16 February 2025 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
15 February 2025
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“पूर्वज और पूज्य के स्वमान में रह विश्व की हर आत्मा की पालना करो, दुआयें दो, दुआयें लो''
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा पूर्वज भी है और पूज्य भी है इसलिए इस कल्प वृक्ष के आप सभी जड़ हैं, तना भी हैं। तना का कनेक्शन सारे वृक्ष के टाल टालियों से, पत्तों से स्वत: ही होता है। तो सभी अपने को ऐसी श्रेष्ठ आत्मा सारे वृक्ष के पूर्वज समझते हो? जैसे ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर कहा जाता है, उनके साथी आप भी मास्टर ग्रेट ग्रैण्ड फादर हो। पूर्वज आत्माओं का कितना स्वमान है! उस नशे में रहते हो? सारे विश्व की आत्माओं से चाहे किसी भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन सर्व आत्माओं के आप तना के रूप में आधारमूर्त पूर्वज हो इसीलिए पूर्वज होने के कारण पूज्य भी हो। पूर्वज द्वारा हर आत्मा को सकाश स्वत: ही मिलती रहती है। झाड़ को देखो, तना द्वारा, जड़ द्वारा लास्ट पत्ते को भी सकाश मिलती रहती है। पूर्वज का कार्य क्या होता है? पूर्वजों का कार्य है सर्व की पालना करना। लौकिक में भी देखो पूर्वजों द्वारा ही चाहे शारीरिक शक्ति की पालना, स्थूल भोजन द्वारा वा पढ़ाई द्वारा शक्ति भरने की पालना होती है। तो आप पूर्वज आत्माओं को बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों से सर्व आत्माओं की पालना करना है।
आज के समय अनुसार सर्व आत्माओं को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। जानते हो आजकल आत्माओं में अशान्ति और दु:ख की लहर छाई हुई है। तो आप पूर्वज और पूज्य आत्माओं को अपने वंशावली के ऊपर रहम आता है? जैसे जब कोई विशेष अशान्ति का वायुमण्डल होता है तो विशेष रूप से मिलेट्री या पुलिस अलर्ट हो जाती है। ऐसे ही आजकल के वातावरण में आप पूर्वज भी विशेष सेवा के अर्थ स्वयं को निमित्त समझते हो! सारे विश्व की आत्माओं के निमित्त हैं, यह स्मृति रहती है? सारे विश्व की आत्माओं को आज आपके सकाश की आवश्यकता है। ऐसे बेहद के विश्व की पूर्वज आत्मा अपने को अनुभव करते हो? विश्व की सेवा याद आती है वा अपने सेन्टर्स की सेवा याद आती है? आज आत्मायें आप पूर्वज देव आत्माओं को पुकार रही हैं। हर एक अपने-अपने भिन्न-भिन्न देवियां वा देवताओं को पुकार रहे हैं – आओ, क्षमा करो, कृपा करो। तो भक्तों का आवाज सुनने आता है? आता है सुनने या नहीं? कोई भी धर्म की आत्मायें हैं, जब उनसे मिलते हो तो अपने को सर्व आत्माओं के पूर्वज समझकर मिलते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह भी हम पूर्वज की ही टाल-टालियां हैं! इन्हों को भी सकाश देने वाले आप पूर्वज हो। अपने कल्प वृक्ष का चित्र सामने लाओ, अपने को देखो आपका स्थान कहाँ है! जड़ में भी आप हो, तना भी आप हो। साथ में परमधाम में भी देखो आप पूर्वज आत्माओं का स्थान बाप के साथ समीप का है। जानते हो ना! इसी नशे से कोई भी आत्मा से मिलते हो तो हर धर्म की आत्मा आपको यह हमारे हैं, अपने हैं, उस दृष्टि से देखते हैं। अगर उस पूर्वज के नशे से, स्मृति से, वृत्ति से, दृष्टि से मिलते हो, तो उन्हों को भी अपनेपन का आभास होता है क्योंकि आप सर्व के पूर्वज हो, सबके हो। ऐसी स्मृति से सेवा करने से हर आत्मा अनुभव करेगी कि यह हमारे ही पूर्वज वा ईष्ट फिर से हमें मिल गये। फिर पूज्य भी देखो कितनी बड़ी पूजा है, कोई भी धर्मात्मा, महात्मा की ऐसी आप देवी-देवताओं के समान विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। पूज्य बनते हैं लेकिन तुम्हारे जैसी विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। गायन भी देखो कितना विधि-पूर्वक कीर्तन करते हैं, आरती करते हैं। ऐसे पूज्य आप पूर्वज ही बनते हो। तो अपने को ऐसे समझते हो? ऐसा नशा है? है नशा? जो समझते हैं हम पूर्वज आत्मायें हैं, यह नशा रहता है, यह स्मृति रहती है वह हाथ उठाओ। रहती है? अच्छा। रहती है वह तो हाथ उठाया? बहुत अच्छा। अभी दूसरा क्वेश्चन कौन सा होता है? सदा रहता है?
बापदादा सभी बच्चों को हर प्राप्ति में अविनाशी देखने चाहते हैं। कभी-कभी नहीं, क्यों? जवाब बहुत चतुराई से देते हैं, क्या कहते हैं? रहते तो हैं…, अच्छा रहते हैं। फिर धीरे से कहते हैं थोड़ा कभी-कभी हो जाता है। देखो बाप भी अविनाशी, आप आत्मायें भी अविनाशी हो ना! प्राप्तियां भी अविनाशी, ज्ञान अविनाशी द्वारा अविनाशी ज्ञान है। तो धारणा भी क्या होनी चाहिए? अविनाशी होनी चाहिए या कभी-कभी?
बापदादा अभी सभी बच्चों को समय के सरकमस्टांश अनुसार बेहद की सेवा में सदा बिजी देखने चाहते हैं क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की हलचल से बच जाते हैं। लेकिन जब भी सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो और प्लैन अनुसार प्रैक्टिकल में भी आते हो, सफलता भी प्राप्त करते हो। लेकिन बापदादा चाहते हैं कि एक समय पर तीनों सेवा इकट्ठी हो, सिर्फ वाचा नहीं हो, मन्सा भी हो, वाचा भी हो और कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हुए भी सेवा हो। सेवा का भाव, सेवा की भावना हो। इस समय वाचा के सेवा की परसेन्टेज़ ज्यादा है, मन्सा है लेकिन वाचा की परसेन्टेज़ ज्यादा है। एक ही समय पर तीनों सेवा साथ-साथ होने से सेवा में सफलता और ज्यादा होगी।
बापदादा ने समाचार सुना है कि इस ग्रुप में भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हुए हैं और सेवा के प्लैन अच्छे बना रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं, लेकिन तीनों सेवा इकट्ठी होने से सेवा की स्पीड और वृद्धि को प्राप्त होगी। सभी चारों ओर से बच्चे पहुंच गये हैं, यह देख बापदादा को भी खुशी होती है। नये-नये बच्चे उमंग-उत्साह से पहुंच जाते हैं।
अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सको। इसके लिए विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो। करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो। एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो। आत्मा के ओरीज्नल संस्कार के स्वरूप में देखो। चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन की श्रेष्ठ भावना, उनके संस्कार को थोड़े समय के लिए परिवर्तन कर सकती है। आत्मिक भाव इमर्ज करो। जैसे शुरू-शुरू में देखा तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा-आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया। अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, सम्पर्क में आना मर्ज हो गया है। खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है। आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो। ब्राह्मण आत्मा के रूप में भी सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो। उसी स्वरूप से सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ। हर समय चेक करो – मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? “दुआओं देना और दुआयें लेना।” आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते। और कोई भी अगर पुरुषार्थ में मेहनत समझते हैं तो सबसे सहज पुरुषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो। आपका टाइटल है, वरदान ही है महादानी, सेवा करते, कार्य में सम्बन्ध-सम्पर्क में आते सिर्फ यही कार्य करो – दुआयें दो और दुआयें लो। यह मुश्किल है क्या? कि सहज है? जो समझते हैं सहज है, वह हाथ उठाओ। कोई आपका आपोजीशन करे तो? तो भी दुआ देंगे? देंगे? इतनी दुआओं का स्टॉक है आपके पास? आपोजीशन तो होगी क्योंकि आपोजीशन ही पोजीशन तक पहुंचाती है। देखो, सबसे ज्यादा आपोजीशन ब्रह्मा बाप की हुई। हुई ना? और पोजीशन किसने नम्बरवन पाई? ब्रह्मा ने पाई ना! कुछ भी हो लेकिन मुझे ब्रह्मा बाप समान दुआयें देनी हैं। क्या ब्रह्मा बाप के आगे व्यर्थ बोलने, व्यर्थ करने वाले नहीं थे? लेकिन ब्रह्मा बाप ने दुआयें दी, दुआयें ली, समाने की शक्ति रखी। बच्चा है, बदल जायेगा। ऐसे ही आप भी यही वृत्ति दृष्टि रखो – यह कल्प पहले वाले हमारे ही परिवार के, ब्राह्मण परिवार के हैं। मुझे बदल इसको भी बदलना है। यह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। मुझे बदलके बदलना है, मेरी जिम्मेवारी है। तब दुआ निकलेगी और दुआ मिलेगी।
अभी समय जल्दी से परिवर्तन की ओर जा रहा है, अति में जा रहा है लेकिन समय परिवर्तन के पहले आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें स्व परिवर्तन द्वारा सर्व के परिवर्तन के आधारमूर्त बनो। आप भी विश्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त हो। हर एक आत्मा लक्ष्य रखो – मुझे निमित्त बनना है। सिर्फ तीन बातों का स्व में संकल्प मात्र भी न हो, यह परिवर्तन करो। एक – पर-चिन्तन। दूसरा – परदर्शन। स्वदर्शन के बजाए परदर्शन नहीं। तीसरा – परमत या परसंग, कुसंग। श्रेष्ठ संग करो क्योंकि संगदोष बहुत नुकसान करता है। पहले भी बापदादा ने कहा था – एक पर-उपकारी बनो और यह तीन पर काट दो। पर दर्शन, पर चिंतन, परमत अर्थात् कुसंग, पर का फालतू संग। पर-उपकारी बनो तब ही दुआयें मिलेंगी और दुआयें देंगे। कोई कुछ भी दे लेकिन आप दुआयें दो। इतनी हिम्मत है? है हिम्मत? तो बापदादा चारों ओर के सर्व सेन्टर्स वाले बच्चों को कहते हैं – अगर आप सब बच्चों ने हिम्मत रखी, कोई कुछ भी दे लेकिन हमें दुआयें देनी हैं, तो बापदादा इस वर्ष एक्स्ट्रा आपको हिम्मत के, उमंग के कारण मदद देंगे। एक्स्ट्रा मदद देंगे। लेकिन दुआयें देंगे तो। मिक्स नहीं करना। बापदादा के पास तो सारा रिकार्ड आता है ना! संकल्प में भी दुआओं के बदले और कुछ न हो। हिम्मत है? है तो हाथ उठाओ। करना पड़ेगा। सिर्फ हाथ नहीं उठाना। करना पड़ेगा। करेंगे? मधुबन वाले, टीचर्स करेंगे? अच्छा, एक्स्ट्रा मार्क्स जमा करेंगे? मुबारक हो। क्यों? बापदादा के पास एडवांस पार्टी बार-बार आती है। वह कहती है कि हमें तो एडवांस पार्टी का पार्ट दिया, वह बजा रहे हैं लेकिन हमारे साथी एडवांस स्टेज क्यों नहीं बनाते? अभी उत्तर क्या दें? क्या उत्तर दें? एडवांस स्टेज और एडवांस पार्टी का पार्ट, जब दोनों मिलें तब तो समाप्ति होगी। तो वह पूछते हैं तो क्या जवाब दें? कितने साल में बनेंगी? सब मना लिया, सिलवर जुबली, गोल्डन जुबली, डायमण्ड जुबली सब मना लिया। अभी एडवांस स्टेज सेरीमनी मनाओ। उसकी डेट फिक्स करो। पाण्डव बताओ, डेट होगी उसकी? पहली लाइन वाले बोलो। डेट फिक्स होगी कि अचानक होगा? क्या होगा? अचानक होगा कि हो जायेगा? बोलो, कुछ बोलो। सोच रहे हैं क्या? निर्वैर से पूछ रहे हैं? सेरीमनी होगी या अचानक होगा? आप दादी से पूछ रहे हो? यह दादी को देख रहा है कि दादी कुछ बोले। आप बताओ, रमेश को कहते हैं बताओ? (आखिर तो यह होना ही है) आखिर भी कब? (आप डेट बताओ, उस डेट तक कर लेंगे) अच्छा – बापदादा ने एक साल की एक्स्ट्रा डेट दी है। हिम्मत से एक्स्ट्रा मदद मिलेगी। यह तो कर सकते हैं ना, यह करके दिखाओ फिर बाप डेट फिक्स करेगा। (आपका डायरेक्शन चाहिए तो इस 2004 को ऐसा मना लेंगे) मतलब यह है कि अभी इतनी तैयारी नहीं है। तो एडवांस पार्टी को अभी एक वर्ष तो रहना पड़ेगा ना। अच्छा क्योंकि अभी से लक्ष्य रखेंगे – करना ही है, तो बहुतकाल एड हो जायेगा क्योंकि बहुतकाल का भी हिसाब है ना! अगर अन्त में करेंगे तो बहुतकाल का हिसाब ठीक नहीं होगा इसलिए अभी से अटेन्शन प्लीज़। अच्छा।
अभी रूहानी ड्रिल याद है? एक सेकण्ड में अपने पूर्वज स्टेज में आए परमधाम निवासी बाप के साथ-साथ लाइट हाउस बन विश्व को लाइट दे सकते हो? तो एक सेकण्ड में सभी चारों ओर देश-विदेश में सुनने वाले, देखने वाले लाइट हाउस बन विश्व के चारों ओर सर्व आत्माओं को लाइट दो, सकाश दो, शक्तियां दो। अच्छा।
चारों ओर के विश्व के पूर्वज और पूज्य आत्माओं को, सदा दाता बन सर्व को दुआयें देने वाले महादानी आत्माओं को, सदा दृढ़ता द्वारा स्व-परिवर्तन से सर्व का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक आत्माओं को, सदा लाइट हाउस बन सर्व आत्माओं को लाइट देने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और दिल की दुआओं सहित नमस्ते।
दादी जी, दादी जानकी जी से:- अच्छा है, दोनों दादियां बहुत अच्छी पालना कर रहे हो। अच्छी पालना हो रही है ना! बहुत अच्छा। सेवा के निमित्त बनी हुई है ना! तो आप सबको भी दादियों को देखके खुशी होती है। खुशी होती है ना! जिम्मेवारी का सुख भी तो मिलता है ना! सबकी दुआयें कितनी मिलती हैं। सभी को खुशी होती है, (दोनों दादियाँ बापदादा को गले लगी) जैसे यह देखकर खुशी होती है वैसे इन्हों जैसे बनके कितनी खुशी होगी क्योंकि बापदादा ने निमित्त बनाया है तो कोई विशेषता है तब निमित्त बनाया है। और वही विशेषतायें आप हर एक में आ जाएं तो क्या हो जायेगा? अपना राज्य आ जायेगा। जो बापदादा डेट कहते हैं ना, वह आ जायेगी। अभी याद है ना डेट फिक्स करनी है। हर एक समझे मुझे करनी है। तो सभी निमित्त बन जायेंगे तो विश्व का नव निर्माण हो ही जायेगा। निमित्त भाव, यह गुणों की खान है। सिर्फ हर समय निमित्त भाव आ जाए तो और सभी गुण सहज आ सकते हैं क्योंकि निमित्त भाव में मैं पन नहीं है और मैं पन ही हलचल में लाता है। निमित्त बनने से मेरा पन भी खत्म, तेरा, तेरा हो जाता है। सहजयोगी बन जाते हैं। तो सभी का दादियों से प्यार है, बापदादा से प्यार है, तो प्यार का रिटर्न है – विशेषताओं को समान बनाना। तो ऐसे लक्ष्य रखो। विशेषताओं को समान बनाना है। किसी में भी कोई विशेषता देखो, विशेषता को भले फालो करो। आत्मा को फालो करने में दोनों दिखाई देंगे। विशेषता को देखो और उसमें समान बनो। अच्छा।
वरदान:- |
जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय के रेखा की लाइन बीच-बीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा।
स्लोगन:-
अव्यक्त-इशारे – एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ
एकान्तप्रिय वह होगा जिनका अनेक तरफ से बुद्धि योग टूटा हुआ होगा और एक का ही प्रिय होगा, एक का प्रिय होने कारण एक की याद में रह सकता है। अनेक के प्रिय होने के कारण एक की याद में रह नहीं सकता, अनेक तरफ से बुद्धियोग टूटा हुआ हो, एक तरफ जुटा हुआ हो अर्थात् एक के सिवाय दूसरा न कोई – ऐसी स्थिति वाला जो होगा वह एकान्त प्रिय हो सकता है।
सूचनाः- आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें संगठित रूप में एकत्रित हो योग अभ्यास में यही शुभ संकल्प करें कि मुझ आत्मा द्वारा पवित्रता की किरणें निकलकर सारे विश्व को पावन बना रही हैं। मैं मास्टर पतित पावनी आत्मा हूँ।
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