27 November 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

November 26, 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

सफलता प्राप्त करने का साधन - सब कुछ सफल करो

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज नव-जीवन देने वाले रचता बाप अपनी नव-जीवन बनाने वाले बच्चों को देख रहे हैं। यह नव-जीवन अर्थात् श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन है ही नव युग की रचना करने के लिए। तो हर ब्राह्मण आत्मा की नई जीवन नव युग लाने के लिए ही है जिसमें सब नया ही नया है। प्रकृति भी सतोप्रधान अर्थात् नई है।

दुनिया के हिसाब से नया वर्ष मनाते हैं नये वर्ष की बधाइयां देते हैं वा एक-दो को नये वर्ष की निशानी गिफ्ट भी देते हैं। लेकिन बाप और आप नव युग की मुबारक देते हो। सर्व आत्माओं को खुशखबरी सुनाते हो कि अब नव युग अर्थात् गोल्डन दुनिया ‘सतयुग’ वा ‘स्वर्ग’ आया कि आया! यही सेवा करते हो ना। यही खुशखबरी सुनाते हो ना। नये युग की गोल्डन गिफ्ट भी देते हो। क्या गिफ्ट देते हो? जन्म-जन्म के अनेक जन्मों के लिए विश्व का राज्य-भाग्य। इस गोल्डन गिफ्ट में सर्व अनेक गिफ्ट्स आ ही जाती हैं। अगर आज की दुनिया में कोई कितनी भी बड़ी ते बड़ी वा बढ़िया ते बढ़िया गिफ्ट दे, तो भी क्या देंगे? अगर कोई किसको आजकल का ताज वा तख्त भी दे दे, वह भी आपकी सतोप्रधान गोल्डन गिफ्ट के आगे क्या है? बड़ी बात है क्या?

नव जीवन रचता बाप ने आप सभी बच्चों को यह अमूल्य अविनाशी गिफ्ट दे दी है। अधिकारी बन गये हो ना। ब्राह्मण आत्मायें सदा अखुट निश्चय की फलक से क्या कहते कि यह विश्व का राज्य-भाग्य तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है! इतनी फलक है ना या कभी कम हो जाती, कभी ज्यादा हो जाती? “निश्चय है और निश्चित है” इस अधिकार की भावी को कोई टाल नहीं सकता। निश्चयबुद्धि आत्माओं के लिए यह निश्चित भावी है। निश्चित है ना या कुछ चिन्ता है पता नहीं, मिलेगा या नहीं? कभी संकल्प आता है? अगर ब्राह्मण हैं तो निश्चित है ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। पक्का निश्चय है ना कि थोड़ी हलचल होती है? अचल, अटल है? तो ऐसी गोल्डन गिफ्ट बाप ने आपको दी और आप क्या करेंगे? औरों को देंगे। अल्पकाल की गिफ्ट है तो अल्पकाल समाप्त होने पर गिफ्ट भी समाप्त हो जाती है। लेकिन यह अविनाशी गिफ्ट हर जन्म आपके साथ रहेगी।

वास्तविक मनाना तो नव युग का ही मनाना है। लेकिन इस संगमयुग में हर दिन ही मनाने का है, हर दिन मौज में रहने का है, हर दिन खुशी के झूले में झूलने का है वा खुशी में नाचने का है, अविनाशी गीत गाने का है इसलिए ब्राह्मण जीवन का हर दिन मनाते रहते हो। हर दिन ब्राह्मणों के लिए उत्साह-उमंग बढ़ाने वाला उत्सव है इसलिए यादगार रूप में भी भारत में अनेक उत्सव मनाते रहते हैं। यह प्रसिद्ध है कि भारत में साल के सभी दिन मनाने के हैं। और कहाँ भी इतने उत्सव नहीं होते जितने भारत में होते हैं। तो यह आप ब्राह्मणों के हर दिन मनाने का यादगार बना हुआ है इसलिए नये वर्ष का दिन भी मना रहे हो। नया वर्ष मनाने के लिए आये हो। तो सिर्फ एक दिन मनायेंगे? पहली तारीख खत्म होगी तो मनाना भी खत्म हो जायेगा?

आप श्रेष्ठ आत्माओं का नया जन्म अर्थात् इस ब्राह्मण जन्म की श्रेष्ठ राशि है – हर दिन मनाना, हर दिन उत्सव। आपकी जन्म-पत्री में लिखा हुआ है कि हर दिन सदा श्रेष्ठ से श्रेष्ठ होना है। आप ब्राह्मणों की श्रेष्ठ राशि है ही सदा उड़ती कला की। ऐसे नहीं कि दो दिन बहुत अच्छे और फिर दो दिन के बाद थोड़ा फर्क होगा। मंगल अच्छा रहेगा, गुरुवार उससे अच्छा रहेगा, शुक्रवार फिर विघ्न आयेगा ऐसी राशि आपकी है क्या? जो हो रहा है वह भी अच्छा और जो होने वाला है वह और अच्छा! इसको कहते हैं ब्राह्मणों के उड़ती कला की राशि। ब्राह्मण जीवन की राशि बदल गई क्योंकि नया जन्म हुआ ना। तो इस वर्ष हर रोज अपनी श्रेष्ठ राशि देख प्रैक्टिकल में लाना।

दुनिया के हिसाब से यह नया वर्ष है और आप ब्राह्मणों के हिसाब से विशेष अव्यक्त वर्ष मना रहे हो। नया वर्ष अर्थात् अव्यक्त वर्ष का आरम्भ कर रहे हो। तो इस नये वर्ष का वा अव्यक्त वर्ष का विशेष स्लोगन सदा यही याद रखना कि सदा सफलता का विशेष साधन है – हर सेकेण्ड को, हर श्वांस को, हर खजाने को सफल करना। सफल करना ही सफलता का आधार है। किसी भी प्रकार की सफलता – चाहे संकल्प में, बोल में, कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में, सर्व प्रकार की सफलता अनुभव करने चाहते हो तो सफल करते जाओ, व्यर्थ नहीं जाये। चाहे स्व के प्रति सफल करो, चाहे और आत्माओं के प्रति सफल करो। तो आटोमेटिकली सफलता की खुशी की अनुभूति करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान के लिए सफलता और भविष्य के लिए जमा करना है।

जितना इस जीवन में ‘समय’ सफल करते हो, तो समय की सफलता के फलस्वरूप राज्य-भाग्य का फुल (पूरा) समय राज्य-अधिकारी बनते हो। हर श्वांस सफल करते हो, इसके फलस्वरूप अनेक जन्म सदा स्वस्थ रहते हो। कभी चलते-चलते श्वांस बन्द नहीं होगा, हार्ट फेल नहीं होगा। एक गुणा का हजार गुणा सफलता का अधिकार प्राप्त करते हो। इसी प्रकार से सर्व खजाने सफल करते रहते हो। इसमें भी विशेष ज्ञान का खजाना सफल करते हो। ज्ञान अर्थात् समझ। इसके फलस्वरूप ऐसे समझदार बनते हो जहाँ भविष्य में अनेक वजीरों की राय नहीं लेनी पड़ती, स्वयं ही समझदार बन राज्य-भाग्य चलाते हो। दूसरा खजाना है सर्व शक्तियों का खजाना। जितना शक्तियों के खजाने को कार्य में लगाते हो, सफल करते हो उतना आपके भविष्य राज्य में कोई शक्ति की कमी नहीं होती। सर्व शक्तियां स्वत: ही अखण्ड, अटल, निर्विघ्न कार्य की सफलता का अनुभव कराती हैं। कोई शक्ति की कमी नहीं। धर्म-सत्ता और राज्य-सत्ता दोनों ही साथ-साथ रहती हैं। तीसरा है सर्व गुणों का खजाना। इसके फलस्वरूप ऐसे गुणमूर्त बनते हो जो आज लास्ट समय में भी आपके जड़ चित्र का गायन ‘सर्व गुण सम्पन्न देवता’ के रूप में हो रहा है। ऐसे हर एक खजाने की सफलता के फलस्वरूप का मनन करो। समझा? आपस में इस पर रूहरिहान करना। तो इस अव्यक्त वर्ष में सफल करना और सफलता का अनुभव करते रहना।

यह अव्यक्त वर्ष विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह में मना रहे हो। तो स्नेह की निशानी है जो स्नेही को प्रिय वह स्नेह करने वाले को भी प्रिय हो। तो ब्रह्मा बाप का स्नेह किससे रहा? मुरली से। सबसे ज्यादा प्यार मुरली से रहा ना तब तो मुरलीधर बना। भविष्य में भी इसलिए मुरलीधर बना। मुरली से प्यार रहा तो भविष्य श्रीकृष्ण रूप में भी ‘मुरली’ निशानी दिखाते हैं। तो जिससे बाप का प्यार रहा उससे प्यार रहना यह है प्यार की निशानी। सिर्फ कहने वाले नहीं – ब्रह्मा बाप बहुत प्यारा था भी और है भी। लेकिन निशानी? जिससे ब्रह्मा बाप का प्यार रहा, अब भी है उससे प्यार सदा दिखाई दे। इसको कहेंगे ब्रह्मा बाप के प्यारे। नहीं तो कहेंगे नम्बरवार प्यारे। नम्बरवन नहीं कहेंगे, नम्बरवार कहेंगे। अव्यक्त वर्ष का लक्ष्य है बाप के प्यार की निशानियां प्रैक्टिकल में दिखाना। यही मनाना है। जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो बाप समान बनना।

जो भी कर्म करो, विशेष अण्डरलाइन करो कि कर्म के पहले, बोल के पहले, संकल्प के पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप समान है, यह प्यार की निशानी है? फिर संकल्प को स्वरूप में लाओ, बोल को मुख से बोलो, कर्म को कर्मेन्द्रियों से करो। पहले चेक करो, फिर प्रैक्टिकल करो। ऐसे नहीं कि सोचा तो नहीं था लेकिन हो गया। नहीं। ब्रह्मा बाप की विशेषता विशेष यही है जो सोचा वह किया, जो कहा वह किया। चाहे नया ज्ञान होने के कारण अपोजीशन कितनी भी रही लेकिन अपने स्वमान की स्मृति से, बाप के साथ की समर्थी से और दृढ़ता, निश्चय के शस्त्रों से, शक्ति से अपनी पोजीशन की सीट पर सदा अचल-अटल रहे। तो जहाँ पोजीशन है वहाँ अपोजीशन क्या करेगी। अपोजीशन, पोजीशन को दृढ़ बनाती है। हिलाती नहीं, और दृढ़ बनाती है। जिसका प्रैक्टिकल विजयी बनने का सबूत स्वयं आप हो और साथ-साथ चारों ओर की सेवा का सबूत है। जो पहले कहते थे कि यह धमाल करने वाले हैं, वे अब कहते हैं कमाल करके दिखाई है! तो यह कैसे हुआ? अपोजीशन को श्रेष्ठ पोजीशन से समाप्त कर दिया।

तो अब इस वर्ष में क्या करेंगे? जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रूहानी नशे के आधार पर निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया; अपने लिए नहीं रखा, सफल किया। जिसका प्रत्यक्ष सबूत देखा कि अन्तिम दिन तक तन से पत्र-व्यवहार द्वारा सेवा की, मुख से महावाक्य उच्चारण किये। अन्तिम दिवस भी समय, संकल्प, शरीर को सफल किया। तो स्नेह की निशानी है सफल करना। सफल करने का अर्थ ही है श्रेष्ठ तरफ लगाना। तो जब सफलता का लक्ष्य रखेंगे तो व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जायेगा। जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: ही खत्म हो जाता है। अगर यही सोचते रहो कि अंधकार को निकालो तो टाइम भी वेस्ट, मेहनत भी वेस्ट। ऐसी मेहनत नहीं करो। आज क्रोध आ गया, आज लोभ आ गया, आज व्यर्थ सुन लिया, बोल दिया, आज व्यर्थ हो गया… इसको सोचते-सोचते मेहनत करते दिलशिकस्त हो जायेंगे। लेकिन “सफल करना है” इस लक्ष्य से व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जायेगा। यह सफल का लक्ष्य रखना मानो रोशनी करना है। तो अंधकार स्वत: ही खत्म हो जायेगा। समझा, अव्यक्त वर्ष में क्या करना है? बापदादा भी देखेंगे कि नम्बरवन प्यारे बनते हैं या नम्बरवार प्यारे बनते हैं। सभी नम्बरवन बनेंगे? डबल विदेशी क्या बनेंगे? नम्बरवन बनेंगे? ‘नम्बरवन’ कहना बहुत सहज है! लेकिन लक्ष्य दृढ़ है तो लक्षण अवश्य आते हैं। लक्ष्य लक्षण को खींचता है। अब आपस में प्लैन बनाना, सोचना। बापदादा खुश हैं। अगर सब नम्बरवन बन जायें तो बहुत खुश हैं। फर्स्ट डिवीजन तो लम्बा-चौड़ा है, बन सकते हो। फर्स्ट डिवीजन में सब फर्स्ट होते हैं। तो नये वर्ष की यह मुबारक हो कि सभी नम्बरवन बनेंगे।

व्यर्थ पर विन करेंगे तो वन आयेंगे। व्यर्थ पर विन नहीं करेंगे तो वन नहीं बनेंगे। अभी भी व्यर्थ का खाता है किसका संकल्प में, किसका बोल में, किसका सम्बन्ध-सम्पर्क में। अभी पूरा खाता खत्म नहीं हुआ है इसलिए कभी-कभी निकल आता है। लेकिन लक्ष्य अपनी मंजिल को अवश्य प्राप्त कराता है। व्यर्थ को स्टॉप कहा और स्टॉप हो जाए। जब स्टॉप करने की शक्ति आयेगी तो जो पुराने खाते का स्टॉक है वह खत्म हो जायेगा। इतनी शक्ति हो। परमात्म-सिद्धि है। रिद्धि-सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप परमात्म-सिद्धि वाले विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करने वाले हो। परमात्म-सिद्धि क्या नहीं कर सकती! ‘स्टॉप’ सोचा और स्टॉप हुआ। इतनी शक्ति है? या स्टॉप कहने के बाद भी एक-दो दिन भी लग जाते तो एक घण्टा, 10 घण्टा भी लग जाता है? स्टॉप तो स्टॉप। तो यही निशानी बाप को देनी है। समझा?

सेवा की सफलता वा प्रत्यक्षता तो ड्रामा अनुसार बढ़ती जायेगी। बढ़ रही है ना अभी। पहले आप निमत्रण देते थे, अभी वे आपको निमंत्रण देते हैं। तो सेवा के सफलता की प्रत्यक्षता हो रही है ना। आप लोगों को कोई स्टेज मिलने की वा डिग्री मिलने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह सेवा की प्रत्यक्षता है। भगवान् की डिग्री के आगे यह डिग्री क्या है। (उदयपुर विश्वविद्यालय ने दादी जी को मानद् डॉक्टरेट की डिग्री दी है) लेकिन यह भी प्रत्यक्षता का साधन है। साधन द्वारा सेवा की प्रत्यक्षता हो रही है। बनी बनाई स्टेज मिलनी ही है। वह भी दिन आना ही है जो यह धर्मनेतायें भी आपको आमत्रित करके चीफ गेस्ट आपको ही बनायेंगे। अभी थोड़ा बाहर की रूपरेखा में उनको रखना पड़ता है, लेकिन अन्दर में महसूस करते हैं कि इन पवित्र आत्माओं को सीट मिलनी चाहिए। राजनेता तो कह भी देते हैं कि हमको चीफ गेस्ट बनाते हो, यह तो आप ही बनते तो बेहतर होता। लेकिन ड्रामा में नाम उन्हों का, काम आपका हो जाता है।

जैसे सेवा में प्रत्यक्षता होती जा रही है, विधि बदलती जा रही है। ऐसे हर एक अपने में सम्पूर्णता और सम्पन्नता की प्रत्यक्षता करो। अभी इसकी आवश्यकता है और अवश्य सम्पन्न होनी ही है। कल्प-कल्प की निशानी आपकी सिद्ध करती है कि सफलता हुई ही पड़ी है। यह विजय माला क्या है? विजयी बने हैं, सफलतामूर्त बने हैं तब तो निशानी है ना! इस भावी को टाल नहीं सकते। कोई कितना भी सोचे कि अभी तो इतने तैयार नहीं हुए हैं, अभी तो खिट-खिट हो रही है इसमें घबराने की जरूरत नहीं। कल्प-कल्प के सफलता की गारन्टी यह यादगार है। ‘क्या होगा’, ‘कैसे होगा’ इस क्वेश्चन-मार्क की भी आवश्यकता नहीं है। होना ही है। निश्चित है ना। निश्चित भावी को कोई हिला नहीं सकता। अगर नाव और खिवैया मजबूत हैं तो कोई भी तूफान आगे बढ़ाने का साधन बन जाता है। तूफान भी तोहफा बन जाता है इसलिए यह बीच-बीच में बाई-प्लाट्स होते रहते हैं। लेकिन अटल भावी निश्चित है। इतना निश्चय है? या थोड़ा कभी नीचे-ऊपर देखते हो तो घबरा जाते हो पता नहीं कैसे होगा, कब होगा? क्वेश्चन-मार्क आता है? यह तूफान ही तोहफा बनेगा। समझा? इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी। सिर्फ फॉलो फादर। अच्छा!

सर्व अटल निश्चय बुद्धि विजयी आत्मायें, सदा हर खजाने को सफल करने वाले सफलतामूर्त आत्मायें, सदा ब्रह्मा बाप को हर कदम में सहज फालो करने वाले, सदा नई जीवन और नवयुग की स्मृति में रहने वाली समर्थ आत्मायें, सदा स्वयं में बाप के स्नेह की निशानियों को प्रत्यक्ष करने वाली विशेष आत्माओं को श्रेष्ठ परिवर्तन की, अव्यक्त वर्ष की मुबारक, याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात:- ड्रामा का दृश्य देख हर्षित हो रही हो ना। “वाह ड्रामा वाह! वाह बाबा वाह…” यही गीत अनादि, अविनाशी चलते रहते हैं। बच्चे बाप को प्रत्यक्ष करते हैं और बाप शक्ति सेना को प्रत्यक्ष करते हैं। अच्छी सेवा रही। नई रूपरेखा तो होनी ही है। ऐसे ही सबके मुख से “बाबा-बाबा” शब्द निकलता रहे क्योंकि विश्व-पिता है। तो ब्राह्मण आत्माओं के दिल से, मुख से तो ‘बाबा’ निकलता ही है, लेकिन सर्व आत्माओं के दिल से वा मुख से “बाबा” निकले, तब तो समाप्ति हो ना। चाहे “अहो प्रभु” के रूप में निकले, चाहे “वाह बाबा” के रूप में निकले। लेकिन ‘बाबा’ शब्द का परिचय मिलना तो है ही। तो अभी यही सेवा का साधन अनुभव किया कि एक माइक कितनी सेवा कर सकता है। सन्देश देने का कार्य तो हो ही जाता है ना। तो अभी माइक तैयार करने हैं। यह (राजस्थान के राज्यपाल डॉ.एम.चन्ना रेड्डी) सैम्पल है। फिर भी माइक तैयार करने में भारत ने नम्बर तो ले ही लिया। ऐसे तैयार करना है अभी! राजस्थान का माइक आबू ने तैयार किया है, राजस्थान ने नहीं। तीर तो आबू से लगा ना। अच्छा!

वरदान:-

जो बच्चे बाप के साथ सदा कम्बाइन्ड रह, प्यार से कहते हैं ‘मेरा बाबा’ तो उन्हें परमात्म अधिकार प्राप्त हो जाता है। बेहद का दाता सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न कर देता है। तीनों लोकों के अधिकारी बन जाते हैं। फिर यही गीत गाते कि पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा। उन्हें 21 जन्मों का गैरन्टी कार्ड मिल जाता है। तो यही अलौकक खुशी और नशे में रहो कि सब कुछ मिल गया।

स्लोगन:-

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

1) सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी यह तीन शब्द कहते हैं इसको यथार्थ समझना जरूरी है। मनुष्य समझते हैं यह तीनों गुण इकट्ठे चलते रहते हैं, परन्तु विवेक क्या कहता है – क्या यह तीनों गुण इकट्ठे चले आते हैं वा तीनों गुणों का पार्ट अलग-अलग युग में होता है? विवेक तो ऐसे ही कहता है कि यह तीनों गुण इकट्ठे नहीं चलते जब सतयुग है तो सतो-गुण है, द्वापर है तो रजोगुण है और कलियुग है तो तमोगुण है। जब सतो है तो तमो रजो नहीं, जब रजो है तो फिर सतोगुण नहीं है। यह मनुष्य तो ऐसे ही समझकर बैठे हैं कि यह तीनों गुण इकट्ठे चलते आते हैं। यह बात कहना सरासर भूल है, वो समझते हैं जब मनुष्य सच बोलते हैं, पाप कर्म नहीं करते हैं तो वो सतोगुणी होते हैं परन्तु विवेक कहता है जब हम कहते हैं सतोगुण, तो इस सतोगुण का मतलब है सम्पूर्ण सुख गोया सारी सृष्टि सतोगुणी है। बाकी ऐसे नहीं कहेंगे कि जो सच बोलता है वो सतोगुणी है और जो झूठ बोलता है वो कलियुगी तमोगुणी है, ऐसे ही दुनिया चलती आती है। अब जब हम सतयुग कहते हैं तो इसका मतलब है सारी सृष्टि पर सतोगुण सतोप्रधान चाहिए। हाँ, कोई समय ऐसा सतयुग था जहाँ सारा संसार सतोगुणी था। अब वो सतयुग नहीं है, अभी तो है कलियुगी दुनिया गोया सारी सृष्टि पर तमोप्रधानता का राज्य है। इस तमोगुणी समय पर फिर सतोगुण कहाँ से आया! अब है घोर अन्धियारा जिसको ब्रह्मा की रात कहते हैं। ब्रह्मा का दिन है सतयुग और ब्रह्मा की रात है कलियुग, तो हम दोनों को मिला नहीं सकते।

2) इस कलियुगी संसार को असार संसार क्यों कहते हैं? क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना कोई भी वस्तु में वो ताकत नहीं रही अर्थात् सुख शान्ति पवित्रता नहीं है, जो इस सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी। अब वो ताकत नहीं हैं क्योंकि इस सृष्टि में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का सागर कहते हैं इसलिए ही मनुष्य दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको भव सागर से पार करो इससे सिद्ध है कि जरूर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली दुनिया, दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं। अच्छा – ओम् शान्ति।

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