12 November 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
11 November 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों का श्रृंगार करने, सबसे अच्छा श्रृंगार है पवित्रता का''
प्रश्नः-
पूरे 84 जन्म लेने वालों की मुख्य निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। बाप पहले बच्चों को कहते हैं यह भूल तो नहीं जाते हो – हम बाप के आगे, टीचर के आगे और सतगुरू के आगे बैठे हुए हैं। बाबा नहीं समझते कि सब कोई इस याद में बैठे हैं। फिर भी बाप का फ़र्ज है समझाना। यह है अर्थ सहित याद करना। हमारा बाबा बेहद का बाप भी है, टीचर भी है और बरोबर हमारा सतगुरू भी है जो बच्चों को साथ में ले जायेगा। बाप आये ही हैं बच्चों का श्रृंगार करने। पवित्रता से श्रृंगार करते आते हैं। धन भी अथाह देते हैं। धन देते ही हैं नई दुनिया के लिए, जहाँ तुमको जाना है। यह बच्चों को याद करना है। बच्चे ग़फलत करते हैं जो भूल जाते हैं। वह जो पूरी खुशी होनी चाहिए वह कम हो जाती है। ऐसा बाप तो कभी मिलता ही नहीं। तुम जानते हो हम बाबा के बच्चे जरूर हैं। वह हमको पढ़ाते हैं इसलिए टीचर भी जरूर है। हमारी पढ़ाई है ही नई दुनिया अमरपुरी के लिए। अभी हम संगमयुग पर बैठे हैं। यह याद तो जरूर बच्चों को होनी चाहिए। पक्का-पक्का याद करना है। यह भी जानते हो इस समय कंसपुरी आसुरी दुनिया में हैं। समझो कोई को साक्षात्कार होता है परन्तु साक्षात्कार से कोई कृष्णपुरी, उनकी डिनायस्टी में नहीं जा सकेंगे। जा तब सकेंगे जब बाप, टीचर, गुरू तीनों को ही याद करते रहेंगे। यह आत्माओं से बात की जाती है। आत्मा ही कहती है हाँ बाबा। बाबा आप तो सच कहते हो। आप बाप भी हो, पढ़ाने वाले टीचर भी हो। सुप्रीम आत्मा पढ़ाती है। लौकिक पढ़ाई भी आत्मा ही शरीर के साथ पढ़ाती है। परन्तु वह आत्मा भी पतित तो शरीर भी पतित है। दुनिया के मनुष्यों को यह पता नहीं है कि हम नर्कवासी हैं।
अभी तुम समझते हो हम तो अब चले अपने वतन। यह तुम्हारा वतन नहीं है। यह है रावण का पराया वतन। तुम्हारे वतन में तो अथाह सुख हैं। यहाँ के लोग ऐसे नहीं समझते – हम पराये राज्य में हैं। आगे मुसलमानों के राज्य में बैठे थे फिर क्रिश्चियन के राज्य में बैठे। अभी तुम जानते हो हम अपने राज्य में जाते हैं। आगे रावण राज्य को हम अपना राज्य समझ बैठे थे। यह भूल गये हैं हम पहले रामराज्य में थे। फिर 84 जन्मों के चक्र में आने से रावण राज्य में, दु:ख में आकर पड़े हैं। पराये राज्य में तो दु:ख ही होता है। यह सारा ज्ञान अन्दर में आना चाहिए। बाप तो जरूर याद आयेगा। परन्तु तीनों को याद करना है। यह नॉलेज भी मनुष्य ही ले सकते हैं। जानवर तो नहीं पढ़ेंगे। यह भी तुम बच्चे समझते हो वहाँ कोई बैरिस्टरी आदि की पढ़ाई होती नहीं। बाप यहाँ ही तुमको मालामाल कर रहे हैं तो सब तो राजायें नहीं बनते हैं। व्यापार भी चलता होगा परन्तु वहाँ तुमको अथाह धन रहता है। घाटा आदि होने का कायदा ही नहीं। लूट मार आदि वहाँ होती नहीं। नाम ही है स्वर्ग। अभी तुम बच्चों को स्मृति आई है हम स्वर्ग में थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते हैं। बाप कहानी भी उन्हों को ही बताते हैं। 84 जन्म नहीं लिये होंगे तो माया हरा देगी। यह भी बाप समझाते रहते हैं। माया का कितना बड़ा तूफान है। बहुतों को माया हराने की कोशिश करती है, आगे चल तुम बहुत देखेंगे, सुनेंगे। बाप के पास सबके चित्र होते तो तुमको वन्डर दिखाते – यह फलाना इतना दिन आया, बाप का बना फिर माया खा गई। मर गया, माया के साथ जा मिला। यहाँ इस समय कोई शरीर छोड़ते हैं तो इसी दुनिया में आकर जन्म लेते हैं। तुम शरीर छोड़ेंगे तो बाबा के साथ बेहद घर में जायेंगे। वहाँ बाबा, मम्मा, बच्चे सब हैं ना। परिवार ऐसा ही होता है। मूलवतन में बाप और भाई-भाई हैं, और कोई सम्बन्ध नहीं। यहाँ बाप और भाई-बहन हैं फिर वृद्धि को पाते हैं। चाचा, मामा आदि बहुत संबंध हो जाते हैं। इस संगम पर तुम प्रजापिता ब्रह्मा के बनते हो तो भाई-बहिन हो। शिवबाबा को याद करते हो तो भाई-भाई हो। यह सब बातें अच्छी रीति याद करनी हैं। बहुत बच्चे भूल जाते हैं। बाप तो समझाते रहते हैं। बाप का फ़र्ज है बच्चों को सिर पर उठाना, तब तो नमस्ते-नमस्ते करते रहते हैं। अर्थ भी समझाते हैं। भक्ति करने वाले साधू-सन्त आदि कोई तुमको जीवनमुक्ति का रास्ता नहीं बताते, वह मुक्ति के लिए ही पुरूषार्थ करते रहते हैं। वह हैं ही निवृत्ति मार्ग वाले। वह राजयोग कैसे सिखलायेंगे। राजयोग है ही प्रवृत्ति मार्ग का। प्रजापिता ब्रह्मा को 4 भुजायें देते हैं तो प्रवृत्ति मार्ग हुआ ना। यहाँ बाप ने इनको एडाप्ट किया तो नाम रखा है ब्रह्मा और सरस्वती। ड्रामा में नूँध देखो कैसी है। वानप्रस्थ अवस्था में ही मनुष्य गुरू करते हैं, 60 वर्ष के बाद। इसमें भी 60 वर्ष के बाद बाप ने प्रवेश किया तो बाप, टीचर, गुरू बन गये। अभी तो कायदे भी बिगड़ गये हैं। छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं। यह तो है ही निराकार। तुम्हारी आत्मा का यह बाप भी बनते, टीचर, सतगुरू भी बनते हैं। निराकारी दुनिया को कहा जाता है आत्माओं की दुनिया। ऐसे तो नहीं कहेंगे दुनिया ही नहीं है। शान्तिधाम कहा जाता है। वहाँ आत्मायें रहती हैं। अगर कहें परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल नहीं तो बच्चे फिर कहाँ से आयेंगे।
तुम बच्चे अब समझते हो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है। हिस्ट्री चैतन्य की होती है, जॉग्राफी तो जड़ वस्तु की है। तुम्हारी आत्मा जानती है हम कहाँ तक राज्य करते हैं। हिस्ट्री गाई जाती है जिसको कहानी कहा जाता है। जॉग्राफी देश की होती है। चैतन्य ने राज्य किया, जड़ तो राज्य नहीं करेंगे। कितने समय से फलाने का राज्य था, क्रिश्चियन ने भारत पर कब से कब तक राज्य किया। तो इस वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को कोई जानते ही नहीं। कहते हैं सतयुग को तो लाखों वर्ष हुआ। उसमें कौन राज्य करके गये, कितना समय राज्य किया – यह कोई नहीं जानता। इसको कहा जाता है हिस्ट्री। आत्मा चैतन्य, शरीर जड़ है। सारा खेल ही जड़ और चैतन्य का है। मनुष्य जीवन ही उत्तम गाया जाता है। आदमशुमारी भी मनुष्यों की गिनी जाती है। जानवरों की तो कोई गिनती कर भी न सके। सारा खेल तुम्हारे पर है। हिस्ट्री-जॉग्राफी भी तुम सुनते हो। बाप इसमें आकर तुमको सब बातें समझाते हैं, इसको कहा जाता है बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी। यह नॉलेज न होने कारण तुम कितने बेसमझ बन पड़े हो। मनुष्य होकर दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी को न जानें तो वह मनुष्य ही क्या काम का। अभी बाप द्वारा तुम वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुन रहे हो। यह पढ़ाई कितनी अच्छी है, कौन पढ़ाते हैं? बाप। बाप ही ऊंच ते ऊंच पद दिलाने वाला है। इन लक्ष्मी-नारायण का और जो उन्हों के साथ स्वर्ग में रहते हैं उन्हों का ऊंच ते ऊंच पद है ना। वहाँ बैरिस्टरी आदि तो करते नहीं। वहाँ तो सिर्फ सीखना है। हुनर न सीखें तो मकान आदि कैसे बनें। एक-दो को हुनर सिखलाते हैं। नहीं तो इतने मकान आदि कौन बनायेंगे। आपेही तो नहीं बन जायेंगे। यह सब राज़ अभी तुम बच्चों की बुद्धि में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार रहते हैं। तुम जानते हो यह चक्र फिरता रहता है, इतना समय हम राज्य करते थे फिर रावण के राज्य में आते हैं। दुनिया को इन बातों का पता नहीं हैं कि हम रावण राज्य में हैं। कहते हैं हमको बाबा रावण के राज्य से लिबरेट करो। भारतवासियों ने क्रिश्चियन राज्य से अपने को लिबरेट किया। अब फिर कहते हैं गॉड फादर हमको लिबरेट करो। स्मृति आती है ना कोई भी यह नहीं जानते कि ऐसे क्यों कहते हैं। अभी तुमने समझा है सारे सृष्टि पर ही रावण राज्य है, सब कहते हैं रामराज्य चाहिए तो लिबरेट कौन करेगा? समझते हैं गॉड फादर लिबरेट कर गाइड बन ले जायेंगे। भारतवासियों को इतना अक्ल नहीं है। यह तो बिल्कुल तमोप्रधान हैं। वह न इतना दु:ख उठाते हैं, न इतना सुख ही पाते हैं। भारतवासी सबसे सुखी बनते हैं तो दु:खी भी बने हैं। हिसाब है ना। अभी कितना दु:ख है! जो रिलीजस माइन्डेड हैं वह याद करते हैं – ओ गॉड फादर, लिबरेटर। तुम्हारी भी दिल में है बाबा आकर हमारे दु:ख हरो और सुखधाम ले चलो। वह कहते हैं शान्तिधाम ले चलो। तुम कहेंगे शान्तिधाम और सुखधाम ले चलो। अब बाप आया हुआ है तो बहुत खुशी होनी चाहिए। भक्ति मार्ग में कनरस कितना है। उनमें रीयल बात कुछ भी है नहीं। एकदम आटे में नमक है। चण्डिका देवी का भी मेला लगता है। अब चण्डियों का फिर मेला क्यों लगता है? चण्डी किसको कहा जाता है? बाबा ने बताया है चण्डाल का जन्म भी यहाँ के ही लेते हैं। यहाँ रहकर, खा पीकर कुछ देकर फिर कहते हैं – हमने जो दिया वह हमको दो। हम नहीं मानते। संशय पड़ जाता है तो वह क्या जाकर बनेंगे। ऐसी चण्डिका का भी मेला लगता है। फिर भी सतयुगी तो बनते हैं ना। कुछ समय भी मददगार बने तो स्वर्ग में आ गये। वह भक्त लोग तो जानते नहीं, ज्ञान तो कोई के पास है नहीं। वह चित्रों वाली गीता है, कितना पैसा कमाते हैं। आजकल चित्रों पर तो सब आशिक होते हैं। उसको आर्ट समझते हैं। मनुष्यों को क्या पता देवताओं के चित्र कैसे होते हैं। तुम असुल में कितने फर्स्टक्लास थे। फिर क्या बन गये हो। वहाँ कोई अंधा, काना आदि होता नहीं। देवताओं की नैचुरल शोभा होती है। वहाँ नैचुरल ब्युटी होती है। तो बाप भी सब समझाकर फिर कहते हैं – बच्चे, बाप को याद करो। बाप, बाप भी है, टीचर, सतगुरू भी है। तीनों रूप में याद करो तो तीनों वर्से मिलेंगे। पिछाड़ी वाले तीनों रूप में याद कर नहीं सकेंगे। फिर मुक्ति में चले जायेंगे।
बाबा ने समझाया है सूक्ष्मवतन आदि में जो कुछ देखते हो यह तो सब हैं साक्षात्कार की बातें। बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी सारी यहाँ की है। इनकी आयु का किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चों को बाप ने समझाया है तुम फिर कोई को भी समझा सकते हो। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है। वह बेहद का बाप है सुप्रीम। लौकिक बाप को परमात्मा वा सुप्रीम आत्मा कभी नहीं कहा जाता। सुप्रीम तो एक ही है जिसको भगवान कहा जाता है। वह नॉलेजफुल है तो तुमको नॉलेज सिखलाते हैं। यह ईश्वरीय नॉलेज है सोर्स ऑफ इनकम। नॉलेज भी उत्तम, मध्यम, कनिष्ट होती है ना। बाप है ऊंच ते ऊंच तो पढ़ाई भी ऊंच ते ऊंच है। मर्तबा भी ऊंच है। हिस्ट्री, जॉग्राफी तो झट जान जाते हैं। बाकी याद की यात्रा में युद्ध चलती है। इसमें तुम हारते हो तो नॉलेज में भी तुम हारते हो। हारकर भागन्ती हो जाते हैं तो नॉलेज में भी भागन्ती हो जाते हैं। फिर जैसे थे वैसे बन जाते हैं और ही उनसे भी बदतर। बाप के आगे चलन से देह-अभिमान झट प्रसिद्ध हो जाता है। ब्राह्मणों की माला भी है परन्तु कइयों को पता नहीं है कि हम कैसे नम्बरवार यहाँ बैठें। देह-अभिमान है ना। निश्चय वाले को जरूर अपार खुशी होगी। किसको निश्चय है हम यह शरीर छोड़कर प्रिन्स बनूँगा? (सबने हाथ उठाया) बच्चों को इतनी खुशी रहती है। तुम सबमें तो पूरे दैवीगुण होने चाहिए, जबकि निश्चय है। निश्चयबुद्धि माना विजयी माला में पिरोवन्ती माना शहज़ादा बनन्ती। एक दिन जरूर आयेगा जो फॉरेनर्स सबसे जास्ती आबू में आयेंगे और सब तीर्थ यात्रा आदि छोड़ देंगे। वह चाहते हैं भारत का राजयोग सीखें। कौन है जिसने पैराडाइज़ स्थापन किया। पुरूषार्थ किया जाता है, कल्प पहले यह हुआ होगा तो जरूर म्युज़ियम बन जायेगा। समझाना है ऐसी प्रदर्शनी हमेशा के लिए लगाने चाहते हैं। 4-5 वर्ष के लिए लीज़ पर भी मकान लेकर लगा सकते हैं। हम भारत की ही सेवा करते हैं, सुखधाम बनाने के लिए। इसमें बहुतों का कल्याण होगा। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) अपार खुशी में रहने के लिए सदा स्मृति रहे कि स्वयं बाप हमारा श्रृंगार कर रहे हैं, वह हमें अथाह धन देते हैं। हम नई दुनिया अमरपुरी के लिए पढ़ रहे हैं।
2) विजयमाला में पिरोने के लिए निश्चयबुद्धि बन दैवीगुण धारण करने हैं। जो दिया उसे वापस लेने का संकल्प कभी न आये। संशयबुद्धि बन अपना पद नहीं गँवाना है।
वरदान:- |
आपके सामने कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आये, आपको गाली दे, निंदा करे..तो ऐसी आत्मा को भी अपनी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, वृत्ति द्वारा, स्थिति द्वारा गुण दान या सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। क्रोधी आत्मा परवश है, ऐसी परवश आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा शान्त कर दो, यह आप वरदानी आत्मा का कर्तव्य है। चैतन्य में जब आप में ऐसे संस्कार भरे हैं तब तो जड़ चित्रों द्वारा भक्तों को वरदान मिलते हैं।
स्लोगन:-
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