लगाना। बाप तो डायरेक्शन देते हैं – ऐसे-ऐसे करो इसलिए बाबा कभी नये से मिलता नहीं है। परन्तु कहाँ मेहमान होकर घर में आते हैं तो कहते हैं दर्शन करें। आप हमको क्यों नहीं मिलने देते हो? शंकराचार्य आदि पास कितने जाते हैं। आजकल शंकराचार्य का बड़ा मर्तबा है। पढ़े लिखे हैं, फिर भी जन्म तो विकार से ही लेते हैं ना। ट्रस्टी लोग गद्दी पर कोई को भी बिठा देते हैं। सबकी मत अपनी-अपनी है। बाप खुद आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं कि मैं कल्प-कल्प इस पुराने तन में आता हूँ। यह भी अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। शास्त्रों में तो कल्प की आयु ही लाखों वर्ष लगा दी है। मनुष्य तो इतने जन्म ले नहीं सकते हैं फिर जानवर आदि की भी योनियाँ मिलाकर 84 लाख बना दी हैं। मनुष्य तो जो सुनते हैं सब सत-सत करते रहते हैं। शास्त्रों में तो सब हैं भक्तिमार्ग की बातें। कलकत्ते में देवियों की बहुत शोभावान, सुन्दर मूर्तियां बनाते हैं, सजाते हैं। फिर उनको डुबो देते हैं। यह भी गुड़ियों की पूजा करने वाले बेबीज़ ही ठहरे। बिल्कुल इनोसेन्ट। तुम जानते हो यह है नर्क। स्वर्ग में तो अथाह सुख थे। अभी भी कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा तो जरूर कोई समय स्वर्ग था, अब नहीं है। नर्क के बाद फिर जरूर स्वर्ग आयेगा। इन बातों को भी तुम जानते हो। मनुष्य तो रिंचक भी नहीं जानते। तो नया कोई बाबा के सामने बैठ क्या करेंगे इसलिए माली चाहिए जो पूरी परवरिश करे। यहाँ तो माली भी ढेर के ढेर चाहिए। मेडिकल कॉलेज में कोई नया जाकर बैठे तो समझेगा कुछ भी नहीं। यह नॉलेज भी है नई। बाप कहते हैं मैं आया हूँ सबको पावन बनाने। मुझे याद करो तो पावन बन जायेंगे। इस समय सब हैं तमोप्रधान आत्मायें, तब तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, सबमें परमात्मा है। तो बाप थोड़ेही बैठ ऐसों से माथा मारेगा। यह तो तुम मालियों का काम है – काँटों को फूल बनाना।
तुम जानते हो भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। गाया भी जाता है ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। प्रजापिता ब्रह्मा के तो जरूर बच्चे भी होंगे ना। कोई को इतना भी अक्ल नहीं जो पूछे कि इतने ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं, इनका ब्रह्मा कौन है? अरे प्रजापिता ब्रह्मा तो मशहूर है, उन द्वारा ही ब्राह्मण धर्म स्थापन होता है। कहते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम:। बाप तुम बच्चों को ब्राह्मण बनाये फिर देवता बनाते हैं।
जो नई-नई प्वाइन्ट्स निकलती हैं, उनको अपने पास नोट करने का शौक बच्चों में रहना चाहिए। जो बच्चे अच्छी रीति समझते हैं उन्हें नोट्स लेने का बहुत शौक रहता है। नोट्स लेना अच्छा है, क्योंकि इतनी सब प्वाइन्ट्स याद रहना मुश्किल है। नोट्स लेकर फिर कोई को समझाना है। ऐसे नहीं कि लिखकर फिर कॉपी पड़ी रहे। नई-नई प्वाइंट्स मिलती रहती हैं तो पुरानी प्वाइंट्स की कापियाँ पड़ी रहती है। स्कूल में भी पढ़ते जायेंगे, पहले दर्जे वाली किताब पड़ी रहती है। जब तुम समझाते हो तो पिछाड़ी में यह समझाओ कि मन्मनाभव। बाप को और सृष्टि चक्र को याद करो। मुख्य बात है मामेकम् याद करो, इसको ही योग अग्नि कहा जाता है। भगवान है ज्ञान का सागर। मनुष्य हैं शास्त्रों का सागर। बाप कोई शास्त्र नहीं सुनाते हैं, वह भी शास्त्र सुनाये तो बाकी भगवान और मनुष्य में फ़र्क क्या रहा? बाप कहते हैं इन भक्ति मार्ग के शास्त्रों का सार मैं तुमको समझाता हूँ।
वह मुरली बजाने वाले सर्प को पकड़ते हैं तो उसके दांत निकाल देते हैं। बाप भी विष पिलाना तुमसे छुड़ा देते हैं। इसी विष से ही मनुष्य पतित बने हैं। बाप कहते हैं इनको छोड़ो फिर भी छोड़ते नहीं हैं। बाप गोरा बनाते हैं फिर भी गिरकर काला मुँह कर देते हैं। बाप आये हैं तुम बच्चों को ज्ञान चिता पर बिठाने। ज्ञान चिता पर बैठने से तुम विश्व के मालिक, जगत जीत बन जाते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) सदा खुशी रहे कि हम सत धर्म की स्थापना के निमित्त हैं। स्वयं भगवान हमें पढ़ाते हैं। हमारा देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है।
2) माली बन काँटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। पूरी परवरिश कर फिर बाप के सामने लाना है। मेहनत करनी है।
वरदान:- |
संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का स्थान है ही बापदादा का दिलतख्त। ऐसा तख्त सारे कल्प में नहीं मिल सकता। विश्व के राज्य का वा स्टेट के राज्य का तख्त तो मिलता रहेगा लेकिन यह तख्त नहीं मिलेगा – यह इतना विशाल तख्त है जो चलो, फिरो, खाओ-सोओ लेकिन सदा तख्तनशीन रह सकते हो। जो बच्चे सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन रहते हैं वे इस पुरानी देह वा देह की दुनिया से विस्मृत रहते हैं, इसे देखते हुए भी नहीं देखते।
स्लोगन:-
अव्यक्त इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ
जैसे कोई भी नई इन्वेन्शन अन्डरग्राउन्ड जाने से कर सकते हैं। वैसे आप भी जितना अन्डरग्राउन्ड अर्थात् अन्तर्मुखी रहेंगे उतना नई-नई इन्वेन्शन वा योजनायें निकाल सकेंगे। अन्डरग्राउन्ड रहने से एक तो वायुमण्डल से बचाव हो जायेगा, दूसरा एकान्त प्राप्त होने के कारण मनन शक्ति भी बढ़ेगी। तीसरा कोई भी माया के विघ्नों से सेफ्टी का साधन बन जाता है।
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