14 September 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

13 September 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हारा किसी से भी वैर नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम हो सबके कल्याणकारी, वैर रखने वाले को हाफ कास्ट ब्राह्मण कहेंगे''

प्रश्नः-

कौन सी स्मृति बुद्धि में सदा रहे तो निर्भय बन जायेंगे?

उत्तर:-

सदा स्मृति में रहे कि हम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बन रहे हैं, शरीर को कोई मारता भी है लेकिन आत्मा को मार नहीं सकता। गोली शरीर को लगती है। मैं आत्मा तो जा रही हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। इसमें डरने की कोई बात नहीं। ऐसा निर्भय बनना है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

माता ओ माता.

ओम् शान्ति। बच्चों ने जगत अम्बा की महिमा सुनी। अब मनुष्य तो सिर्फ गाते रहते हैं जगत अम्बा के मेले लग रहे हैं। यह फिर है संगम। बच्चों का बाप के साथ मेला। बाप है तो माँ जरूर है। भारत में जगत अम्बा की जीवन कहानी कोई भी जानते नहीं। जगत को रचने वाली अर्थात् जगत अम्बा। जगत अम्बा के मन्दिर भी हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। अभी तुम बच्चे जानते हो, जिसका यादगार बना हुआ है वह जरूर सृष्टि के संगम पर आये होंगे। इनको जगत अम्बा कहा जाता है। जगतपिता, प्रजापिता भी है ना।

इस बेहद ड्रामा का आदि-मध्य-अन्त क्या है और मुख्य एक्टर्स कौन-से हैं – यह कोई नहीं जानते। हीरो-हीरोइन भी एक्टर होते हैं ना। सिर्फ दो नहीं होंगे। जरूर उनकी सेना होगी। जगत अम्बा की भी सेना होगी। उनको शक्तियां भी कहा जाता है। शक्ति सेना नामीग्रामी है। शक्ति कहाँ से आई? जरूर सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा से ही शक्ति ली होगी – यह तो सब मानते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् है। उनको ही सत श्री अकाल कहते हैं। अकाली जो होते हैं वह निराकार को मानने वाले होते हैं। सिक्ख ग्रन्थी गुरुनानक को मानते हैं। कहते हैं गुरुनानक देव हैं। उनकी जो पीढ़ी होती है उनके 10 बादशाहों के नाम भी भिन्न-भिन्न हैं। कोई का सिंह, कोई का दास, कोई का चन्द भी नाम होगा। सबके नाम भिन्न-भिन्न हैं और अकाली जो हैं वह अकालमूर्त को मानते हैं। सत श्री अकाल – यह किसकी महिमा की? परमपिता परमात्मा की। तो सिद्ध करते हैं सत सिर्फ एक श्री श्री अकालमूर्त परमात्मा ही है। तुम कह सकते हो सत श्री अकाल। तुम उनको जानते हो। वह सिर्फ अक्षर कह देते, अर्थ कुछ भी नहीं जानते। तुम तो जानते हो सत श्री अकाल को। उनकी बायोग्राफी को भी तुम जानते हो। विचार सागर मंथन भी तुम बच्चों को करना है। बाप तो ज्ञान का सागर है। उसने कलष माताओं को दिया है। यह है बड़ी मम्मा और फिर तुम अनेक मातायें हो। जगत अम्बा की अनेक बच्चियां और बच्चे हैं। यह जगत अम्बा है फिर पिता भी जरूर है। तुम जानते हो यह जगत अम्बा कौन है, किसकी बच्ची है? हैं तो मनुष्य, 8-10 भुजायें तो नहीं हैं। इतनी भुजायें क्यों दी हैं – यह किसको पता नहीं। तो ऊंच ते ऊंच वह सत परमात्मा है। तुम बच्चों को समझाया गया है – परमपिता परमात्मा जिसको हम रूप-बसन्त कहते हैं, रूप भी है और फिर बसन्त, ज्ञान सागर है। इतना छोटा-सा स्टॉर, वह ज्ञान सागर है। वन्डर है ना। बच्चों को समझाया है – बाप है बिन्दी रूप, उसमें बरोबर सारा पार्ट है। भक्ति मार्ग में भक्तों की भावना पूरी करते हैं। यह सारी ड्रामा में नूँध है। जिस समय जिसकी जो भावना है वह ड्रामा में पहले से ही नूँधी हुई है। तुम्हारी यह पढ़ाई भी ड्रामा में नूँध है, जो पार्ट रिपीट हो रहा है। समझने की बात है ना। तुम अच्छी रीति समझा सकते हो – ऊंच ते ऊंच भगवान् सब कहते हैं। वह है निराकार, निर्भय, निर्वैर…. उनका कोई के साथ वैर नहीं है। तुम्हारा भी कोई के साथ वैर नहीं है। तुम सबके कल्याणकारी हो। अगर किसका वैर है तो उनको हाफ कास्ट कहेंगे। आधा शूद्र, आधा ब्राह्मण। यह विकारों की खाद कम्पलीट निकल जायेगी तब सच्चा ब्राह्मण कहेंगे। अभी तो आधा-आधा है। कलियुगी तमोप्रधान संस्कार भरे हुए हैं, वह निकलने हैं। अभी तुमको न देवता, न शूद्र, बीच का ब्राह्मण कहेंगे। वह भी सम्पूर्ण नहीं बने हो। जगत अम्बा को देवता नहीं कहेंगे। जगत अम्बा जब सम्पूर्ण बन जाती है, उसके बाद देवता बनती है। अभी ब्राह्मण है। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती है। परन्तु यह कोई नहीं जानते। ब्रह्मा कब आया जो मुख-वंशावली रचना रची? उसको ही शिवशक्ति सेना कहा जाता है। तो तुम जानते हो वह ऊंच ते ऊंच बाप परमपिता, परमधाम में रहने वाले हैं। फिर सूक्ष्मवतन में हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण वह भी युगल दिखाते हैं। विष्णु को पूरा युगल दिखाते हैं। यह सब बुद्धि में रहना चाहिए। मनुष्य कहेंगे हम एक्टर हैं। तो मनुष्यों को ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का मालूम होना चाहिए ना। ऊंच ते ऊंच भगवान् कौन है? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कौन हैं? क्या और भी 8-10-100 भुजा वाला कोई है? नहीं, यह सब चित्र फालतू हैं। ब्रह्मा की 100 भुजा दिखाते हैं। अब यह तो प्रजापिता है, 100 भुजा की तो बात ही नहीं। यह सब रांग है। राइट वास्तव में क्या है, वह भी समझना चाहिए। ऊंच ते ऊंच भगवान् जो परमधाम में रहते हैं, है स्टॉर। विष्णु को भी 4 भुजा दिखाई हैं – दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की। जैसे रावण के 10 शीश दिखाते हैं, 5 स्त्री के विकार और 5 पुरुष के। पहले-पहले मुख्य विकार है देह-अभिमान। फिर और विकार नम्बरवार आते हैं। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा तो है अव्यक्त। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ चाहिए ना। यह जब सम्पूर्ण बन जाते हैं तो सूक्ष्मवतन में फरिश्ते बन जाते हैं। तुम भी फरिश्ते बन जाते हो। वहाँ तुम्हारा शरीर हड्डी-मास का नहीं होता है। उनको फरिश्ता कहा जाता है। ब्रह्मा तो प्रजापिता यहाँ है। फिर विष्णु दो रूप से पालना करेंगे। शंकर तो है सूक्ष्मवतन में। यह बड़ी समझने की बातें हैं। इतनी दूरांदेशी बुद्धि कोई की है नहीं। तुम्हारी बुद्धि एकदम मूलवतन, सूक्ष्मवतन तक चली गई है। सूक्ष्मवतन अब रचा हुआ है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी रचना हुई है, जहाँ तक आ-जा सकते हो। तो ऊंच ते ऊंच भगवान् फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यह मनुष्य सृष्टि में देवी-देवतायें। बाकी 8-10 भुजा वाले वा चण्डिका देवी आदि तो हैं नहीं। इतने सब चित्र कहाँ से आये? तुम्हारे पास कोई हथियार थोड़ेही हैं। यह सब हिंसक हथियार बैठ बनाये हैं। देवता तो होते हैं डबल अहिंसक। सूक्ष्मवतन में कोई हथियार आदि होते नहीं। चित्रों में कितने हथियार दिये हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। आक्यूपेशन को कोई जानते नहीं। बाबा आकर ब्रह्मा द्वारा नई रचना रचते हैं। तो खुद बड़ा हो गया ना। तुम हो उनकी सन्तान पोत्रे और पोत्रियां। समझने वाले समझते भी हैं परन्तु फिर यह नहीं समझते कि सबकी मौत होनी है। अभी भी कितने मरते रहते हैं। अ़खबारों आदि में कोई दिखलाते थोड़ेही है, नहीं तो नाम बदनाम हो जाये। भूख बहुत मरते हैं। एक समय मुश्किल से दो रोटी मिलती है। तुम बच्चे जान गये हो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। दो भुजा वाले ही मनुष्य हैं। बाकी सतयुग में कोई 8-10 भुजा वाली देवियाँ नहीं होती हैं। सेकेण्ड नम्बर में हैं राम-सीता। वह भी यहाँ राजयोग से पद पा रहे हैं। कितनी सहज बात है समझने की। बाप कहते हैं तुमने बहुत वेद-शास्त्र पढ़े हैं, अब तुम मेरे से सुनो और जज करो – मैं तुम्हें सत्य सुनाता हूँ या वह सत्य सुनाते हैं? अगर वह सत्य सुनाते हैं तो तुम सत्य नारायण की कथा से सत्य नारायण क्यों नहीं बने हो?

अभी तुम प्रैक्टिकल में सत्य बाबा से सत्य कथा सुन रहे हो – नारी से लक्ष्मी, नर से नारायण बनने की यह कथा है। जरूर प्रजा भी बनेगी कि सिर्फ लक्ष्मी-नारायण जाकर तख्त पर बैठेंगे? यह देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। फिर सतयुग में आकर राज्य करेंगे। वहाँ राजाओं को लश्कर आदि कोई होते नहीं। लश्कर विकारी अनहोली राजाओं को होते हैं। वह तो हैं होली राजायें। सतयुग को होली लैण्ड कहा जाता है, इसको अनहोली-लैण्ड कहते हैं। बहुत पुराने पतित हो गये हैं। नये को पुराना बनना ही है। शरीर भी पहले नया फिर पुराना होता है। यह तो बुद्धि में बैठना चाहिए ना। मनुष्य होते हुए भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच शिवबाबा मूलवतन में रहते हैं। उसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। आत्मायें बिन्दियां भी वहाँ रहती हैं। परन्तु बिन्दी रूप ही दें तो कोई समझ कैसे सके? बिन्दी की पूजा कैसे करेंगे? शिवबाबा के बिन्दी रूप की पूजा कैसे करें? तिलक कैसे लगायें? बाबा अमरनाथ पर भी गये हुए हैं। बाबा सारा देखकर आये थे कि कैसे शिवलिंग बनाते हैं। कहते हैं वहाँ पार्वती को शंकर ने कथा सुनाई। अब पार्वती ने किस दुर्गति को पाया था जो उनको बैठ कथा सुनाई? वास्तव में तुम सब पार्वतियाँ हों। तुम जन्म-मरण में आते हो और सद्गति को पाने के लिये कथा सुन रहे हो। तो वहाँ पूछा शिवलिंग कहाँ है? तो बोला शिवलिंग तो आपेही निकल आता है। अरे, यह कैसे होगा! वहाँ कबूतर भी दिखाते हैं। कबूतर (पिज़न) बात करना कभी सीखते नहीं। तोते को बात करना सिखलाते हैं तो वह बोलते हैं। कण्ठी पड़ जाती है। तुम ज्ञान की कण्ठी पहनते हो। तो बाबा ने समझाया है ऊंच ते ऊंच तो है शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग दिखाने लिये विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं। यहाँ मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण और उनकी राजधानी फिर राम-सीता की डिनायस्टी। यह होली डिनायस्टी पूरी होती है। फिर रावण राज्य शुरू होता है। फिर सबको पतित बनना ही है। बाकी हाँ, पिछाड़ी में जो नई आत्मायें आती हैं उनका कुछ प्रभाव निकलता है। किसका सतोप्रधानता का, किसका रजो-तमो का पार्ट है। यह बेहद का ड्रामा है। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। बाकी सब है गुड़ियों की पूजा। तुम एक्टर्स हो ना। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। पढ़ाई से मनुष्य कितना ऊंच पद पाते हैं। यह भी पढ़ाई है, जिससे तुम राज्य पद पाते हो। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। वह प्रिन्स-प्रिन्सेज तो प्रालब्ध ले आते हैं। तुम यहाँ प्रालब्ध बना रहे हो। भविष्य सतयुग के लिये कितनी ऊंच और फिर सहज नॉलेज है – सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। हम बेहद बाप के बच्चे हैं, ईश्वरीय गोद में बैठे हैं। ईश्वरीय गोद कौन छोड़ेंगे?

तो इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को समझना है। बाप तो यथार्थ रीति बैठ समझाते हैं। जो मनुष्य सृष्टि का बीज-रूप गाया जाता है। सत-चित-आनन्द स्वरूप कहा जाता है। जरूर जब आयेंगे तब तो वर्सा देंगे ना। तुम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बनते हो। कोई डर की बात नहीं है। यहाँ तो कितना डर रहता है – कोई चढ़ाई न करे। तुमको तो बिल्कुल निर्भय रहना है। शरीर को कोई मारता है, आत्मा को थोड़ेही मार सकते हैं जो डरना चाहिए। निर्भय होने की बड़ी समझ चाहिए। बाप भी निर्भय तो बच्चे भी निर्भय। गोली शरीर को लगती है, मैं आत्मा तो जा रहा हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। निर्भय होने में टाइम लगता है। तुम हो जगत अम्बा के बच्चे शिव शक्ति सेना। एक की तो महिमा नहीं है। तुम भी साथ हो। यह कमान्डर है। तुमको रूहानी ड्रिल सिखलाते हैं। तुम उनके बच्चे हो। तुम हो लक्की सितारे। यह सरस्वती भी लक्की सितारा है। ब्रह्मा की बेटी है ना। उस ज्ञान सूर्य का चन्द्रमा तो यह (ब्रह्मा) है ना। परन्तु यह मेल होने कारण माता पर कलष रखा जाता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) कलियुगी तमोप्रधान संस्कारों को निकाल सच्चा ब्राह्मण बनना है। किसी से भी वैर नहीं रखना है।

2) निर्भय बनने के लिये आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। हम शिव शक्ति सेना हैं, हमें तो सचखण्ड का मालिक बनना है – इसी नशे में रहना है।

वरदान:-

स्वराज्य अधिकारी उसे कहा जाता जिसे कोई भी कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित न करे, सदा एक बाप की तरफ आकर्षित रहे। किसी भी व्यक्ति व वस्तु की तरफ आकर्षण न जाए। ऐसे राज्य अधिकारी ही तपस्वी हैं, वही हंस, बगुलों के कलियुगी वायुमण्डल में रहते हुए सदा सेफ रहते हैं। जरा भी दुनिया के वायब्रेशन, उन्हें आकर्षित नहीं करते। सब कम्पलेन समाप्त हो जाती हैं।

स्लोगन:-

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