28 June 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

27 June 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - अब पुण्य आत्मा बनने के लिए परम शिक्षक की शिक्षाओं को धारण करो, पाप कर्मों के खाते को योग द्वारा चुक्तू करो''

प्रश्नः-

मोस्ट बील्वेड बाप में भी कई बच्चों को कभी-कभी संशय उठ जाता है – क्यों और कब?

उत्तर:-

बच्चे जब किसी की बातों में आ जाते, संगदोष में आने से ही संशय उठता है। यहाँ से बाहर गये तो यहाँ की यहाँ रही। ऐसा भूल जाते जो अपनी खुश-ख़ैऱाफत का समाचार भी नहीं देते। क्लास में भी नहीं जाते, मुरली भी नहीं पढ़ते इसलिए बाबा कहते – बच्चे, इस संगदोष से बहुत सावधान रहना। कभी भी किसी की बातों में नहीं आना।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

इस पाप की दुनिया से…

ओम् शान्ति। अभी परम शिक्षक यह पाठशाला चला रहे हैं। यह तो समझाया गया है वह परमपिता भी है तो परम शिक्षक भी है। तुम बाप के बनते हो। इस समय बाप जो तुम्हारी परवरिश करते हैं, वही शिक्षक बन तुम बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। तुम जो इस पाप की दुनिया में रहे हुए हो फिर तुमको पुण्य आत्माओं की दुनिया में ले जाने की शिक्षा दे रहे हैं। यह है पाप आत्माओं की दुनिया। सबसे जास्ती पाप कराने वाली माया रावण है। सबसे बड़ा पाप है एक-दो को पतित बनाना। 21 जन्म के लिए आत्मा को पावन बनाने का पार्ट पतित-पावन बाप का है। जब ओ गॉड फादर कहते हैं तो आंख जरूर ऊपर करते हैं। फिर कह देते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। बाप समझाते हैं इस माया रावण ने सबको तुच्छ बुद्धि बना दिया है। सब परमात्मा को याद करते हैं क्योंकि जानते हैं यह दु:खधाम है। साधू लोग भी समझते हैं यह दु:खधाम है इसलिए साधना करते हैं शान्तिधाम में जाने की। भारतवासी भी चाहते हैं हम श्रीकृष्णपुरी में जायें। सभी से प्यारे ते प्यारा है श्रीकृष्ण। परन्तु भारतवासी समझते नहीं कि वह कब आया, क्या आकर किया? बाप कहते हैं यहाँ एक भी पुण्य आत्मा नहीं। भल दान-पुण्य तो करते रहते हैं, इससे अल्प काल सुख मिलता है। ऐसे नहीं कि सदा सुखी, सदा शान्त बन जाते हैं। दु:खधाम में सदा शान्ति हो नहीं सकती। एक घर में भी शान्ति नहीं रहती है। कोई न कोई झगड़ा रहता ही है इसलिए परमपिता परमात्मा को पुकारते हैं – बाबा इस पाप की दुनिया से और जगह ले चल। कोई चाहते हैं निर्वाणधाम में जायें परन्तु जब उसका भी मालूम हो तब तो जा सके ना। निवास स्थान का पता हो तो वहाँ जा भी सकें। समझो पिकनिक करने जाते हैं, कहेंगे आज फलानी जगह पिकनिक करें। जगह का मालूम होगा तब तो जायेंगे। मनुष्य समझते हैं हम बैकुण्ठ जावें। परन्तु जानते नहीं – कैसे जायें? कोई मरता है तो कहते हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड, तो जरूर नर्क में है ना। कहते भी हैं पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। स्वर्ग में तो हैं ही पावन। यहाँ मनुष्य गाते रहते हैं – पतित-पावन आओ क्योंकि यह पतित सृष्टि है। परन्तु समझते नहीं। अपना नशा रहता है। कितनी उन्हों की महिमा होती है। कोई बड़ा आदमी मरता है तो कितना उनका करते हैं! कितनी उन्हों की महिमा होती है!

अभी तुम समझते हो हम बाप के साथ बैठे हैं। वह सबसे ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा है। फिर सेकेण्ड नम्बर में ब्रह्मा है। वह रूहानी पिता, यह जिस्मानी पिता। बापदादा दोनों इकट्ठे हैं। बाबा कहते हैं – यह दु:ख की दुनिया है ना। बाप आये है सुखधाम बनाने। इस समय टीचर के रूप में बैठे हैं। फिर ले जायेंगे साथ में। तो तुम बच्चों को अब लायक बना रहे हैं। सभी को ले तो जरूर जाऊंगा। तुम जानते हो हम आत्मायें निर्वाणधाम में रहती हैं। आत्मा जब शरीर से अलग शान्त है तो राजाई नहीं कर सकती। राजाई करनी है शरीर के साथ। पहले तो जरूर स्वीट होम जाना पड़े। तो जरूर स्वीट बाबा चाहिए। बाप समझाते हैं – हे भारतवासियों, मेरा जन्म भी भारत में ही होता है। मैं आया ही भारत में हूँ। तुमको यह भी पता नहीं है कि बाप पहले कब आये थे, आकर भारत को बेगर से प्रिन्स बनाया था? तुम मेरी जयन्ती मनाते हो। शिवरात्रि मनाते हो ना। फिर होती है श्रीकृष्ण जयन्ती। जब तक शिव जयन्ती न हो तब तक श्रीकृष्ण जयन्ती हो कैसे सकती? स्वर्ग की जयन्ती और नर्क का विनाश होना है। स्वर्ग की जयन्ती शिवबाबा ही करेंगे। श्रीकृष्ण थोड़ेही करेंगे। श्रीकृष्ण की तो तुम महिमा करते हो कि वह वैकुण्ठनाथ है, शिव भगवान की बायोग्राफी कहाँ? कोई नहीं जानते। अभी तुम जान गये हो – आजकल तो शिव जयन्ती का कोई मूल्य नहीं रहा है। शिव जयन्ती नाम भी उड़ा दिया है। त्रिमूर्ति के ऊपर भी शिव के बदले त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह दिया है। बाप समझाते भी हैं और फिर साथ-साथ कहते हैं – बच्चे, यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है। आधा-कल्प है भक्ति मार्ग, आधा-कल्प है ज्ञान मार्ग। आधा-आधा है ना। अब वो लोग सतयुग-त्रेता को लाखों वर्ष कह देते हैं और कलियुग की आयु छोटी दिखाते हैं तो फिर आधा-आधा कैसे होगा? सतयुग को बहुत लम्बा कह देते हैं, कलियुग को 40 हजार वर्ष कह देते। आधा-आधा तो हुआ नहीं। फिर भक्ति मार्ग कब शुरू हुआ? रामराज्य और रावणराज्य आधा-आधा है। कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है। 4 हिस्से का भी महत्व है। जगन्नाथपुरी में चावलों का हाण्डा बनाते हैं फिर उनके 4 भाग हो जाते हैं। स्वास्तिका में भी 4 भाग दिखाते हैं। उसमें गणेश निकालते हैं। यह सब है पूजा की सामग्री।

बाप कहते हैं अभी तुम्हारे पापों का खाता चुक्तू हो पुण्य का खाता जमा हो रहा है। जितना तुम मुझे याद करेंगे उतना पाप भस्म होंगे, तब तुम पुण्य आत्मा बनेंगे। गंगा स्नान करने जाते हैं, पवित्र बनने के लिए फिर आकर अपवित्र बनते हैं। परन्तु यह भी और कोई समझा नहीं सकते। बाप फिर भी बाप है बाकी तो सब भाई-भाई हैं। आत्मा के रूप से सब भाई-भाई हैं। भाई को भाई से कोई भी प्रकार का वर्सा मिल नहीं सकता। वर्सा मिलता ही है बाप से। बाप एक है, इसमें कम्बाइन्ड है। वह हम आत्माओं का बाप और यह फिर है मनुष्यों का पिता। प्रजापिता है ना। अभी तुम जानते हो कि हम इस पाप की दुनिया से सुखधाम में जा रहे हैं। श्रीमत से हम श्रेष्ठ अर्थात् ब्राह्मण से देवता बनते हैं। वर्ण भी भारत के साथ ही लगते हैं और धर्मों के साथ वर्ण नहीं लगते हैं। ब्राह्मण वर्ण, फिर देवता वर्ण, फिर क्षत्रिय वर्ण…. यह आलराउन्ड हुआ ना। औरों को इन वर्णों में नहीं ला सकते। विराट स्वरूप में भी यह वर्ण दिखाते हैं। ब्राह्मण वर्ण ही ईश्वरीय वर्ण है, जिसमें तुम आकर बाप के बच्चे बनते हो। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे तुम बी.के. हो। जैसे क्राइस्ट क्रिश्चियन का जिस्मानी बाप हुआ। रूहानी बाप सभी का एक ही है। वह निराकार बाप आकर साकार शरीर का लोन लेते हैं। श्रीकृष्ण की खड़ाऊ आदि रख पूजा करेंगे। शिवबाबा कहते हैं मेरे तो न चरण हैं, न खड़ाऊ पहनता हूँ। हम माताओं को अपने चरणों पर कैसे झुकाऊंगा! बाप जानते हैं बच्चे बहुत थके हुए हैं। बच्चों का थक आकर मिटाते हैं। इस थकावट से ही दूर कर देते हैं, सतयुग में थकावट की बात ही नहीं रहती। अभी तो माथा टेकते-टेकते टिप्पड़ घड़ी-घड़ी घिसाते टिप्पड़ ही खाली कर दी है। वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी। बाप कहते हैं हमने तुम बच्चों को बहुत धन-वान बनाया था। अब फिर बना रहा हूँ। यह एक-एक वरशन्स लाखों रूपयों की मिलकियत हैं। भारत कितना कंगाल बना है। इतना इनसालवेन्ट कभी कोई होता नहीं। प्रजा साहूकार है। गवर्मेन्ट लोन लेती रहती है। किस्म-किस्म की तरकीब निकालते हैं लोन लेने की। भारत की गवर्मेन्ट बिचारी सब भूल गई है। जो खुद मालिक थे वही पूज्य से पुजारी बन गये हैं। अब समझते हैं बरोबर हम सो देवी-देवता थे। विश्व के मालिक थे। हम सो इस समय ईश्वरीय सन्तान ब्राह्मण कुल भूषण हैं। फिर हम सो देवता वर्ण में आयेंगे। फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण में आयेंगे। फिर ब्राह्मण बनेंगे। यह हम सो का अर्थ तुम समझते हो। वह फिर कहते हम आत्मा सो परमात्मा। बेड़ा ही गर्क कर दिया है। मनुष्यों को यह भी पता नहीं कि स्वर्ग कहाँ हैं? कहते हैं स्वर्गवासी हुआ अथवा ज्योति ज्योत समाया। आत्मा को भी मार्टल बना देते हैं। बुद्धू बुद्धि हैं ना। यह भी ड्रामा बना-बनाया है। यह लड़ाई शुरू हो जायेगी फिर बहुत त्राहि-त्राहि करना पड़ेगा। यह सीन भी ब्राह्मण बच्चे ही देखेंगे। सो भी जो पक्के सर्विसएबुल बच्चे होंगे। साक्षात्कार भी पहाड़ी से होता है। तुमने नाटक देखा होगा – कैसे विनाश होता है, आग लग रही है। मूसलधार बरसात पड़ रही है। अनाज नहीं मिलता। कहते हैं शंकर के आंख खोलने से विनाश हो जाता है। यह तो गायन है। इसमें आंख खोलने की तो कोई बात ही नहीं। यह तो ड्रामा की भावी है। बाप आकर नई दुनिया बनाते हैं। अब दुनिया बदल रही है। तुम नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। फिर भी माया कितनी दुस्तर है। ऐसे बाप के बनकर फिर छोड़ देते हैं। जाकर बदनामी करते हैं। बड़े अच्छे-अच्छे बच्चे थे। आज हैं नहीं। बील्वेड बाप या बील्वेड पति होता है तो हफ्ते-हफ्ते पत्र जरूर लिखते हैं। बच्चा बाप को पत्र लिखते हैं खुश-ख़ैराफत का। यहाँ से जाते हैं तो माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। धनवान है तो माया बड़ा जोर से थप्पड़ मारती है। गरीब को इतना नहीं। बाबा नाम नहीं लेते हैं। बापदादा पास आये, कितनी सेवा की। कोई ने कुछ बोला, संशय आया, ख़लास। न चिट्ठी, न क्लास में जाना, खत्म हो जाते हैं। जैसे गर्भ में बच्चे को सजा मिलती है। कहते हैं फिर हम जेल बर्ड नहीं बनेंगे। हमको बाहर निकालो। फिर बाहर आने से संगदोष में आ जाते हैं। वहाँ की वहाँ रही। वैसे ही यहाँ से घर में गये खलास। यहाँ की यहाँ रही। यहाँ तो बड़ा मज़ा आता है। यहाँ तो कोई मित्र-सम्बन्धी आदि है नहीं। शूद्र कुल में गये और माया घसीट लेती है। माया तुम बड़ी जबरदस्त हो जो तुम मेरे को याद करना भुला देती हो। ज्ञान भी भूल जाते हैं। अभी वही बाप टीचर बनकर पढ़ा रहे हैं। मनुष्य भगवान् को ही धर्मराज समझते हैं। कहते हैं भगवान् ही सुख-दु:ख देते हैं। दु:ख माना सज़ा। बाप कहते हैं मैं दु:ख नहीं देता हूँ। एक तो रावण तुमको दु:ख देते हैं दूसरा फिर गर्भ जेल में धर्मराज तुमको सज़ा देते हैं। जो पाप किये हैं उनका साक्षात्कार करा देते हैं। सतयुग में तो गर्भ महल होता है अथवा क्षीरसागर कहो। दिखाते हैं क्षीरसागर में श्रीकृष्ण अंगूठा चूसते मजे में पीपल के पत्ते पर बैठा है। वह है गर्भ सागर। द्वापर-कलियुग में गर्भ जेल रहता है। अन्दर पापों की बहुत सजा मिलती है। माया का राज्य है ना। 63 जन्म गर्भ जेल में जाना पड़ता है फिर वहाँ गर्भ महल में 21 जन्म बड़े आराम से रहते हैं। कोई पाप होते नहीं जो त्राहि-त्राहि करनी पड़े। तो यह तुमको बाप-टीचर-सतगुरू समझा रहे हैं। तुम समझते हो हम भी बुद्धू थे। अभी समझदार बन रहे हैं। जब मनुष्य पतित बन पड़ते हैं तब बाप एक ही बार आकर पावन बनाते हैं।

अभी तुम बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। वह चक्र का अर्थ थोड़ेही जानते हैं। समझते हैं पाण्डवों-कौरवों की लड़ाई चली तो श्रीकृष्ण ने यह चक्र फिराया विनाश के लिए….. आदि-आदि बहुत ही दन्त कथायें लिख दी हैं। ऐसे है नहीं। हमको भी सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज मिला है। स्वदर्शन चक्रधारी बनने से फिर चक्रवर्ती महाराजा-महारानी बनते हैं। सारे विश्व के मालिक बनते हैं। प्रजा भी मालिक ठहरी ना। अभी प्रजा भी कहेगी हम भारत के मालिक हैं। यथा राजा-रानी तथा प्रजा….. परन्तु राजा और प्रजा में फ़र्क तो है ना। वह अभी ही सारा पढ़ाई से पता पड़ता है। अच्छा!

पतित से पावन बनाने वाले मात-पिता बापदादा का, पतित से पावन बनने वाले बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों प्रति नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) स्वीट होम में जाने के लिए बहुत-बहुत स्वीट बनना है। कभी भी संगदोष में आकर बाप को भूलना नहीं है। संशय नहीं उठाना है।

2) अन्तिम विनाश की सीन देखने के लिए पक्का ब्राह्मण, सर्विसएबुल बनना है। बाप का बनकर बाप की बदनामी नहीं करानी है।

वरदान:-

हर एक ब्राह्मण बच्चे को दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि का वरदान जन्म से ही प्राप्त होता है। यह वरदान ही ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। इन्हीं दोनों बातों के आधार पर संगमयुगी पुरुषार्थियों का नम्बर बनता है। इन्हें हर संकल्प, बोल और कर्म में जो जितना यूज़ करता है उतना ही नम्बर आगे लेता है। रूहानी दृष्टि से वृत्ति और कृति स्वत: बदल जाती है। दिव्य बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय करने से स्वयं, सेवा, संबंध सम्पर्क यथार्थ शक्तिशाली बन जाता है।

स्लोगन:-

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