21 October 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

20 October 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - इस समय स्वयं भगवान तुम्हारे सामने हाज़िर-नाज़िर है, वह बहिश्त की सौगात लेकर आया है, इसलिए अपार खुशी में रहो''

प्रश्नः-

बाप अपने बच्चों पर कौन सी ब्लैसिंग करते हैं?

उत्तर:-

बच्चों को आप समान नॉलेजफुल बनाना – यह उनकी ब्लैसिंग है। जिस नॉलेज के आधार से नर से श्री नारायण बन जाते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे मैं तुम्हें राजयोग की शिक्षा देकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। मेरे सिवाए ऐसी ब्लैसिंग कोई कर नहीं सकता।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

मुझे गले से लगा लो..

ओम् शान्ति। यह इस समय बांधेलियों का बुलावा है क्योंकि सारी दुनिया उदास है। उसमें भी गोपिकायें बहुत उदास हैं। वह गाती हैं हम सहन नहीं कर सकते। भक्ति में तो बुलाते रहते हैं परन्तु उनको मालूम नहीं है कि भगवान कौन है? यहाँ की गोपिकायें जानती हैं परन्तु बांधेली हैं, दु:खी हैं। चाहती हैं कि बाप हमको गले का हार बना दे। रूद्र माला शिव की मशहूर है। तो इस समय ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ चाहती हैं कि हम शिवबाबा के गले में पिरोये रहें क्योंकि इस समय स्त्री पुरुष आसुरी गले का हार हैं। बच्चियां चाहती हैं हम अब ईश्वरीय गले का हार बनें। जरूर जब बाप हाज़िर-नाज़िर है तब तो कहते हैं। जब कसम उठाते हैं तब कहते हैं ईश्वर को हाज़िर-नाज़िर जान सच कहेंगे। बड़े-बड़े गवर्मेन्ट के मिनिस्टर भी कसम उठाते हैं। गीता हाथ में लेते हैं क्योंकि भारत का धर्म शास्त्र है। तो एक ईश्वर का कसम उठाते हैं, ऐसे नहीं सब ईश्वर हैं, सबका कसम उठाते हैं। तो जरूर बाप कभी हाजिर-नाज़िर हुआ होगा। इस समय तो नहीं है। सिर्फ तुम्हारे लिए हाज़िर नाज़िर है, जो तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शिव-रात्रि भी मनाते हैं, जरूर आया होगा! कैसे आया, क्या आकर किया? यह कोई को पता नहीं है। इतना बड़ा सोमनाथ का मन्दिर है परन्तु उसने क्या किया, वह पता नहीं क्योंकि शिव के बदले श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। संगमयुग निकाल द्वापर डाल दिया है। तुम बच्चे जानते हो कि वह निराकार है, उनका मनुष्य जैसा आकार नहीं। अब वह हमारे सामने बैठा है। तुम उनको हाजिर-नाज़िर देखती हो। बरोबर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। नॉलेज देते हैं, यही उनकी ब्लिस है। इस नॉलेज की ब्लिस से तुम नर से नारायण बनते हो। वह ब्रह्मा तन से खुद पढ़ा रहे हैं। बाप खुद कहते हैं लाडले बच्चे मैं तुमको राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। श्रीकृष्ण नहीं सिखला सकते। वह खुद राजाओं का राजा बना है। वह सिर्फ एक श्रीकृष्ण या लक्ष्मी-नारायण नहीं होगा। यह तो सारी सूर्यवंशी डिनायस्टी थी। उनका राज्य अब माया ने छीन लिया है। अब मैं फिर सम्मुख आया हूँ। अब तुम ब्राह्मणों के सम्मुख हाजिर-नाज़िर हूँ।

अब बाप जो इतना दूरदेश से आया होगा तो जरूर कोई सौगात लाई होगी। लौकिक बाप जब आते हैं तो कितनी सौगात लाते हैं। यह तो सबका बाप है, जिसको इतना सब याद करते हैं। दूरदेश से आते हैं तो हाथ खाली थोड़ेही आयेगा? बाप कहते हैं मैं तुम्हारे लिए सौगात लाता हूँ, जो कोई मनुष्य ला न सकें। मैं बहिश्त हेविन लाता हूँ। कितनी बड़ी सौगात है। बाबा साक्षात्कार भी कराते हैं, वहाँ कितना सुख है। अंग-अंग में सुगंध है। लक्ष्मी-नारायण के अंग-अंग में सुगंध है। यह तन तो कीड़ों से भरा हुआ है। बाबा कीड़ों को उठाकर भ्रमरी बनाते हैं। यहाँ के शरीर तो कीटाणुओं से भरे हुए रोगी हैं। वहाँ के शरीर कितने सुन्दर हैं। मन्दिरों में भी कितनी सुन्दर मूर्तियां बनाते हैं। कितना फ़र्क है – इस समय के शरीर और उन शरीरों में। 5 हजार वर्ष की बात है, यह भारत इन्द्रप्रस्थ था। वहाँ आत्मा भी पवित्र थी तो शरीर भी पवित्र था। बाबा ठिक्कर के बर्तन से तुमको सोने का बर्तन बनाते हैं। बाप तुम्हारी पूरी सर्विस कर क्या से क्या बनाते हैं। बाप का भी क्या पार्ट है फिर टीचर और सतगुरू का भी पार्ट बजाते हैं। उनको कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। तुम्हारे लौकिक बाप का तो बाप टीचर गुरू जरूर होगा। शिवबाबा कहते हैं मेरा कोई नहीं। परन्तु उनके आक्यूपेशन को कोई नहीं जानते। जब तक किसको स्वर्ग का मालूम न पड़े तब तक कोई भी जान नहीं सकते कि हम नर्क में हैं। ग्रंथ में पढ़ते हैं मूत पलीती… परन्तु अपने को वह नहीं समझते। बाप आया है ज्ञान देकर काले को गोरा बनाने के लिए। इस समय तुम ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा बन रहे हो। संन्यासी पवित्र प्रवृत्ति मार्ग नहीं बना सकते हैं, वह यह नहीं कह सकते कि हम तुमको राजाओं का राजा बनाते हैं। वह निवृत्ति मार्ग के हैं। डरकर घरबार छोड़ जाते हैं, यहाँ कोई डर नहीं। बाप के पास बच्चे आये हैं कहते हैं बाबा हमारे में ताकत है। इकट्ठे रह पवित्र रह सकते हैं। अगर कोई कन्या पर मार पड़ती है तो कन्या को बन्धन से छुड़ाकर गन्धर्वी विवाह कर सकते हैं, हम जल नहीं मरेंगे। ज्ञान तलवार बीच में रखेंगे। दोनों ब्राह्मण ब्राह्मणी, भाई-बहन कैसे विष पी सकते। शास्त्रों में भी गन्धर्वी विवाह के लिए लिखा है। परन्तु इसका अर्थ नहीं समझते। संन्यासी तो कह देते नारी नर्क का द्वार है। उन्हों के पास ज्ञान तलवार तो है नहीं जो इकट्ठे रह पवित्र रह सकें। तुम उनसे बहादुर हो, काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठते हो। तो काले से गोरे बन जाते हो। संन्यासी तो आजकल शादी भी कराते हैं, चर्च में भी शादियाँ होती हैं। नहीं तो क्राइस्ट को क्यों क्रास पर चढ़ाया? इस पवित्रता के कारण। कहा यह कौन है जो कहते हैं पवित्र बनो। आफतें तो आती हैं। यहाँ भी शिवबाबा पर नहीं आती हैं परन्तु जिसमें प्रवेश करते हैं लांग बूट में, उस पर आती हैं। वाट वेन्दे….(रास्ते चलते ब्राह्मण फंस गया) पुरानी जुत्ती है ना। यह थोड़ेही कहते हैं मैं श्रीकृष्ण हूँ। कहते हैं राजयोग सीखूंगा तो नर से नारायण बनूंगा, परन्तु अब नहीं हैं। वैसे बच्चों को निश्चय है कि हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। फेल नहीं होंगे जो क्षत्रिय बनें। राम को 33 से कम मार्क्स मिली तो चन्द्रवंशी में चले गये। ऐसे तो सूर्यवंशी भी चन्द्रवंशी घराने में आते हैं। उस समय (सतयुग के अन्त में) लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम को राज्य देते हैं, लक्ष्मी-नारायण भी पुनर्जन्म लेते-लेते त्रेता में आते हैं, रजवाड़े कुल में जन्म लेते रहते हैं। फिर सीता राम नाम चला आता है। लक्ष्मी-नारायण नाम खलास हो जाता है।

अब प्रश्न पूछता हूँ स्वदर्शन चक्र कौन सा है? (एक दो से पूछा) हाँ, यह है चक्र। कैसे देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र… अब ब्राह्मण वर्ण में आते हैं.. यह चक्र जितना फिरायेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे, इससे रावण का गला कटता है। तुम बच्चों का बेहद के बाप से अथाह प्यार है। तुम कहते भी हो बाबा हम आपका बिछुड़ना सहन नहीं कर सकते। ऐसी बच्चियां भी हैं जो बंधन में हैं, तड़फती हैं क्योंकि यह है मात-पिता… एक तो माता जगत अम्बा है, जिसको सब याद करते हैं। परन्तु जगत अम्बा का पिता कौन है, यह किसको पता नहीं कि ब्रह्मा, सरस्वती का बाप है। पुजारी लोग यह नहीं जानते हैं कि यह सरस्वती ही फिर लक्ष्मी बनती है। फिर 84 जन्म ले फिर यही सरस्वती बनती है। यह ज्ञान इस बाबा के पास थोड़ेही था। इसमें ज्ञान होता तो जरूर किसी गुरू से मिला हुआ होता। फिर उस गुरू की महिमा भी करते। फिर उस गुरू के शिष्य भी होते। वह भी बताते परन्तु बाबा का कोई साकार गुरू नहीं है। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू हूँ, मैं इस पुरानी जुत्ती में बैठ पढ़ाता हूँ। तो यह फिर माता हो गई इसलिए उनको मात-पिता कहते हैं। तुम मात-पिता जो गाते हैं वह ब्रहमा सरस्वती को नहीं कह सकते। ब्रह्मा थोड़ेही वैकुण्ठ का रचता है। बाप तो बाप है और यह ब्रह्मा तुम्हारी मम्मा है। कलष पहले इनको (ब्रह्मा को) मिलता है। परन्तु सरस्वती की महिमा बढ़ाने के लिए उनको आगे रखा है। सरस्वती का नाम गॉडेज ऑफ नॉलेज मशहूर है। विदुत मण्डली वाले भी सरस्वती का लकब रख लेते हैं।

अच्छा बाबा कहते हैं कितना समझाकर कितना समझायें, मनमनाभव। बस सिर्फ मुझे याद करो और मेरे वर्से को याद करो तो तुम स्वर्ग में चले जायेंगे। वहाँ भी तो नम्बरवार ही होंगे ना। सूर्यवंशी की रॉयल दास-दासियां भी तो हैं। तो प्रजा की भी दास-दासियां होंगी। चन्द्रवंशी राजा रानी की भी दास-दासियां तो हैं। वह सब यहाँ ही बन रही हैं। पूछो तो बता सकते हैं कि अगर अब तुम्हारा शरीर छूट जाए तो क्या जाकर बनेंगे? अच्छा कोई भी बात समझ में न आये तो पूछ सकते हो। याद रखना योग ठीक नहीं होगा तो वह सुख महसूस नहीं होगा। शोक वाटिका में बैठे होंगे, स्वर्ग है अशोक वाटिका। सीता अशोक वाटिका में नहीं, शोक वाटिका में थी। अब तो सब शोक वाटिका में बैठे हैं ना। मनुष्यों को चिंता रहती है कि पता नहीं लड़ाई होगी तो क्या होगा? हम तो कहते हैं कि लड़ाई लगे तो स्वर्ग के गेट्स खुलेंगे।

अच्छा – याद रखना, सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। अगर अन्दर शैतानी होगी तो विघ्न डालते रहेंगे। तो फिर कड़ी सजायें खायेंगे। ट्रेटर्स को हमेशा कड़ी सजायें मिलती हैं, यह तो सुप्रीम जज भी है। (श्रीकृष्ण का चित्र दिखलाकर) देखो इन पर भी कितने कलंक लगाये हैं। इसने तो न कपड़े चुराये और न ही कंस जरासंधी को मारा। उसका भी (श्रीकृष्ण का) मुँह काला कर दिया है। अच्छा।

बापदादा तो तुम बच्चों के सम्मुख हाजिर-नाज़िर है। तुम कहेंगे हमारी नज़र के सामने है। पतित बूट में आया है। भगवान खुद कहते हैं मैने पतित बूट में प्रवेश किया है तब तो पावन बने। अब ब्रह्मा की रात है, तो ब्रह्मा भी रात में होगा ना। फिर विष्णु बनेंगे तो दिन हो जायेगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार दे रहे हैं। दादा कहो वा गुप्त माँ कहो। वन्डरफुल राज़ है। बापदादा मीठे-मीठे बच्चों को नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार क्यों कहते? जानते हो बाबा प्यार तब करेंगे जब बाबा मुआफिक सर्विस करते होंगे। जो जैसी मदद करते हैं, वह भी तो प्रजा में आयेंगे ना। उसमें भी नम्बरवार साहूकार प्रजा भी होती है ना। अच्छा। गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) सच्चे साहेब को राज़ी करने के लिए बहुत-बहुत सच्ची दिल रखनी है, कोई भी विघ्न नहीं डालना है।

2) सुख का अनुभव करने के लिए अपना योग ठीक रखना है। स्वदर्शन चक्र फिराते विकर्मो को भस्म करना है।

वरदान:-

जैसे बाप सबसे न्यारा और सबका प्यारा है। न्यारापन ही प्यारा बना देता है। जितना अपनी देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारा बनेंगे। बीच-बीच में प्रैक्टिस करो देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो गये। ऐसे न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे। परमात्म प्यार के अधिकारी बनना – कितना बड़ा फायदा है।

स्लोगन:-

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -“आत्मा कभी परमात्मा का अंश नहीं हो सकती है”

बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं, हम आत्मायें परमात्मा की अंश हैं, अब अंश तो कहते हैं टुकडे को। एक तरफ कहते हैं परमात्मा अनादि और अविनाशी है, तो ऐसे अविनाशी परमात्मा को टुकडे में कैसे लाते हैं! अब परमात्मा कट कैसे हो सकता है, आत्मा ही अज़र अमर है, तो अवश्य आत्मा को पैदा करने वाला अमर ठहरा। ऐसे अमर परमात्मा को टुकडे में ले आना गोया परमात्मा को भी विनाशी कह दिया लेकिन हम तो जानते हैं कि हम आत्मा परमात्मा की संतान हैं। तो हम उसके वंशज ठहरे अर्थात् बच्चे ठहरे वो फिर अंश कैसे हो सकते हैं? इसलिए परमात्मा के महावाक्य हैं कि बच्चे, मैं खुद तो इमार्टल हूँ, जागती ज्योत हूँ, मैं दीवा हूँ मैं कभी बूझता नहीं हूँ और सभी मनुष्य आत्माओं का दीपक जगता भी है तो बुझता भी है। उन सबको जगाने वाला फिर मैं हूँ क्योंकि लाइट और माइट देने वाला मैं हूँ, बाकी इतना जरूर है मुझ परमात्मा की लाइट और आत्मा की लाइट दोनों में फर्क अवश्य है। जैसे बल्ब होता है कोई ज्यादा पॉवर वाला, कोई कम पॉवर वाला होता है वैसे आत्मा भी कोई ज्यादा पॉवर वाली कोई कम पॉवर वाली है। बाकी परमात्मा की पॉवर कोई से कम ज्यादा नहीं होती है तभी तो परमात्मा के लिये कहते हैं कि वह सर्वशक्तिवान है अर्थात् सर्व आत्माओं से उसमें शक्ति ज्यादा है। वही सृष्टि के अन्त में आता है, अगर कोई समझे परमात्मा सृष्टि के बीच में आता है अर्थात् युगे युगे आता है तो मानो परमात्मा बीच में आ गया तो फिर परमात्मा सर्व से श्रेष्ठ कैसे हुआ। अगर कोई कहे परमात्मा युगे युगे आता है, तो क्या ऐसा समझें कि परमात्मा घड़ी घड़ी अपनी शक्ति चलाता है। ऐसे सर्वशक्तिवान की शक्ति इतने तक है, अगर बीच में ही अपनी शक्ति से सबको शक्ति अथवा सद्गति दे देवे तो फिर उनकी शक्ति कायम होनी चाहिए फिर दुर्गति को क्यों प्राप्त करते हो? तो इससे साबित (सिद्ध) है कि परमात्मा युगे युगे नहीं आता है अर्थात् बीच बीच में नहीं आता है। वो आता है कल्प के अन्त समय और एक ही बार अपनी शक्ति से सर्व की सद्गति करता है। जब परमात्मा ने इतनी बड़ी सर्विस की है तब उनका यादगार बड़ा शिवलिंग बनाया है और इतनी पूजा करते हैं, तो अवश्य परमात्मा सत् भी है चैतन्य भी है और आनंद स्वरूप भी है। अच्छा। ओम् शान्ति।

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