03 March 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
2 March 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - जब स्वच्छ पौधों पर 5 विकारों की मैल चढ़ती है तब भ्रष्टाचार बढ़ता है, अब तुम्हें श्रेष्ठाचारी बनना और बनाना है''
प्रश्नः-
श्रेष्ठ बनने के लिए श्री श्री शिवबाबा की श्रेष्ठ मत कौन सी मिलती है?
उत्तर:-
श्रेष्ठ बनने के लिए बाप की श्रीमत मिलती है – बच्चे, कम से कम 8 घण्टे मेरी सर्विस पर रहो, 8 घण्टा भल उस गवर्मेन्ट की सर्विस करो लेकिन 8 घण्टा मुझे याद करो वा स्वदर्शन चक्र फिराओ। साथ-साथ शंख ध्वनि करो सबको कहो कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहकर बाप से वर्सा लो।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया.
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। बच्चे पहले बहुत ही सतयुग के सुख भोगते थे, बहुत मस्त थे। खुशियाँ ही खुशियाँ थी। सिर्फ भारत ही था और कोई खण्ड नहीं था। भारतवासी यथा राजा रानी तथा प्रजा सब बहुत मजे में थे, खुशी में थे। कभी कोई भ्रष्टाचार नहीं होता था। सतयुग में देवी-देवता श्रेष्ठाचारी थे, जिन्हों की कितनी महिमा गाई जाती है! महिमा यथा राजा रानी तथा प्रजा सबकी होती है। फिर माया आकर चटकती है। यह भी ड्रामा बना बनाया है, जिसको अच्छी रीति समझना है। बाप के सिवाए कोई समझा न सके। बाप ही भारत और विश्व को सदा सुखी, शान्तमय बनाए, सब कुछ करके फिर खुद छिप जाते हैं। यह किसकी महिमा है? परमपिता परमात्मा की। भारत में जब स्वर्ग था तो देवी-देवताओं का राज्य था, सतोप्रधान था, दु:ख का नाम निशान नहीं था। फिर आधाकल्प बाद रावण-राज्य हुआ। सतयुग के देवताओं के लिए गाया जाता है – सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम। वहाँ तो कभी भ्रष्टाचार हो नहीं सकता। वहाँ तो श्रेष्ठाचारी थे। पौधे जो स्वच्छ थे उन पर 5 विकारों की मैल चढ़ने से भ्रष्टाचार होते-होते अब पूरा भ्रष्टाचार हो गया है। राजा-रानी तथा प्रजा, जो श्रेष्ठाचारी थे, वह सब अभी भ्रष्टाचारी बन पड़े हैं। गाते भी हैं – मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। आप ही रहम करो, ओ गॉड फादर, रहम माँगते हैं। देवी-देवताओं के आगे जाकर कहते हैं हमको ऐसा बनाओ। ड्रामा को तो जानते नहीं कि वह फिर ऐसा कब बनेंगे? तो तुम श्रेष्ठाचारी थे, भ्रष्टाचार का नाम नहीं था। इस समय सभी मनुष्य भ्रष्ट बन पड़े हैं। यथा राजा रानी तथा प्रजा, अब भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी कैसे बन सकते हैं – यह कोई नहीं जानते हैं। यह है ही पतित दुनिया। भ्रष्टाचार होना ही है। अब बाप कहते हैं जो कुछ समझो वह फिर औरों को समझाओ।
बाप की महिमा गाते हैं अपने आप सब कुछ करके अपने आप छिपाया। निराकार भगवान को आना जरूर पड़ता है। शिव जयन्ती मनाते हैं। कैसे आते हैं – अभी तुम बच्चे जानते हो। शिव है पतित-पावन, उनको आना ही तब है जब सारी सृष्टि पतित बन जाती है। उसको आकर पावन बनाना है। दो चार को तो पावन नहीं बनायेंगे ना। यथा राजा रानी तथा प्रजा पावन थे फिर अब यथा राजा रानी तथा प्रजा पतित हैं। अभी तो राजा रानी हैं नहीं। जानते हैं राज़े लोग थे, अब उन्हों की राजाई है नहीं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी तो साहूकार लोग, जमींदार आदि धन देते थे। कोई ने 20-30 हजार दिया तो टाइटिल मिल जाता था। बाबा अनुभवी है ना। शिवबाबा ने भी अनुभवी रथ लिया है। ऐसा-वैसा रथ थोड़ेही लेगा। बड़े-बड़े राजायें होते हैं तो वह घोड़े बहुत फर्स्टक्लास रखते हैं। जानवरों में भी कोई-कोई बहुत अच्छे होते हैं। जैसे ऊंट कोई बहुत अच्छे होते हैं। बैठो तो जैसे एरोप्लेन चलता है। कोई तो ऐसा होता है जो बहुत डन्डे लगाने पड़ते हैं। तो बरोबर यह भारत पांच हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। यह तो मशहूर है। क्रिश्चियन लोग भी कहते हैं क्राइस्ट से तीन हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। तो बरोबर कल्प पांच हजार वर्ष का हो गया। खुद ही कल्प की आयु बतलाते हैं फिर सतयुग को लाखों वर्ष कहते हैं। ऐसी-ऐसी प्वाइन्ट्स बाबा समझाते हैं, जो धारण कर दूसरों को समझानी हैं, परन्तु समझाते नहीं।
अभी तुम बच्चे जानते हो बरोबर हम श्रेष्ठाचारी थे। यथा राजा रानी तथा प्रजा श्रेष्ठ थे। शेर बकरी इकट्ठे जल पीते थे। वहाँ कंस, जरासन्धी, हिरण्याकश्यप आदि कुछ भी नहीं थे। हिरण्याकश्यप आदि को सतयुग में और श्रीकृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। रावण को त्रेता में ले जाते हैं। सब असुरों के अलग-अलग नाम दे देते हैं। कुम्भकरण आदि भी सब असुरों के नाम हैं। अभी है आसुरी सम्प्रदाय अर्थात् आसुरी मत पर चलने वाले। अभी बाप आकरके श्रीमत देते हैं जिससे तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा के मुख कमल से ब्राह्मण, देवता और क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते हैं। दूसरा कोई धर्म वहाँ होता नहीं। सतयुग त्रेता में तो दूसरा कोई धर्म स्थापन हुआ नहीं है। दोनों युग की एज तो एक जैसी 1250 वर्ष है। सतयुग में दैवी राज्य, त्रेता में क्षत्रिय राज्य… सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी। यह सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजधानी किसने स्थापन की? क्या ऐसे कहेंगे कि चन्द्रवंशी राजधानी राम ने स्थापन की? सूर्यवंशी राजधानी लक्ष्मी-नारायण ने स्थापन की? नहीं, दोनों ही स्थापन करने वाला परमपिता परमात्मा है। स्वर्ग का रचयिता है बाप। सतयुग-त्रेता की राजाई रची है। गाया भी जाता है परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा मुख से ब्राह्मण, देवता और क्षत्रिय धर्म रचा। बाप कहते हैं यह जो तुमको ज्ञान सुनाता हूँ यह फिर प्राय:लोप हो जायेगा। इस्लामी, बौद्धी आदि जो धर्म स्थापन करके गये हैं उनका नाम, रूप, देश, काल आदि तो नहीं भूलेंगे। उनको तो सब जानते हैं ना। यह देवता धर्म मैं कैसे स्थापन करता हूँ – यह ज्ञान सब भूल जायेंगे। द्वापर में फिर कितने धर्म स्थापन हो जाते हैं। एक ही इस्लामी बौद्धी धर्म में यह सैकड़ों हो गये हैं। आपस में कितना लड़ते हैं! अभी तुम जानते हो बाबा कैसे सब कुछ करके अपने आपको छिपा लेता है। स्वर्ग में जो देवी-देवतायें थे उनको फिर माया आकर चटकी। पूरे बेगुण बन गये हैं। गाते भी हैं – मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं, तब तो गुणवान देवताओं की पूजा करते हैं। बड़े-बड़े राजाओं के पास अन्दर महलों में मन्दिर रहते हैं। पूजा करते हैं। ऐसा कोई राजा नहीं होगा जिसके पास मन्दिर न हो।
अब बच्चे जानते हैं शिवबाबा की श्रीमत पर चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेनी है तब ही सो देवी-देवता बनेंगे। परन्तु श्रीमत पर भी चलते नहीं। बाबा कहते हैं कोई भी बात में कुछ मूँझो तो चिट्ठी लिखकर पूछो। बाप को याद करो। माया ऐसी है जो स्वर्ग स्थापन करने वाले परमपिता परमात्मा को याद करने नहीं देती। बाबा जानते हैं तूफान बहुत आयेंगे। परन्तु चिट्ठी लिख पूछना चाहिए – इस हालत में क्या करें? बच्चे की शादी है – इस हालत में क्या करें? कोई मरा है – क्या करें? मत लेनी चाहिए। श्रेष्ठ बनना है तो श्रीमत पर चलना है। श्रीकृष्ण की मत तो हो न सके। श्रीकृष्ण पतित दुनिया में कैसे आ सकता है! श्रीकृष्ण की आत्मा खुद अन्तिम जन्म में राजयोग सीख रही है। सिर्फ श्रीकृष्ण की आत्मा है क्या? जो भी देवी-देवता घराने वाले हैं वह ब्राह्मण बने हैं। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करते रहो। तुम्हारे पापों का बोझा बहुत है। भल कोई गवर्मेन्ट सर्विस में हैं। आठ घण्टे गवर्मेन्ट की नौकरी है, बाकी जो समय है उसमें याद करो। कम से कम आठ घण्टा तुम मेरी सर्विस करो, बाप को याद करो, स्वदर्शन चक्र फिराओ, शंख-ध्वनि करो। कौन सी? सबको कहो – गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रह करके बाप से वर्सा लो। बाप स्वर्ग रचते हैं तो स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। भारत ही स्वर्ग का मालिक बनता है। अभी तो नर्क का मालिक है। नर्क में दु:खी होते हैं तब बाप को याद करते हैं परन्तु जानते नहीं कि बाप क्या देगा। बाप के लिए कहते हैं सर्वव्यापी है, भित्तर-ठिक्कर में है। बाप कहते हैं – तुमने कितनी भूल की है। परन्तु यह भी ड्रामा में नूँध है। अब उनसे बाहर निकलो। यह भक्ति आदि करते-करते तुम तंग हो गये हो। अभी भक्ति भी व्यभिचारी हो गई है। मौत आकर सामने खड़ा है तो श्रीमत पर चलना चाहिए। परन्तु बच्चे ऐसे बाप को भूल जाते हैं। माया रावण का राज्य कैसे चलता है – यह भी कोई जानते नहीं। रावण का बुत जलाते हैं। यह पीछे रिवाज निकला है। रावण को जलाते हैं परन्तु हर वर्ष रावण बड़ा होता जाता है। आगे 10 फुट का बनाते थे, फिर 15 फुट का बनाया, फिर 50 फुट… एकदम छत जितना लम्बा बनाते हैं। बुद्ध का भी बहुत बड़ा चित्र बनाते हैं। इतने बड़े मनुष्य तो होते नहीं। जास्ती में जास्ती मनुष्य 6 फुट होंगे। लक्ष्मी-नारायण भी इतने ही होंगे। ऐसे नहीं, वहाँ आयु बड़ी होती तो बड़े बन जाते हैं। नहीं, मनुष्य, मनुष्य ही हैं। जैसे अभी देखते हैं, भिन्न-भिन्न वैराइटी है। कोई काले, कोई कैसे। भारत में सुन्दर भी थे, अभी श्याम बने हैं। सुन्दर बनाने वाला है बाबा। वह है हसीन मुसाफिर, वह तुमसे बात कर रहे हैं। उनको भूलना नहीं चाहिए। इनको (साकार को) भल भूल भी जाओ। हमेशा समझो बाबा हम सजनियों को खूबसूरत परीज़ादा बनाते हैं। कहते हैं ना एक तलाव है, जहाँ डुबकी लगाने से मनुष्य परी बन जाते हैं। अभी तुम समझते हो ज्ञान सागर द्वारा ज्ञान की परी बन जाते हैं। अभी तो नर्क की परी हो ना। भल कितना भी कोई फैशन करे, पाउडर आदि लगावे फिर भी है तो नर्क में ना। कोई से भी पूछो यह स्वर्ग है वा नर्क है? कहते हैं साहूकारों के लिए स्वर्ग है। स्वर्ग-नर्क को भी जानते नहीं। तो श्रीमत का ख्याल रखना चाहिए। श्रीमत को भी जानते नहीं, जिसने इतना श्रेष्ठ बनाया उनका नाम-रूप गुम कर दिया है। गाते हैं – तुम मात-पिता हम बालक तेरे…। अब माता किसको कहा जाता है – यह तुम जानते हो। जरूर जिसमें बाप प्रवेश कर रचना रचते हैं, उनको माता कहेंगे। यहाँ तुम समझते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं। शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियाँ हैं। तो बाप के भी नाम हैं। बीच में बाप दलाल जरूर चाहिए, जो तुम पोत्रे पोत्रियाँ कहलाओ, दादे से वर्सा लो। तो यह दलाल है, इनसे वर्सा नहीं मिल सकता। इनको भी वर्सा शिवबाबा से लेना है। शिवबाबा की मत पर चलना है। तुम्हें ब्रह्मा के द्वारा शिवबाबा से वर्सा मिलता है, परन्तु बाबा कहते हैं तुम इनको भी भूल जाओ। शिवबाबा से तुमको मत लेनी है। शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु बिल्कुल जानते नहीं। स्वर्ग बनाने वाले बाप का यादगार गुम कर दिया है। नर्क बनाने वालों के यादगार रख दिये हैं। दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार होता जाता है। कोई को अगर क्रोध आता है तो समझना चाहिए हमारे में यह भूत है फिर हम श्रेष्ठाचारी कैसे कहला सकते। तुम्हें श्रेष्ठाचारी बनने का पुरुषार्थ जरूर करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) बाप की याद और ज्ञान सागर के ज्ञान से सुन्दर ज्ञान परी बनना है। कदम-कदम पर शिवबाबा की मत जरूर लेनी है।
2) श्रेष्ठाचारी बनने के लिए अन्दर से भूतों को निकाल देना है। कोई भी भ्रष्ट बनाने वाला काम नहीं करना है।
वरदान:-
हिमालय पर्वत जितनी बड़ी समस्या को भी पार करने के लिए उड़ती कला की विधि को अपनाओ। सदा अपने सामने सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रखो, और उड़ती कला में उड़ते रहो तो समस्या रूपी पहाड़ को सेकण्ड में पार कर लेंगे। सिर्फ वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध के अनुभवी बनो। जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा प्रालब्ध स्पष्ट दिखाई दे, हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते रहो।
स्लोगन:-
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भ्रष्ट को श्रेष्ठ बनाने वाले , निर्धन को धनवान बनाने वाले, निर्बल को बलवान बनाने वाले – – – — बागवान भगवान् दयावान मेहरबान सर्वशक्तिवान सदाशिव परमात्मा मीठे बाबा शुक्रिया……