22 June 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
21 June 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो, तुम्हें आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं, यह देवता बनने की पढ़ाई है''
प्रश्नः-
तुम बच्चे कौन-सी पढ़ाई बाप से ही पढ़ते हो, दूसरा कोई पढ़ा नहीं सकता?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। वास्तव में दोनों ही बाप हैं, एक हद का, दूसरा बेहद का। वह बाप भी है तो यह बाप भी है। बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं। बच्चे जानते हैं हम नई दुनिया सतयुग के लिए पढ़ रहे हैं। ऐसी पढ़ाई कहाँ मिल नहीं सकती। तुम बच्चों ने सतसंग तो बहुत किये हैं। तुम भक्त थे ना। जरूर गुरू किये हुए हैं, शास्त्र अध्ययन किये हुए हैं। परन्तु अभी बाप ने आकर जगाया है। बाप कहते हैं अभी यह पुरानी दुनिया बदलनी है। अभी मैं तुमको नई दुनिया के लिए पढ़ाता हूँ, तुम्हारा टीचर हूँ। कोई भी गुरू के लिए टीचर नहीं कहेंगे। स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं, जिससे ऊंच पद पाते हैं। परन्तु वह पढ़ाते हैं यहाँ के लिए। अभी तुम जानते हो हम जो पढ़ाई पढ़ते हैं वह है नई दुनिया के लिए। गोल्डन एज़ड वर्ल्ड कहा जाता है। यह तो जानते हो कि इस समय आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं। यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो। कैरेक्टर की महिमा की जाती है। देवताओं के आगे जाकर कहते हैं आप ऐसे हो, हम ऐसे हैं। तुमको अभी एम ऑबजेक्ट मिली है। भविष्य के लिए बाप नई दुनिया भी स्थापन करते हैं और तुमको पढ़ाते भी हैं। वहाँ तो विकार की बात होती नहीं। तुम रावण पर जीत पाते हो, रावण राज्य में हैं ही सब विकारी। यथा राजा रानी तथा प्रजा। अभी तो है पंचायती राज्य। उनके पहले राजा रानी का राज्य था, परन्तु वह भी पतित थे। उन पतित राजाओं के पास मंदिर भी होते हैं। निर्विकारी देवताओं की पूजा करते थे। जानते हैं वह देवता पास्ट होकर गये हैं। अभी उनका राज्य है नहीं। बाप आत्माओं को पावन बनाते हैं और याद भी दिलाते हैं कि तुम देवता शरीर वाले थे। तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र थे। अब फिर से बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं, इसलिए ही तुम यहाँ आये हो।
बाबा ऑर्डीनेन्स निकालते हैं – बच्चे, काम महाशत्रु है। यह तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:ख देते हैं। अभी तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पावन बनना है। ऐसे नहीं, देवी-देवता आपस में प्यार नहीं करते होंगे परन्तु वहाँ विकारी दृष्टि नहीं रहती, निर्विकारी होकर रहते हैं। बाप भी कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो। अपना भविष्य ऐसा बनाना है जैसे तुम पवित्र जोड़ी थे। हर एक आत्मा भिन्न नाम रूप लेकर पार्ट बजाती आई है। अभी तुम्हारा यह है अन्तिम पार्ट। पवित्रता के लिए बहुत मूंझते हैं कि क्या करें, कैसे कम्पेनियन होकर रहें। कम्पेनियन होकर रहने का अर्थ क्या है? विलायत में जब बूढ़े होते हैं तो फिर कम्पेनियन रखने के लिए शादी कर लेते हैं, सम्भाल के लिए। ऐसे बहुत हैं जो ब्रह्मचारी हो रहना पसन्द करते हैं। सन्यासियों की तो बात अलग है, गृहस्थ में रहने वाले भी बहुत होते हैं जो शादी करना पसन्द नहीं करते हैं। शादी करना फिर बाल बच्चे आदि सम्भालना, ऐसी जाल फैलायें ही क्यों जो खुद ही फंस पड़ें। ऐसे बहुत यहाँ भी आते हैं। 40 साल हो गये ब्रह्मचारी रहते, इसके बाद क्या शादी करेंगे। स्वतंत्र रहना पसन्द करते हैं। तो बाप उनको देख खुश होते हैं। यह तो है ही बन्धन-मुक्त, बाकी रहा शरीर का बन्धन, उसमें देह सहित सबको भूलना है सिर्फ एक बाप को याद करना है। कोई भी देहधारी क्राइस्ट आदि को याद नहीं करना है। निराकार शिव तो देहधारी नहीं है। उनका नाम शिव है। शिव के मन्दिर भी हैं। आत्मा को पार्ट मिला हुआ है 84 जन्मों का। यह अविनाशी ड्रामा है, इसमें कुछ भी बदली नहीं हो सकता है।
तुम जानते हो पहले-पहले हमारा धर्म, कर्म जो श्रेष्ठ था वह अभी भ्रष्ट बन गया है। ऐसे नहीं, देवता धर्म ही खत्म है। गाते भी हैं देवतायें सर्वगुण सम्पन्न थे। लक्ष्मी-नारायण दोनों पवित्र थे। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। अभी अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है। चौरासी जन्मों में भिन्न-भिन्न नाम-रूप बदलता आया है। बाप ने बताया है – मीठे-मीठे बच्चों, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ। तो जरूर पहले जन्म से लेकर समझाना पड़े। तुम पवित्र थे, अब विकारी बने हो तो देवताओं के आगे जाकर माथा टेकते हो। क्रिश्चियन लोग क्राइस्ट के आगे, बौद्धी लोग बुद्ध के आगे, सिक्ख लोग गुरूनानक की दरबार के आगे जाकर माथा टेकते हैं, इससे मालूम पड़ता है कि यह किस पंथ के हैं। तुम्हारे लिए तो कह देते हैं यह हिन्दू हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहाँ गया, यह किसको पता नहीं। प्राय: लोप हो गया है। भारत में चित्र तो अथाह बनाये हुए हैं। मनुष्यों की भी अनेक मतें हैं। शिव के भी अनेक नाम रख दिये हैं। असुल में उनका एक ही नाम शिव है। ऐसे भी नहीं, उसने पुनर्जन्म लिया है तब नाम फिरते जाते हैं। नहीं। मनुष्यों की अनेक मतें हैं, तो अनेक नाम रखते हैं। श्रीनाथ द्वारे में जाओ तो वहाँ भी बैठे तो वही लक्ष्मी-नारायण हैं, जगन्नाथ के मन्दिर में भी मूर्ति वही है। नाम भिन्न-भिन्न रखे हैं। जब तुम सूर्यवंशी थे तो पूजा आदि नहीं करते थे। तुम सारे विश्व पर राज्य करते थे, सुखी थे। श्रीमत पर श्रेष्ठ राज्य स्थापन किया था। उसको कहा जाता है सुखधाम। और कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको बाप पढ़ाते हैं, मनुष्य से देवता बनाते हैं। निशानी भी है, जरूर उन्हों का ही राज्य था। वहाँ किले आदि होते नहीं। किले आदि बनाते हैं सेफ्टी के लिए। इन देवी-देवताओं के राज्य में किले आदि थे नहीं। दूसरा कोई चढ़ाई करने वाला होता नहीं। अभी तुम जानते हो हम उसी देवी-देवता धर्म में ट्रांसफर हो रहे हैं। उसके लिए तुम राजयोग की पढ़ाई पढ़ रहे हो। राजाई पानी है। भगवानुवाच – मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। अभी तो कोई राजा-रानी नहीं हैं। कितने लड़ाई-झगड़े आदि होते रहते हैं। यह है कलियुग, आइरन एज़ड वर्ल्ड। तुम गोल्डन एज में थे। अभी फिर पुरूषोत्तम संगमयुग पर खड़े हो। बाप तुमको पहले नम्बर में ले जाने आये हैं, सबका कल्याण करते हैं। तुम जानते हो हमारा भी कल्याण होता है पहले-पहले हम जरूर सतयुग में आयेंगे। बाकी जो-जो धर्म हैं वह सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। बाप कहते हैं सबको पवित्र भी बनना है। तुम हो ही पवित्र देश के रहने वाले, जिसको निर्वाणधाम कहा जाता है। वाणी से परे सिर्फ अशरीरी आत्मायें रहती हैं। बाप तुमको अब वाणी से परे ले जाते हैं। ऐसा तो कोई कह न सके कि हम तुमको निर्वाणधाम, शान्तिधाम में ले जाता हूँ। वह तो कहते हैं हम ब्रह्म में लीन होंगे। तुम बच्चे जानते हो अभी यह तमोप्रधान दुनिया है, इसमें तुमको स्वाद नहीं आयेगा इसलिए नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश करने के लिए भगवान् को यहाँ आना पड़ता है। शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। तो क्या आकर करते हैं? कोई बताये। जयन्ती मनाते हैं तो जरूर आते हैं ना। रथ पर विराजमान होते हैं। उन्होने फिर वह घोड़े गाड़ी का रथ दिखाया है। बाप बैठ बताते हैं, मैं किस रथ पर सवार होता हूँ। बच्चों को बताता हूँ। यह ज्ञान फिर प्राय: लोप हो जाता है। इनके 84 जन्मों के अन्त में बाबा को आना पड़ता है। यह ज्ञान कोई दे न सके। ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। नीचे उतरते ही रहते हैं। भक्ति का कितना शो है, कितने कुम्भ के मेले, फलाने मेले लगते रहते हैं। ऐसे कोई भी नहीं कहता है कि अभी तुमको पवित्र बनकर नई दुनिया में जाना है, बाप ही बतलाते हैं अभी संगमयुग है। तुमको पढ़ाई भी वही मिलती है जो कल्प पहले मिली थी, मनुष्य से देवता बने थे। गायन भी है मनुष्य से देवता किये……. जरूर बाप ही बनायेंगे ना। तुम जानते हो हम अपवित्र गृहस्थ धर्म वाले थे, अब बाप आकर फिर पवित्र प्रवृत्ति मार्ग का बनाते हैं। तुम बहुत ऊंच पद पाते हो। ऊंच ते ऊंच बाप कितना ऊंच बनाते हैं। बाप की है श्री-श्री अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत। हम श्रेष्ठ बनते हैं। श्री-श्री के अर्थ का किसको पता नहीं है। एक शिवबाबा का ही यह टाइटिल है परन्तु वह फिर अपने को श्री-श्री कह देते हैं। माला फेरी जाती है। माला है 108 की, उन्हों ने 16108 की बनाई है। उसमें 8 तो आने ही हैं। चार जोड़ी और एक बाप। आठ रत्न और 9वाँ हूँ मैं। उनको रत्न कहते हैं। उनको ऐसा बनाने वाला बाप है। तुम बाप द्वारा पारस बुद्धि बनते हो। रंगून में एक तलाव है, कहते हैं उनमें स्नान करने से परियाँ बन जाते हैं। वास्तव में यह है ज्ञान स्नान, जिससे तुम देवता बन जाते हो। बाकी वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। यह तो कभी हो नहीं सकता कि पानी में स्नान करने से परी बन जायें। यह सब है भक्ति मार्ग। क्या-क्या बातें बना दी हैं। कुछ भी समझते नहीं हैं। अभी तुम समझते हो तुम्हारा ही यादगार देलवाड़ा, गुरू शिखर आदि खड़ा है। बाप बहुत ऊंच रहते हैं ना। तुम जानते हो बाप और हम आत्मायें जहाँ निवास करती हैं, वह है मूलवतन। सूक्ष्मवतन तो केवल साक्षात्कार मात्र है। वह कोई दुनिया नहीं है। सूक्ष्मवतन वा मूलवतन के लिए यह नहीं कहेंगे कि वर्ल्ड हिस्ट्री रिपीट। वर्ल्ड तो एक ही है। इस वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट कहा जाता है।
मनुष्य कहते हैं वर्ल्ड में पीस हो। यह नहीं जानते कि आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है। बाकी जंगल में थोड़ेही शान्ति मिल सकती है। तुम बच्चों को सुख और सबको शान्ति मिल जाती है। जो भी आते हैं पहले शान्तिधाम में जाकर सुखधाम में आयेंगे। कई कहेंगे हम ज्ञान नहीं लें, पिछाड़ी में आयेंगे तो बाकी इतना समय मुक्तिधाम में रहेंगे। यह तो अच्छा है, बहुत समय मुक्ति में रहेंगे। यहाँ करके एक-दो जन्म पद पायेंगे। वह क्या हुआ? जैसे मच्छर निकलते हैं और मर जाते हैं। तो एक जन्म में यहाँ क्या सुख रखा है। वह तो कोई काम का नहीं रहा जैसेकि पार्ट ही नहीं है। तुम्हारा पार्ट तो बहुत ऊंच है। तुम्हारे जितना सुख कोई देख न सके इसलिए पुरूषार्थ करना चाहिए। करते भी रहते हैं। कल्प पहले भी तुमने पुरूषार्थ किया था। अपने पुरूषार्थ अनुसार प्रालब्ध पाई है। पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध पा न सकें। पुरूषार्थ जरूर करना है। बाप कहते हैं यह भी ड्रामा बना हुआ है। तुम्हारा भी पुरूषार्थ चल पड़ेगा। ऐसे तो चल न सके। तुमको पुरूषार्थ तो जरूर करना पड़े। पुरूषार्थ बिगर थोड़ेही कुछ होना है। खांसी आपेही कैसे ठीक होगी? दवाई लेने का पुरूषार्थ करना पड़े। कोई-कोई ऐसे भी ड्रामा पर बैठ जाते हैं, जो ड्रामा में होगा। ऐसा उल्टा ज्ञान बुद्धि में नहीं बिठाना है। यह भी माया विघ्न डालती है। बच्चे पढ़ाई को ही छोड़ देते हैं। इसको कहा जाता है – माया से हार। लड़ाई है ना। वह भी जबरदस्त है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है। जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है। पवित्र प्रवृत्ति बनानी है।
2) ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज़ नहीं करना है। ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है।
वरदान:-
प्रवृत्ति में रहने वालों का सिम्बल है “कमल पुष्प”। तो कमल बनो और अमल करो। अगर अमल नहीं करते तो कमल नहीं बन सकते। तो कमल पुष्प का सिम्बल बुद्धि में रख स्वयं को सैम्पुल समझकर चलो। सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो। सिर्फ प्यारे नहीं बनना लेकिन न्यारे बन प्यारे बनना क्योंकि प्यार कभी लगाव के रूप में बदल जाता है, इसलिए कोई भी सेवा करते न्यारे और प्यारे बनो।
स्लोगन:-
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