27 May 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

26 May 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - आधाकल्प से माया ने तुम्हें श्रापित किया है, अब बाप तुम्हारे सब श्राप मिटाकर वर्सा देने आये हैं, तुम श्रीमत पर चलो तो वर्से के लायक बन जायेंगे।''

प्रश्नः-

देही-अभिमानी बनने का यथार्थ रहस्य तुम बच्चों ने क्या समझा है?

उत्तर:-

पुरानी दुनिया से मरकर बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना ही देही-अभिमानी बनना है। इस पुरानी जुत्ती को भूल बाप समान अशरीरी बन बाप को याद करो – यही है देही-अभिमानी बनने का यथार्थ रहस्य।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

ओम् नमो शिवाए..

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। एक तरफ हैं भक्त घोर अन्धियारे में, दूसरी तरफ हैं मात-पिता के बच्चे। जिनकी महिमा सुनी और तुम तो अब सम्मुख बैठे हुए हो। कहते भी हैं शिवाए नम:। फिर फट से कह देते हैं तुम मात-पिता… सबका मात-पिता भी ठहरा, सबका स्वामी भी ठहरा। समझाया गया है जो भी मनुष्य मात्र हैं – नर अथवा नारी, सब हैं भक्त, ब्राइड्स और वह एक है ब्राइडग्रूम, स्वामी, मात-पिता। बरोबर तुम बच्चों का बाप भी है, सजनियों का साजन भी है। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो और सब अन्धियारे में हैं। तुम अभी सोझरे में हो। तुम जानते हो हम बाप के सम्मुख बैठे हैं। निराकार भगवान सृष्टि कैसे रचे? जरूर मात-पिता चाहिए इसलिए बाप कहते हैं मैं इस द्वारा बच्चों को नया जन्म देता हूँ। तुम भी कहते हो हम इस पुरानी दुनिया से मरकर बाप के बने हैं अर्थात् देही-अभिमानी बने हैं। बाप तो सदैव देही-अभिमानी ही है। वह आकर इस समय देही-अभिमानी बनाने का रहस्य समझाते हैं। तुम जिनकी महिमा करते थे, त्वमेव माताश्च पिता… उनके सम्मुख बैठे हो। भल तुम अपने गाँव में हो तो भी सम्मुख हो।

बाप आये हैं बच्चों की सर्विस में। पतित-पावन बाप जानते हैं कि मुझे ही पतितों को पावन बनाना पड़ता है। याद तो उनको ही करते हैं ना – पतित-पावन आओ। अभी तो तुम संगमयुग पर हो। जानते हो बरोबर हम पतित थे। पतितों को पावन करने वाला एक बाप है जिसको कहते हैं शिवाए नम:। बच्चे बाप को पुकारते हैं। बच्चे सबको प्यारे लगते हैं। बच्चों की सेवा में बाप उपस्थित रहते हैं। बच्चे पैदा होते हैं तो बाप उन्हों की सर्विस में उपस्थित होते हैं। अभी तुम जानते हो उन द्वारा पावन बन रहे हैं। बरोबर वह बील्वेड बाप है ना, जिसको आधाकल्प हमने पुकारा है। सतयुग-त्रेता में हमने बाप का वर्सा पाया था। फिर वह वर्सा गुम हो गया। माया रावण का श्राप लग गया। हम बिल्कुल ही दु:खी बन पड़े थे। दुनिया में सब दु:खी ही दु:खी हैं। दु:ख के पहाड़ गिरते हैं। तब ही बाप कहते हैं – हम आते हैं। सब पाप आत्मा बन पड़े हैं। पाप करने वाले दु:खी बन पड़ते हैं। बाप आकर के पुण्य आत्मा बनाते हैं, वर्सा देते हैं। तुम जानते हो बरोबर हम फिर से बेहद के बाप से 21 जन्मों का वर्सा लेते हैं। माया ने श्रापित कर दिया है। बाप वह श्राप मिटाते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम सदा शान्त बन जायेंगे। यहाँ तो शान्ति हो न सके। दु:खधाम है ना। हम तुमको शान्तिधाम में ले चलते हैं। वहाँ सुख, शान्ति, धन आदि सब है। बेहद के बाप से तुम 21 जन्मों के लिये झोली भरने आये हो। हरेक को अपने पुरुषार्थ से वर्सा पाना है, जबकि भगवान के बच्चे बने हो। वह है स्वर्ग का रचयिता। तो जरूर स्वर्ग का वर्सा देता होगा। हम उनके बच्चे हैं तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। बच्चे ही वर्से के अधिकारी हैं। बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले तुमको वर्सा दिया था फिर गँवा दिया। अभी संगमयुग है, फिर तुमको वर्सा मिल रहा है। यह तुम जानते हो कि कल्प पहले स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषण बने थे। वही धीरे-धीरे आते रहेंगे। दिन-प्रतिदिन ब्राह्मण कुल भूषण बनते रहेंगे। बिरादरी बढ़ती रहेगी। ब्रह्मा मुख वंशावली आप बनते हो। बनाते हैं शिवबाबा। तुम इस समय ईश्वरीय औलाद हो। तुमको सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, अहिंसा परमोधर्म का बनाते हैं। देवतायें कब हिंसा नहीं करते। तुम जानते हो हम सो देवता थे। अब फिर से हम बनते हैं। चक्र लगाया, देवता कुल से क्षत्रिय कुल अथवा वर्ण में आये। क्षत्रिय कुल से वैश्य कुल अथवा वर्ण में आये। हम 84 जन्मों का चक्र पूरा कर आये हैं। अब फिर से बाप आये हैं वर्सा देने। श्राप मिटाकर पतित से पावन बनाते हैं। यहाँ सब मनुष्य मात्र श्रापित हुए पड़े हैं। बाप आकर श्राप मिटाकर वर्सा देते हैं। यह है संगमयुग। अभी सतयुग तुमसे दूर नहीं है। स्वर्ग इतना नजदीक है, जितना यह आत्मा का शरीर नजदीक है। बहुत नजदीक है। मनुष्य स्वर्ग को बहुत दूर समझते हैं। परन्तु तुम बच्चे अब बहुत नजदीक आये हो। पाँच हजार वर्ष पहले की बात है जबकि स्वर्ग था। आधा कल्प स्वर्ग था फिर आधा कल्प नर्क चला है। अभी स्वर्ग सामने खड़ा है।

बाप कहते हैं सेकेण्ड में स्वर्ग का राज्य लो। बरोबर तुम जानते हो हम बाप के बनते हैं तो स्वर्ग के मालिक बनते हैं। जैसे बच्चा समझता है हम बाप से वर्सा लेते हैं। बाप समझेंगे वारिस पैदा हुआ। भल छोटा बच्चा है, मुख से कुछ बोल नहीं सकता है परन्तु बाप जानते हैं यह वारिस है। यह है बेहद का बाप। आत्मा समझती है बरोबर हम बाप के बने और वारिस हो गये। बाप भी कहते हैं तुम स्वर्ग के वारिस तो जरूर बन गये। परन्तु वर्से में भी बहुत दर्जे हैं। कोई सूर्यवंशी, कोई चन्द्रवंशी, कोई प्रजा में आयेंगे। मर्तबे तो अलग-अलग हैं। बच्चे कहेंगे हम बाप की प्रापर्टी के मालिक बनते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम बेहद बाप के बच्चे हैं। हम सारे विश्व के मालिक बनते हैं। सिर्फ भारत ही नहीं, सारे विश्व के। भल भारत में राज्य करते हो परन्तु विश्व के मालिक हो। वहाँ कोई दूसरा राजा राज्य करने वाला नहीं रहता। तो तुमको कितना नशा रहना चाहिए! बेहद का बाप और बेहद के बच्चे। अब तुम कितने बच्चे हो! तुम कहेंगे हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। बाप जैसा मीठा कोई नहीं। बाप निष्काम सेवा करते हैं। खुद मालिक नहीं बनते, बच्चों को बनाते हैं। मनुष्य कहते हैं इस दादा ने खुद तो बहुत सुख देखे, बुढ़ापे में आकर संन्यास किया तो क्या हुआ। शिवबाबा के लिये तो ऐसा नहीं कहेंगे ना। वह तो कहते हैं मैं तो स्वर्ग का सुख नहीं लेता हूँ। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाकर तुमको स्वर्ग की राजधानी देता हूँ। वह राजे लोग खुद राज्य करके फिर राज्य-भाग्य देते हैं। यह तो कहते हैं – लाडले बच्चे, मैं परमधाम से आया हूँ तुमको राज्य-भाग्य देने के लिये। मैं राज्य नहीं करता हूँ। मुझे इस पतित दुनिया, पतित शरीर में आना पड़ता है तुमको पावन बनाने। इसमें भी कितने विघ्न पड़ते हैं! श्रीकृष्ण ने नहीं भगाया था। शिवबाबा के पास तुम भागकर आते हो। कहेंगे – हम बाबा के पास जाते हैं पूरा वर्सा लेने। सम्मुख जाकर गोद लेते हैं। तुम कहते हो हमने अब ईश्वरीय गोद ली है। ईश्वर से वर्सा पाना है। बाप आते हैं पतित दुनिया में, इस रावण रूपी दुश्मन से छुड़ाने। यह 5 विकार रूपी रावण ही मनुष्य का बड़े ते बड़ा दुश्मन है। यहाँ तुमको इस दुश्मन से छूटना है। पतित-पावन एक ही बाप है, जिसको शिवाए नम: कहते हैं। सबका साजन अभी तुम सजनियों को गुल-गुल बनाकर ले जाते हैं। अभी तुम्हारी आत्मा और शरीर – दोनों ही पतित हैं। मैं तुम्हारी आत्मा को पवित्र बनाता हूँ तो शरीर भी पवित्र मिलेगा। फिर तुम सतयुग के महाराजा-महारानी बनेंगे। साजन आकर लायक बनाते हैं। जानते हो कि माया रावण ने नालायक बनाया था। अभी शिवबाबा ब्रह्मा तन से लायक बनाते हैं। अगर श्रीमत पर चलते रहेंगे तो। श्रीमत है भगवान की। मात-पिता भी उनको कहते हैं। श्रीकृष्ण को नहीं कहेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो जिसकी वह महिमा करते हैं, उनसे हम पढ़ रहे हैं। ब्राह्मण कुल बनता है जरूर। फिर दैवी कुल में जाना है। जरूर ब्रह्मा मुख से पहले-पहले यह ब्राह्मण चोटी निकलते हैं। तुम ब्राह्मण हो रूहानी पण्डे, रूहानी सेवा करने वाले। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा पण्डा बन आया हूँ सच्चे-सच्चे तीर्थ पर ले जाने। तुमको बहुत सहज बात बतलाता हूँ। सिर्फ बाप को याद करना है और अपने को आत्मा समझना है। तुम्हें कोई भी ईविल बातें नहीं सुननी है, इविल बातें बहुत नुकसानकारक हैं। इस समय सारी दुनिया में पाँच भूतों की प्रवेशता है। तो इविल ही सुनायेंगे। बेहद के बाप की कितनी भारी महिमा है फिर कह देते सर्वव्यापी है। तुम समझा सकते हो – गाते हो पतित-पावन आओ। फिर सर्वव्यापी कहते हो तो सब पावन होने चाहिए। सर्वव्यापी के ज्ञान ने ही भारत को नास्तिक, कौड़ी तुल्य बना दिया है। बाप तो कहते हैं मैं तुम बच्चों को कल्प-कल्प आकर पतित से पावन बनाकर स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित हूँ। भल कितना भी सहन करना पड़ता है तो भी सेवा में उपस्थित हूँ। मैं तो जानता हूँ – बच्चे बहुत हैं, कोई श्रीमत पर चलते हैं, कोई नहीं चलते हैं, कोई नहीं जानते हैं। अथाह बच्चे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा सो तो जरूर प्रजा का ही बाप होगा। क्रियेटर ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं। ब्रह्मा द्वारा तुम बच्चों को शिक्षा देता हूँ। लाडले बच्चे, मुझे निरन्तर याद करो तो तुम पतित से पावन बनते जायेंगे और तुम्हारी बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। पत्थर से पारस बुद्धि बनाने की सेवा करने आया हूँ। नर्क से स्वर्ग में ले जाता हूँ। बाप आते ही हैं संगम पर। जबकि सारी सृष्टि पतित तमोप्रधान जड़जड़ीभूत बन जाती है। एक-दो को दु:ख देने लग पड़ते हैं। काम कटारी चलाकर एक दो को दु:ख देते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो कि हम बाबा के पास शान्तिधाम में जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे। बाप कहते हैं तुम बच्चों को रूहानी नयनों पर बिठाकर स्वीट होम ले जायेंगे। अब तुम भी पण्डे के बच्चे पण्डे बनते हो। तुम्हारा नाम भी है शिव शक्ति पाण्डव सेना। हरेक को अपने बाप का परिचय दे बाप के पास जाने का रास्ता बताते हो। तुम्हें खुद भी वर्सा लेना है और औरों को भी देना है।

देखो, मेरठ से 22 की पार्टी आई है। मेहनत करते हैं, हरेक को कौड़ी से हीरे जैसा बनाने की राह बताते हैं। गाया भी जाता है – भगवान्, अन्धों की लाठी तुम। बाप आकर काँटों की दुनिया से फूलों की दुनिया में ले जाते हैं। तुम जानते हो असुर से फिर देवता बन रहे हैं। हम ही इन वर्णों से चक्र लगाकर आये हैं। अब शूद्र से ब्राह्मण बन फिर सो देवता बनेंगे। तुम हो गये स्वदर्शन चक्रधारी। यह अलंकार हैं तुम्हारे, परन्तु विष्णु को दे दिये हैं क्योंकि तुम्हारा स्थाई तो यह पार्ट रहता नहीं इसलिए देवताओं को यह निशानी दे दी है। बाप तो बच्चों पर तरस खाते हैं। कहाँ माया का संग न लग जाये। बाप को याद नहीं करेंगे तो माया जरूर खा जायेगी। बाबा जास्ती मेहनत नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं मुझ बाप को याद करो। अपने को आत्मा निश्चय करो। यह है रूहानी यात्रा। तुम भी यात्रा करो। बाप को थोड़ेही भूलना चाहिए। योग अक्षर निकाल दो। बाप को याद करना है। क्या बाप को तुम भूल जाते हो? बाप कहते हैं अशरीरी बन जाओ। तुम अशरीरी हो। यहाँ आकर यह शरीर धारण किया है। अब फिर शरीर का भान छोड़ो। मैं वापिस ले चलूँगा। मैं कालों का काल हूँ। इस पुरानी देह को भूल मुझे याद करो। यह पुरानी जूती है। फिर तुमको नया शरीर देंगे। पुराने से ममत्व मिटाओ। मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। तो खुश होना चाहिए कि हम जाते हैं पियर घर। पाँच हजार वर्ष हुए हैं, हमने शान्तिधाम को छोड़ा है। अब फिर हम जाते हैं। यह है दु:खधाम। बाप आकर बच्चों की सेवा करते हैं। आत्मा जो छी-छी बनी है, उनकी ज्योति जगाते हैं। सपूत बच्चे जो होंगे वह कहेंगे हम तो श्री नारायण को वरेंगे। बाप कहते हैं – अपना दिल दर्पण देखो – कोई भूत तो नहीं बैठा है? भूतों को भगाते रहो ताकि भूतों का राज्य ही खत्म हो जायेगा। बाप तो बच्चों की सेवा में उपस्थित है। वह तो विचित्र है, कोई चित्र नहीं है। दूसरे के आरगन्स द्वारा बाबा पढ़ाते हैं। वास्तव में तो विचित्र सब आत्मायें हैं। फिर बाद में चित्र लेकर पार्ट बजाती हैं। बाप कहते हैं मैं इस चित्र वा प्रकृति का आधार लेता हूँ, माताओं को ज्ञान कलष देता हूँ। जब तुम बच्चे बाप को जान जाते हो तब ही वर्सा मिलता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) बाप को याद कर, बाबा की श्रीमत पर चल माया के श्राप से पूरा-पूरा मुक्त होना है।

2) देह का भान छोड़ अशरीरी बनना है, पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा देना है।

वरदान:-

सर्व-वंश त्यागी वह है जिसका संकल्प, स्वभाव, संस्कार, नेचर बाप समान है। जो बाप का स्वभाव वही आपका हो, संस्कार सदा बाप समान स्नेह, रहम और उदारता के हों, जिसे ही बड़ी दिल कहते हैं। बड़ी दिल अर्थात् सर्व अपनापन अनुभव हो। बड़ी दिल में तन, मन, धन, संबंध में सफलता की बरक्कत होती है। छोटी दिल वाले को मेहनत ज्यादा, सफलता कम होती है। बड़ी दिल, उदार दिल वाले ही बाप समान बनते हैं, उन पर साहेब राज़ी रहता है।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Scroll to Top