14 June 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

June 13, 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - 21 जन्मों की पूरी प्रालब्ध लेने के लिए बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ो, अधूरा नहीं, बलि चढ़ना अर्थात् बाप का बन जाना''

प्रश्नः-

किस गुह्य बात को समझने के लिए बेहद की बुद्धि चाहिए?

उत्तर:-

यह बेहद का बना बनाया ड्रामा है, जो पास्ट हुआ वो ड्रामा। अब यह ड्रामा पूरा होता है, हम घर जायेंगे, फिर नये सिर पार्ट शुरू होगा.. यह गुह्य बातें समझने के लिए बेहद की बुद्धि चाहिए। बेहद रचना का ज्ञान बेहद का बाप ही देते हैं।

प्रश्नः-

मनुष्य किस बात में हाय-हाय कर रड़ी मारते हैं और तुम बच्चे खुश होते हो?

उत्तर:-

अज्ञानी मनुष्य थोड़ी सी बीमारी आने पर रड़ी मारते, तुम बच्चे खुश होते क्योंकि समझते हो यह भी पुराना हिसाब-किताब चुक्तू हो रहा है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

तूने रात गंवाई सोके…

ओम् शान्ति। वास्तव में ओम् शान्ति कहने की भी जरूरत नहीं है। परन्तु कुछ न कुछ बच्चों को समझाना ही होता है, परिचय देना होता है। आजकल बहुत हैं जो ओम् शान्ति – ओम् शान्ति जपते रहते हैं। अर्थ तो समझते नहीं। ओम् शान्ति, हम आत्मा का स्वधर्म शान्त है। यह तो ठीक है परन्तु फिर ओम् शिवोहम् भी कह दिया है, वह फिर रांग हो गया। वास्तव में इन गीतों आदि की भी जरूरत नहीं है। दुनिया में आजकल कनरस बहुत है। इन सभी कनरस में फायदा कुछ नहीं है। मनरस तो अभी ही आता है एक बात का। बाप बच्चों को सन्मुख बैठ समझाते हैं, कहते हैं तुमने भक्ति तो बहुत की, अब भक्ति की रात पूरी हो प्रभात हो रही है। प्रभात का बहुत महत्व है। प्रभात के समय बाप को याद करना है। प्रभात के समय भक्ति भी बहुत करते हैं। माला भी जपते हैं। यह भक्ति मार्ग की रसम चली आती है। बाप कहते हैं बच्चे यह नाटक पूरा होता है, फिर चक्र रिपीट होता है। वहाँ तो भक्ति की दरकार नहीं। खुद ही कहते हैं भक्ति के बाद भगवान मिलता है। भगवान को याद करते हैं क्योकि दु:खी हैं। जब कोई आफत आती है वा बीमार पड़ते हैं तो भगवान को याद करते हैं, भक्त ही भगवान को याद करते हैं। सतयुग त्रेता में भक्ति होती नहीं। नहीं तो सारा भक्ति कल्ट हो जाए। भक्ति, ज्ञान और बाद में है वैराग्य। भक्ति के बाद फिर है दिन। दिन कहा जाता है नई दुनिया को। भक्ति, ज्ञान, वैराग्य अक्षर ठीक है। वैराग्य किसका? पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध आदि से वैराग्य। चाहते हैं हम मुक्तिधाम में बाबा के पास जावें। भक्ति के बाद हमको भगवान जरूर मिलना है। भक्तों को ही भगवान बाप मिलता है। भक्तों को सद्गति देना भगवान का ही काम है। और कुछ करना नहीं है सिर्फ बाप को पहचानना है। बाप है इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज, इसको उल्टा झाड़ कहते हैं। बीज से झाड़ कैसे निकलता है, यह तो बड़ा सहज है। अभी तुम जानते हो – यह वेद शास्त्र, ग्रंथ आदि पढ़ना, जप तप करना यह सब भक्ति मार्ग है। यह कोई भगवान को पाने का सच्चा मार्ग नहीं है। सच्चा मार्ग तो भगवान ही दिखलाते हैं – मुक्ति जीवनमुक्ति का। तुम जानते हो अब ड्रामा पूरा होता है, जो पास्ट हुआ सो ड्रामा। इस समझने में बड़ी बेहद की बुद्धि चाहिए। बेहद का मालिक ही सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त का, बेहद का ज्ञान देते हैं। उसको कहा जाता है ज्ञानेश्वर, रचयिता। ज्ञानेश्वर अर्थात् ईश्वर में ज्ञान है, इसको कहते हैं रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज। गॉड फादरली नॉलेज। तुम भी गॉड फादरली स्टूडेन्ट बने हो। बरोबर भगवानुवाच – तुमको राजयोग सिखलाता हूँ तो भगवान टीचर भी ठहरा। तुम स्टूडेन्ट भी हो, बच्चे भी हो। बच्चों को दादे से वर्सा मिलता है। यह तो बड़ी सहज बात है। बच्चा अगर लायक नहीं है तो बाप लात मारकर निकाल देते हैं, धन्धे आदि में जो अच्छे मददगार होते हैं उनका ही हिस्सा लगता है। तो तुम बच्चों का भी दादे की मिलकियत पर हक है। वह है निराकार। बच्चे जानते हैं हम अपने दादे से वर्सा ले रहे हैं। वही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। नॉलेजफुल है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को पतित-पावन नहीं कहेगे। वह तो देवतायें हैं। उनको सद्गति दाता नहीं कहेंगे। वह एक ही है। याद भी सभी एक को ही करते हैं। बाप का पता न होने कारण कह देते हैं कि सबमें परमात्मा है। अगर कोई को साक्षात्कार हो जाता है तो समझते हैं हनूमान ने दर्शन कराया। भगवान तो सर्वव्यापी है। कोई भी चीज़ में भावना रखो तो साक्षात्कार हो जाता है। यहाँ तो पढ़ाई की बात है। बाप कहते हैं मैं बच्चों को आकर पढ़ाता हूँ। तुम देखते भी हो कैसे पढ़ाते हैं, जैसे और टीचर होते हैं बिल्कुल साधारण रीति पढ़ाते हैं। बैरिस्टर होगा तो आप समान बैरिस्टर बनायेगा। यह तो तुम ही जानते हो कि इस भारत को स्वर्ग किसने बनाया? और भारत में रहने वाले सूर्यवंशी देवी-देवतायें कहाँ से आये? मनुष्यों को बिल्कुल पता नहीं है। अभी है संगम। तुम संगम पर खड़े हो, दूसरा कोई संगम पर नहीं है। यह संगम का मेला देखो कैसा है। बच्चे आये हैं बाप से मिलने। यह मेला ही कल्याणकारी है। बाकी और जो भी कुम्भ के मेले आदि लगते हैं, उनसे कोई प्राप्ति नहीं। सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला कहा जाता है संगम को। गाते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल फिर सुन्दर सुहावना मेला कर दिया है। यह समय कितना अच्छा है। यह संगम का समय कितना कल्याणकारी है क्योंकि इस समय ही सबका कल्याण होता है। बाप आकर सबको पढ़ाते हैं, वह है निराकार, स्टार। लिंग रूप रखा है समझाने के लिए। बिन्दी रखने से कुछ समझ न सकें। तुम समझा सकते हो आत्मा एक स्टार है। बाप भी स्टार है। जैसे आत्मा वैसे परमपिता परमात्मा। फ़र्क नहीं है। तुम्हारी आत्मायें भी नम्बरवार हैं। कोई की बुद्धि में कितनी नॉलेज भरी हुई है, कोई की बुद्धि में कितनी। अभी तुम समझते हो हम आत्मायें कैसे 84 जन्म भोगते हैं। हर एक को अपना हिसाब-किताब भोगना ही पड़ेगा। कोई बीमार पड़ते हैं, हिसाब चुक्तू करना है। ऐसे नहीं ईश्वरीय सन्तान को यह भोगना क्यों होती है! बाप ने समझाया है बच्चे जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं। भल कुमारी है, कुमारी से क्या पाप हुआ होगा? परन्तु यह तो अनेक जन्मों का हिसाब-किताब चुक्तू होना है ना। बाबा ने समझाया है इस जन्म में भी किये हुए पाप अगर सुनायेंगे नहीं तो अन्दर वृद्धि को पाते रहेंगे। बतला देने से फिर वह वृद्धि नहीं होगी। सबसे नम्बरवन भारत पावन था, अब भारत सबसे पतित है। तो उन्हों को मेहनत भी जास्ती करनी पड़ती है। जो सर्विस बहुत करते हैं, समझ सकते हैं हम ऊंच नम्बर में जाऊंगा। कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ होगा तो भोगना पड़ेगा। वह भोगना भी खुशी से भोगी जाती है। अज्ञानी मनुष्यों को तो कुछ होता है तो एकदम हाय-हाय कर रड़ी मारने लग पड़ते हैं। यहाँ तो खुशी से भोगना है। हम ही पावन थे फिर हम ही सबसे पतित बनते हैं। यह चोला पार्ट बजाने के लिए हमको ऐसा मिला है। अभी बुद्धि में आया है, हम सबसे जास्ती पतित बने हैं। बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। आश्चर्य नहीं खाना चाहिए कि फलाने को यह बीमारी क्यों! अरे देखो कृष्ण का भी नाम गाया हुआ है सांवरा, गोरा। चित्र बनाने वाले तो समझते नहीं। वह तो राधे को गोरा कृष्ण को सांवरा दिखाते हैं। समझते हैं राधे कुमारी है तो उनका मान रखते हैं। समझते हैं वह कैसे काली होगी। इन बातों को तुम समझते हो। जो देवता कुल के थे वह अब अपने को हिन्दू धर्म के समझ रहे हैं।

तुम श्रीमत पर अपने कुल का उद्धार करते हो। सारे कुल को पावन बनाना है, सैलवेज़ कर ऊपर ले आना है। तुम सैलवेशन आर्मी हो ना। बाप ही दुगर्ति से निकाल सद्गति करते हैं, वही क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर गाया हुआ है। एक्टर कैसे है, पतित-पावन बाप आकर पतित दुनिया में सभी को पावन बनाते हैं, तो मुख्य हुआ ना। ब्रह्मा विष्णु शंकर को कोई करनकरावनहार नहीं कहेंगे। अभी तुम अनुभव से कह सकते हो – बाबा जिसको करनक-रावनहार कहते हैं वह इस समय पार्ट बजाते हैं। वह पार्ट बजायेंगे भी संगम पर। उनको कोई जानते नहीं। मनुष्य 16 कला से फिर नीचे गिरते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते कला कम होती जाती है। हर जन्म में कुछ न कुछ कला कम होती है। सतयुग में 8 जन्म लेने पड़ते हैं। एक-एक जन्म ड्रामा अनुसार कुछ न कुछ कला कम होती है। अभी है चढ़ने की बारी। जब पूरे चढ़ जायेंगे फिर धीरे-धीरे उतरेंगे। बच्चे जानते हैं अभी यह राजधानी स्थापन हो रही है। राजधानी में तो हर प्रकार के चाहिए। जो अच्छी रीति श्रीमत पर चलते हैं वह ऊंच पद पाते हैं, सो भी जब पूछे ना! बाबा को अपना पूरा पोतामेल भी भेजें, तब बाबा राय दे सकते हैं। ऐसे नहीं बाबा तो सब कुछ जानते हैं। वह तो सारी दुनिया के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। एक-एक की दिल को तो नहीं बैठ जानेंगे, वह नॉलेजफुल है। बाबा कहते हैं मैं आदि मध्य अन्त को जानता हूँ, तब तो बताता हूँ कि तुम ऐसे-ऐसे गिरते हो। फिर ऐसे चढ़ते हो। यह पार्ट भारत का है। भक्ति तो सब करते हैं। जो सबसे जास्ती भक्ति करते हैं उनको पहले सद्गति मिलनी चाहिए। पूज्य थे फिर 84 जन्म भी उन्होंने लिए। भक्ति भी उन्होंने की है नम्बरवार। भल इस समय जन्म मिला है परन्तु आगे जन्म के पाप तो हैं ना। वह कटते हैं याद के बल से। याद ही डिफीकल्ट है। तुम्हारे लिए बाबा कहते हैं तुम याद में बैठो तो निरोगी बनेंगे। बाबा से वर्सा मिलता है – सुख, शान्ति, पवित्रता का। निरोगी काया या बड़ी आयु भी मिलती है सिर्फ याद से। नॉलेज से तुम त्रिकालदर्शी बनते हो। त्रिकालदर्शी का अर्थ भी कोई नहीं जानते। रिद्धि सिद्धि वाले भी बहुत होते हैं। यहाँ बैठे भी लण्डन की पार्लियामेन्ट आदि देखते रहेंगे। परन्तु इस रिद्धि-सिद्धि से फायदा कुछ भी नहीं। दीदार भी होते हैं दिव्य दृष्टि से, इन नयनों से नहीं। इस समय सब सांवरे हैं। तुम बलि चढ़ते हो अर्थात् बाप का बनते हो। बाबा भी बलि चढ़ा पूरा, जो अधूरे बलि चढ़ते हैं तो मिलता भी अधूरा है। बाबा भी बलि चढ़ा ना। जो कुछ था बलि चढ़ा दिया। जो इतने सब बलि चढ़ते हैं, उनको 21 जन्मों के लिए प्राप्ति होती है, इसमें जीवघात की बात नहीं। जीवघाती को महापापी कहा जाता है। आत्मा अपने शरीर का घात करे, यह तो अच्छा नहीं है। मनुष्य दूसरे का गला काट लेते हैं, ये अपना काट लेते हैं इसलिए जीव घाती, महापापी कहा जाता है।

बाप मीठे-मीठे बच्चों को कितना अच्छी रीति समझाते हैं। तुम जानते हो कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे इस कुम्भ के मेले में आते हैं। यह वही मात-पिता है। कहते हैं बाबा आप ही हमारे सब कुछ हो। बाबा भी कहते हैं हे बच्चे तुम आत्मायें हमारे हो। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा आया हुआ है कल्प पहले मुआफिक। जिन्होंने पूरे 84 जन्म लिये हैं उन्हों को श्रृंगार कर रहे हैं। तुम्हारी आत्मा जानती है बाबा नॉलेजफुल पतित-पावन है। वह हमको अभी सारी नॉलेज देते हैं। वही ज्ञान का सागर है, इसमें शास्त्रों की कोई बात नहीं। यहाँ तो देह सहित सब कुछ भूल अपने को आत्मा समझना है। एक बाप के बने हो तो और सब भूल जाना है। और संग बुद्धियोग तोड़ एक संग जोड़ना है। गाते भी हैं हम तुम्हारे संग ही जोड़ेंगे। बाबा हम पूरे बलिहार जायेंगे। बाप भी कहते हैं हम तुम्हारे पर बलिहार जाते हैं। मीठे बच्चे सारे विश्व की राजाई का तुमको मालिक बनाता हूँ, मैं तो निष्कामी हूँ। मनुष्य भल कहते हैं निष्काम सेवा करते हैं परन्तु फल तो मिलता है ना। बाप निष्काम सेवा करते हैं, यह भी तुम जानते हो। आत्मा जो कहती है हम निष्काम सेवा करते हैं, यह कहाँ से सीखे हैं! तुम जानते हो निष्काम सेवा बाबा ही करते हैं। आते ही कल्प के संगमयुग पर हैं। अभी भी तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। बाप खुद कहते हैं मैं तो हूँ निराकार। मैं तुमको यह वर्सा कैसे दूँ? सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान कैसे सुनाऊं? इसमें प्रेरणा की बात ही नहीं। शिव जयन्ती मनाते हैं तो जरूर आता हूँ ना। मैं आता हूँ भारत में। भारत की महिमा सुनाते हैं। भारत तो बिल्कुल महान पवित्र था, अब फिर से बन रहा है। बाप का कितना बच्चों पर लव है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) श्रीमत पर अपने कुल का उद्धार करना है। सारे कुल को पावन बनाना है। बाप को अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल देना है।

2) याद के बल से अपनी काया को निरोगी बनाना है। बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है। बुद्धियोग और संग तोड़ एक संग जोड़ना है।

वरदान:-

जो बच्चे सदा एक बाप दूसरा न कोई – इसी स्मृति में रहते हैं उनका मन-बुद्धि सहज एकाग्र हो जाता है। वह सेवा भी निमित्त बनकर करते हैं इसलिए उसमें उनका लगाव नहीं रहता। लगाव की निशानी है – जहाँ लगाव होगा वहाँ बुद्धि जायेगी, मन भागेगा इसलिए सब जिम्मेवारियां बाप को अर्पण कर ट्रस्टी वा निमित्त बनकर सम्भालो तो लगावमुक्त बन जायेंगे।

स्लोगन:-

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