31 May 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

May 30, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं कांटों को फूल बनाने, सबसे बड़ा कांटा है देह-अभिमान, इससे ही सब विकार आते हैं, इसलिए देही-अभिमानी बनो''

प्रश्नः-

भक्तों ने बाप के किस कर्त्तव्य को न समझने के कारण सर्वव्यापी कह दिया है?

उत्तर:-

बाप बहुरूपी है, जहाँ आवश्यकता होती सेकण्ड में किसी भी बच्चे में प्रवेश कर सामने वाली आत्मा का कल्याण कर देते हैं। भक्तों को साक्षात्कार करा देते हैं। वह सर्वव्यापी नहीं लेकिन बहुत तीखा राकेट है। बाप को आने-जाने में देरी नहीं लगती। इस बात को न समझने के कारण भक्त लोग सर्वव्यापी कह देते हैं।

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ओम् शान्ति। यह है छोटा-सा गुलशन। ह्युमन गुलशन। बगीचे में तुम जाओ तो उसमें पुराने झाड़ भी होते हैं किस्म-किस्म के। कहाँ मुखड़ियां भी होती हैं, कहाँ आधी खिली हुई मुखड़ियां होती हैं। यह भी बगीचा है ना। अब यह तो बच्चे जानते हैं यहाँ आते हैं कांटों से फूल बनने। श्रीमत से हम कांटे से फूल बन रहे हैं। कांटे जंगल के हैं, फूल बगीचे में होते हैं। बगीचा है स्वर्ग, जंगल है नर्क। बाप भी समझाते हैं यह है पतित कांटों का जंगल, वह है फूलों का बगीचा। फूलों का बगीचा था, वह अभी फिर कांटों का जंगल बना है। देह-अभिमान है सबसे बड़ा कांटा। उसके बाद फिर सब विकार आते हैं। वहाँ तो तुम देही-अभिमानी रहते हो। आत्मा में ज्ञान रहता है – अभी हमारी आयु पूरी होती है। अब हम यह पुराना शरीर छोड़ दूसरा जाकर लेंगे। साक्षात्कार होता है, हम गर्भ महल में जाकर विराजमान होंगे। फिर मुखड़ी बनकर, मुखड़ी से फूल बनेंगे, यह आत्मा को ज्ञान है। सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, यह ज्ञान नहीं है। सिर्फ यह ज्ञान रहता है कि यह शरीर पुराना है, इसको अब बदलना है। अन्दर में खुशी रहती है। कलियुगी दुनिया की कोई भी रस्म आदि वहाँ होती नहीं। यहाँ होती है लोक लाज कुल की मर्यादा, फ़र्क है ना। वहाँ की मर्यादा को सत्य मर्यादा कहा जाता है। यहाँ तो है असत्य मर्यादा। सृष्टि तो है ना। बाप आते ही हैं जबकि आसुरी सम्प्रदाय है। उसमें ही दैवी सम्प्रदाय की जब स्थापना हो जाती है तब विनाश होता है। तो जरूर आसुरी सम्प्रदाय है, उसमें ही दैवीगुण वाली सम्प्रदाय स्थापन हो रही है।

यह भी समझाया है योगबल से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट होते हैं। इस जन्म में भी जो पाप किये हैं, वह भी बताने पड़े। उसमें भी खास है विकार की बात। याद में है बल। बाप है सर्वशक्तिमान्, तुम जानते हो जो सर्व का बाप है उनके साथ योग लगाने से पाप भस्म होते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण सर्व शक्तिमान् हैं ना। सारी सृष्टि पर इनका राज्य है। वह है ही नई दुनिया। हर चीज़ नई। अब तो जमीन ही कलराठी हो गई है। अभी तुम बच्चे नई दुनिया के मालिक बनते हो। तो इतनी खुशी रहनी चाहिए। जैसे स्टूडेन्ट वैसी खुशी भी जास्ती होगी। तुम्हारी यह है ऊंच ते ऊंच युनिवर्सिटी। ऊंच ते ऊंच पढ़ाने वाला है। बच्चे पढ़ते भी हैं ऊंच ते ऊंच बनने के लिए। तुम कितना नीच थे। एकदम नीच से फिर ऊंच बनते हो। बाप खुद ही कहते हैं तुम स्वर्ग के लायक थोड़ेही हो। अपवित्र वहाँ जा न सकें। नीचे हैं तब तो ऊंच देवताओं के आगे उन्हों की महिमा गाते हैं। मन्दिरों में जाकर उन्हों की ऊंचाई और अपनी नीचता का वर्णन करते हैं। फिर कहते हैं रहम करो तो हम भी ऐसे ऊंच बनें। उन्हों के आगे माथा टेकते हैं। हैं तो वह भी मनुष्य परन्तु उनमें दैवी गुण हैं, मन्दिरों में जाते हैं, उन्हों की पूजा करते हैं कि हम भी उन्हों जैसे बनें। यह कोई को पता नहीं है कि उन्हों को ऐसा किसने बनाया? तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ड्रामा बैठा हुआ है – कैसे इस दैवी झाड़ का सैपलिंग लगता है। बाप आते भी हैं संगमयुग पर। यह पतित दुनिया है इसलिए बाप को बुलाते हैं, हमको आकर पतित से पावन बनाओ। अभी तुम पावन होने के लिए पुरूषार्थ करते हो। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जायेंगे शान्तिधाम। मनमनाभव का मंत्र है मुख्य, जो तुमको बाप देते हैं। गुरू लोग तो ढेर के ढेर हैं, कितने मंत्र देते हैं। बाप का है ही एक मंत्र। बाप ने भारत में आकर मंत्र दिया था जिससे तुम देवी-देवता बने थे। भगवानुवाच है ना। वो लोग भल श्लोक आदि कहते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते। तुम अर्थ समझा सकते हो। कुम्भ के मेले में जाते हैं, वहाँ भी तुम सबको समझा सकते हो। यह है पतित दुनिया नर्क। सतयुग पावन दुनिया थी जिसको ही स्वर्ग कहा जाता है। पतित दुनिया में कोई पावन हो न सके। मनुष्य गंगा स्नान कर पावन होने के लिए जाते हैं क्योंकि समझते हैं शरीर को ही पावन बनाना है। आत्मा तो सदैव पावन है ही। आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। तुम लिख भी सकते हो, आत्मा पवित्र होगी ज्ञान स्नान से, न कि पानी के स्नान से। पानी का स्नान तो रोज़ करते रहते हैं। जो भी नदियां हैं उनमें रोज़ स्नान करते रहते हैं। पानी भी वही पीते हैं। अब पानी से ही सब कुछ किया जाता है। बातें कितनी सहज हैं परन्तु किसकी भी बुद्धि में आती नहीं हैं।

ज्ञान से ही सद्गति होती है सेकण्ड में। फिर कहते हैं ज्ञान इतना अथाह है, जो सारा समुद्र स्याही बनाओ, जंगल को कलम बनाओ, धरती को काग़ज़ बनाओ…. तो भी अन्त नहीं हो सकता। बाप भिन्न-भिन्न प्वाइंट्स तो रोज़ समझाते रहते हैं। बाप कहते हैं आज तुमको बहुत गुह्य बातें सुनाता हूँ। बच्चे कहते हैं पहले क्यों नहीं सुनाया! अरे, पहले कैसे सुनायेंगे। कहानी शुरू से लेकर नम्बरवार सुनायेंगे ना। पिछाड़ी का पार्ट पहले कैसे सुना सकेंगे। यह भी बाप सुनाते रहते हैं। यह सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का राज़ तुम जानते हो। तुमसे कोई भी पूछे तो तुम झट रेसपॉन्स कर सकते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनकी बुद्धि में बैठा हुआ है। तुम्हारे पास आते हैं, पूरा रेसपॉन्स नहीं मिलता है तो बाहर जाकर कहते हैं यहाँ तो पूरी समझानी नहीं मिलती है, फालतू चित्र रखे हैं इसलिए उन्हें समझाने वाले बड़े अच्छे चाहिए। नहीं तो वह भी पूरा समझते नहीं हैं। समझाने वाले भी पूरा नहीं तो जैसे को तैसा मिला। बाप कहते हैं कहाँ-कहाँ हम देखते हैं, आदमी बड़ा समझदार है, बच्चे इतने शुरूड (होशियार) नहीं हैं तो फिर हम ही उनमें प्रवेश कर मदद कर लेते हैं क्योंकि बाप तो है बहुत छोटा राकेट। आने-जाने में देरी नहीं लगती है। उन्होंने फिर बहुरूपी वा सर्वव्यापी की बात उठा ली है। यह तो बाप तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं। कोई-कोई आदमी अच्छे होते हैं तो उन्हों को समझाने वाले भी ऐसे चाहिए। आजकल तो कोई छोटेपन से भी शास्त्र कण्ठ कर लेते हैं क्योंकि आत्मा संस्कार ले आती है। कहाँ भी जन्म ले फिर वहाँ वेद शास्त्र आदि पढ़ने लग पड़ेंगे। अन्त मती सो गति होती है ना। आत्मा संस्कार ले जाती है ना। अभी तुम बच्चे समझते हो आखिर वह दिन आया आज…. जो स्वर्ग के द्वार सच-सच खुलते हैं। नई दुनिया की स्थापना, पुरानी दुनिया का विनाश होना है। मनुष्यों को तो यह भी पता नहीं कि स्वर्ग नई दुनिया में होता है। तुम बच्चे ही जानते हो हम सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा वा अमरनाथ की कथा सुन रहे हैं। है एक ही कथा, सुनाई भी एक ने है। फिर उसके शास्त्र बनाये हैं। दृष्टान्त सब तुम्हारे हैं, जो फिर भक्ति मार्ग में उठा लिये हैं। तो संगम पर बाप ही आकर सब बातें समझाते हैं। यह बड़ा भारी बेहद का खेल है, इसमें पहले है सतयुग-त्रेता राम राज्य, फिर होता है रावण राज्य। यह ड्रामा बना हुआ है, इनको अनादि अविनाशी कहा जाता है। हम सब आत्मायें हैं, यह ज्ञान कोई को है नहीं जो तुमको बाप ने ज्ञान दिया है। जो भी आत्मायें हैं उन्हों का पार्ट ड्रामा में नूँधा हुआ है। जिस समय जिसका जो पार्ट होगा उसी समय आयेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे।

बच्चों के लिए मुख्य बात है पतित से पावन बनना। बुलाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। बच्चे ही बुलाते हैं। बाप भी कहते हैं हमारे बच्चे काम चिता पर बैठ भस्म हो गये हैं, यह हैं यथार्थ बातें। आत्मा जो अकाल है, उनका यह तख्त है। लोन लिया हुआ है। ब्रह्मा के लिए भी तुमसे पूछते हैं यह कौन है? बोलो, देखो लिखा हुआ है भगवानुवाच, मैं साधारण तन में आता हूँ। वह सजा हुआ श्रीकृष्ण ही 84 जन्म ले साधारण बनता है, साधारण ही फिर वह कृष्ण बनता है। नीचे तपस्या कर रहे हैं। जानते हैं हम यह बनने वाले हैं। त्रिमूर्ति तो बहुतों ने देखा है। परन्तु उनका अर्थ भी चाहिए ना। स्थापना जो करते हैं फिर पालना भी वही करेंगे। स्थापना के समय का नाम, रूप, देश, काल अलग, पालना का नाम रूप, देश, काल अलग है। यह बातें समझाने में तो बड़ी सहज हैं। यह नीचे तपस्या कर रहे हैं फिर यह बनने वाले हैं। यही 84 जन्म ले यह बनते हैं, कितना सहज ज्ञान है सेकण्ड का। बुद्धि में यह ज्ञान है हम यह देवता बनते हैं। 84 जन्म भी इन देवताओं को ही लेने हैं और कोई लेते हैं क्या? नहीं। 84 का राज़ भी बच्चों को समझा दिया है। देवतायें ही हैं जो पहले-पहले आते हैं। खिलौना होता है ना मछलियों का। मछली ऐसे नीचे आती है, फिर ऊपर चढ़ती है। वह भी जैसे सीढ़ी है। भ्रमरी, कछुए आदि के भी जो मिसाल दिये जाते हैं वह सब इस समय के हैं। भ्रमरी में भी देखो कितना अक्ल है! मनुष्य अपने को बहुत अक्लमंद समझते हैं परन्तु बाप कहते हैं भ्रमरी जितना भी अक्ल नहीं है। सर्प पुरानी खाल छोड़कर नई ले लेते हैं। बच्चों को कितना समझदार बनाया जाता है, समझदार और लायक। आत्मा अपवित्र होने के कारण लायक नहीं है। तो उनको पवित्र बनाए लायक बनाया जाता है। वह है ही लायक दुनिया। यह तो एक बाप का ही काम है जो इस सारी सृष्टि को हेल से हेविन बनाते हैं। हेविन क्या होता है, यह मनुष्यों को पता नहीं है। हेविन कहा जाता है देवी-देवताओं की राजधानी को। सतयुग में है देवी-देवताओं का राज्य। तुम समझते हो सतयुग नई दुनिया में हम ही राज्य भाग्य करते थे। 84 जन्म भी हमने ही लिया होगा। कितना बार राज्य लिया है और फिर गवांया है, यह भी तुम जानते हो। राम मत से तुमने राज्य लिया है, रावण मत से राज्य गवांया है। अभी फिर ऊपर चढ़ने लिए तुमको राम मत मिलती है, गिरने लिए नहीं मिलती है। समझाते तो बहुत अच्छी तरह से हैं परन्तु भक्ति मार्ग की बुद्धि बड़ी मुश्किल चेन्ज होती है। भक्ति मार्ग का शो बहुत है। वह है दुबन (दलदल), एकदम गले तक उसमें डूब पड़ते हैं। जब सभी का अन्त होता है तब मैं आता हूँ, सभी को ज्ञान से पार ले जाता हूँ। मैं आकर इन बच्चों द्वारा कार्य कराता हूँ। बाबा के साथ सर्विस करने वाले तुम ब्राह्मण ही हो, जिनको खुदाई खिदमतगार कहा जाता है। यह सबसे अच्छे ते अच्छी खिदमत है। बच्चों को श्रीमत मिलती है – ऐसे-ऐसे करो। फिर उनसे छांट कर निकलेंगे। यह भी नई बात नहीं है। कल्प पहले भी जितने देवी-देवता निकले थे वही निकलेंगे। ड्रामा में नूँध है। तुमको सिर्फ पैगाम पहुँचाना है। है बहुत सहज। तुम जानते हो भगवान् आते ही हैं कल्प के संगम पर जबकि भक्ति फुल फोर्स में है। बाप आकर सबको ले जाते हैं। तुम पर अभी बृहस्पति की दशा है। सब स्वर्ग में जाते हैं फिर पढ़ाई में नम्बरवार होते हैं। कोई पर मंगल की दशा, कोई पर राहू की दशा बैठती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) लायक और समझदार बनने के लिए पवित्र बनना है। सारी दुनिया को हेल से हेविन बनाने के लिए बाप के साथ सर्विस करनी है। खुदाई खिदमतगार बनना है।

2) कलियुगी दुनिया की रस्म-रिवाज, लोक-लाज, कुल की मर्यादा छोड़ सत्य मर्यादाओं का पालन करना है। दैवी-गुण सम्पन्न बन दैवी सम्प्रदाय की स्थापना करनी है।

वरदान:-

दिनचर्या के कोई भी कर्म में नीचे ऊपर होना, आलस्य में आना या अलबेला होना – यह विकार का अंश है, जिसका प्रभाव पूज्यनीय बनने पर पड़ता है। यदि आप अमृतवेले स्वयं को जागृत स्थिति में अनुभव नहीं करते, मजबूरी से वा सुस्ती से बैठते हो तो पुजारी भी मजबूरी वा सुस्ती से पूजा करेंगे। तो आलस्य वा अलबेलेपन का भी त्याग कर दो तब सम्पूर्ण निर्विकारी बन सकेंगे।

स्लोगन:-

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