11 May 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

May 10, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - कड़े ते कड़ी बीमारी है किसी के नाम रूप में फँसना, अन्तर्मुखी बन इस बीमारी की जांच करो और इससे मुक्त बनो''

प्रश्नः-

नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने की युक्ति क्या है? इससे नुकसान कौन-कौन से होते हैं?

उत्तर:-

नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने के लिए एक बाप से सच्चा-सच्चा लव रखो। याद के समय बुद्धि भटकती है, देहधारी में जाती है तो बाप को सच-सच सुनाओ। सच बताने से बाप क्षमा कर देंगे। सर्जन से बीमारी को छिपाओ नहीं। बाबा को सुनाने से खबरदार हो जायेंगे। बुद्धि किसी के नाम रूप में लटकी हुई है तो बाप से बुद्धि जुट नहीं सकती। वह सर्विस के बजाए डिससर्विस करते हैं। बाप की निंदा कराते हैं। ऐसे निंदक बहुत कड़ी सज़ा के भागी बनते हैं।

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ओम् शान्ति। यूँ तो है डबल ओम् शान्ति क्योंकि दो आत्मायें हैं। दोनों आत्माओं का स्वधर्म है शान्त। बाप का भी स्वधर्म है शान्त। बच्चे वहाँ शान्ति में रहते हैं, उसको कहा ही जाता है शान्तिधाम। बाप भी वहाँ रहते हैं। बाप तो सदैव पावन है। बाकी जो भी मनुष्य मात्र हैं, वह पुनर्जन्म ले अपवित्र बनते हैं। बाप बच्चों को कहते हैं – बच्चे, अपने को आत्मा समझो। आत्मा जानती है परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, शान्ति का सागर है, उनकी महिमा है ना। वह सर्व का बाप है और सर्व का सद्गति दाता भी है। तो सभी का बाप के वर्से पर हक जरूर लगता है। बाप से वर्सा क्या मिलता है? बच्चे जानते हैं बाप है ही स्वर्ग का रचयिता तो जरूर स्वर्ग का वर्सा ही देंगे और देंगे भी जरूर नर्क में। नर्क का वर्सा दिया है रावण ने। इस समय सब नर्कवासी हैं ना। तो जरूर वर्सा रावण से मिला है। नर्क और स्वर्ग दोनों हैं। यह कौन सुनते हैं? आत्मा। अज्ञान काल में भी सब कुछ आत्मा करती है, परन्तु देह-अभिमान के कारण समझते हैं – शरीर सब कुछ करता है। हमारा स्वधर्म है शान्त। यह भूल जाते हैं। हम रहने वाले शान्तिधाम के हैं। यह भी समझाना चाहिए कि सचखण्ड ही फिर झूठखण्ड बनता है। भारत सचखण्ड था फिर रावण राज्य झूठ खण्ड भी बनता है। यह तो कॉमन बात है। मनुष्य क्यों नहीं समझ सकते हैं! क्योंकि आत्मा तमोप्रधान हो गई है, जिसको पत्थरबुद्धि कहते हैं। जिसने भारत को स्वर्ग बनाया, पूज्य बनाया उनको ही फिर पुजारी बन गाली देते हैं। इसमें भी कोई का दोष नहीं। बाप बच्चों को समझाते हैं यह ड्रामा कैसे बना हुआ है। कैसे पूज्य से पुजारी बनें। बाप समझाते हैं आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, कल की बात है। परन्तु मनुष्य बिल्कुल भूले हुए हैं। यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के लिए बैठ बनाये हैं। शास्त्र हैं ही भक्ति मार्ग के लिए, न कि ज्ञान मार्ग के लिए। ज्ञान मार्ग का शास्त्र बनता ही नहीं। बाप ही कल्प-कल्प आकर बच्चों को नॉलेज देते हैं, देवता पद के लिए। बाप पढ़ाई पढ़ाते हैं फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। सतयुग में कोई शास्त्र होता नहीं क्योंकि वह तो है ज्ञान मार्ग की प्रालब्ध। 21 जन्मों के लिए बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है, पीछे फिर रावण का वर्सा मिलता है अल्पकाल के लिए। जिसको संन्यासी लोग काग विष्टा समान सुख कहते हैं। दु:ख ही दु:ख है, इनका नाम ही दु:खधाम है। कलियुग के पहले है द्वापर, उसको कहेंगे सेमी दु:खधाम। यह है फाइनल दु:खधाम। आत्मा ही 84 जन्म लेती है, नीचे उतरती है। बाप सीढ़ी चढ़ा देते हैं क्योंकि चक्र को फिरना जरूर है। नई दुनिया थी, देवी देवताओं का राज्य था। दु:ख का नाम निशान नहीं था इसलिए दिखाते हैं शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं। वहाँ हिंसा की कोई बात ही नहीं। अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म कहा जाता है। यहाँ है हिंसा। पहली-पहली हिंसा है काम कटारी चलाना। सतयुग में विकारी कोई होता नहीं। उन्हों की तो महिमा गाते हैं। लक्ष्मी-नारायण की महिमा गाते हैं ना – आप सम्पूर्ण निर्विकारी…..। यह कलियुग है आइरन एज़ड वर्ल्ड। इनको कोई गोल्डन एज तो कह न सके। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। सतयुग है शिवालय। वहाँ सब हैं पावन, जिन्हों के चित्र भी हैं। शिवालय बनाने वाले शिवबाबा का भी चित्र है। भक्ति मार्ग में उनको अनेक नाम दे दिये हैं। वास्तव में नाम है एक। बाप को अपना शरीर तो है नहीं। खुद कहते हैं मुझे अपना परिचय देने वा रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाने आना पड़ता है। मुझे आकर तुम्हारी सर्विस करनी होती है। तुम ही मुझे बुलाते हो हे पतित-पावन आओ। सतयुग में नहीं बुलाते हो। इस समय सब बुलाते हैं क्योंकि विनाश सामने खड़ा है। भारतवासी जानते हैं यह वही महाभारत लड़ाई है। फिर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। बाप भी कहते हैं मैं राजाओं का राजा बनाने आया हूँ। आजकल तो महाराजा, बादशाह आदि हैं नहीं। अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। बच्चे समझते हैं हम भारतवासी सालवेन्ट थे। हीरे-जवाहरातों के महल में थे। नई दुनिया थी फिर नई ही पुरानी बनी है। हर चीज पुरानी तो होती ही है। जैसे मकान नया बनाते हैं फिर आखरीन तो आयु कम होती जायेगी। कहा जायेगा यह नया है, यह आधा पुराना है, यह मध्यम है। हर एक चीज सतो, रजो, तमो होती है। भगवानुवाच है ना। भगवान् माना भगवान्। भगवान् किसको कहा जाता है, यह भी नहीं जानते हैं। राजा रानी हैं नहीं। यहाँ हैं प्रेजीडेंट, प्राइम मिनिस्टर और उनके ढेर मिनिस्टर…. सतयुग में है यथा राजा रानी…. फ़र्क तो बाप ने बताया है। सतयुग के जो मालिक हैं उन्हों के मिनिस्टर, एडवाइज़र होते नहीं। दरकार नहीं। इस समय ही शिवबाबा से ताकत प्राप्त कर वह पद पाते हैं। इस समय बाप से ऊंच राय मिलती है, जिससे ऊंच पद पाते हैं। फिर कोई से राय लेंगे नहीं। वहाँ वज़ीर होते नहीं। वज़ीर तब होते हैं जब वाम मार्ग में जाते हैं। अक्ल चट हो जाती है।

मूल बात है विकार की। देह-अभिमान से ही विकार पैदा होते हैं। उनमें काम है नम्बरवन। बाप कहते हैं यह काम महाशत्रु है, उन पर जीत पानी है। बाप ने बहुत बार समझाया है अपने को आत्मा समझो। अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा में ही होते हैं। यहाँ ही कर्मों को कूटना होता है, सतयुग में नहीं। वह है सुखधाम। बाप आकर तुम बच्चों को सुखधाम, शान्तिधाम का वासी बनाते हैं। बाप डायरेक्ट आत्माओं से बात करते हैं। सबको कहते हैं आत्मा निश्चय बुद्धि हो बैठो, देह-अभिमान छोड़ो। यह देह विनाशी है, तुम अविनाशी आत्मा हो। यह ज्ञान और कोई में है नहीं। ज्ञान का पता न होने कारण भक्ति को ही ज्ञान समझ लिया है। अब तुम बच्चे समझते हो – भक्ति अलग है, ज्ञान से तो सद्गति होती है। भक्ति का सुख है अल्पकाल के लिए क्योंकि पाप आत्मा बन जाते हैं, विकार में चले जाते हैं। आधाकल्प के लिए बेहद का वर्सा मिला, वह पूरा हो गया। अब फिर बाप वर्सा देने आये हैं, जिसमें पवित्रता, सुख, शान्ति सब मिल जाती है। बच्चे, तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया तो कब्रिस्तान बननी ही है। अब इस कब्रिस्तान से दिल हटाए परिस्तान नई दुनिया से ममत्व लगाओ। जैसे लौकिक बाप नया मकान बनाते हैं तो बच्चों का बुद्धियोग पुराने मकान से निकल नये मकान से लग जाता है। ऑफिस में बैठा होगा तो भी बुद्धि नये मकान में ही होगी। वह है हद की बात। बेहद का बाप तो नई दुनिया स्वर्ग रच रहे हैं। कहते हैं अब पुरानी दुनिया से सम्बन्ध तोड़ एक मुझ बाप से जोड़ो। तुम्हारे लिए नई दुनिया स्वर्ग स्थापन करने आया हूँ। अब यह सारी पुरानी दुनिया इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में स्वाहा होनी है। यह सारा झाड़ तमोप्रधान जड़जड़ीभूत हो गया है। अब फिर नया बनता है। तो बाप समझाते हैं यह है नई दुनिया की बातें। जैसे मनुष्य बीमारी में भी होपलेस हो जाते हैं ना। समझते हैं इनका बचना मुश्किल है। वैसे दुनिया भी अब होपलेस है। कब्रिस्तान बनना है फिर इनको याद क्यों करना चाहिए। यह है बेहद का संन्यास। वह हठयोगी संन्यासी सिर्फ घरबार छोड़ जाते हैं। तुम पुरानी दुनिया का ही संन्यास करते हो। पुरानी दुनिया से नई दुनिया हो जाती है।

बाप कहते हैं हम तो ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। मैं बच्चों की सर्विस में आया हूँ। मुझे बुलाया है – बाबा हम पतित बन गये हैं, आप पतित दुनिया और पतित शरीर में आओ। निमंत्रण देखो कैसा देते हैं! पतित बनाने वाला रावण है, जिसको जलाते रहते हैं। यह बहुत कड़ा दुश्मन है। जब से यह रावण आया है तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:ख मिला है। विषय सागर में गोते खाते रहते हो। अब बाप कहते हैं विष छोड़ ज्ञान अमृत पियो। आधाकल्प रावण राज्य में तुम विकारों के कारण कितने दु:खी बन गये हो। इतने मतवाले बन जाते हो जो गाली बैठ देते हो। गाली भी इतनी देते हो – कमाल करते हो जो तुमको पावन विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको सबसे जास्ती गाली देते हो। मनुष्यों के लिए तो कहते हो 84 लाख योनियां और मुझे सर्वव्यापी कह देते हो। यह भी ड्रामा है। तुमको हंसी में समझाते हैं। अच्छे अथवा बुरे संस्कार-स्वभाव आत्मा के ही होते हैं। आत्मा कहती है हम 84 जन्म भोगते हैं। आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। यह भी अभी बाप ने समझाया है। ड्रामा के प्लैन अनुसार फिर बाप ही आकर जो उल्टे हो गये हैं उनको सुल्टा बनाते हैं। मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं कि यहाँ तुम उल्टे होकर नहीं बैठो। अपने को आत्मा समझो। अब तुमको अल्लाह बाप मिला है जो सुल्टा बनाते हैं। रावण उल्टा बनाते हैं। फिर सुल्टा बनने से तुम सीधे खड़े हो जाते हो। यह एक नाटक है। यह ज्ञान बाप ही बैठ बताते हैं। भक्ति, भक्ति है। ज्ञान, ज्ञान है। भक्ति बिल्कुल अलग है। कहते हैं एक तलाब है, जहाँ स्नान करने से परियां बन जाती हैं। फिर कह देते हैं पार्वती को अमरकथा सुनाई। अभी तुम अमर-कथा सुन रहे हो ना। सिर्फ एक पार्वती को अमरकथा सुनाई क्या! यह तो बेहद की बात है। अमरलोक है सतयुग, मृत्युलोक है कलियुग। इनको कांटों का जंगल कहा जाता है। बाप को जानते ही नहीं। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा, हे भगवान्। परन्तु जानते नहीं। तुम भी नहीं जानते थे। तुमको बाप ने आकर सुल्टा बनाया है। भगवान् को अल्लाह कहा जाता है। अल्लाह पढ़ाकर अल्लाह पद देंगे ना। परन्तु भगवान् एक है। इनको (लक्ष्मी-नारायण को) भगवान्-भगवती नहीं कहेंगे। यह तो पुनर्जन्म में आते हैं ना। मैंने ही इन्हों को पढ़ाकर दैवीगुणों वाला बनाया है।

तुम सब ब्रदर्स हो। बाप के वर्से के हकदार हो। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। आसुरी सम्प्रदाय हैं ना। कहते हैं कलियुग तो अभी रेगड़ी पहनते हैं,(छोटे बच्चे जैसा घुटने के बल पर चलना), समझते हैं अभी बहुत वर्ष पड़े हैं। कितना अज्ञान अन्धेरे में सोये पड़े हैं। यह भी खेल है। सोझरे में दु:ख नहीं होता, अन्धियारे में रात को दु:ख होता है। यह भी तुम ही समझते हो और समझा सकते हो। पहले-पहले तो हर एक मनुष्य को बाप का परिचय देना है। दो बाप तो हर एक को होते हैं। हद का बाप हद का सुख देते हैं, बेहद का बाप बेहद का ही सुख देते हैं। शिवरात्रि मनाते हैं तो जरूर बाप आते हैं स्वर्ग स्थापन करने। जो स्वर्ग पास्ट हो गया है फिर से स्थापना कर रहे हैं। अभी है तमोप्रधान दुनिया नर्क। ड्रामा प्लैन अनुसार जब एक्यूरेट समय होता है तब फिर मैं आकर अपना पार्ट बजाता हूँ। मैं तो हूँ निराकार। मुझे मुख तो जरूर चाहिए। बैल का मुख थोड़ेही होगा। मैं मुख इनका लेता हूँ, जो बहुत जन्म के अन्त के जन्म में वानप्रस्थ अवस्था में है, इनमें प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) जैसे बाप डायरेक्ट आत्माओं से बात करते हैं, ऐसे स्वयं को आत्मा निश्चय करना है। इस कब्रिस्तान से ममत्व निकाल देना है। ऐसे संस्कार धारण करने हैं जो कभी कर्म कूटने न पड़े।

2) जैसे बाप ड्रामा पर अटल होने कारण किसी को भी दोष नहीं देते, गाली देने वाले अपकारियों पर भी उपकार करते, ऐसे बाप समान बनना है। इस ड्रामा में किसी का दोष नहीं, यह एक्यूरेट बना हुआ है।

वरदान:-

जो हैं ही वरदाता के बच्चे उन्हों को हर कदम में वरदाता से वरदान स्वत: ही मिलते हैं। वरदान ही उनकी पालना है। वरदानों की पालना से ही पलते हैं। बिना मेहनत के इतनी श्रेष्ठ प्राप्तियां होना इसे ही वरदान कहा जाता है। तो जन्म-जन्म प्राप्ति के अधिकारी बन गये। हर कदम में वरदाता का वरदान मिल रहा है और सदा ही मिलता रहेगा। अधिकारी आत्मा के लिए दृष्टि से, बोल से, संबंध से वरदान ही वरदान है।

स्लोगन:-

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