28 April 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

27 April 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - इस कलियुगी दुनिया का सुख काग विष्टा के समान है, यह दुनिया अब गई कि गई इसलिए इससे लगाव नहीं रखना है, आसक्ति निकाल देनी है''

प्रश्नः-

किन बच्चों की दिल इस पुरानी दुनिया से नहीं लग सकती है?

उत्तर:-

जो आज्ञाकारी, वफादार, निश्चयबुद्धि बच्चे हैं उनकी दिल इस पुरानी दुनिया से लग नहीं सकती क्योंकि उनकी बुद्धि में रहता यह तो विनाश हुई कि हुई। यह तिलसम (जादू) का खेल है, माया का भभका है। इसका अब विनाश होना ही है। डैम फटेंगे, अर्थक्वेक होगी, सागर धरनी को हप करेगा…. यह सब होना है, नथिंगन्यु। स्वीट होम, स्वीट राजधानी याद है तो इस दुनिया से दिल नहीं लग सकती।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

जिसका साथी है भगवान…

ओम् शान्ति। यह निश्चय के ऊपर गीत है। जब बाप का बनते हैं वा बाप आते हैं तो वह आकर हमारा साथी बनते हैं। बच्चे जानते हैं बाप जब आते हैं तब ही विनाश के तूफान होते हैं। बाप आते हैं पुरानी दुनिया को खलास कर नई दुनिया स्थापन करने। अर्थक्वेक होगी, समुद्र नीचे से धरती को खा जायेगा, बरसात ऊपर से धरती को खा जायेगी। यह सब होना ही है। गीत तो उन्होंने ऐसे ही बैठ बनाये हैं। तुम ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे जानते हो बरोबर पुरानी दुनिया का विनाश होना है। बाप आये ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने। ब्राह्मणों को सारे विश्व का मालिक बनाते हैं। पुरानी दुनिया का विनाश कराए फिर सारे विश्व की राजाई बच्चों को वर्से में देते हैं। तुम जानते हो बाप से नये विश्व के मालिकपने का वर्सा मिलता है। यह पुरानी विश्व तो कोई काम की नहीं है। मनुष्य समझते हैं अब तो स्वर्ग बनता जा रहा है। परन्तु यह सब है माया का भभका। सब चीज़ मुलम्मे की है, सारा राज्य मुलम्मे का है। रूण्य के पानी (मृगतृष्णा) समान है, इसमें मनुष्य खुश होते हैं। आगे जब मुसलमानों का राज्य था तो यह एरोप्लेन, मोटरें आदि थोड़ेही थी। यह सब माया का भभका है। कितने प्लैन्स बनाते हैं। बच्चे जानते हैं यह सब विनाश होने हैं। अर्थक्वेक होगी, यह डैम्स आदि सब पानी ही पानी कर देंगे। मनुष्य समझते हैं इससे सुख मिलेगा, परन्तु इन सबसे दु:ख ही मिलेगा। यह एरोप्लेन भी दु:खदाई बन पड़ेंगे, बाम्ब्स गिरायेंगे। तो बच्चे यह सब बातें भूल जाते हैं इसलिए पुरानी दुनिया में दिल लग जाती है। जो बाप के आज्ञाकारी, वफादार, पूरे मददगार बच्चे बनते हैं, पक्के निश्चयबुद्धि हैं वह तो जानते हैं कि कुछ भी हो, यह कोई नई बात नहीं है। यह तो अनेक बार पुरानी दुनिया का विनाश हुआ है, सो अब होना है जरूर। वह समझते हैं बहुत नई-नई चीज़ें बन रही हैं, स्वर्ग बन रहा है और तुम बच्चे सिर्फ जानते हो कि यह तो तिलसम (जादू) का खेल है। जैसे कोई पुराने सोने को रंग रूप लगाकर चमकदार बना देते हैं, वैसे इस पुरानी दुनिया को भी रंग रूप देकर चमकदार बनाने के सब तरफ प्लैन्स बनाते रहते हैं। उनको यह पता ही नहीं है कि विनाश होना है। यह तो तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया विनाश होनी है।

मनुष्य तो कह देते हैं कि यह पुरानी दुनिया विनाश होगी फिर नई दुनिया भगवान आकर स्थापन करेंगे। पहले ब्रह्मा को रचेंगे, फिर उनसे मनुष्य सृष्टि पैदा होगी। सो तो पता नहीं कब होगा। यह सिर्फ तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं। भगवान की है श्रीमत। अब श्रीमत जब कहा जाता है तो जरूर समझना चाहिए यह तो ऊंच भगवान की ही मत है। श्रीमत ब्रह्मा की वा विष्णु की नहीं कहते हैं। भगवान आकर ब्रह्मा तन से श्रीमत कैसे देते हैं – यह मनुष्य नहीं जानते हैं। वह समझते नहीं – ब्रह्मा फिर नीचे कैसे आता है, वह तो है सूक्ष्मवतनवासी। तो इन सब बातों को न जानने के कारण श्रीकृष्ण का नाम दे दिया है। ऐसे भी नहीं हो सकता कि श्रीकृष्ण का कोई साधारण रूप है जिसमें परमात्मा प्रवेश करते हैं। यह बातें कोई नहीं जानते। बाप कहते हैं हमारे भी बहुत गुरू किये हुए थे, परन्तु कुछ पता नहीं था। भूले हुए थे कि श्रीमत किसकी है? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तो है निराकार, उनकी ही श्रीमत है। शिवाए नम: कहते हैं ना। उनकी महिमा अपरमअपार है। इन बातों को तुम बच्चे ही जानते हो। यह सब बातें किसको बुद्धि में बिठाने में कितनी मेहनत लगती है!

अब भक्तों को भगवान की मत चाहिए। यह तो ड्रामा में नूंध है। गीता के भगवान ने आकर भक्तों को मत दी है। तो भक्तों का उद्धार कैसे हो, भक्त फिर कह देते हैं भगवान सर्वव्यापी है। भक्त ही भगवान हैं तो बताओ उन्हों का क्या हाल होगा। अब बाप बैठ समझाते हैं कि भगवान एक है, वह आते ही हैं भक्तों की रक्षा करने। इस समय मनुष्य सब रावण की शोकवाटिका में हैं। कोई भी मनुष्य साधू सन्त आदि रक्षा नहीं कर सकते हैं। भक्तों की रक्षा भगवान को करनी है।

मनुष्य यह नहीं जानते हैं कि हम पतित दुनिया नर्क में निवास कर रहे हैं। पावन दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। यह बातें समझेंगे फिर भी कोटों में कोई। कल्प पहले वाले सिकीलधे बच्चे ही आयेंगे। कल्प-कल्प तुम सिकीलधे बनते हो फिर कोई तो पूरा बनते हैं, कोई को तो माया कच्चा ही खा जाती है। बाप को याद न करने से झट विकार आ जाते हैं। पहला-पहला विकार देह-अहंकार आया तो फिर औरों की भी चेष्ठा होगी, इसलिए बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो क्योंकि सबको वापिस जाना है। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। कलियुगी दुनिया का सुख काग विष्टा के समान है। यह तो संन्यासी भी कहते हैं और तुम भी समझते हो। नर्क और स्वर्ग को तुम बच्चे जानते हो। नर्क में तो कोई सुख नहीं। नर्क में कोई से भी लगाव रखना अपना पद भ्रष्ट करना है। कोई भी चीज़ में आसक्ति नहीं रखनी है। समझाना चाहिए यह तो पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है। यह दुनिया कोई काम की नहीं है। पहले-पहले देह-अभिमान आने से उनके साथ दिल लगती है। देही-अभिमानी फिर इस पुरानी दुनिया से जैसे उपराम रहेंगे। वह होता है हद का वैराग्य, यह है बेहद का वैराग्य। हम इस पुरानी दुनिया को भूलते हैं, यह बिल्कुल ही दु:ख देने वाली है। इनसे बाकी थोड़ा सा काम लेना है, यह गई कि गई। बाकी दो घड़ी के हम मेहमान हैं। तो ब्राह्मण ही कहते हैं कि हम पुरानी दुनिया में दो घड़ी के मेहमान हैं। हम अपने स्वीट होम, स्वीट राजधानी में आकर सुख भोगेंगे, अब हमको जाना है। यह पुरानी दुनिया कब्रिस्तान होनी है इसलिए देह सहित सब कुछ भूल जाना है। यह शरीर पुरानी जुत्ती है, इसको अब छोड़ना है, योग में रहना है। योग में रहने से आयु बढ़ेगी तो हम बाप से वर्सा लेंगे। देह-अभिमानी की आयु बढ़ नहीं सकती। उनका देह से प्यार हो जाता है। कोई का शरीर अच्छा है तो देह से प्यार होता है। अच्छी रीति मलते रहेंगे, जैसे बर्तन मले जाते हैं। जितना तुम योग में रहेंगे उतना आत्मा प्योर होती जायेगी फिर लायक बनेंगे – नया बर्तन लेने के। हम शरीर को भल कितना भी साबुन, वैसलीन, पाउडर आदि लगायें फिर भी पुराना शरीर है ना। पुराने मकान को कितना भी मरम्मत करो तो भी जैसे खण्डहर है, तो यह शरीर भी ऐसे है। अपने से ऐसी-ऐसी बातें करेंगे तब बाप और वर्से से दिल लगेगी और कोई चीज़ से दिल नहीं लगानी है। मैं आत्मा हूँ, बाप के पास जाने वाली हूँ। बाप को याद करने से फ़ायदा होता रहता है। आयु बढ़ती रहती है। आत्मा समझती है – मैं योगबल से प्योर होती जाती हूँ। यह मेरा शरीर कोई काम का नहीं है। भल संन्यासी पवित्र रहते हैं परन्तु शरीर तो फिर भी पतित है ना। यहाँ कोई का भी शरीर शुद्ध नहीं हो सकता। वहाँ शरीर विष से नहीं बनता। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो। अगर स्वर्ग में भी विकारों से ही पैदाइस होती तो फिर उनको निर्विकारी क्यों कहते? वहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं।

तुम जानते हो इस समय 5 तत्व भी आइरन एजेड हैं तो शरीर भी ऐसे मिलते हैं। बीमारी आदि हो जाती है, वहाँ कभी शरीर बीमार हो न सके। यह सब समझने की बातें हैं। वहाँ तुम्हारे शरीर भी नये बनते हैं। सतोप्रधान प्रकृति बन जाती है। वहाँ यह दवाईयां आदि कुछ नहीं होती। शरीर चमकता रहता है। काया कंचन समान बन जाती है। अभी तो लोहे की है। वन्डर है ना काया कैसे बदलती है! कोई पॉलिश तो नहीं की जाती है। काया एकदम कंचन समान हो जाती है उसको गोल्डन एज कहा जाता है। सोने के शरीर तो नहीं होते हैं। लक्ष्मी-नारायण को पारसनाथ पारसनाथिनी कहते हैं। उन्हों के शरीर देखो कितने सतोप्रधान हैं! उन्हों की कितनी महिमा है। अभी तो यह 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं, विष से शरीर पैदा होते हैं। वहाँ है योगबल की बात। स्वर्ग में जरूर वाइसलेस बच्चे होंगे। काम महाशत्रु वहाँ होता नहीं। बाप कहते हैं यह काम तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है। उनको कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया और इसको सम्पूर्ण विकारी दुनिया कहा जाता है। हर एक के अन्दर यह 5 भूत हैं। 5 भूतों पर विजय तब पाते जब सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाते हो, जिस योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो। तो तुम हो इनकागनीटो शिवशक्ति सेना। सेना शिवबाबा से योग लगाकर शक्ति ले रही है। वह सर्वशक्तिमान बाप है ही स्वर्ग की राजधानी स्थापन करने वाला, गॉड फादर। वह आते ही हैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने। अभी तुम स्वर्ग के लायक नहीं हो। मैं कल्प-कल्प आकर तुम बच्चों को स्वर्ग की राजधानी में राज्य करने के लायक बनाता हूँ। अभी तुम हो नर्क के मालिक। मनुष्य कहते भी हैं फलाना मरा, स्वर्गवासी हुआ। बिल्कुल समझते नहीं हैं कि हम नर्क में हैं। स्वर्ग का वास्तव में कोई को पता ही नहीं है। कहते हैं जिनके पास धन दौलत बहुत है उनके लिए यहाँ ही स्वर्ग है। अरे इतनी बीमारियां आदि लगी पड़ी हैं इसको स्वर्ग कैसे कहेंगे। स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता है। कलियुग में थोड़ेही स्वर्ग है। बाप ने समझाया है यह है विकारी दुनिया। हर एक नारी द्रोपदी, पार्वती है। हर एक नारी को अमरनाथ अमरकथा सुनाते हैं। हर एक द्रोपदी नंगन होने से बच जायेगी। यह बातें बेहद का बाप बैठ समझाते हैं। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड, सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया, विकार बिल्कुल नहीं। आत्मा आकर प्रवेश करती है तो उस समय गर्भ में बिल्कुल प्योर रहती है। आत्मा भी प्योर आती है इसलिए उनको गर्भ में भी कोई सजा नहीं भोगनी पड़ती है। यहाँ तो सभी को सजा मिलती है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझना है। देही-अभिमानी बन पुरानी दुनिया और पुरानी देह से उपराम रहना है।

2) योग से आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाना है। पुराने शरीर तरफ आकर्षित नहीं होना है, इससे लगाव नहीं रखना है।

वरदान:-

जैसे छोटा सा फायरफलाई (जुगनू) दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। ऐसे विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूस हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही हैं। बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गये हैं। चारों ओर की अशान्त आत्मायें शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आयें। इस शान्ति की शक्ति का अभी प्रयोग करो।

स्लोगन:-

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