01 March 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
28 February 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - बेहद ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को समझना है, जो पास्ट हुआ वही अब फिर प्रजेन्ट होना है, अभी संगमयुग प्रजेन्ट है फिर सतयुग आना है''
प्रश्नः-
श्रीमत पर अपने आपको परफेक्ट बनाने की विधि कौन सी है?
उत्तर:-
अपने आपको परफेक्ट बनाने के लिए विचार सागर मंथन करो। अपने आपसे बातें करो। बाबा आप कितने मीठे हो, हम भी आप जैसा मीठा बनेंगे। हम भी आपके समान मास्टर ज्ञान सागर बन सबको ज्ञान देंगे। किसी को भी नाराज़ नहीं करेंगे। शान्ति हमारा स्वधर्म है, हम सदा शान्त रहेंगे। अशरीरी बनने का अभ्यास करेंगे। ऐसी-ऐसी स्वयं से बातें कर स्वयं को परफेक्ट बनाना है।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
माता ओ माता, जीवन की दाता..
ओम् शान्ति। शिव भगवानुवाच। सिर्फ भगवानुवाच कहने से मनुष्य कुछ नहीं समझ सकेंगे। नाम जरूर लेना पड़ता है। गीता सुनाने वाले जो भी हैं वह कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच। वह पास्ट में हो गये हैं। समझते हैं श्रीकृष्ण आया था और गीता सुनाई थी वा राजयोग सिखाया था। अब जो पास्ट हो गया वह फिर प्रेजन्ट जरूर होना है। जो प्रेजन्ट है वह फिर पास्ट होना है। जो पास्ट हो जायेगा उसको कहेंगे बीत गई। तो अब शिवबाबा आया है जरूर होकर गया है। शिव भगवानुवाच, जो ऊंच ते ऊंच है, वह सबका बाप है, जिसको सर्वशक्तिमान कहा जाता है, वह बैठ समझाते हैं। तुम उनके बच्चे शिव शक्तियां हो। शिव शक्ति की महिमा गीत में सुनी ना। शिव शक्ति जगत अम्बा होकर गई है, जिसका यह यादगार है। होकर गये हैं फिर आने हैं जरूर। जैसे सतयुग पास्ट हुआ, अब कलियुग है फिर सतयुग आने वाला है। अभी है पुरानी दुनिया और नई दुनिया का संगम। जरूर नई दुनिया होकर गई है, अब पुरानी दुनिया है। जो सतयुग पास्ट हुआ है फिर भविष्य में आना है। यह समझ की बात है। ज्ञान है ही समझ। वह है भक्ति, यह है ज्ञान। सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है वह समझना है। उनको समझने बिगर मनुष्य कुछ भी समझ नहीं सकते। ड्रामा के आदि मध्य अन्त को समझना है। उस हद के ड्रामा के आदि मध्य अन्त को तो जानते हैं। यह है बेहद का ड्रामा, इसको मनुष्य समझ नहीं सकते। बाप जो बेहद का मालिक है, वही खुद आकर समझाते हैं। शिव भगवानुवाच है न कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच। कृष्ण को भी श्री कहते हैं क्योंकि उनको श्रेष्ठ बनाने वाला बाप है। भारतवासी बिचारे यह नहीं जानते हैं कि कृष्ण ही नारायण बनते हैं। हम अभी कहते हैं बिचारे बेसमझ हैं। सब गरीब दु:खी पतित हैं। हम भी थे परन्तु अभी हम पावन बन रहे हैं। पतित-पावन बाप अब हमको मिला हुआ है। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहा जाता है। नई पावन दुनिया बनाने वाला रचयिता बाप ही है, जिसको परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान कहा जाता है। वो ही पतित दुनिया को पावन बनाने वाला है, पतित सृष्टि को पावन बनाने वाला है। पतित सारी सृष्टि है, रावण पतित बनाते हैं। पतित-पावन एक ही ईश्वर है। मनुष्य पतित से पावन बना नहीं सकते, कोई भी हालत में। सारी दुनिया का सवाल है ना। समझो करके संन्यासी एक दो करोड़ पावन हों फिर भी 5-6 सौ करोड़ पतित हैं तो जरूर इसको पतित दुनिया कहेंगे ना। वास्तव में शिव भगवानुवाच पतित दुनिया में एक भी पावन हो नहीं सकता। बाप कहते हैं तुम बच्चों को पावन बनाने लिए सारी सृष्टि को पावन बनाता हूँ। पतित-पावन का अर्थ ही है विश्व को पावन बनाने वाला। शिवबाबा खुद कहते हैं मैं पतित से पावन बना रहा हूँ। तुमको ही पावन दुनिया का मालिक बनना है। नई दुनिया में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। यह भी कोई नहीं जानते। शिवबाबा को भी कोई नहीं जानते। पूछो तुम जो निराकार परमपिता परमात्मा शिव की जयन्ती मनाते हो, वह कब आया? निराकार आया कैसे? जरूर निराकार तो शरीर में ही आयेगा तब तो कर्म कर सके। आत्मा शरीर बिगर कर्म थोड़ेही कर सकेगी। परमात्मा आकर जरूर ऊंच बनाने का ही कर्म करेंगे। सारी विश्व को पावन बनाना यह एक ही के हाथ में है। मनुष्य तो दु:खी ही दु:खी हैं। भक्त भगवान को बुलाते हैं तो जरूर भगवान एक होना चाहिए। भक्त अनेक हैं। शिव भगवानुवाच, मैं शिव भगवान तुम बच्चों को राजयोग और सृष्टि चक्र का ज्ञान समझाता हूँ अर्थात् अब तुम्हारी आत्मा को सृष्टि चक्र का ज्ञान है। जैसे मुझ बाप को सृष्टि के चक्र का ज्ञान है, मैं आया हूँ तुमको सिखलाने। सृष्टि चक्र फिरना तो जरूर है। पतित से पावन बनना है। कोई तो निमित्त बनते हैं ना। 5 विकारों रूपी जेल से लिबरेट करने मैं आता हूँ। मैं शिव हूँ, जो अभी इस तन में बैठा हूँ। तुम कहेंगे मैं आत्मा इस शरीर में बैठा हूँ। मेरे शरीर का नाम फलाना है। शिवबाबा कहते हैं मेरा निराकारी शरीर तो है नहीं। मुझ परमपिता का नाम शिव ही है। मैं परमपिता परम आत्मा स्टार मिसल हूँ। मेरा शिव नाम एक ही है। तुम ही सालिग्राम हो, परन्तु तुम्हारा नाम 84 जन्मों में बदलता रहता है। मेरा तो एक ही नाम है। मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ। गीता में जिसका नाम डाल दिया है वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। ऐसे नहीं कि श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई। यह बड़ी समझने की बात है। मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है, जो कुछ करते हैं सो परमपिता परमात्मा करते हैं। मनुष्य को शान्ति सुख देना – यह बाप का काम है। हमेशा महिमा एक बाप की ही करनी है और कोई की महिमा है नहीं। लक्ष्मी-नारायण की भी महिमा है नहीं। परन्तु राज्य करके गये हैं तो समझते हैं यह स्वर्ग के मालिक थे। वन्डर तो देखो वह जड़ चित्र और यहाँ चैतन्य बैठे हैं। शिव भगवानुवाच तुम राजाओं का राजा पूज्य बनते हो फिर पुजारी बनेंगे। पूज्य लक्ष्मी-नारायण ही फिर आपेही पुजारी बनेंगे। तो जो पास्ट हो गये हैं उनका फिर मन्दिर बनाकर पूजन करते हैं। यह सिद्ध कर बताना है, ऐसे नहीं कि ईश्वर आपेही पूज्य आपेही पुजारी बनता है। नहीं। मनुष्य यह भी नहीं जानते कि मैं परमात्मा कहाँ निवास करता हूँ। मेरे जो बच्चे सालिग्राम हैं वह भी यह नहीं जानते कि हम कहाँ के रहने वाले हैं। आत्माओं और परमात्मा का घर एक ही है स्वीट होम। सिर्फ स्वीट फादर होम नहीं कहेंगे। अभी तुम जानते हो निर्वाणधाम हमारा भी घर है। वहाँ हमारा फादर है। सिर्फ घर को याद करेंगे तो ब्रह्म के साथ योग हो गया, उनसे विकर्म विनाश हो नहीं सकते। भल ब्रह्म योगी, तत्व योगी हैं परन्तु उनके विकर्म विनाश नहीं हो सकते। हाँ भावना से करके अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। जितना याद करेंगे उतना शान्ति मिलेगी। तो बाप कहते हैं उनका योग रांग है। तुमको याद करना है एक बाप को। बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। श्रीकृष्ण ऐसे कह नहीं सकते, वह तो वैकुण्ठ का मालिक है। वह थोड़ेही कहेगा अशरीरी बन शिवबाबा को याद करो या मुझे याद करो। सारा मदार गीता को करेक्ट कराने पर है। गीता खण्डन होने कारण भगवान की हस्ती गुम हो गई है। कह देते हैं ईश्वर का कोई नाम रूप है नहीं। अब नाम रूप काल तो आत्मा का भी है। आत्मा का नाम आत्मा है, वह भी परमपिता परम आत्मा है। परम अर्थात् सुप्रीम, ऊंच ते ऊंच। वह जन्म मरण रहित है, अवतार लेते हैं। ड्रामा में जिसका पार्ट है उनमें ही प्रवेश करते हैं और उसका नाम ब्रह्मा रखते हैं। ब्रह्मा नाम कभी बदल नहीं सकता है। ब्रह्मा द्वारा ही स्थापना करते हैं। तो वह श्रीकृष्ण के तन में थोड़ेही आयेंगे। अगर वह दूसरे में आये तो भी उनका नाम ब्रह्मा रखना पड़े। मनुष्य कहते हैं दूसरे कोई में क्यों नहीं आता। अरे वह भी किसके तन में आये? वह आते ही हैं ज्ञान देने के लिए। दिन-प्रतिदिन मनुष्य समझते जायेंगे। तुम्हारी वृद्धि होती जायेगी। अवस्था बड़ी अच्छी चाहिए। जैसे ड्रामा के एक्टर्स को मालूम होता है हम घर से स्टेज पर पार्ट बजाने आये हैं। वैसे हम आत्मा यह शरीर रूपी चोला लेकर पार्ट बजाती है फिर वापिस जाना है, शरीर छोड़ना पड़ता है। तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए, डरना नहीं चाहिए। तुम बहुत कमाई कर रहे हो। शरीर छोड़ने वाले खुद भी समझ सकते हैं हमने कितनी कमाई की है। तुम समझते हो जो शरीर छोड़कर गये हैं उनमें से किसका मर्तबा बड़ा कहें, फलाने बहुत सर्विस करते थे, जाकर दूसरा शरीर लिया। इनएडवांस गये हैं। उनका इतना ही पार्ट था। फिर भी कुछ न कुछ ज्ञान लेने लिए आ जायें, हो सकता है। वारिस तो बन गये ना। किसके साथ हिसाब-किताब चुक्तू करना होगा, वह खलास करने गये। आत्मा में तो ज्ञान के संस्कार हैं ना। संस्कार आत्मा में ही रहते हैं। वह गुम नहीं हो सकते। कहाँ अच्छी जगह सर्विस करते होंगे। नॉलेज के संस्कार ले गये तो कुछ न कुछ जाकर सर्विस करेंगे। ऐसे तो नहीं सब जाते रहेंगे। नहीं। हाँ इतना जरूर है योग में रहने से आयु बढ़ती है। मैनर्स भी बड़े अच्छे चाहिए। कहते हैं बाबा आप कितने मीठे हो। मैं भी आप जैसा मीठा बनूंगा। हम भी ज्ञान सागर बनेंगे। बाप कहते हैं अपने को देखते रहो मैं मास्टर ज्ञान सागर बना हूँ? मात-पिता समान औरों को ज्ञान देता हूँ? हमारे से कोई नाराज़ तो नहीं होता है? शान्ति को धारण किया है? शान्ति हमारा स्वधर्म है ना। अपने को अशरीरी आत्मा समझना है, देखना है मेरे में कोई विकार तो नहीं हैं? अगर कोई विकार होगा तो नापास हो जायेंगे। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी पड़ती हैं। यह है विचार सागर मंथन कर अपने को परफेक्ट बनाना, श्रीमत से। बाकी सब आसुरी मत से अन-परफेक्ट बनते जाते हैं। हम भी कितने अन-परफेक्ट थे। कोई गुण नहीं था। गाते हैं ना मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। अक्षर कितने अच्छे हैं। महिमा सारी परमपिता परमात्मा की ही है। गुरूनानक भी उनकी महिमा करते थे। तो मनुष्यों को भी समझाना है।
यह भी बच्चे जानते हैं – कल्प पहले जिनका सैपलिंग लगा है वही आयेंगे और धारणा करेंगे। नहीं तो जैसे वायरे-मुआफिक (मूंझा हुआ) आया और गया। यहाँ तो तुम जानते हो हमको नॉलेजफुल फादर ने जो नॉलेज दी है, वह कोई में भी नहीं है। हम गुप्तवेष में हैं। फिर हम भविष्य में स्वर्ग के मालिक बनेंगे। कर्म तो सब कर रहे हैं। परन्तु मनुष्यों के कर्म सब विकर्म होते हैं क्योंकि रावण की मत पर करते हैं। हम श्रीमत पर कर्म करते हैं, श्रीमत देने वाला है बाबा।
बाबा ने समझाया है तुम हो सैलवेशन आर्मी। सैलवेशन आर्मी उनको कहा जाता है जो किसके डूबे हुए बेड़े को (नांव को) पार लगाते हैं। दु:खी को सुखी बनाते हैं। अभी तुम श्रीमत पर सबका बेड़ा पार कर रहे हो। बलिहारी तो शिवबाबा की है ना। हम तो मूर्ख थे। बाप की मत मिलने से फिर औरों को भी मत देते हैं। बाप सम्मुख आकर श्रीमत देते हैं। रावण तो कोई चीज़ नहीं जो आये। माया विकारों में घसीट लेती है। यहाँ तो बाप मत देते हैं। जैसे स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं। रावण तो कोई चीज़ नहीं जो उल्टा पढ़ाये। बाप तो है ज्ञान का सागर। रावण को सागर या नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। तुम अब श्रीमत पर चल रहे हो। तुम ब्राह्मण बन यज्ञ की सेवा करते हो। तुमको राजयोग और ज्ञान सिखलाना है। वह जब यज्ञ रचते हैं तो शास्त्र भी रखते हैं ना। रूद्र यज्ञ रचते हैं परन्तु रूद्र है कहाँ। यहाँ तो रूद्र शिवबाबा प्रैक्टिकल में है। प्रेजन्ट में रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा हुआ है। जो पास्ट था वह अब प्रेजन्ट है। मनुष्य पास्ट को ही याद करते रहते हैं तो तुम अब प्रैक्टिकल वर्सा ले रहे हो। पास्ट सो अब प्रेजन्ट है फिर पास्ट हो जायेगा। ऐसे होता ही रहता है। कलियुग भी पास्ट हो फिर सतयुग आना चाहिए। अब संगमयुग प्रेजन्ट है। पास्ट जो हुआ उसका यादगार है, जिसका जड़ यादगार है वह अब प्रेजन्ट चैतन्य में है। जो ऊंच पद पाते हैं, माला भी उन्हों की बनी है। रूद्र माला है ना। यह सभी हैं जड़ चित्र। जरूर कुछ करके गये हैं तब तो रूद्र माला कहते हैं ना। तुम चैतन्य में शिवबाबा की माला नम्बरवार बन रहे हो। जितना योग लगायेंगे उतना नजदीक जाकर रूद्र के गले का हार बनेंगे। अभी हम संगम पर है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी चाहिए। तुमको तो ज्ञान है। तुम्हारे अन्दर यह चलता रहता है हम असुल शिवबाबा के बच्चे हैं। हम विश्व के मालिक बनेंगे, फिर चक्र में आयेंगे। इसको स्वदर्शन चक्र कहा जाता है। कई मनुष्य कहते हैं तुम औरों की निंदा क्यों करते हो। बोलो, भगवानुवाच लिखा हुआ है बाकी हम किसी की निंदा नहीं करते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) श्रीमत पर हर कर्म श्रेष्ठ करना है। सबके डूबे हुए बेड़े को श्रीमत पर पार लगाना है। दु:खियों को सुख देना है।
2) अन्दर स्वदर्शन चक्र फिराते रूद्र माला में नजदीक आने के लिए याद में रहना है। ज्ञान का मंथन करना है, अपने आपसे बातें जरूर करनी है।
वरदान:-
खुशनसीब बच्चे सदा खुशी के झूले में झूलते ब्राह्मण जीवन में आनंद वा मनोरंजन का अनुभव करते हैं। यह खुशी का झूला सदा एकरस तब रहेगा जब याद और सेवा की दोनों रस्सियां टाइट हों। एक भी रस्सी ढीली होगी तो झूला हिलेगा और झूलने वाला गिरेगा इसलिए दोनों रस्सियां मजबूत हो तो मनोरंजन का अनुभव करते रहेंगे। सर्वशक्तिमान का साथ हो और खुशियों का झूला हो तो इस जैसी खुशनसीबी और क्या होगी।
स्लोगन:-
इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।
➤ रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!