29 April 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

28 April 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - श्रीमत ही श्रेष्ठ बनायेगी, परमत वा मनमत श्रापित कर देगी, इसलिए श्रीमत को कभी भी भूलो मत''

प्रश्नः-

सतोप्रधान पुरुषार्थी कौन और तमोप्रधान पुरुषार्थी कौन? दोनों का अन्तर क्या होगा?

उत्तर:-

सतोप्रधान पुरुषार्थी बाप से पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ वा प्रतिज्ञा करते हैं, वह याद में रहने की रेस करते हैं और नम्बरवन जाने का लक्ष्य रखते हैं। तमोप्रधान पुरुषार्थी कहते – जो तकदीर में होगा, अच्छा, प्रजा बनेंगे तो प्रजा ही सही। उनके आगे माया का ऐसा विघ्न आता जो रेस से ही बाहर निकल जाते।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

मुझको सहारा देने वाले..

ओम् शान्ति। बच्चे जब सम्मुख बैठते हैं तो जानते हैं हम जीव आत्मायें हैं। यहाँ तो जीव आत्मायें ही होंगी ना। जब आत्मा को शरीर नहीं है तो नंगी है, उसे अशरीरी कहा जाता है। तुम तो शरीर सहित बैठे हो। आत्मा वा परम आत्मा जब तक शरीर में न आये तब तक बोल नहीं सकते। तुम जीव आत्मायें जानती हो – अब बाप के सम्मुख बैठे हैं। हूबहू जैसे 5 हजार वर्ष पहले सम्मुख आये थे। बच्चे जरूर बाप से ही वर्सा लेंगे। जानते हैं – हम अपने परमपिता परमात्मा बेहद के बाप के सम्मुख बैठे हैं। क्यों बैठे हैं? बाप से बेहद का वर्सा लेने। जैसे स्कूल में समझते हैं हम टीचर द्वारा इन्जीनियरी सीखते हैं, बैरिस्टरी सीखते हैं। यह एम ऑब्जेक्ट रहती है। तुम बच्चे समझते हो परमपिता परमात्मा हमको ब्रह्मा के तन से बैठ राजयोग सिखाते हैं। भगवानुवाच – यह तो बच्चों को समझाया है कि भगवान निराकार को कहा जाता है। जीवात्मा पुनर्जन्म जरूर लेती है। कोई भी संन्यासी से तुम पूछो – मनुष्य पुनर्जन्म लेते हैं? तो ऐसे नहीं कहेंगे कि नहीं लेते हैं। नहीं तो 84 लाख जन्म कैसे कहते। पूछो – तुम पुनर्जन्म को मानते हो? यह तो बरोबर है, आत्मा संस्कारों अनुसार एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेती है। ऐसे-ऐसे करते मनुष्य 84 लाख जन्म नहीं, परन्तु 84 जन्म लेते हैं। इससे सिद्ध होता है पहला जन्म जरूर बहुत अच्छा सतोप्रधान होगा। लास्ट में छी-छी तमोप्रधान होंगे। 16 कला से फिर 14 कला, 12 कला होती जायेंगी। पुनर्जन्म जरूर लेते हैं। पूछना चाहिए – अच्छा, परमपिता परमात्मा ने पुनर्जन्म लिया है या जन्म-मरण रहित हैं? देखो, यह प्वाइंट बहुत सूक्ष्म है। अगर कहेंगे जन्म-मरण रहित है तो फिर शिव जयन्ती सिद्ध नहीं होती। कहेंगे शिव जयन्ती तो मनाई जाती है। समझाया जाता है – हाँ, शिव जयन्ती है परन्तु जन्म के साथ फिर मरना जिसको कहा जाता, वह नहीं है। अगर मरे तो फिर पुनर्जन्म लेवे। बाप कभी पुनर्जन्म नहीं लेते। वह इस तन में एक ही बार आते हैं, बस। फिर पुनर्जन्म में नहीं आते। परमपिता परमात्मा पुनर्जन्म रहित हैं, वह कब सतोप्रधान से तमो नहीं बनते। आत्मायें तो सब जन्म-मरण में आते-आते पतित बन जाती हैं, फिर बाप आते हैं पावन बनाने। इससे सिद्ध होता है आत्मा ही पतित होती है। आत्मा पावन आती है फिर माया पतित बना देती है।

बाप कभी भी बच्चों को गन्दी मत नहीं दे सकते। इस समय के पतित मनुष्य, पतित मत देते हैं। अब पावन बाप कहते हैं कि पतित नहीं बनो अर्थात् विकारों में नहीं जाओ। रावण की मत से दु:खधाम बन गया है। पहले सुखधाम था, ऐसे नहीं बाप ही सुख-दु:ख देते हैं, नहीं। बाप कभी बच्चों को दु:ख की मत दे नहीं सकते। माया ही दु:ख देती है। उस माया पर जीत पाने से ही तुम जगत जीत बनते हो। मनुष्य माया का अर्थ नहीं समझते, वह धन को माया कह देते हैं। कहते हैं ना इनको माया का नशा बहुत है। परन्तु माया 5 विकारों को कहा जाता है। अगर 5 विकारों का नशा है तो माया एकदम खा जाती है। सतयुग त्रेता में माया का नशा होता नहीं। वहाँ रावण का बुत बनाकर जलाते नहीं। बुत कड़े दुश्मन का बनाया जाता है। रावण राज्य शुरू होता है आधाकल्प से। देह-अहंकार आने से फिर और विकार आ जाते हैं। शास्त्रों में कोई यह बातें नहीं हैं। लिखा हुआ है – देवतायें वाम मार्ग में अर्थात् विकारों मे जाते हैं। माया के वश होने से परवश हो जाते हैं। परमत पर चलते रहते हैं। अभी तुम चलते हो श्रीमत पर। परमत माना माया की मत। श्री अर्थात् श्रेष्ठ मत है बाप की। वह है परमत रावण की मत इसलिए बाप ने कहा है आसुरी सम्प्रदाय सब रावण की जंजीरों में दु:खी हैं।

मनुष्यों ने सतयुग की आयु लाखों वर्ष समझ ली है। तो तुम हिसाब-किताब बताते हो 5 हजार वर्ष कैसे हैं। क्राइस्ट को दो हज़ार वर्ष हुआ, बुद्ध को 2250 वर्ष हुआ, फिर इस्लामी को 2500 वर्ष हुए। सबको मिलाकर आधाकल्प हुआ। इनके पहले तो देवताओं का राज्य था फिर देवताओं को लाखों वर्ष कैसे कह सकते। इतने वर्ष होते फिर तो मनुष्य बहुत हो जाते। इतने तो हैं नहीं। 5 हजार वर्ष में ही करोड़ों मनुष्य हो जाते हैं। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। 5 हज़ार वर्ष पूरे हो जाते हैं, नाटक पूरा तो होता है ना। इन बातों को कोई जानते नहीं हैं। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, यह चक्र कैसे फिरता है। कोई जान न सके। बाप ही समझाते हैं यह है गीता। बाप ने आकर सहज राजयोग सिखाया था, तब उनका नाम गीता रखा है। जैसे क्राइस्ट ने सिखाया तो उनका नाम बाइबिल रखा है, यह अनादि नाम रखे हुए हैं। वह रिपीट होते हैं। बाबा बुढ़ियों को भी समझाते हैं, यह बहुत सहज बात है। सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। बच्चा पैदा हुआ गोया वारिस पैदा हुआ। तुम समझते हो हम बाबा के वारिस हैं। 5 हज़ार वर्ष बाद फिर से मिलने आये हैं। घड़ी-घड़ी पाँच हज़ार वर्ष ही कहेंगे। 2-3 वर्ष पीछे आने वाले भी कहेंगे हम 5 हज़ार वर्ष बाद फिर से आये हैं। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। बाबा पूछते हैं आगे कब मिले हो? कहते हैं – हाँ बाबा। आत्मा इस मुख द्वारा कहती है – हम 5 हज़ार वर्ष पहले आपसे मिले थे। आप इस तन द्वारा शिक्षा देने आये थे। जो पक्के-पक्के बच्चे हैं समझते हैं हम बाप से बेहद का वर्सा लेने बैठे हैं। हम बेहद के बाप के बने हैं ब्रह्मा द्वारा। बाप कहते हैं मुझे पहचानते हो? मैं तुम्हारा बाप हूँ। कहेंगे हाँ बाबा हम आत्माओं का आप परमपिता परमात्मा बाप हो। बाप ही कहते हैं – तुमको हमने स्वर्ग में भेजा था, वर्सा दिया था फिर माया ने छीन लिया फिर अब मैं देता हूँ। माया वर्सा छीनती है, बाप दिलाते हैं। यह तो अनेक बार खेल हो चुका है, होता रहेगा। इसका अन्त नहीं है। बाप के बनते हैं फिर कोई सगे, कोई लगे। कोई सौतेले, कोई मातेले बनते हैं। कच्चे पक्के तो हैं ना। पक्कों को भी माया एकदम जीत लेती है। बच्चे कहते हैं बाबा हम जहाँ तक जियेंगे आप से वर्सा लेते रहेंगे। विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है तो जितना तुम याद में रहेंगे, उस योग अग्नि से तुम आत्मा पापात्मा से पुण्यात्मा बनती जायेंगी। आग चीज़ को पवित्र करती है। तुम्हारी है योग अग्नि।

यह है बेहद का यज्ञ, जो बेहद के सेठ ने रचा है। इतना समय कोई भी यज्ञ नहीं चलता है। 5-7 रोज़ वा एक मास यज्ञ रचते हैं। तुम्हारा यज्ञ तो कितने वर्षो से चला आता है। बाप सुनाते ही रहते हैं। कहते हैं भूल मत जाना। सिर्फ मुझे याद करो तो तुम्हारा जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का बोझा कटता जायेगा। कोई संन्यासी, विद्वान आदि को ऐसे कहने आयेगा नहीं। भगवानुवाच – मुझ बाप को याद करो। जरूर आया हुआ है तब तो कहते हैं ना। बाप कहते हैं – अब तुमको वापिस जाना है। तुम्हारी आत्मा इस समय बहुत पतित है। अब तुम जानते हो योग से हम पावन बनते जायेंगे। बाप कहते हैं ज्ञान अमृत पीकर पावन स्वर्ग का मालिक बनो। यह साजन तुम सब सजनियों को पावन बनाने आये हैं, कहते हैं मुझे निरन्तर याद करो। तुम्हारी ही प्रतिज्ञा है कि आप जब आयेंगे तो और संग तोड़ तुम संग जोड़ेंगे। तुम पर वारी जायेंगे। स्त्री पुरुष पर, पुरुष स्त्री पर बलिहार होते हैं। यहाँ है बाप पर बलिहार जाना। शादी में एक दो पर बलिहार जाते हैं ना। अब बाप कहते हैं – मनुष्य पर बलिहार नहीं जाना है। तुम्हारी प्रतिज्ञा है आप पर बलिहार जायेंगे। आप हमारे पर बलिहार होना। बाप कहते हैं तुम बलिहार जाओ तो 21 जन्म तुमको सदा सुखी बना दूँगा। कितना भारी वर्सा है! अब बाप कहते हैं – मैं तुमको वर अर्थात् वर्सा देता हूँ, सिर्फ तुम निरन्तर मुझे याद करो। श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे, यह भूलो मत। यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी घर में रख दो। हम बाप से फिर से वर्सा ले रहे हैं। बाप परमधाम से आया हुआ है। परन्तु माया चील भी कम नहीं है, पंजा मार देती है। सबकी बात नहीं है, नम्बरवार हैं। कोई तो एकदम भूल जाते हैं कि हम बाप से वर्सा लेते हैं। यहाँ बैठे हैं तो नशा चढ़ता है। यहाँ से बाहर निकला और भूला। फिर सुबह को रिफ्रेश होते हैं, फिर सारा दिन भूल जाते हैं। 4-5 वर्ष अच्छी सर्विस करने वाले भी आज देखो हैं नहीं। कुछ अवज्ञा की तो माया ने जोर से थप्पड़ मारा और चले गये। बाबा कह देते हैं बच्चे माया बहुत कड़ी है। अवज्ञा करने से माया एकदम गिरा देती है इसलिए गाया जाता है चढ़े तो चाखे प्रेम रस… देखते हो कैसे चकनाचूर हो जाते हैं। वैकुण्ठ में तो जरूर चलेंगे। परन्तु पद तो नम्बरवार है ना। भल वहाँ सब सुखी रहते हैं फिर भी मर्तबे तो हैं ना। स्कूल में मर्तबा पाने लिए ही पुरुषार्थ करते हैं। ऐसे नहीं, प्रजा ही सही, जो तकदीर में होगा…..। नहीं, इसको तमोप्रधान पुरुषार्थ कहा जाता है। सतोप्रधान उनको कहेंगे जो बाप से पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ वा प्रतिज्ञा करते हैं। यह घुड़दौड़ है ना। सब नम्बरवन तो नहीं जायेंगे। यह ह्युमन रेस है। माया ऐसा विघ्न डालती है जो एकदम रेस से निकाल देती है। तुम्हारी ह्युमन रेस है। आत्मा कहती है हम बहुत दु:खी हुए हैं। शरीर लेते-लेते बहुत तंग हुए हैं। कहते हैं अब बाबा के पास जायें। बाबा ने युक्ति तो बतलाई हुई ही है। बाबा हम आपकी याद में रहेंगे। जितना टाइम निकाल सको उतना अच्छा है। जैसे गवर्मेन्ट की सर्विस में भी 8 घण्टा रहते हैं ना। तो इसमें भी तो 8 घण्टा रहो। सृष्टि को स्वर्ग बनाना कितनी भारी सर्विस है। सिर्फ बाप को याद करो और सुखधाम को याद करो। बस, 8 घण्टा सर्विस की तो पूरा वर्सा पायेंगे। ऐसे याद करते-करते तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। आठ घण्टा तुम इस सर्विस में दो। बाकी 16 घण्टा तुम फ्री हो। जितना हो सके घड़ी-घड़ी याद करो। याद तो कहाँ भी बैठे कर सकते हो। सबसे अच्छा टाइम तुमको सवेरे मिलेगा। सिन्धी में कहते हैं – सवेल सुमण, सवेल उथण (सवेरे (जल्दी) सोना, सवेरे उठना… यह गुण मनुष्यों को बड़ा करता है) अज्ञानी लोग 8 घण्टा नींद करते हैं। तुम्हारी नींद आधी होनी चाहिए। 4 घण्टा नींद बस। कर्मयोगी हो ना। रात को 10 बजे सो जाओ, 2 बजे उठो। शिवबाबा को याद करो। 2 बजे नहीं उठ सकते तो 3 बजे उठो, 4 बजे उठो। वह फर्स्टक्लास समय है। एकदम शान्ति रहती है। सभी अशरीरी बन जाते हैं। उस समय सन्नाटा बहुत होता है, जैसे कि मूलवतन हो जाता है। ऐसे लगता जैसे सब मरे पड़े हैं। उस समय तुम बाबा को याद करेंगे तो फिर वह याद पक्की हो जायेगी। अमृतवेले की याद अच्छा असर करती है। बाबा बहुत करके रात को जागते रहते हैं। स्थूल काम में आने से माथा भारी होता है। सूक्ष्म सर्विस में थकावट नहीं होती है। कमाई थोड़ेही थकायेगी। कमाई से तो खुशी होगी। तो सवेरे-सवेरे उठकर याद करने से बड़ी कमाई है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) सवेरे अमृतवेले उठ अशरीरी बन बाप को याद करने का अभ्यास करना है। पूरा वर्सा लेने के लिए याद की रेस करनी है। कम से कम 8 घण्टा याद जरूर करना है।

2) एक बाप पर पूरा बलिहार जाना है। परमत व मनमत पर न चल एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलना है।

वरदान:-

रूहानी एक्सरसाइज़ अर्थात् अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। ऐसी एक्सरसाइज रोज़ करो तो व्यर्थ का जो बोझ है वो समाप्त हो जायेगा। जब बोझ (वेट) समाप्त हो, माशूक समान डबल लाइट बनो तब जोड़ी अच्छी लगेगी। यदि माशूक हल्का हो और आशिक भारी हो तो जोड़ी अच्छी नहीं लगेगी। रूहानी माशूक आशिकों को कहते हैं समान बनो, समीप बनो।

स्लोगन:-

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