13 February 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
12 February 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - यह गॉड फादरली वर्ल्ड युनिवर्सिटी है - मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनने की, जब यह निश्चय पक्का हो तब तुम यह पढ़ाई पढ़ सको''
प्रश्नः-
मनुष्य से देवता बनने के लिए तुम बच्चे इस समय कौन सी मेहनत करते हो?
उत्तर:-
आंखों को क्रिमिनल से सिविल बनाने की, साथ-साथ मीठा बनने की। सतयुग में तो हैं ही सबकी आंखें सिविल। वहाँ यह मेहनत नहीं होती। यहाँ पतित शरीर, पतित दुनिया में तुम बच्चे आत्मा भाई-भाई हो – यह निश्चय कर आंखों को सिविल बनाने का पुरुषार्थ कर रहे हो।
प्रश्नः-
भक्तों की किस एक बात से सर्वव्यापी की बात गलत हो जाती है?
उत्तर:-
कहते हैं हे बाबा जब आप आयेंगे तो हम आप पर वारी जायेंगे… तो आना सिद्ध करता है वह यहाँ नहीं है।
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं कि अपने आत्मा के स्वधर्म में बैठे हो? यह तो जानते हो कि एक ही बेहद का बाप है जिसको सुप्रीम रूह या परम आत्मा कहते हैं। परमात्मा है भी जरूर। परमपिता है ना। परमपिता माना परमात्मा। यह बातें तुम बच्चे ही समझ सकते हो। 5 हजार वर्ष पहले भी यह ज्ञान तुम सबने ही सुना था। तुम जानते हो आत्मा बहुत छोटी सूक्ष्म है, उनको इन आंखों से देखा नहीं जाता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसने आत्मा को देखा होगा। हाँ देखने में आ सकती है – परन्तु दिव्य दृष्टि से और वह भी ड्रामा के प्लैन अनुसार। भक्ति मार्ग में भी इन आंखों से कोई साक्षात्कार नहीं होता। दिव्य दृष्टि मिलती है, जिससे चैतन्य में देखते हैं। दिव्य दृष्टि अर्थात् चैतन्य में देखना। आत्मा को ज्ञान के चक्षु मिलते हैं। बाप ने समझाया है बहुत भक्ति करते हैं, जिसको नौधा भक्ति कहते हैं। जैसे मीरा को साक्षात्कार हुआ तो डांस करती थी। वैकुण्ठ तो उस समय नहीं था ना। मीरा को 5-6 सौ वर्ष हुआ होगा। जो पास्ट हो गया है वह दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। हनूमान, गणेश आदि के चित्रों की बहुत भक्ति करते-करते उसमें जैसे लय हो जाते हैं। भल दीदार होगा परन्तु उससे कोई मुक्ति नहीं मिल सकती। मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बिल्कुल न्यारा है। भारत में भक्ति मार्ग में ढेर मन्दिर होते हैं। वहाँ शिवलिंग भी रखते हैं। कोई छोटा बनाते हैं, कोई बड़ा बनाते हैं। अभी तुम समझते हो जैसे तुम आत्मा हो वैसे वह सुप्रीम आत्मा है। साइज एक ही है। कहते भी हैं हम सब ब्रदर्स हैं, आत्मायें सब भाई-भाई हैं। बेहद का बाप एक है। बाकी सब भाई-भाई हैं, पार्ट बजाते हैं। यह समझने की बातें हैं। यह हैं ज्ञान की बातें जो एक ही बाप समझाते हैं। जिन्हों को समझाते हैं वह फिर औरों को समझा सकते हैं। पहले-पहले एक ही निराकार बाप समझाते हैं। उनके लिए ही फिर कह देते सर्वव्यापी है, ठिक्कर-भित्तर में है। यह तो राइट नहीं है ना। एक तरफ कहते बाबा जब आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे। ऐसे थोड़ेही कहते आप सर्वव्यापी हो। कहते हैं आप आयेंगे तो वारी जायेंगे। तो इसका मतलब यहाँ नहीं है ना। मेरे तो आप दूसरा न कोई। तो जरूर उनको याद करना पड़े ना। यह बाप ही बैठ बच्चों को समझाते हैं, इसको रूहानी नॉलेज कहा जाता है। यह जो गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल…. उसका हिसाब भी समझाया है। बहुकाल से अलग तुम आत्मायें रहती हो। अब बाप के पास आये हो – राजयोग सीखने। बाप तो सर्वेन्ट है। बड़े आदमी जब सही करते हैं तो नीचे लिखते हैं – ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट…. बाप सब बच्चों का सर्वेन्ट है। कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा सर्वेन्ट हूँ। तुम कितनी हुज्जत से बुलाते हो कि भगवान आओ, आकर हम पतितों को पावन बनाओ। पावन होते ही हैं पावन दुनिया में। यह समझने की बातें हैं। बाकी तो सब है कनरस। यह है गॉड फादरली वर्ल्ड युनिवर्सिटी। एम आब्जेक्ट क्या है? मनुष्य से देवता बनाना। बच्चों को यह निश्चय है कि हमको यह बनना है। जिसको निश्चय नहीं होगा वह स्कूल में बैठेगा क्या? निश्चय होगा तो बैरिस्टर से, सर्जन से सीखेगा। एम-आब्जेक्ट का ही पता नहीं तो आयेगा नहीं। तुम बच्चे समझते हो हम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनते हैं। यह है सच्ची-सच्ची सत्य नर से नारायण बनने की कथा। कथा क्यों कहा जाता है? क्योंकि 5 हजार वर्ष पहले भी यह नॉलेज सीखी थी। तो पास्ट को कथा कह देते हैं, यह है सच्ची-सच्ची शिक्षा नर से नारायण बनने की। नई दुनिया में देवतायें, पुरानी दुनिया में मनुष्य रहते हैं। देवताओं में जो दैवीगुण हैं, वह मनुष्यों में नहीं हैं। मनुष्य उनको देवता कहते हैं और गाते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी हो। अपने को कहते हैं हम पापी, नींच विकारी हैं। देवतायें कब थे? जरूर कहेंगे सतयुग में थे। ऐसे नहीं कहेंगे कलियुग में थे। आजकल मनुष्यों की तमोप्रधान बुद्धि होने के कारण बाप के टाइटिल भी अपने ऊपर रख देते हैं। वास्तव में श्रेष्ठ बनाने वाला श्री-श्री तो एक ही बाप है। श्रेष्ठ देवताओं की महिमा अलग है। अभी है कलियुग। संन्यासियों के लिए भी बाबा ने समझाया है एक है हद का संन्यास, दूसरा है बेहद का संन्यास। वो लोग कहते हैं हमने घरबार आदि सब छोड़ा है। परन्तु आजकल तो देखो लखपति बन बैठे हैं। संन्यास माना सुख का त्याग करना। तुम बच्चे बेहद का संन्यास करते हो क्योंकि समझते हो कि यह पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है, इसलिए इनसे वैराग्य है। वो लोग तो घरबार छोड़ फिर अन्दर घुस आये हैं। अभी पहाड़ियों आदि पर ग़ुफाओं में नहीं रहते। कुटियायें बनाते हैं, तो भी कितना खर्च करते हैं। वास्तव में कुटिया पर कोई खर्चा थोड़ेही लगता है। बड़े-बड़े महल बनाकर रहते हैं। आजकल तो सब तमोप्रधान हैं। अभी है ही कलियुग। सतयुगी देवताओं के चित्र नहीं होते तो स्वर्ग का नामनिशान गुम हो जाता। तुमको समझाया जाता है अब मनुष्य से देवता बनना है। आधाकल्प भक्ति मार्ग की कथायें हैं। सुनकर सीढ़ी नीचे उतरते आये हो फिर 5 हजार वर्ष बाद एक्यूरेट वही ड्रामा रिपीट होगा। बाबा ने समझाया भी है, किसको ऐसे कहना नहीं है कि भक्ति को छोड़ो। ज्ञान आ जाता है तो फिर आपेही भक्ति छूट जायेगी। समझते हैं हम आत्मा हैं। अब बेहद के बाप से हमको वर्सा लेना है। पहले बेहद के बाप की पहचान चाहिए। वह निश्चय हो गया तो फिर हद के बाप से बुद्धि निकल जाती है। गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि का योग बाप के साथ लग जायेगा। बाप खुद कहते हैं शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते बुद्धि में याद रहे एक बाप की। देहधारियों की याद न रहे। वह होती है जिस्मानी यात्रा। यह तुम्हारी है रूहानी यात्रा, इसमें धक्का नहीं खाना है। भक्ति मार्ग है ही रात। धक्का खाना पड़ता है। यहाँ धक्के की बात ही नहीं। याद करने लिए कोई बैठता नहीं है। भक्ति मार्ग में कृष्ण के भगत चलते फिरते कृष्ण को याद नहीं कर सकते हैं क्या? दिल में तो उनकी याद रह जाती है ना। एक बार जो चीज़ देखी जाती है तो वह चीज़ याद रहती है। तो तुम घर बैठे शिवबाबा को याद नहीं कर सकते हो? यह है नई बात। कृष्ण को याद करना, वह पुरानी बात हो गई। शिवबाबा को तो कोई जानते ही नहीं कि उनका नाम रूप क्या है? सर्वव्यापी भी क्या है! कोई बताये ना। तुम बच्चे जानते हो हम आत्मा का बाप परमपिता परमात्मा है। आत्मा को परमात्मा कह नहीं सकते। अंग्रेजी में आत्मा को सोल कहा जाता है। एक भी मनुष्य नहीं जो पारलौकिक बाप को जानता हो। वह बाप ही ज्ञान का सागर है, उनमें नॉलेज है मनुष्य को देवता बनाने की। बाप कहते हैं रोज़-रोज़, गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ। मुख्य बात है याद की। याद ही भूल जाती है। बाबा रोज़ कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। मैं आत्मा बिन्दी हूँ। कहते भी हैं चमकता है अजब सितारा। आत्मा शरीर से निकलती है तो इन आंखों से देखने में नहीं आती है। कहा जाता है आत्मा निकल गई। जाकर दूसरे शरीर में प्रवेश किया। तुम जानते हो हम आत्मा कैसे पुनर्जन्म लेते अभी अपवित्र बनी हैं। पहले तुम आत्मा पवित्र थी, तुम्हारा गृहस्थ धर्म पवित्र था। अब दोनों ही अपवित्र बने हैं। जब दोनों पवित्र हैं, तो उन्हों की पूजा करते हैं। आप पवित्र हो, हम अपवित्र हैं। वह दोनों पवित्र, यहाँ दोनों अपवित्र। तो क्या पहले पवित्र थे फिर अपवित्र बने या अपवित्र ही जन्म लिया? बाप बैठ समझाते हैं पहले तुम आत्मायें आपेही पवित्र पूज्य थी। फिर आपेही पुजारी अपवित्र बनी हो। 84 जन्म लिये हैं। सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम जानते हो। कौन-कौन राज्य करते थे, कैसे राज्य मिला। यह हिस्ट्री भी तुम जानते हो और कोई नहीं जानता। तुम भी अभी जानते हो, आगे नहीं जानते थे, पत्थरबुद्धि थे। रचता और रचना के आदि मध्य अन्त की नॉलेज नहीं थी, नास्तिक थे। अभी आस्तिक बनने से तुम कितने सुखी बन जाते हो। तुम यहाँ आये ही हो यह देवता बनने के लिए। इस समय बहुत मीठा बनना है। तुम एक बाप की सन्तान भाई-बहन ठहरे ना। क्रिमिनल दृष्टि जा न सके। इस समय मेहनत करनी पड़ती है। आंखें ही सबसे जास्ती क्रिमिनल होती हैं। आधाकल्प क्रिमिनल रहती हैं, आधाकल्प सिविल रहती हैं। सतयुग में देवताओं की आंखें सिविल रहती हैं, यहाँ क्रिमिनल रहती हैं। इस पर सूरदास की कथा बैठ सुनाते हैं। बाप कहते हैं मुझे आना ही पड़ता है पतित दुनिया, पतित शरीर में। जो पतित बने हैं उन्हों को ही पावन बनाना है।
तुम जानते हो कृष्ण और राधे दोनों अलग-अलग राजाई के थे। प्रिन्स-प्रिन्सेज थे। पीछे स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं तो फिर उन्हों की डिनायस्टी गाई जाती है। संवत भी उनसे कहा जायेगा। सतयुग की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं। बाप कहते हैं 1250 वर्ष। रात-दिन का फर्क हो गया। रात ब्रह्मा की आधाकल्प फिर दिन ब्रह्मा का आधाकल्प। ज्ञान से है सुख, भक्ति से है दु:ख। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। फिर भी कहते हैं मीठे बच्चों अपने को आत्मा समझो। स्वधर्म में टिको, बाप को याद करो। वही पतित-पावन है। याद करते-करते तुम पावन बन जायेंगे। अन्त मती सो गति। बाप स्वर्ग का रचयिता है ना। तो याद दिलाते हैं तुम स्वर्ग के मालिक थे। अभी पतित हो इसलिए वहाँ जाने लायक नहीं हो, इसलिए पावन बनो। मुझे एक ही बार आना पड़ता है। एक गॉड है। एक ही दुनिया है। मनुष्यों की तो अनेक मतें, अनेक बातें हैं, जितनी जबान उतनी बातें। यहाँ है ही एक मत, अद्वेत मत। झाड़ में देखो कितने मत-मतान्तर हैं। झाड़ कितना बड़ा हो गया है। वहाँ एक मत एक राज्य था। तुम जानते हो हम ही विश्व के मालिक थे। भारत कितना साहूकार था। वहाँ अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। यहाँ तो देखो बैठे-बैठे यह गया। चारों तरफ से मौत है। वहाँ तुम्हारी आयु बड़ी थी। अभी तुम ईश्वर से योग लगाए मनुष्य से देवता बन रहे हो। तो तुम ठहरे योगेश्वर, योगेश्वरी फिर बनेंगे राज राजेश्वरी, अभी हो ज्ञान ज्ञानेश्वरी। फिर राज राजेश्वरी कैसे बनें? ईश्वर ने बनाया। अभी तुम जानते हो इन्हों को राजयोग किसने सिखाया? ईश्वर ने। वहाँ उन्हों की 21 पीढ़ी राजाई चलती है। वह तो एक जन्म में दान-पुण्य करने से राजा बनते हैं। मर गया तो खलास। अकाले मृत्यु तो सबकी आती रहती है। सतयुग में यह लॉ नहीं। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि काल खा गया। एक खाल छोड़ दूसरी ले लेते हैं। जैसे सर्प खाल बदलते हैं। वहाँ सदैव खुशी ही खुशी रहती है। जरा भी दु:ख की बात नहीं। तुम सुखधाम का मालिक बनने के लिए अभी पुरुषार्थ कर रहे हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) इस पुरानी दुनिया से बेहद का संन्यास करना है। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते रूहानी यात्रा पर रहना है।
2) पुरुषार्थ कर आंखों को सिविल जरूर बनाना है। एम आब्जेक्ट बुद्धि में रख बहुत-बहुत मीठा बनना है।
वरदान:-
समझदार ज्ञानी तू आत्मा वह है जो पहले सोचता है फिर करता है। जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प बुद्धि का भोजन है इसे पहले चेक करो फिर कर्म में लाओ। संकल्प को चेक कर लेने से वाणी और कर्म स्वत: समर्थ हो जायेंगे। और जहाँ समर्थ है वहाँ कमाई है। तो समर्थ बन हर कदम अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में पदमों की कमाई जमा करो, यही ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण है।
स्लोगन:-
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