13 Mar 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

March 12, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - सारी दुनिया में तुहारे जैसा पद्मापद्म भाग्यशाली स्टूडेन्ट कोई नहीं, तुम्हें स्वयं ज्ञान सागर बाप टीचर बनकर पढ़ाते हैं''

प्रश्नः-

कौन-सा शौक सदा बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी?

उत्तर:-

सर्विस करने का शौक बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी। सदा बुद्धि में याद रहे कि इन आंखों से जो कुछ देखते हैं यह सब विनाशी है। इसे देखते हुए भी नहीं देखना है। बाप की श्रीमत है – हियर नो ईविल, सी नो ईविल……।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। शिव भगवानुवाच मीठे सालिग्रामों या रूहानी बच्चों प्रति। यह तो बच्चे समझते हैं हम सतयुगी आदि सनातन पवित्र देवी-देवता धर्म के थे, तो यह याद रखना है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म को तो बहुत मानते हैं परन्तु देवता धर्म के बदले हिन्दू नाम रख दिया है। तुम जानते हो हम आदि सनातन कौन थे? फिर पुनर्जन्म लेते-लेते यह बने हैं। यह भगवान् बैठ समझाते हैं। भगवान् कोई देहधारी मनुष्य नहीं है। और सबको अपनी अपनी देह है, शिवबाबा को कहा जाता है विदेही। उनको अपनी देह नहीं है और सबको अपनी देह है, तो अपने को भी ऐसा विदेही समझना कितना मीठा लगता है। हम क्या थे, अब क्या बन रहे हैं। यह ड्रामा कैसा बना हुआ है – यह भी तुम अभी समझते हो। यह देवी-देवता धर्म ही पवित्र गृहस्थ आश्रम था। अभी आश्रम नहीं है। तुम जानते हो अभी हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। हिन्दू नाम तो अभी रखा है। आदि सनातन हिन्दू धर्म तो है नहीं। बाबा ने बहुत बार कहा है – आदि सनातन धर्म वालों को समझाओ। बोलो, इसमें लिखो आदि सनातन देवी-देवता पवित्र धर्म के हो या हिन्दू धर्म के हो? तो उनको 84 जन्मों का मालूम पड़े। यह नॉलेज तो बहुत सहज है। सिर्फ लाखों वर्ष कहने से मनुष्य मूँझ पड़ते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है। सतोप्रधान से तमोप्रधान बनने का भी ड्रामा में पार्ट है। देवता धर्म वाले ही 84 जन्म लेते-लेते कितने छी-छी बन पड़े हैं। पहले भारत कितना ऊंच था। भारत की ही महिमा करनी चाहिए। अब फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान, पुरानी दुनिया से नई दुनिया जरूर बननी है। आगे चल-कर तुम्हारी बात को समझेंगे जरूर। बोलो, घोर नींद से जागो। बाप और वर्से को याद करो। तुम बच्चों को सारा दिन खुशी रहनी चाहिए। सारी दुनिया में, सारे भारत में तुम्हारे जैसे पद्मापद्म भाग्यशाली स्टूडेन्ट कोई नहीं। समझते हो जो हम थे वही फिर बनेंगे। छांट करके फिर वही निकलेंगे, इसमें तुम मूँझो मत। प्रदर्शनी में थोड़ा भी सुनकर जाते हैं तो वह भी प्रजा बनती जाती है क्योंकि अविनाशी ज्ञान धन का तो विनाश नहीं होता है। दिन-प्रतिदिन तुम्हारी संस्था जोर भरती जायेगी, फिर ढेरों के ढेर तुम्हारे पास आयेंगे। धीरे-धीरे धर्म की स्थापना होती है। जब कोई बड़ा आदमी बाहर से आता है तो उनका मुँह देखने के लिए कितने ढेर मनुष्य जाते हैं। यहाँ तो वह बात नहीं। तुम जानते हो इस दुनिया में जो भी चीजें हैं, सब विनाशी हैं। उन्हें नहीं देखना है। सी नो ईविल…यह किचड़ा तो भस्म होने वाला है। जो भी कुछ देखते हैं मनुष्य आदि, समझते हैं यह तो सब कलियुगी हैं। तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। संगमयुग को कोई जानते नहीं। इतना सिर्फ याद करो – यह संगमयुग है, अब घर जाना है। पवित्र भी जरूर बनना है। अब बाप कहते हैं यह काम विकार आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है, इसको जीतो। विष के लिए देखो कितना तंग करते हैं। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, उसको जीतना है। अब इस समय कितने ढेर मनुष्य हैं दुनिया में। तुम एक-एक को कहाँ तक समझायेंगे। एक को समझाते हो तो दूसरा कहता है जादू है, फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं इसलिए बाप कहते हैं आदि सनातन धर्म वालों को समझाओ। आदि सनातन है ही देवता धर्म। तुम समझाते हो इन लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे पाया? मनुष्य से देवता कैसे बने? जरूर अन्तिम जन्म होगा। 84 जन्म पूरे कर फिर यह बने। जिनको सर्विस का शौक है वह तो इसमें लगे रहते हैं। और सब तरफ से मोह आदि टूट जाता है। हम इन आंखों से जो कुछ देखते हैं इनको भूलना है। जैसे कि देखते ही नहीं हैं। सी नो ईविल….. । मनुष्य तो बन्दरों का चित्र बना देते हैं। समझते कुछ भी नहीं। बच्चियां कितनी मेहनत करती हैं। बाबा उन्हें आफरीन देते हैं, जो समझाकर लायक बनाती हैं। प्राइज़ भी उन्हों को ही मिलती है, जो काम करके दिखाते हैं। तुम जानते हो बाबा हमको कितनी प्राइज़ देंगे। पहला नम्बर है सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़। सेकण्ड नम्बर है चन्द्रवंशी की प्राइज़। नम्बरवार तो होते ही हैं। भक्ति मार्ग के शास्त्र भी कितने बैठ बनाते हैं। अब बाप समझाते हैं इन शास्त्र पढ़ने, यज्ञ-तप करने से मेरे से कोई मिलता नहीं है। दिन-प्रतिदिन कितने पाप आत्मा बनते जाते हैं। पुण्य आत्मा कोई बन न सके। बाप ही आकर पुण्य आत्मा बनाते हैं। एक है हद का दान-पुण्य, दूसरा है बेहद का। भक्ति मार्ग में इनडायरेक्ट ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं परन्तु ईश्वर किसको कहा जाता है यह जानते ही नहीं। अभी तुम जानते हो। तुम कहते हो कि शिवबाबा ही हमको क्या से क्या बनाते हैं! भगवान् तो एक ही है। उनको फिर सर्वव्यापी कह दिया है। तो उनको समझाना चाहिए कि यह तुम लोगों ने क्या किया है। तुम्हारे पास आते भी हैं, थोड़ा सुनकर बाहर गये, खलास। यहाँ की यहाँ रही। सब भूल जाता है। तुमको कहते हैं ज्ञान बहुत अच्छा है, हम फिर आयेंगे। परन्तु मोह की रगें टूटती नहीं हैं। मोह जीत राजा की कथा कितनी अच्छी है। मोहजीत राजा फर्स्टक्लास यह लक्ष्मी-नारायण हैं। परन्तु मनुष्य समझते ही नहीं। वन्डर है। रावण राज्य में सीढ़ी उतरते एकदम नीचे गिर जाते हैं। बच्चों का खेल होता है ना। ऊपर जाकर फिर नीचे गिरते हैं। तुम्हारा भी खेल बहुत सहज है। बाप कहते हैं अच्छी रीति धारणा करो। कोई छी-छी काम नहीं करो।

बाप कहते हैं मैं बीजरूप सत चित आनंद स्वरूप हूँ। ज्ञान का सागर हूँ। अब ज्ञान का सागर ऊपर बैठा रहेगा क्या? जरूर कभी आकर ज्ञान दिया होगा। ज्ञान क्या चीज है, यह भी किसको मालूम नहीं है। अब बाप कहते हैं मैं तुमको पढ़ाने आता हूँ तो रेग्युलर पढ़ना चाहिए। एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी चाहिए। कोई न कोई प्वाइन्ट जरूर अच्छी मिलेगी। मुरली नहीं पढेंगे तो जरूर प्वाइंट्स मिस हो जायेंगी। अथाह प्वाइंट्स हैं। यह भी तुमको समझाना है कि तुम भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे। अभी कितने ढेर धर्म हैं। फिर हिस्ट्री मस्ट रिपीट। यह चढ़ने और उतरने की सीढ़ी है। जैसे जिन्न को हुक्म दिया – सीढ़ी उतरो और चढ़ो। तुम सब जिन्न हो ना। 84 की सीढ़ी चढ़ते हो फिर उतरते हो। कितने ढेर मनुष्य हैं। हर एक को कितना पार्ट बजाना होता है। बच्चों को तो बड़ा वन्डर लगना चाहिए। तुमको बेहद के नाटक की पूरी पहचान मिली है। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को अभी तुम ही जानते हो। कोई भी मनुष्य नहीं जान सकते हैं। सतयुग में किसके मुख द्वारा कोई भी कुवचन नहीं निकलते हैं। यहाँ तो एक-दो को गाली देते रहते हैं। यह है विषय वैतरणी नदी, रौरव नर्क। सभी मनुष्य रौरव नर्क में पड़े हैं। यहाँ तो है यथा राजा रानी तथा प्रजा। तुम्हारी विजय होनी है अन्त में, जब समझेंगे आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना किसने की? यही पहले नम्बर की मुख्य बात है, जो कोई नहीं जानते।

बाप कहते हैं मैं तो हूँ ही गरीब निवाज़। यह पिछाड़ी को समझेंगे, जब टू लेट हो जाते हैं। अब तुमको तीसरा नेत्र मिला है। स्वीट घर और स्वीट राजाई बुद्धि में याद है। बाप कहते हैं अब शान्तिधाम-सुखधाम में जाना है। तुमने जो पार्ट बजाया अब बुद्धि में तो आता है ना। और सब मरे पड़े हैं, सिवाए तुम ब्राह्मणों के। ब्राह्मण ही खड़े हो जायेंगे। ब्राह्मण ही सो देवता बनते हैं। यह एक धर्म स्थापन हो रहा है। और धर्म कैसे स्थापन होते हैं, यह भी बुद्धि में है। समझाने वाला एक बाप है। ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी याद करना चाहिए। धन्धा आदि भल करो सिर्फ पवित्र बनो। आदि सनातन देवी-देवता धर्म पवित्र था। अब फिर पवित्र बनना है। चलते-फिरते मुझ बाप को याद करो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। ताकत तब आयेगी जब सतोप्रधान बनेंगे। सिवाए याद की यात्रा तुम ऊंच ते ऊंच पद कभी भी पा नहीं सकते हो। जब सतोप्रधान तक पहुँचेंगे तब ही पाप कटेंगे। यह है योग अग्नि – यह अक्षर गीता के हैं। योग-योग कह माथा मारते हैं। विलायत से भी फँसाकर ले आते हैं – योग सिखाने के लिए। अब जब तुम्हारी बात कोई समझे। परमात्मा सुप्रीम सोल तो एक ही है। वही आकर सबको सुप्रीम बनाते हैं। एक दिन अखबार वाले ऐसी-ऐसी बातें डालेंगे। यह तो बरोबर है। राजयोग सिवाए एक परमपिता परमात्मा के और कोई सिखला न सके। ऐसी बातें बड़े-बड़े अक्षरों में डालनी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ लेने के लिए बापदादा की आ़फरीन लेनी है। सर्विस करके दिखाना है। मोह की रगें तोड़ देनी हैं।

2) ज्ञान सागर विदेही बाप स्वयं पढ़ाने आते हैं इसलिए रोज़ पढ़ना है। एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है। बाप समान विदेही बनने का पुरूषार्थ करना है।

वरदान:-

हर एक को साइलेन्स की शक्ति का अनुभव कराना – यह विशेष सेवा है। जैसे साइंस की पावर नामीग्रामी है ऐसे साइलेन्स पावर नामीग्रामी हो जाए। सबके मुख से आवाज निकले कि साइलेन्स पावर साइन्स से भी ऊंची है। वह दिन भी आना है। साइलेन्स के पावर की प्रत्यक्षता अर्थात् बाप की प्रत्यक्षता। साइलेन्स पावर का प्रैक्टिकल प्रूफ है आप सबकी जीवन। हर एक चलते-फिरते पीस के मॉडल दिखाई दें तो साइंस वालों की नजर भी साइलेन्स वालों पर जायेगी। ऐसी सेवा करो तब कहेंगे विशेष सेवाधारी।

स्लोगन:-

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

गीत:- नयनहीन को राह दिखाओ प्रभु …

अब यह जो मनुष्य गीत गाते हैं नयनहीन को राह बताओ, तो गोया राह दिखाने वाला एक ही परमात्मा ठहरा, तभी तो परमात्मा को बुलाते हैं और जिस समय कहते हैं प्रभु राह बताओ तो जरूर मनुष्यों को राह दिखाने के लिये खुद परमात्मा को निराकार रूप से साकार रूप में अवश्य आना पड़ेगा, तभी तो स्थूल में राह बतायेगा, आने बिगर राह तो बता नहीं सकेंगे। अब मनुष्य जो मूंझे हुए हैं, उन मूंझे हुए को राह चाहिए इसलिए परमात्मा को कहते हैं नयनहीन को राह बताओ प्रभु… इसको ही फिर खिवैया भी कहा जाता है, जो उस पार अथवा इन 5 तत्वों की जो बनी हुई सृष्टि है इससे पार कर उस पार अर्थात् 5 तत्वों से पार जो छट्ठा तत्व अखण्ड ज्योति महतत्व है उसमें ले चलेगा। तो परमात्मा भी जब उस पार से इस पार आवे तभी तो ले चलेगा। तो परमात्मा को भी अपने धाम से आना पड़ता है, तभी तो परमात्मा को खिवैया कहते हैं। वही हम बोट को (आत्मा रूपी नांव को) पार ले चलता है। अब जो परमात्मा के साथ योग रखता है उनको साथ ले जायेगा। बाकी जो बच जायेंगे वे धर्मराज की सजायें खाकर बाद में मुक्त होते हैं।

जब सभी मनुष्य अति दु:खी होते हैं तो परमात्मा को याद करते हैं, परमात्मा इस कांटों की दुनिया से ले चल फूलों की छांव में, इससे सिद्ध है कि जरूर वो भी कोई दुनिया है। अब यह तो सभी मनुष्य जानते हैं कि अब का जो संसार है वो कांटों से भरा हुआ है। जिस कारण मनुष्य दु:ख और अशान्ति को प्राप्त कर रहे हैं और याद फिर फूलों की दुनिया को करते हैं। तो जरूर वो भी कोई दुनिया होगी जिस दुनिया के संस्कार आत्मा में भरे हुए हैं। अब यह तो हम जानते हैं कि दु:ख अशान्ति यह सब कर्मबन्धन का हिसाब किताब है। राजा से लेकर रंक तक हर एक मनुष्य मात्र इस हिसाब में पूरे जकड़े हुए हैं इसलिए परमात्मा तो खुद कहता है अब का संसार कलियुग है, तो वो सारा कर्मबन्धन का बना हुआ है और आगे का संसार सतयुग था जिसको फूलों की दुनिया कहते हैं। अब वो है कर्मबन्धन से रहित जीवनमुक्त देवी देवताओं का राज्य, जो अब नहीं है। अब यह जो हम जीवनमुक्त कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई देह से मुक्त थे, उन्हों को कोई देह का भान नहीं था, मगर वो देह में होते हुए भी दु:ख को प्राप्त नहीं करते थे, गोया वहाँ कोई भी कर्मबन्धन का मामला नहीं है। वो जीवन लेते, जीवन छोड़ते आदि मध्य अन्त सुख को प्राप्त करते थे। तो जीवनमुक्ति का मतलब है जीवन होते कर्मातीत, अब यह सारी दुनिया 5 विकारों में पूरी जकड़ी हुई है, मानो 5 विकारों का पूरा पूरा वास है, परन्तु मनुष्य में इतनी ताकत नहीं है जो इन 5 भूतों को जीत सके, तब ही परमात्मा खुद आकर हमें 5 भूतों से छुड़ाते हैं और भविष्य प्रालब्ध देवी देवता पद प्राप्त कराते हैं। अच्छा – ओम् शान्ति।

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top