23 August 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
22 August 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - जिस मात-पिता से तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता है उस मात-पिता का हाथ कभी छोड़ना नहीं, पढ़ाई छोड़ी तो छोरा-छोरी बन जायेंगे''
प्रश्नः-
खुशनसीब बच्चों का पुरुषार्थ क्या रहता, उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर:-
जो खुशनसीब बच्चे हैं – वह देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते हैं। जो सुनते हैं उसका औरों को दान देते हैं। वह शंखध्वनि करने बिगर रह नहीं सकते। धारणा भी तब हो जब दान करें। खुशनसीब बच्चे दिन-रात सेवा में फर्स्टक्लास मेहनत करते हैं। कभी भी धर्मराज से डोंट केयर नहीं रहते। सिर्फ अच्छा-अच्छा खाया, अच्छा-अच्छा पहना, सर्विस नहीं की, श्रीमत पर नहीं चले तो माया बहुत बुरी गति कर देती है।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
भोलेनाथ से निराला…
ओम् शान्ति। बिगड़ी को सुधारने वाला तो एक ही है – यह दुनिया नहीं जानती। तुम बच्चे समझते हो, जो यहाँ बैठे हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं। बिगाड़ने वाली है माया। आसुरी मत पर चलने वाले ही बिगड़ते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो भोलानाथ शिव को ही कहा जाता है। शंकर को भोलानाथ नहीं कहते हैं। भोलानाथ उनको कहा जाता है जो बिगड़ी को बनाने वाला है, बड़ा भोला है, गरीबों को अखुट खजाना देने वाला है। बच्चों को आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं, जिसके यह चित्र बने हुए हैं। और कोई ऐसा नहीं समझाते कि यह उल्टा वृक्ष है। भगवानुवाच है कि इस झाड़ और ड्रामा का ज्ञान और कोई भी वेद शास्त्र में नहीं है। भगवान् ने ही दिया है। उनका ही शास्त्र है, जिसके लिए कहा जाता है सर्व शास्त्र शिरोमणी भगवत गीता।
परमपिता परमात्मा कितना मीठा बाबा है परन्तु उसकी याद माया भुला देती है। तुम शिवबाबा को याद करने की कोशिश करते हो, लेकिन माया बड़ी जबरदस्त है, वह तुमको याद करने नहीं देगी। अब बाबा तुमको इस रोने की दुनिया से दूर ले जाते हैं, जहाँ 21 जन्म तुमको रोने की दरकार ही नहीं रहती है। तुमने 63 जन्म तो रोया है। 84 जन्म नहीं कहेंगे। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो। भोलानाथ बैठ समझाते हैं। जबसे रावण बिगाड़ना शुरू करते हैं, तब से तुम रोने लगते हो। मनुष्यों को समझाने के लिए ही यह बड़ा झाड़ और गोला बनवाया जाता है क्योंकि बड़े चित्रों पर अच्छी रीति समझाया जा सकता है। भल कोई बच्चे अपने कर्मों अनुसार इतना नहीं भी धारण कर सकते हैं। सभी तो राजा-रानी नहीं बनेंगे। अच्छे कर्म किये हैं तो उसका फल आगे जरूर मिलता है। कर्मों की गति है ना। बाप कहते हैं मैं कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को जानता हूँ और समझाता हूँ। टीचर तो सभी को एक जैसा ही पढ़ाते हैं। फिर कोई अच्छे नम्बर से पास होते हैं, कोई नापास होते हैं। कहेंगे क्या करें, कर्मों का ऐसा ही हिसाब-किताब है जो हम पढ़ते नहीं। यहाँ भी ऐसा है। कोई तो अच्छा पढ़ते हैं, कोई तो पढ़ाई अथवा कॉलेज को ही छोड़ देते हैं। कॉलेज छोड़ा गोया बाप-टीचर-सतगुरू को छोड़ा। छोड़ने से छोरा बन जाते हैं। छोरा उनको कहा जाता है जिनके माँ-बाप नहीं होते हैं। तो मात-पिता, जिनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है उनको छोड़ा तो छोरा-छोरी बन जाते हैं। यहाँ भी कई समझते हैं – यहाँ से छूट पुरानी दुनिया में जायें। लेकिन वहाँ ज्ञान तो उठा नहीं सकते। वहाँ तो नाटक, बाइसकोप, घूमना-फिरना, अच्छा कपड़ा आदि मिलेगा। जिनकी तकदीर में नहीं है तो फिर ऐसे ख्यालात चलते हैं। विनाश काले विपरीत बुद्धि होती है तो फिर पुरानी दुनिया तरफ चले जाते हैं। तुम जानते हो पुरानी दुनिया तो जल्द ख़त्म होनी है। साथ में तो कुछ नहीं चलना है। तुमको इस देह-अभिमान को भी छोड़ना है। देह-अभिमान के कारण ही और सब विकार आते हैं। देही-अभिमानी बनने में बहुत मेहनत है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। मैं भी टैप्रेरी इस तन में आया हूँ। हम सो देवता थे, अब फिर हम सो शूद्र बने हैं। श्रीमत पर चल हम विश्व को स्वर्ग बनाते हैं। तुम बच्चे कितने खुशनसीब हो! जब शिवबाबा आते हैं तब तुम भारत माताओं को ही शक्ति सेना बनाते हैं इसलिए ही तुम्हारा नाम पड़ा है शिव शक्ति सेना। तुम शिव से शक्ति ले अपना स्वराज्य स्थापन कर रहे हो। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा। दुनिया तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सोझरे में हैं। कोई-कोई की ज्योत जगती ही नहीं है। वह भी ड्रामा में नूँध है। किसी की ज्योत जगती भी है तो फिर माया बुझा देती है। चलते-चलते माया का तूफान लगने से फिर वैसे का वैसा बन जाते हैं। इस दुनिया में कोई तो बहुत साहूकार हैं, कोई 10 रूपया भी नहीं कमाते। कई मनुष्यों को भोजन भी मुश्किल से मिलता है। खाने के लिए कितना पुकारते हैं। बाबा उन द्वारा (विदेशों द्वारा) सहायता करवा रहे हैं। यह मनुष्य तो नहीं जानते। यह भी ड्रामा में राज़ है। तुम जब बहुत दु:खी होते हो तब बाप आते हैं। अगर उन्हों को प्रेरणा नहीं मिलती तो तुमको मदद नहीं करते। अभी तुम्हारी कम्पलीट राजधानी स्थापन नहीं हुई है।
तो यह चित्र हैं किसको समझाने के लिए। इनका बहुत महत्व है। जैसे मैप्स (नक्शे) होते हैं, मैप के सिवाए कैसे पता पड़े फलाना शहर कहाँ है। यह मैप्स वहाँ नहीं होंगे। यहाँ तो भारत कितना बड़ा है। वास्तव में भारत की सबसे जास्ती संख्या होनी चाहिए। तो रहने लिए कितनी जगह चाहिए। स्वर्ग में तो बहुत थोड़े रहेंगे। तुम्हारी बुद्धि में यह बातें हैं। विनाश होगा तो हम बाकी बहुत थोड़े रहेंगे। झाड़ का फाउन्डेशन है ना। फिर बाद में झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। फिर नम्बरवार और झाड़ लगते रहेंगे। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो इन बातों को समझते हैं और नशे में रहते हैं। हम बाबा द्वारा नॉलेजफुल बनते हैं। बाबा तो बहुत सहज बतलाते हैं। कहते हैं सिर्फ इस सृष्टि चक्र को ध्यान में रखो। सृष्टि चक्र और शंख। जो ज्ञान का शंख बजाने वाले नहीं होंगे तो उनको गीता सुनाने वाला ब्राह्मण कैसे कहेंगे? गीता सुनाने वाले भी नम्बरवार होते हैं। जो अच्छे पक्के विद्वान होंगे उन्हों को नशा रहेगा। कितने हजारों मनुष्य बैठ सुनते हैं। तुम्हारी तो हैं नई बातें। कहते हैं इन्हों का ज्ञान न हिन्दुओं का है, न मुसलमानों का है, पता नहीं कहाँ से लाया है। फिर भी कई तो समझते हैं ना – भोलानाथ बाबा, भक्तों का रक्षक भगवान्, पतित-पावन आया है। उनको आना जरूर है। बाप कहते हैं मेरी यादगार के भी मन्दिर हैं। मैं आया ही हूँ पतितों को पावन बनाने। यह तुम बच्चे जानते हो – बाबा आकर हमको 5 हजार वर्ष पहले समान समझा रहे हैं। तुम कहते हो – बाबा, हम भी 5 हजार वर्ष पहले आये थे, आपसे वर्सा लिया था। इतने ढेर बच्चे कहते हैं, इसमें अन्धश्रधा की कोई बात ही नहीं। सभी कहते हैं – बाबा, हम आपके पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे हैं। कोई से भी पूछो तो कहेंगे – हाँ, शिवबाबा के बच्चे तो सब भाई-भाई हैं। फिर साकार में ब्रह्मा की औलाद होने से बहन-भाई ब्रह्माकुमार-कुमारी हो गये। तो यह बुद्धि में रहना चाहिए। हम ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ठहरे, इसमें विकार की कोई बात नहीं। एक ही कुल हो गया। प्रजापिता ब्रह्मा रचयिता है। जरूर यह प्रजा है ना। शिवबाबा आकर ब्रह्मा द्वारा बच्चे बनाते हैं, तो जरूर सतयुग के पहले आये होंगे। जो ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं वह जरूर पवित्र रहेंगे। जो-जो पवित्र बनते हैं वह अपना राज्य-भाग्य लेते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा यह रचना रच रहे हैं। तुम जानते हो हम 5 हजार वर्ष पहले भी संगम पर थे, अब भी हैं फिर हम देवता बनेंगे। सतयुग में वा कलियुग में कोई ब्रह्माकुमार-कुमारियां नहीं होते हैं, संगम पर ही होते हैं। ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भाई-बहन बनते हैं – यह पवित्र रहने की युक्ति है। जो पवित्र नहीं बनते वह तो विश्व का राज्य ले न सके। ब्राह्मण ही देवता बनने वाले हैं। बाप समझाते हैं – बच्चे, पुरुषार्थ करके धारण करो और दूसरों को कराओ। जब देवता बनने लायक बन जायेंगे तब विनाश होगा। विनाश सामने खड़ा है। जो अच्छे सर्विसएबुल बच्चे हैं उन्हों की बुद्धि में ठहरता है। दान नहीं करते तो बुद्धि में ठहरता ही नहीं है। कई ब्रह्माकुमार-कुमारियां अच्छी फर्स्टक्लास मेहनत करते हैं, कोई सेकेण्ड, कोई थर्ड क्लास करते हैं, तो मिलेगा भी ऐसा ही। सभी कहते हैं हमको फर्स्टक्लास ब्रह्माकुमारी भेजो। अब इतनी कहाँ से लायेंगे? यह भी शिवबाबा जानते हैं कि फर्स्टक्लास कौन हैं? हर एक की अवस्था को जानते हैं। बहुत बच्चियाँ अच्छी सर्विस करती हैं।
ब्राह्मणों (लौकिक ब्राह्मण) को खाने का बहुत रहता है, जगह-जगह धामा खाते रहते हैं। बच्चों में भी कोई-कोई हैं, अच्छा भोजन न मिले तो आराम न आये। बाबा-मम्मा का नाम बदनाम कर देते हैं। फिर समझाओ तो गुस्सा आ जाता हैं। कई धर्मराज को भी डोंटकेयर करने वाले हैं। वह फिर आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं। माया ऐसी बुरी गति करा देती है, जो श्रीमत पर नहीं चलते। फिर विकार के लिए अबलाओं पर कितने अत्याचार करते हैं। अत्याचार भी अहो सौभाग्य है। बाप से वर्सा तो ले लेंगे ना। बहुतों पर अत्याचार होते हैं क्योंकि विष बिगर रह नहीं सकते। यह है दुर्गति की दुनिया। इसमें किसकी सद्गति हो नहीं सकती। मृत्युलोक और अमरलोक को कोई नहीं जानते। अमरलोक सतयुग में है आदि, मध्य, अन्त सुख। दिखाते हैं अमरनाथ ने पार्वती को कथा सुनाई। अब सूक्ष्मवतन में तो कथा सुनने की दरकार नहीं। तो यह कथायें आदि कहाँ से आई? अमरकथा सुनाई फिर सूक्ष्मवतन से कहाँ गये? कुछ भी पता नहीं। तो इन बातों को अच्छी रीति समझाना चाहिए। कथा सुनाने वाले तो बहुत हैं, पहले उन्हों की बात सुनकर फिर समझाना चाहिए। दशहरे पर बड़े-बड़े आदमी रावण को देखने जाते हैं। सेन्सीबुल मनुष्य समझेंगे कि बन्दर कैसे राम को सहायता करेंगे? कुछ भी नहीं समझते। इस समय तो नेशन (देश), नेशन से लड़ते रहते हैं। एक क्राइस्ट के बच्चे आपस में लड़ते हैं। बाप कहते हैं यह भी ड्रामा की भावी है। ड्रामा का मालूम पड़ा है तब तो तुम अब पुरुषार्थ करते हो। जानते हो अब खेल पूरा होता है, बाबा से वर्सा लेना है। यह ड्रामा का राज़ और कोई की बुद्धि में नहीं हैं। बाबा ने आकर सब राज़ समझाये हैं। पढ़ाने वाला, पतित-पावन वह बाप है। बलिहारी उनकी है। माया नींच बनाती है। ऊंच ते ऊंच बाप ही आकर ऊंच बनाते हैं। कहते हैं – बच्चे, अब मेरे से सुनो, पुरानी देह का भान छोड़ने का पुरुषार्थ करते रहो। अभी तो तुमको पतियों का पति मिल गया है, जो स्वर्ग की बादशाही देते हैं। वहाँ है ही सम्पूर्ण निर्विकारी। यह है सम्पूर्ण विकारी दुनिया। दुनिया एक ही है। वही सम्पूर्ण निर्विकारी फिर सम्पूर्ण विकारी बनते हैं। पहले भारत स्वर्ग था, अब नर्क है। यह चित्र बड़े वैल्युबुल हैं। विलायत में कोई को समझाकर दो तो कहेंगे कि यह चीज़ तो बड़ी अच्छी है। कैसे सृष्टि का चक्र फिरता है, किस-किस की डिनायस्टी चलती है, सबके चित्र इनमें हैं। कोई भी धर्म वाले को समझाने से खुश होंगे। हाँ, आगे चल एक-दो से सब सुनेंगे – यह तो बहुत अच्छी नॉलेज है। विलायत में कोई सेन्सीबुल जाये तो बहुत सर्विस हो सकती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को बुद्धि में रख श्रेष्ठ कर्म करने हैं। पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी है।
2) ज्ञान दान करने से ही धारणा होगी इसलिए दान जरूर करना है। कभी भी बाप की आज्ञाओं को डोंटकेयर नहीं करना है।
वरदान:-
सेवा तो सब करते हैं लेकिन जो सेवा करते भी सदा निर्विघ्न रहते हैं, उसका बहुत महत्व है। सेवा के बीच में कोई भी प्रकार का विघ्न न आये। वायुमण्डल का, संग का, आलस्य का….यदि कोई भी विघ्न आया तो सेवा खण्डित हो गई। अखण्ड सेवाधारी कभी किसी विघ्न में नहीं आ सकते। जरा संकल्प मात्र भी विघ्न न हो। सब व्यर्थ चक्रों से मुक्त रहो तब सफल और अखण्ड सेवाधारी कहेंगे।
स्लोगन:-
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