28 Mar 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

March 27, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हें गुप्त खुशी होनी चाहिए कि हम परमात्मा बाप की युनिवर्सिटी के स्टूडेन्ट हैं, भविष्य नई दुनिया का वर्सा पाने के लिए पढ़ रहे हैं''

प्रश्नः-

किस स्मृति में सदा रहो तो दैवीगुण धारण होते रहेंगे?

उत्तर:-

हम आत्मा शिवबाबा की सन्तान हैं, बाबा हमें कांटों से फूल बनाने आये हैं – यही स्मृति सदा रहे तो दैवीगुण धारण होते रहेंगे। पढ़ाई और योग पर पूरा ध्यान रहे, विकारों से ऩफरत हो तो दैवीगुण आते जायेंगे। जिस समय कोई विकार वार करे तो समझना चाहिए – मैं कांटा हूँ, मुझे तो फूल बनना है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। बच्चों की बुद्धि में है कि हम रूहानी युनिवर्सिटी में बैठे हैं। यह नशा होना चाहिए। ऑर्डिनरी रीति स्कूल में जैसे बैठते हैं, ऐसे यहाँ बुद्धू होकर नहीं बैठना है। बहुत बच्चे जैसे बुद्धू होकर बैठते हैं। याद रहना चाहिए – यह ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा की युनिवर्सिटी है। उनके हम स्टूडेन्ट हैं। तो तुम्हारे में कितनी फ़लक होनी चाहिए। यह है गुप्त खुशी, गुप्त ज्ञान। हर एक बात गुप्त है। कइयों को यहाँ बैठे भी बाहर के गन्दे ख्यालात आते रहते हैं। यहाँ तुम पढ़ते हो भविष्य नई दुनिया का वर्सा पाने के लिए। तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए। दैवीगुण भी होने चाहिए। भल यहाँ सब ब्राह्मण ही आते हैं। वहाँ की किचड़पट्टी से तो तुम निकलकर यहाँ आते हो। तो तुम बच्चों को कितना खुशी में रहना चाहिए। सारी दुनिया इस समय गन्द में पड़ी है। कहाँ कलियुगी गन्द, कहाँ सतयुगी फुलवाड़ी। कलियुग में एक-दो को कांटे लगाते रहते हैं। तुमको तो अब फूल बनना है। तो कितनी खुशी रहनी चाहिए। हम अब फूल बनते हैं। यह बगीचा है। बाप को बागवान कहा जाता है। बागवान आकर कांटों को फूल बनाते हैं। यह तो बच्चों को समझ होनी चाहिए कि हम किस प्रकार का फूल बन रहे हैं। यहाँ बगीचा भी है। मुरली सुनकर फिर बगीचे में जाकर फूलों से अपनी भेंट करो। हम कौन-सा फूल हैं! हम कांटे तो नहीं हैं? जिस समय क्रोध आता है तो समझना चाहिए कि मैं कांटा हूँ, मेरे में भूत है। इतनी ऩफरत आनी चाहिए। क्रोध तो सबके बीच में आ जाता है। काम तो सबके बीच में हो न सके। वह तो छिपाकर करते हैं। क्रोध तो बाहर में निकल पड़ता है। क्रोध करते हैं तो उसका असर भी थोड़ा दिन चलता है। क्रोध का भी नशा है, लोभ का भी नशा हैं। अपने से आपेही ऩफरत आनी चाहिए। तुम समझते हो हमको बाबा फूल बनाते हैं। काम और क्रोध बहुत गंदा है। मनुष्य की सारी शोभा ही गँवा देते हैं। यहाँ शोभा दिखायेंगे तब वहाँ भी शोभा पायेंगे। बाबा रोज़ बच्चों को समझाते रहते हैं कि दैवीगुण धारण करो। स्वर्ग में चलना है ना। यह लक्ष्मी-नारायण कितने गुणवान हैं। महिमा भी इनके आगे जाकर गाते हैं – हम नींच, पापी, कामी हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न हो। तुम समझाते भी हो स्वर्ग है फूलों का बगीचा और नर्क है कांटों का जंगल। शिवबाबा स्वर्ग स्थापन करते, रावण नर्क बनाते हैं। विचार करना चाहिए हम आत्मा बाप की सन्तान हैं। हमारे में गंद कहाँ से आया? अगर गंद होगा तो बाप का नाम बदनाम करेंगे। क्रोध करेंगे तो गोया बाप की निंदा करायेंगे। क्रोध का भूत आया और बाप को भूले। बाप की याद हो तो कोई भी भूत आये ही नहीं। अगर किसी की दिल को दु:ख पहुँचाते हैं तो वह भी असर पड़ जाता है। एक बार क्रोध किया तो 6 मास तक सबकी बुद्धि में रहता है कि यह क्रोधी है। फिर दिल से उतर जाता है। बापदादा की दिल से भी उतर जाता है। यह दादा भी विश्व का मालिक बनते हैं, इसमें भी जरूर खूबियां होंगी। परन्तु कोई की तकदीर में नहीं है तो तदवीर करते नहीं। कितनी सहज तदवीर है, सिर्फ बाप को याद करो तो आत्मा स्वच्छ बन जायेगी। और कोई उपाय नहीं है। इस समय राजऋषि तो कोई है नहीं, राजयोग सिखलाने वाला एक ही बाप है। मनुष्य, मनुष्य को सुधार न सकें। बाप आकर सबको सुधारते हैं। जो बिल्कुल अच्छी तरह सुधर जाते हैं, वह सतयुग में पहले-पहले आते हैं। तो कोई भी गन्दी आदत है तो छोड़नी चाहिए। पढ़ाई पर, योग पर पूरा ध्यान देना चाहिए। यह भी जानते हैं सब तो एक जैसे ऊंच नहीं बनेंगे। परन्तु बाप तो पुरूषार्थ करायेंगे। जितना हो सके पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाओ। नहीं तो कल्प-कल्पान्तर नहीं पा सकेंगे। बाबा बार-बार समझाते रहते हैं कि बाप को याद करो तो किचड़ा निकल जाये। वह संन्यासी तो हठयोग सिखलाते हैं। ऐसे मत समझना कि हठयोग से तन्दुरूस्ती अच्छी होती है, वह कभी बीमार नहीं पड़ते। नहीं, वह भी बीमार पड़ते हैं। भारत में जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो सबकी आयु बड़ी थी, हेल्दी-वेल्दी थे। अब तो सब बिल्कुल छोटी आयु वाले हैं। भारत को ऐसा किसने बनाया? यह कोई जानते नहीं। बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। तुम कितना भी समझाओ परन्तु उन्हों को समझाना बड़ा मुश्किल है। फिर भी गरीब साधारण ही समझने की कोशिश करते हैं। यहाँ कोई लखपति है क्या? आज का लाख भी बड़ी बात नहीं है। आज लखपति तो बहुत हैं। उन्हें भी बाबा साधारण कहते हैं। आज तो करोड़पति की बात है। शादियों पर भी कितना खर्चा करते हैं। तुम बच्चों को बड़ा युक्ति से समझाना है जो किसको तीर लग जाए। बड़े-बड़े आदमी कोई एम.पी. आदि आते हैं तो बहुत खुश होते हैं। परन्तु एक में भी ताकत नहीं जो आवाज कर सके। तुम समझाते हो परन्तु यथार्थ पूरा समझकर नहीं जाते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान्, ऊंच ते ऊंच यह वर्सा। लक्ष्मी-नारायण को किसने यह स्वर्ग का वर्सा दिया? यह कहाँ के रहवासी हैं? यह बहुतों को पता नहीं पड़ता है। म्युजियम में आते बहुत हैं, समझने के लिए। सेवा का चांस अच्छा है परन्तु योग है नहीं। बाप को याद करें तो प्रफुल्लता भी आये। हम किसकी सन्तान हैं। कितने बच्चे कायदेसिर पढ़ते नहीं हैं। बाप से योग है नहीं। सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है। नम्बरवार हैं। बच्चों को एकान्त में बैठ बाप को याद करना है। ऐसे बाप से हम स्वर्ग का वर्सा पाते हैं। इस दुनिया में हम ही सबसे पतित बने हैं, फिर हमको ही पावन बनना है। यह अच्छी रीति याद करना है। बाप हर प्रकार की राय तो देते हैं – ऐसे-ऐसे करो। जैसे क्वीन विक्टोरिया का वजीर गरीब था, रोड़ की लाइट पर (बत्ती पर) पढ़-पढ़ कर ऊंच पद पा लिया। शौक था। यह भी गरीबों के लिए है। बाप है गरीब निवाज। साहूकार क्या भगवान् को याद कर सकेंगे। कहेंगे हमारे लिए तो स्वर्ग यहाँ ही है। अरे, बाबा ने स्वर्ग की स्थापना की नहीं है। अब कर रहे हैं। बाप को याद करो, पावन तो जरूर बनना है। बच्चों को युक्ति रचनी है – कैसे किसको समझायें कि भारत का प्राचीन योग सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई सिखला नहीं सकते। हठयोग है निवृत्ति मार्ग वालों के लिए। बाप समझाते रहते हैं जब किसका कल्याण होना होगा तो फिर लिखेंगे भी ऐसे। अभी देरी है तो किसकी बुद्धि में आता नहीं है।

तुम्हारी है यह ईश्वरीय मिशन। तुम्हें मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है। दुनिया में तो अनेक प्रकार की मतें निकलती रहती हैं, तो उनका कितना शो होता है। अन्धश्रद्धा कितनी है। रात-दिन का फ़र्क है। तुम ब्राह्मणों में भी रात-दिन का फ़र्क है। कोई तो कुछ भी जानते नहीं। है बहुत सहज, अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। दैवीगुण धारण करो तो ऐसे बन जायेंगे। ढिंढोरा पिटवाते रहो। देह-अभिमान न हो तो ढोलक गले में डाल सबको बताते रहो कि बाप आया है। कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पतित से पावन बन जायेंगे। यह घर-घर में सन्देश देना है। सभी पर कट (जंक) चढ़ी हुई है। तमोप्रधान दुनिया है, सबको बाप का पैगाम जरूर पहुँचाना है। पिछाड़ी में तुम्हारी वाह-वाह निकलेगी। कहेंगे कमाल है इन्हों की! इतना जगाया परन्तु हम जगे नहीं। जो जगे उन्होंने पाया, जो सोये उन्होंने खोया। बाप बादशाही देने आते हैं फिर भी खो लेते हैं। सर्विस की युक्तियां रचनी चाहिए। बाप आया है कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बन जायेंगे। याद नहीं करेंगे तो पाप कटेंगे नहीं। कोई भी कट न रहे तब ऊंच पद पा सकते हो। नहीं तो पद भी कम, सजायें भी खायेंगे। सर्विस की अच्छी मार्जिन है। चित्र साथ में ले जाने से सर्विस कर सकेंगे। चित्र ऐसे अच्छी रीति बनाने चाहिए जो खराब न हों। यह चित्र बहुत अच्छी चीज हैं। बाकी मॉडल्स तो खिलौने हैं। बड़े-बड़े आदमियों के बड़े-बड़े चित्र होते हैं। हज़ारों वर्ष भी चलते हैं। तुम्हारे यह 6 चित्र काफी हैं। बोलो, यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है – हम आपको समझायेंगे। इस चक्र को याद करने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। बैज भी बहुत अच्छा है। परन्तु इनकी वैल्यु बच्चों के पास नहीं है। इस पर भी तुम समझाते रहो तो भी तुम्हारी कमाई बहुत होगी। यह बैज तो ऐसा है जो छाती से लटका रहे। यह बाबा इस ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं। ट्रेन में भी चक्र लगाते यह समझाते रहो। छोटे बच्चे भी कर सकते हैं। तुमको कोई मना नहीं कर सकते। यह बैज ऐसी चीज़ है, हीरे-जवाहर, फल-फूल, महल सब कुछ इसमें मर्ज है। परन्तु बच्चों की बुद्धि में नहीं आता है। बाबा ने बहुत बारी समझाया है – चित्र साथ में जरूर हो। तुमको कोई उल्टा-सुल्टा भी बोलेंगे। श्रीकृष्ण को भी गाली मिली ना – भगाते थे, यह करते थे। लेकिन उनको भी पटरानी बनाया ना। विश्व का मालिक बनकर फिर ऐसे काम थोड़ेही करेंगे। इस ज्ञान में नशा बहुत होना चाहिए। हम चाहते हैं जल्दी विनाश हो जाए। फिर कहते हैं अभी तो बाबा साथ है। बाबा को छोड़ देंगे तो फिर बाबा 5 हजार वर्ष के बाद मिलेगा। ऐसे बाबा को हम कैसे छोडें। बाबा से तो हम पढ़ते रहें। यह है ब्राह्मणों का ऊंचे ते ऊंचा जन्म। ऐसा बाप जो हमको राजाई दे रहा है, फिर तो हम उनसे मिलेंगे नहीं। परन्तु गंगा पर रहने वालों को इतना कदर नहीं रहता। बाहर वाले कितना महत्व रखते हैं। यहाँ भी बाहर वाले कुर्बान जाते हैं। अगर योग का बल नहीं है तो किसी पर भी समझाने का असर नहीं होता, कुछ भी समझते नहीं। आते बहुत हैं, लिखते हैं ऐसे-ऐसे समझाया, कहते हैं बहुत अच्छा है। बाबा समझते हैं सुना ऐसे जैसे सुना ही नहीं। जरा भी समझा नहीं। बाप को ही नहीं जाना है। अगर कुछ समझे तो ऐसे बाप से कनेक्शन तो रखे, चिट्ठी लिखे। झट तुमसे पूछे कि तुम ऐसे बाप को चिट्ठी कैसे लिखते हो, बताओ। शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। एकदम लिखने लग पड़े। यह तो रथ है ना। परन्तु ज्यादा कीमत तो उनकी है जो इसमें प्रवेश करते हैं।

सर्विस करते-करते बहुत बच्चों के गले थक जाते हैं। परन्तु योग नहीं है तो तीर नहीं लगता है। इसको भी ड्रामा कहेंगे। बाबा को जान लिया तो फिर बाबा से मिलने बिगर रह नहीं सकेंगे। ट्रेन में भी योगयुक्त हो आयें, हम जाते हैं बाबा के पास। जैसे विलायत से आते हैं तो स्त्री, बाल बच्चे सब याद आते हैं। यह तो हम किसके पास जाते हैं! तो रास्ते में कितनी खुशी होनी चाहिए। सर्विस करते-करते आना चाहिए। बाबा है सागर, देखते हैं बच्चे फालो कर रहे हैं। ज्ञान की लहरें उठती हैं तो देख-कर खुश होते हैं। यह तो बहुत अच्छा सपूत बच्चा है। सवेरे याद की यात्रा में बहुत फायदा है। ऐसे भी नहीं, सिर्फ सुबह को याद करना है। उठते-बैठते खाते-पीते याद किया, सर्विस की तो तुम यात्रा पर हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) किसी की दिल को दु:खी नहीं करना है। अन्दर कोई भी भूत है तो जांच करके उसे निकालना है, फूल बन सबको सुख देना है।

2) हम ज्ञान सागर के बच्चे हैं तो अन्दर ज्ञान की लहरें सदा उठती रहें। सर्विस की युक्तियां रचनी हैं, ट्रेन में भी सर्विस करनी है। साथ-साथ पावन बनने के लिए याद की यात्रा पर भी रहना है।

वरदान:-

जहाँ याद और सेवा का बैलेन्स अर्थात् समानता है वहाँ बाप की विशेष मदद अनुभव होती है। यह मदद ही आशीर्वाद है क्योंकि बापदादा अन्य आत्माओं के मुआफिक आशीर्वाद नहीं देते। बाप तो है ही अशरीरी, तो बापदादा की आशीर्वाद है सहज, स्वत: मदद मिलना जिससे जो असम्भव बात है वह सम्भव हो जाए। यही मदद अर्थात् आशीर्वाद है। ऐसी आशीर्वाद की पात्र आत्मायें हो जो एक कदम में पदमों की कमाई जमा हो जाती है।

स्लोगन:-

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