09 September 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

8 September 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - ज्ञान को अग्नि नहीं कहा जाता, योग अग्नि है, योग में रहने से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे, तुम स्वच्छ गोरा बन जायेंगे''

प्रश्नः-

किन बच्चों की बुद्धि रूपी तरकस में ज्ञान बाण सदा भरे रहते हैं?

उत्तर:-

जो रोज़ पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं उनकी बुद्धि रूपी तरकस में ज्ञान वाण भरे रहते हैं। वही मात-पिता के समान कांटों को कली और कलियों को फूल बनाने की सेवा कर सकते हैं। जो अच्छी तरह पढ़ते और पढ़ाते हैं वही ऊंच पद पाते हैं।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

कौन आया मेरे मन के द्वारे..

ओम् शान्ति। बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ तो समझाया हुआ है। ओम् माना अहम् आत्मा। अहम् आत्मा कहती है मेरा स्वधर्म शान्त है और मैं शान्ति देश में रहने वाली हूँ। यहाँ यह आरगन्स मिलता है तो टॉकी बनती हूँ। इनका (शरीर का) आधार ले हम आत्मा कर्म करती हैं। कर्म तो कर्मेन्द्रियों से ही करेंगे ना। आत्मा कहती है यह कौन है, कहाँ से आया है? उनको हम याद करते हैं फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं क्योंकि इस बाप की याद में कभी बैठे ही नहीं हैं। और सतसंगों में तो सामने संन्यासी, विद्वान आदि बैठे होते हैं। वह वेद, उपनिषद, रामायण आदि ही सुनायेंगे। आत्मा की बुद्धि में शास्त्र ही याद रहते हैं। गुरू को देखने लग जाते हैं। यहाँ तो तुम जानते हो – परमपिता परमात्मा आते हैं। है वह भी आत्मा, परन्तु वह सुप्रीम आत्मा है जो आकर इनमें प्रवेश करते हैं। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा इनमें बैठ हमको सहज राजयोग सिखलाते हैं। तुम्हारी बुद्धि शास्त्रों तरफ वा देह तरफ नहीं जाती। तुमको अपने को अशरीरी आत्मा निश्चय करना है। आत्मा है फर्स्ट। आत्मा के आधार से ही शरीर चलता है। आत्मा अविनाशी है। हम आत्मा बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं। बाप अपना और मनुष्य सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का परिचय बैठ देते हैं। उनको ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। ईश्वर और उनकी रचना का ज्ञान और कोई में नहीं है। ऋषि-मुनि आदि सब बेअन्त, बेअन्त कहते आये। रचता और रचना बेअन्त है, हम नहीं जानते। कहा जाता है फादर शोज़ सन। बाप अपना परिचय बच्चों को देंगे। बच्चे बाप का परिचय औरों को देंगे। मनुष्य तो उस बाप को न जानने कारण कह देते सर्वव्यापी है। अब तुम बच्चों की दिल में बाप की याद आई है। ऐसे नहीं, तुम्हारे में बाप ने प्रवेश किया है। नहीं, बाप की पहचान मिली है। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो। ऐसे नहीं कहते मैं सर्वव्यापी हूँ। नहीं, मुझे याद करो तो योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाप तो सर्वशक्तिमान है ना। उनको याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। ज्ञान को अग्नि नहीं कहेंगे। योग को अग्नि कहा जाता है जिससे पाप भस्म होते हैं। और कोई की याद से पाप भस्म नहीं होते हैं।

यह खेल सारा भारत पर बना हुआ है। भारत हीरे जैसा था अन्त में फिर भारत कौड़ी जैसा बनता है। भारत में हीरे जवाहरों के महल बनते हैं। सोमनाथ के मन्दिर में कितनी मिलकियत थी। भारत जैसा सालवेन्ट कोई धर्म वाले बन नहीं सकते। भारतवासी महान् सुखी थे। तुम बच्चों को अब याद आई है, 5 हजार वर्ष की बात है अथवा क्राइस्ट से तीन हजार वर्ष पहले तुम भारतवासी कितने साहूकार थे। अब बिल्कुल इनसालवेन्ट हैं। गवर्मेन्ट प्रजा से कर्जा लेती रहती है। यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं।

तुम श्री श्री शिवबाबा की मत पर चलने से स्वर्ग के श्रेष्ठ देवी-देवता बनेंगे। यहाँ तुम आये हो मनुष्य से देवता बनने। एकोअंकार, सत नाम, कर्ता पुरुष…. यह महिमा सारी उस एक की ही है। उनको कभी काल नहीं खाता। वही मनुष्य से देवता बनाते हैं। मूत पलीती कपड़ धोते हैं। तुम आत्माओं को योग और ज्ञान से सफेद गोरा बनाते हैं। तुमको लक्ष्य मिलता है कि शिवबाबा को याद करो, इससे तुम बहुत गोरे बन जाते हो। आत्मा और शरीर दोनों सुन्दर बन जायेंगे। असुल में तुम्हारा नाम श्याम सुन्दर है। सतयुग में शरीर और आत्मा दोनों सुन्दर हैं। कलियुग में श्याम बनते हो। सुन्दर से श्याम फिर श्याम से सुन्दर बनते हो।

तुम जानते हो यह कोई गुरू गोसाई नहीं है। यह तो परमधाम में रहने वाला परमप्रिय बाबा है। कहते हैं जब धर्म ग्लानि हो जाती है, भारतवासी धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन जाते हैं तब मैं आता हूँ। यह भी ड्रामा का खेल है। सालवेन्ट और इनसालवेंट बनते हैं। बाप को कहा जाता है – नॉलेजफुल ज्ञान का सागर। जब भक्ति पूरी हो तब तो ज्ञान सागर आये। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश। इस समय सब कुम्भकरण वाली अज्ञान नींद में सोये हुए हैं। कहते हैं ओ गॉड फादर परन्तु फादर को जानते ही नहीं। बाप आकर समझाते हैं – अब अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा ही पतित बनती है फिर पावन बनती है। सतयुग में पावन थे फिर 84 जन्म ले पतित बने हैं। यह भी पहले नहीं जानते थे, अब जानते हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। सब बातों का अनुभवी है। जरूर अनुभवी तन चाहिए ना। गुरू आदि किये हुए हैं। श्रीकृष्ण को थोड़ेही गुरू-गोसाई करने पड़ते। यह भूल-भूलैया का खेल है। अपनी कल्पनायें बैठ बनाई हैं। तुम ब्राह्मण कुल भूषण ऊंच हो। तुम हो ईश्वरीय सन्तान। यहाँ तुम यज्ञ की सच्ची-सच्ची सेवा करते हो। वास्तव में तुम हो रूहानी सोशल वर्कर, वह हैं जिस्मानी।

रूहों को ही बाप पढ़ाते हैं। आत्मा पढ़ती है ना। आत्मा सुनती है। आत्मा कहती है मैं बैरिस्टर बना हूँ.. अभी आत्मा कहती है हम सो नर से नारायण बन रहा हूँ। बाबा बनाते हैं। वह बेहद का बाबा, सबका बाबा है। वह हमको राजयोग सिखलाते हैं। वह है निराकार। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भगवान् नहीं कहेंगे। वह तो देवतायें हैं। ब्रह्मा देवताए नम: कहा जाता है ना। यह साकार जब सूक्ष्मवतनवासी अव्यक्त बनते हैं तब फिर इन्हें देवता कहेंगे। तो यह सब समझने और समझाने की बातें हैं। दिन-प्रतिदिन गुह्य ते गुह्य सुनाते हैं तो वह भी सुनना चाहिए। अगर कहते हैं फुर्सत नहीं, सुनेंगे नहीं तो नये-नये ज्ञान बाण बुद्धि रूपी तरकस में कैसे भरेंगे। जो अच्छी रीति पढ़कर पढ़ाते हैं, वही ऊंच पद पायेंगे। बाबा-मम्मा भी पढ़कर और पढ़ाते हैं ना। तो जो कांटों को कलियां और फूल बनाते रहेंगे, वही ऊंच पद पायेंगे। यह तो बहुत सहज है। इसमें डरना भी नहीं है। बहुत लोग कहते हैं यह तो बड़ा मुश्किल है, असम्भव है। अरे, तब यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बने! कोई को पता नहीं है। बाप कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है। इसने पूरे 84 जन्म लिये हैं। यह नहीं जानता है, मैं बताता हूँ – तुम श्रीकृष्णपुरी के मालिक थे। अभी वह पास्ट हो गया तो जैसे स्वप्न हो गया। जिसने जो एक्ट की वह पास्ट हो गयी। तुम ब्रह्माण्ड, मूलवतन, सूक्ष्मवतन को, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की बायोग्राफी को जानते हो। शिवबाबा, लक्ष्मी-नारायण आदि सबकी बायो-ग्राफी को जानते हो। तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंचा। चोटी ब्राह्मणों की निशानी है। ब्राह्मणों से ऊपर है शिवबाबा। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। तुम यह चक्र लगाते हो। हम सो, सो हम – यह तुम्हारे से ही लगता है। हम सो शूद्र थे, फिर हम सो ब्राह्मण बने हैं, फिर हम सो देवता बनेंगे। कितनी सहज बात है! बाकी हम आत्मा सो परमात्मा कहना, बाप को सर्वव्यापी कहना, यह तो बाप की ग्लानी है। अब बाप आये हैं, बाप समझाते हैं यह रावण तुम्हारा सबसे जास्ती पुराना शत्रु है। जिसने तुमको ऐसा पतित कौड़ी जैसा बनाया है। माया जीते जगतजीत कहा जाता है। माया बड़े तूफान लाती है, बहुत हैरान करती है। इसमें डरना नहीं है। ऐसे नहीं, बाबा कृपा करो। बाप कहेंगे तुम पढ़कर अपने पर आपेही कृपा करो। ऐसे नहीं, हमारी कृपा से आप चिरन्जीवी बन जायेंगे। बड़ी आयु वाले तो देवतायें ही होते हैं। तुम यहाँ स्कूल में बैठे हो। तुम कहेंगे हम ईश्वरीय कॉलेज में जाते हैं। स्वर्ग का रचयिता जरूर देवी-देवता ही बनायेंगे। भगवानुवाच – तुमको अपना और सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ। यह दुनिया का जो चक्र है, उनको समझना है। इस स्वदर्शन चक्र को चलाने से तुम चक्रवर्ती राजा-रानी बनेंगे। पवित्र तो जरूर बनना है। बाप से प्रतिज्ञा करनी है। नहीं तो काल के मुँह में चले जायेंगे, फिर इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। काम चिता से काले बन पड़ेंगे। ज्ञान चिता पर बैठने से तुम गोरे बनते हो। बच्चों को गोरा बनाना, यह बाप का ही काम है, इसके लिए जरूर संगम पर ही आना पड़े। यह है सबसे उत्तम युग, जबकि आत्मा और परमात्मा का मेला लगता है। निराकार बाप ने इस शरीर का लोन लिया है क्योंकि उनको अपना शरीर तो है नहीं। यह ज्ञान चक्षु सिवाए उस एक ज्ञानेश्वर के और कोई खोल न सके। पावन आत्मायें जो भी आती हैं वह फिर पतित बन पड़ती हैं। सतो, रजो, तमो में तो सबको आना ही है। इस समय सब पतित हैं और सब यहाँ ही हैं। वापिस कोई भी गये नहीं हैं। अब तुम बच्चे विश्व के मालिक बन रहे हो। शिवबाबा कहते हैं मैं तो निष्कामी हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। मुझे फल की कोई इच्छा नहीं। तो निष्कामी हुआ ना।

बाबा ने समझाया है – यहाँ अपने को आत्मा समझ अशरीरी होकर बैठो। अभी हम वापिस जाते हैं फिर स्वर्ग में राज्य करने आयेंगे। यह शरीर छोड़ अशरीरी बनकर जाना है। शरीर पुराना हुआ है। अब फिर हम वापिस घर जाते हैं। कल्प-कल्प हम राज्य लेते हैं फिर गँवाते हैं। बाबा तो सुख-दु:ख नहीं देते हैं। वह है ही सदैव सुख दाता। बाबा ने समझाया है यह विनाश ज्वाला इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्जवलित हुई है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। जिस चीज़ का साक्षात्कार किया है वह फिर इन आंखों से भी देखेंगे। जो दिव्य दृष्टि से देखा है फिर प्रैक्टिकल में तुम जाकर स्वर्ग में विराजमान होंगे। अभी तुम श्रीकृष्णपुरी में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। भगवान् आते हैं भक्तों का कल्याण करने, गति सद्गति करने। तो तुम भगवान् द्वारा स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो। ज्ञान और भक्ति दो बातें हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) पढ़ाई पढ़कर स्वयं पर आपेही कृपा करनी है। बाप से कृपा मांगनी नहीं है। श्री श्री की श्रीमत पर चलते रहना है।

2) स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत जगतजीत बनना है। माया से डरना वा घबराना नहीं है। अशरीरी होने का अभ्यास करना है।

वरदान:-

जब भी किसी स्थान की सेवा शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। मन्सा में शुभ भावना, वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने की शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और सम्बन्ध-सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकर्षित करो। ऐसे सर्व प्रकार की सेवा साथ-साथ करने से सफलता सम्पन्न बनेंगे। सेवा के हर कदम में सफलता समाई हुई है – इसी निश्चय के आधार पर सेवा करते चलो।

स्लोगन:-

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