15 Dec 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

December 14, 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - यह बना-बनाया अनादि ड्रामा है, इस ड्रामा में हर एक एक्टर की एक्ट फिक्स है, मोक्ष किसको भी नहीं मिल सकता''

प्रश्नः-

शिवबाबा अशरीरी है, वह शरीर में किसलिए आते हैं? कौनसा काम करते हैं और कौनसा नहीं?

उत्तर:-

बाबा कहते – बच्चे, मैं इस शरीर में तुम्हें सिर्फ मुरली सुनाने आता हूँ। मैं मुरली सुनाने का ही काम करता हूँ। मैं खाने पीने के लिए नहीं आता हूँ। मैं आया हूँ तुम्हें नई राजधानी देने। बाकी स्वाद तो इनकी आत्मा लेती है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

छोड़ भी दे आकाश सिंहासन…

ओम् शान्ति। गीत बजाये ही वह जाते हैं जिसमें अपना तैलुक है। आकाश में कोई तख्त नहीं है। आकाश इस पोलार को कहा जाता है। बाकी आकाश तत्व में तो तख्त नहीं है। न परमपिता परमात्मा इस आकाश में तख्त पर रहता है। बाप बच्चों को समझाते हैं – हम परमपिता परमात्मा और तुम बच्चे जो आत्मायें हो, दोनों इस सूर्य, चांद, सितारों से उस पार रहते हैं, उसको मूल-वतन कहा जाता है। जैसे यहाँ आकाश में सूर्य, चांद, सितारे हैं वैसे हूबहू झाड के मुआफिक महतत्व में भी आत्मायें रहती हैं। जैसे सितारे आकाश पर खड़े हैं, कोई चीज़ पर आधार नहीं है। अहम् आत्मायें और परमात्मा बाप, हम सब रहने वाले महतत्व में हैं। स्टार मुआफिक ही हैं। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे। अब यह तो समझाया है जब-जब भीड़ पड़ती है (दु:ख होता है) तब आता हूँ। पुराने को नया बनाना है जरूर। पुराने में ही भीड़ होती है, कलियुग में है दु:ख की भीड़। स्वर्ग में तो सुख ही सुख है। फिर से मुझे आकर सहज ज्ञान और सहज राजयोग सिखलाना होता है। सब बुलाते हैं कि आओ। कृष्ण के लिए नहीं कहते कि सिंहासन छोड़कर आ जाओ। कृष्ण के लिए सिंहासन अक्षर शोभता नहीं। वह तो प्रिन्स था ना। सिंहासन तब कहें जबकि राजगद्दी मिले। हाँ, छोटे बच्चे को बाप गोद में वा बाजू में बिठा सकते हैं। तो बाप समझाते हैं आत्मायें मूलवतन में स्टॉर मुआफिक हैं। फिर वहाँ से नम्बरवार आती रहती हैं। दिखाते हैं ना स्टार कैसे गिरते हैं। वहाँ से भी आत्मायें आकर सीधा गर्भ में जाती हैं। यह अच्छी रीति नोट करो – हर एक आत्मा को सतो, रजो, तमो से पास करना है। जैसे पहले लक्ष्मी-नारायण आयेंगे तो उनको सतो-रजो अवस्था से पास होते, पुनर्जन्म लेते-लेते फिर तमोप्रधान अवस्था को पाना ही है। हर एक का ऐसे है। वापिस जा नहीं सकते। इब्राहम, बुद्ध आते हैं, उनको भी सतो, रजो, तमो से पास करना है, पुनर्जन्म लेना पड़ता है। द्वापर में धर्म स्थापक आते हैं। वहाँ से पुनर्जन्म शुरू होता है फिर तमोप्रधान बनना है। अब उनकी सद्गति कौन करे? सद्गति दाता तो एक ही शिव है। कहते हैं सबकी सद्गति करने मुझे आना पड़ता है। मेरे जैसा काम और कोई कर नहीं सकता। मैं देवी-देवता धर्म भी स्थापन करता हूँ। तुमको राजयोग सिखा रहा हूँ। गति और सद्गति दाता तो मैं हूँ। जब तुम प्योर बन जाते हो तो फिर मैं तुमको वापिस ले जाता हूँ। तुम्हारी भी सद्गति करता हूँ। तुम्हारे साथ जो अनेक धर्म वाले हैं उन धर्म स्थापकों सहित सबका उद्धार करता हूँ। तुमको ज्ञान से श्रृंगार कर स्वर्ग के मालिक लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लायक बनाता हूँ। फिर तुमको वापिस ले जाता हूँ। सबको पहले मुक्तिधाम भेज देता हूँ, सबका सद्गति दाता भी हूँ। दूसरे धर्म स्थापक जो आते हैं वह सद्गति नहीं करते। वह सिर्फ अपना धर्म स्थापन कर उनकी वृद्धि करने लग पड़ेंगे। अपने धर्म में पुनर्जन्म लेते सतो, रजो, तमो से पास करेंगे। अभी सब तमोप्रधान हैं। अब इनको पावन सतोप्रधान कौन बनाये? बाप खुद बैठ बच्चों को समझाते हैं। भगवान् आकर सबकी सद्गति भी करते हैं, भारत को स्वर्ग भी बनाते हैं। जीवनमुक्ति के लिये राजयोग सिखाते हैं इसलिए बाप की इतनी महिमा है। गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी। परन्तु कृष्ण का नाम लिख देने से भगवान् को भूल गये हैं। भगवान् तो सबका सद्गति दाता है इसलिए गीता सब धर्म वालों के लिए धर्म-शास्त्र है, सबको इसे मानना पड़े। सद्गति का शास्त्र और कोई है नहीं। सद्गति देने वाला है ही एक। उनकी ही गीता है। तुम बच्चों को सद्गति का ज्ञान दे रहे हैं। गीता में शिव का नाम होता तो सब धर्म वालों का यह शास्त्र होता। बाप सबको कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मेरे साथ योग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे और तुम मेरे धाम आ जायेंगे। सब धर्म वालों की सद्गति करने वाला भी मैं हूँ। बाकी तो आते ही हैं अपना धर्म स्थापन करने। मनुष्य कहते हैं क्या मोक्ष नहीं मिलेगा? बाप कहते हैं नहीं। जो भी सब आत्मायें हैं, सबका पार्ट ड्रामा में फिक्स है। किसकी एक्ट बदल नहीं सकती। हर एक की पूरी एक्ट का अनादि ड्रामा बना हुआ है। ड्रामा अनादि है, उसका आदि, मध्य, अन्त नहीं है। सृष्टि की आदि सतयुग को कहा जाता और अन्त कलियुग को कहा जाता है। बाकी ड्रामा का आदि अन्त नहीं है। ड्रामा कब बना, यह नहीं कह सकते। यह प्रश्न उठ नहीं सकता।

बाबा ने समझाया है कि और जो भी शास्त्र हैं, उनसे हर एक ने आकर अपना धर्म स्थापन किया है। सद्गति नहीं की है। उन्होंने तो धर्म स्थापन किया, उनके पीछे वृद्धि होती गई। कितनी-कितनी गुह्य प्वाइन्ट्स हैं। एसे (निबन्ध) लिखने जैसी हैं। यहाँ गपोड़े की बात नहीं। हार-जीत का यह ड्रामा है। सतयुग में परमात्मा को याद करने की दरकार नहीं। परमात्मा को याद करें तो फिर यह बातें भी समझें कि हम ब्राह्मणों को उसने रचा है। तुमको तो सम्मुख बतलाते हैं कि मैं रचता हूँ। यह ब्राह्मणों की नई दुनिया है संगम की। चोटी को तो कोई नहीं जानते। विराट रूप बनाते हैं। उसमें देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र दिखाते हैं। ब्राह्मणों को भूल गये हैं। सतयुग में देवतायें, कलियुग में शूद्र। संगमयुगी ब्राह्मणों को जानते नहीं। यह राज़ बाप आकर समझाते हैं। बाबा कहते हैं – पवित्रता बिगर कभी धारणा नहीं हो सकती है। बाबा समझाते हैं – कितने ढेर वेद-शास्त्र हैं। परिक्रमा दिलाते हैं। मन्दिरों से चित्र निकाल परिक्रमा दिलाए फिर वापिस मन्दिर में ले आते हैं। बाबा अनुभवी हैं। शास्त्रों से गाड़ी भरकर परिक्रमा देते हैं, ऐसे ही फिर देवताओं के चित्र भी गाड़ी में रख परिक्रमा दिलाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग।

तुम हो शिव शक्तियां। तुम सारे विश्व की सद्गति करती हो। परन्तु यह कोई जानते नहीं कि देलवाड़ा मन्दिर हूबहू इन्हों का यादगार है। ऐसा मन्दिर कहीं नहीं है। जगदम्बा है, शिवबाबा भी है। शक्तियों का चबूतरा भी बना हुआ है। भक्ति मार्ग में फिर से ऐसे मन्दिर बनेंगे। फिर विनाश होगा तो यह सब खत्म हो जायेगा। सतयुग में कोई मन्दिर होता नहीं। यह सब भक्ति मार्ग का विस्तार है। ज्ञान में तो चुप रहना है। एक शिवबाबा को याद करना है। शिवबाबा को भूल औरों को याद करेंगे तो अन्त में फेल हो जायेंगे। फेल नहीं होना है। मनुष्य मरते हैं तो उनको कहते हैं राम-राम कहो, परन्तु ऐसे याद आता नहीं है। फिर भी गाया जाता है अन्तकाल जो नारायण सिमरे… बात अभी की है। भंभोर को आग तो लगनी है। अन्तकाल जो नारायण सिमरे। बरोबर अब तुम समझते हो हम नारायण वा लक्ष्मी को वरेंगे। स्वर्ग के लिए तैयार हो रहे हो। बाबा बिगर यह ज्ञान कोई दे नहीं सकते। यह बाबा भी कहते हैं कि अब हमको शिवबाबा ने बताया है। इनको शक्ति सेना वा पाण्डव सेना कहा जाता है। पाण्डव नाम है महारथियों पर। शक्तियों की फिर शेर पर सवारी दिखाते हैं। तो बाप कहते हैं जैसे कल्प पहले सहज राजयोग सिखाया था, हूबहू इसी प्रकार सिखा रहा हूँ। जो भी एक्ट चलती है कल्प-कल्प वही चलेगी। इनमें फ़र्क नहीं पड़ सकता। फिर कल्प-कल्प यह पार्ट चलेगा। बाबा कहते हैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ। पीछे क्या होने वाला है सो तो फिर पीछे सुनायेंगे ना। अभी सब सुना दूँ तो क्या बस वापिस चला जाऊं? अन्त तक नई पाइंट्स सुनाते रहेंगे। हम गीता की महिमा बहुत करते हैं। परन्तु उस गीता वा महाभारत में तो हिंसक लड़ाई आदि दिखा दी है। अब लड़ाई तो है नहीं। तुम्हारी तो है योगबल की बात। अहिंसा का अर्थ कोई भी नहीं जानते। सिर्फ स्त्री को नर्क का द्वार कह दिया है। वास्तव में नर्क का द्वार तो दोनों हैं। अब उनको फिर स्वर्ग का द्वार कौन बनाये? वह तो भगवान् की ही ताकत है। यह गीत बाबा ने बनवाये हैं फिर बनाने वालों ने कोई ने ठीक बनाया है, कोई ने रांग बनाया है। मिक्स कर दिया है। रात के राही थक मत जाना…. ऐसे-ऐसे गीत मैंने बनवाये हैं। तो यहाँ की बातें और हैं। गऊशाला भी है, वनवास भी है परन्तु अर्थ नहीं समझते। हमने किसको भगाया क्या? किसको कभी कहा था कि कराची में चले आना? पूछो इन शक्तियों से? यह ड्रामा में पार्ट था। जिन पर सितम हुए तो चले आये। तो राइट क्या है वह बाप बैठ बतलाते हैं। शास्त्रों में तो जो लिखा है वह है भक्ति मार्ग। उनसे तो मेरे से मिल नहीं सकते, मेरे पास आ नहीं सकते। मुझे तो गाइड बन यहाँ आना पड़ता है। कहते हैं ऐसा तन क्यों नहीं लिया जो गृहस्थी न हो। अरे, मुझे तो गृहस्थी के तन में ही आकर उनको ज्ञान देना है। उनके ही 84 जन्म बताता हूँ। तो कितनी गुह्य बातें हैं। यह नये धर्म के लिए नई बातें, ज्ञान भी नया है। बाप कहते हैं कल्प-कल्प मैं यह ज्ञान सुनाता हूँ। और कोई ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि मैं कल्प-कल्प धर्म स्थापन करने आता हूँ। लक्ष्मी-नारायण दोनों नहीं कहेंगे कि हम फिर से राजाई करने आये हैं। वहाँ यह ज्ञान ही प्राय: लोप हो जाता है। शास्त्र तो बाद में अनेक बना दिये हैं। हम ब्राह्मणों के लिए एक ही गीता है। धर्म भी स्थापन करता हूँ और सद्गति भी सबकी करता हूँ। डबल काम हुआ ना। अब हम जो सुनाते हैं वह राइट है या उन्हों का राइट है। सो तो तुम जानते हो। मैं कौन हूँ? मैं ट्रूथ हूँ। मैं कोई वेद शास्त्र नहीं सुनाता हूँ। भल इसने पढ़े तो बहुत हैं परन्तु वह सुनाते थोड़ेही हैं। यह तो शिवबाबा नई-नई बातें सुनाते हैं, वह तो अशरीरी है। सिर्फ यह मुरली सुनाने का काम करने आते हैं, न कि खाने-पीने आते हैं। मैं तो आया ही हूँ तुम बच्चों को फिर से राजधानी देने। स्वाद इनकी आत्मा लेती है।

हर एक का धर्म अलग है, उन्हें अपना धर्म शास्त्र पढ़ना है। यहाँ तो ढेर शास्त्र पढ़ते रहते हैं, सार कुछ भी नहीं है। जितना पढ़ते रहते, असार संसार होता जाता है। तमोप्रधान बनना ही है। पहले-पहले सृष्टि में तुम आये हो। तुम ब्राह्मणों ने मात-पिता से जन्म लिया है। उस तरफ है आसुरी कुटुम्ब, यहाँ है ईश्वरीय कुटुम्ब फिर जाकर दैवी गोद लेंगे, स्वर्ग के मालिक बनेंगे। मात-पिता की मत पर चलेंगे तो स्वर्ग के सुख घनेरे मिलेंगे। बाकी रूद्र ज्ञान यज्ञ में विघ्न तो जरूर पड़ेंगे। बाप कहते हैं – बच्चे, विकारों पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बन सकते हो। ऐसे थोड़ेही शादी नहीं करेंगे तो कमजोर रह जायेंगे। सन्यासी पवित्र बनते हैं फिर वह कितने मोटे तन्दरूस्त रहते हैं। यहाँ तो ब्रेन का काम है, मेहनत है, दधीचि ऋषि का मिसाल है ना। सन्यासियों को तो बहुत माल मिलता है। बाबा खुद बहुत माल खिलाते थे। यहाँ तो बहुत परहेज रखनी पड़ती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) ज्ञान की अच्छी धारणा के लिए पवित्रता के व्रत को अपनाना है। अन्तकाल है इसलिए ऐसा अभ्यास करना है जो एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये।

2) दधीचि ऋषि मिसल सेवा करते विकारों पर विजय प्राप्त कर जगतजीत बनना है।

वरदान:-

बापदादा ने जो भी प्राप्तियां कराई हैं, उन सर्व प्राप्तियों को स्वयं में जमा कर भरपूर रहो, कोई भी कमी न रहे। जहाँ भरपूरता में कमी है वहाँ माया हिलाती है। मायाजीत बनने का सहज साधन है – सदा प्राप्तियों से भरपूर रहना। कोई एक भी प्राप्ति से वंचित नहीं रहो, सर्व प्राप्ति हों। समय की रफ्तार प्रमाण कोई भी समय कुछ भी हो सकता है इसलिए तीव्र पुरुषार्थी बन अभी से भरपूर बनो। अब नहीं तो कभी नहीं।

स्लोगन:-

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