12 June 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

12 June 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

11 June 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

सर्व हदों से निकल बेहद के वैरागी बनो

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज कल्प बाद फिर से मिलन मनाने सभी बच्चे अपने साकारी स्वीट होम मधुबन में पहुँच गये हैं। साकारी वतन का स्वीट होम मधुबन ही है। जहाँ बाप और बच्चों का रूहानी मेला लगता है। मिलन मेला होता है। तो सभी बच्चे मिलन मेले में आये हुए हो। यह बाप और बच्चों का मिलन मेला सिर्फ इस संगमयुग पर और मधुबन में ही होता है इसलिए सभी भाग कर मधुबन में पहुँचे हो। मधुबन बापदादा का साकार रूप में भी मिलन कराता और साथ-साथ सहज याद द्वारा अव्यक्त मिलन भी कराता है, क्योंकि मधुबन धरनी को रूहानी मिलन की, साकार रूप में मिलन की अनुभूति का वरदान मिला हुआ है। वरदानी धरनी होने के कारण मिलन का अनुभव सहज करते हो। और कोई भी स्थान पर ज्ञान सागर और ज्ञान नदियों का मिलन मेला नहीं होता। सागर और नदियों के मिलन मेले का यह एक ही स्थान है। ऐसे महान वरदानी धरनी पर आये हो – ऐसे समझते हो?

तपस्या वर्ष में विशेष इस कल्प में पहली बार मिलने वाले बच्चों को गोल्डन चांस मिला है। कितने लकी हो! तपस्या के आदि में ही नये बच्चों को एक्स्ट्रा बल मिला है। तो आदि में ही यह एक्स्ट्रा बल आगे के लिए, आगे बढ़ने में सहयोगी बनेगा इसलिए नये बच्चों को ड्रामा ने भी आगे बढ़ने का सहयोग दिया हैइसलिए यह उल्हना नहीं दे सकेंगे कि हम तो पीछे आये हैं। नहीं, तपस्या वर्ष को भी वरदान मिला हुआ है। तपस्या वर्ष में वरदानी भूमि पर आने का अधिकार मिला है, चांस मिला है। यह एक्स्ट्रा भाग्य कम नहीं है! यह वर्ष का, मधुबन धरनी का और अपने पुरुषार्थ का – तीनों वरदान विशेष आप नये बच्चों को मिले हुए हैं। तो कितने लकी हुए! इतने अविनाशी भाग्य का नशा साथ में रखना। सिर्फ यहाँ तक नशा न रहे, लेकिन अविनाशी बाप है, अविनाशी आप श्रेष्ठ आत्माएं हो, तो भाग्य भी अविनाशी है। अविनाशी भाग्य को अविनाशी रखना। यह सिर्फ सहज अटेन्शन देने की बात है। टेन्शन वाला अटेन्शन नहीं। सहज अटेन्शन हो, और मुश्किल है भी क्या? मेरा बाबा जान लिया, मान लिया। तो जो जान लिया, मान लिया, अनुभव कर लिया, अधिकार प्राप्त हो गया फिर मुश्किल क्या है? सिर्फ एक ही मेरा बाबा – यह अनुभव होता रहे। यही फुल नॉलेज है।

एक “बाबा” शब्द में सारा आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान समाया हुआ है क्योंकि बीज है ना। बीज में तो सारा झाड़ समाया हुआ होता है ना। विस्तार भूल सकता है लेकिन सार एक बाबा शब्द – यह याद रहना मुश्किल नहीं है। सदा सहज है ना! कभी सहज, कभी मुश्किल नहीं। सदा बाबा मेरा है, कि कभी कभी मेरा है? जब सदा बाबा मेरा है तो याद भी सदा सहज है। कोई मुश्किल बात नहीं। भगवान ने कहा आप मेरे और आपने कहा आप मेरे। फिर क्या मुश्किल है? इसलिए विशेष नये बच्चे और आगे बढ़ो। अभी भी आगे बढ़ने का चांस है। अभी फाइनल समाप्ति का बिगुल नहीं बजा है। इसलिए उड़ो और औरों को भी उड़ाते चलो। इसकी विधि है वेस्ट अर्थात् व्यर्थ को बचाओ। बचत का खाता, जमा का खाता बढ़ाते चलो क्योंकि 63 जन्म से बचत नहीं की है लेकिन गंवाया है। सभी खाते व्यर्थ गंवा कर खत्म कर दिया है। श्वांस का खजाना भी गंवाया, संकल्प का खजाना भी गंवाया, समय का खजाना भी गंवाया, गुणों का खजाना भी गंवाया, शक्तियों का खजाना भी गंवाया, ज्ञान का खजाना भी गंवाया। कितने खाते खाली हो गये! अभी इन सभी खातों को जमा करना है। जमा होने का समय भी अभी है और जमा करने की विधि भी बाप द्वारा सहज मिल रही है। विनाशी खजाने खर्च करने से कम होते हैं, खुटते हैं और यह सब खजाने जितना स्व के प्रति, और औरों के प्रति शुभ वृत्ति से कार्य में लगायेंगे, उतना जमा होता जायेगा, बढ़ता जायेगा। यहाँ खजानों को कार्य में लगाना, यह जमा की विधि है। वहाँ रखना जमा करने की विधि है और यहाँ लगाना जमा करने की विधि है। फर्क है। समय को स्वयं प्रति या औरों प्रति शुभ कार्य में लगाओ तो जमा होता जायेगा। ज्ञान को कार्य में लगाओ। ऐसे गुणों को, शक्तियों को जितना लगायेंगे उतना बढ़ेगा। यह नहीं सोचना – जैसे वह लॉकर में रख देते हैं और समझते हैं बहुत जमा है, ऐसे आप भी सोचो मेरे बुद्धि में ज्ञान बहुत है, गुण भी मेरे में बहुत हैं, शक्तियां भी बहुत हैं। लॉकप करके नहीं रखो, यूज़ करो। समझा। जमा करने की विधि क्या है? कार्य में लगाना। स्वयं प्रति भी यूज़ करो, नहीं तो लूज़ हो जायेंगे। कई बच्चे कहते हैं कि सर्व खजाने मेरे अन्दर बहुत समाये हुए हैं। लेकिन समाये हुए की निशानी क्या है? समाये हुए हैं अर्थात् जमा है। तो उसकी निशानी है – स्व प्रति व औरों के प्रति समय पर काम में आये। काम में आये ही नहीं और कहे बहुत जमा है, बहुत जमा है। तो इसको यथार्थ जमा की विधि नहीं कहेंगे इसलिए अगर यथार्थ विधि नहीं होगी तो समय पर सम्पूर्णता की सिद्धि नहीं मिलेगी। धोखा मिल जायेगा। सिद्धि नहीं मिलेगी।

गुणों को, शक्तियों को कार्य में लगाओ तो बढ़ते जायेंगे। तो बचत की विधि, जमा करने की विधि को अपनाओ। फिर व्यर्थ का खाता स्वत: ही परिवर्तन हो सफल हो जायेगा। जैसे भक्ति मार्ग में यह नियम है कि जितना भी आपके पास स्थूल धन है तो उसके लिये कहते हैं – दान करो, सफल करो तो बढ़ता जायेगा। सफल करने के लिए कितना उमंग-उत्साह बढ़ाते हैं, भक्ति में भी। तो आप भी तपस्या वर्ष में सिर्फ यह नहीं चेक करो कि व्यर्थ कितना गंवाया? व्यर्थ गंवाया, वह अलग बात है। लेकिन यह चेक करो कि सफल कितना किया? जो सारे खजाने सुनाये। गुण भी है बाप की देन। मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है – यह स्वप्न में भी गलती नहीं करना। यह बाप की देन है तो प्रभु देन, परमात्म देन को मेरा मानना – यह महापाप है। कई बार कई बच्चे साधारण भाषा में सोचते भी हैं और बोलते भी हैं कि मेरे इस गुण को यूज़ नहीं किया जाता, मेरे में यह शक्ति है, मेरी बुद्धि बहुत अच्छी है, इसको यूज़ नहीं किया जाता है। ‘मेरी’ कहाँ से आई? ‘मेरी’ कहा और मैली हुई। भक्ति में भी यह शिक्षा 63 जन्मों से देते रहे हैं कि मेरा नहीं मानो, तेरा मानो। लेकिन फिर भी माना नहीं। तो ज्ञान मार्ग में भी कहना तेरा और मानना मेरा – यह ठगी यहाँ नहीं चलती, इसलिए प्रभु प्रसाद को अपना मानना – यह अभिमान और अपमान करना है। “बाबा-बाबा” शब्द कहाँ भी भूलो नहीं। बाबा ने शक्ति दी है, बुद्धि दी है, बाबा का कार्य है, बाबा का सेन्टर है, बाबा की सब चीजें है। ऐसे नहीं समझो – मेरा सेन्टर है, हमने बनाया है, हमारा अधिकार है। ‘हमारा’ शब्द कहाँ से आया? आपका है क्या? गठरी सम्भाल कर रखी है क्या? कई बच्चे ऐसा नशा दिखाते हैं – हमने सेन्टर का मकान बनाया है तो हमारा अधिकार है। लेकिन बनाया किसका सेन्टर? बाबा का सेन्टर है ना! तो जब बाबा को अर्पण कर दिया तो फिर आपका कहाँ से आया? मेरा कहाँ से आया? जब बुद्धि बदलती है तो कहते हैं – मेरा है। मेरे-मेरे ने ही मैला किया फिर मैला होना है? जब ब्राह्मण बने तो ब्राह्मण जीवन का बाप से पहला वायदा कौन सा है? नयों ने वायदा किया है, या पुरानों ने किया है? नये भी अभी तो पुराने होकर आये हो ना? निश्चय बुद्धि का फार्म भरकर आये हो ना? तो सबका पहला-पहला वायदा है – तन-मन-धन और बुद्धि सब तेरे। यह वायदा सभी ने किया है?

अभी वायदा करने वाले हो तो हाथ उठाओ। जो समझते हैं कि आइवेल के लिए कुछ तो रखना पड़ेगा। सब कुछ बाप को कैसे दे देंगे? कुछ तो किनारा रखना पड़ेगा। जो समझते हैं कि यह समझदारी का काम है, वह हाथ उठाओ। कुछ किनारे रखा है? देखना, फिर यह नहीं कहना कि हमको किसने देखा? इतनी भीड़ में किसने देखा? बाप के पास तो टी.वी. बहुत क्लीयर है। उससे छिप नहीं सकते हो, इसलिए सोच, समझ करके थोड़ा रखना हो, भल रखो। पाण्डव क्या समझते हो? थोड़ा रखना चाहिए? अच्छी तरह से सोचो। जिनको रखना है वे अभी हाथ उठा ले, बच जायेंगे। नहीं तो यह समय, यह सभा, यह आपका कांध का हिलाना – यह सब दिखाई देगा। कभी भी मेरापन नहीं रखो। बाप कहा और पाप गया। बाप नहीं कहते तो पाप हो जाता है। पाप के वश होते, फिर बुद्धि काम नहीं करती है। कितना भी समझाओ, कहेंगे नहीं, यह तो राइट है। यह तो होना ही है। यह तो करना ही है। बाप को भी रहम पड़ता हैक्योंकि उस समय पाप के वश होते हैं। बाप भूल जाता है तो पाप आ जाता है। और पाप के वश होने के कारण जो बोलते हैं, जो करते हैं वह स्वयं भी नहीं समझते कि हम क्या कर रहे हैं, क्योंकि परवश होते हैं। तो सदा ज्ञान के होश में रहो। पाप के जोश में नहीं आओ। बीच-बीच में यह माया की लहर आती है। आप नये इन बातों से बच करके रहना। मेरा-मेरा में नहीं जाना। थोड़ा पुराने हो जाते हैं तो फिर यह मेरे-मेरे की माया बहुत आती है। मेरा विचार, मेरी बुद्धि ही नहीं है तो मेरा विचार कहाँ से आया? तो समझा, जमा करने की विधि क्या है? कार्य में लगाना। सफल करो, अपने ईश्वरीय संस्कारों को भी सफल करो तो व्यर्थ संस्कार स्वत: ही चले जायेंगे। ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में नहीं लगाते हो तो वह लॉकर में रहते और पुराना काम करते रहते। कइयों की यह आदत होती है – बैंक में या अलमारियों में रखने की। बहुत अच्छे कपड़े होंगे, पैसे होंगे, चीजें होंगी, लेकिन यूज़ फिर भी पुराने करेंगे। पुरानी वस्तु से उन्हों को प्यार होता है और अलमारी की चीजें अलमारी में ही रह जायेगी और वह पुराने से ही चला जायेगा। तो ऐसे नहीं करना – पुराने संस्कार यूज करते रहो और ईश्वरीय संस्कार बुद्धि के लॉकर में रखो। नहीं, कार्य में लगाओ, सफल करो। तो यह चार्ट रखो कि सफल कितना किया? सफल करना माना बचाना या बढ़ाना। मन्सा से सफल करो, वाणी से सफल करो। सम्बन्ध-सम्पर्क से, कर्म से, अपने श्रेष्ठ संग से, अपने अति शक्तिशाली वृत्ति से सफल करो। ऐसे नहीं कि मेरी वृत्ति तो अच्छी रहती है। लेकिन सफल कितना किया? मेरे संस्कार तो है ही शान्त लेकिन सफल कितना किया? कार्य में लगाया? तो यह विधि अपनाने से सम्पूर्णता की सिद्धि सहज अनुभव करते रहेंगे। सफल करना ही सफलता की चाबी है। समझा, क्या करना है? सिर्फ अपने में ही खुश नहीं होते रहो – मैं तो बहुत अच्छी गुणवान हूँ, मैं बहुत अच्छा भाषण कर सकती हूँ, मैं बहुत अच्छा ज्ञानी हूँ, योग भी मेरा बहुत अच्छा है। लेकिन अच्छा है तो यूज़ करो ना। उसको सफल करो। सहज विधि है – कार्य में लगाओ और बढ़ाओ। बिना मेहनत के बढ़ता जायेगा और 21 जन्म आराम से खाना। वहाँ मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

विशाल महफिल है (ओम् शान्ति भवन का हॉल एकदम फुल भर गया इसलिए कइयों को नीचे मेडिटेशन हॉल, छोटे हॉल में बैठना पड़ा। हॉल छोटा पड़ गया) शास्त्रों में यह आपका जो यादगार है, उसमें भी गायन है – पहले गिलास में पानी डाला, फिर उससे घड़े में डाला, फिर घड़े से तालाब में डाला, तालाब से नदी में डाला। आखरीन कहाँ गया? सागर में। तो यह महफिल पहले हिस्ट्री हाल में लगी, फिर मेडिटेशन हाल में लगी, अभी ओम् शान्ति भवन में लग रही है। अब फिर कहाँ लगेगी? लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि साकार मिलन के बिना अव्यक्त मिलन नहीं मना सकते हो। अव्यक्ति मिलन मनाने का अभ्यास समय प्रमाण बढ़ना ही है और बढ़ाना ही है। यह तो दादियों ने रहमदिल होकर आप सबके ऊपर विशेष रहम किया है, नयों के ऊपर। लेकिन अव्यक्त अनुभव को बढ़ाना – यही समय पर कार्य में आयेगा। देखो, नये-नये बच्चों के लिए ही बापदादा विशेष यह साकार में मिलन का पार्ट अब तक बजा रहे हैं। लेकिन यह भी कब तक?

सभी खुशराज़ी हो, सन्तुष्ट हो? बाहर रहने में भी सन्तुष्ट हो? यह भी ड्रामा में पार्ट है। जब कहते हो सारा आबू हमारा होगा, तो वह कैसे होगा? पहले आप चरण तो रखो। फिर अभी जो धर्मशाला नाम है वह अपना हो जायेगा। देखो, विदेश में अभी ऐसे होने लगा है। चर्च इतने नहीं चलते हैं तो बी.के. को दे दी है। जो ऐसे बड़े-बड़े स्थान है, चल नहीं पाते हैं तो ऑफर करते हैं ना। तो ब्राह्मणों के चरण पड़ रहे हैं जगह-जगह पर, इसमें भी राज़ है। ब्राह्मणों को रहने का ड्रामा में पार्ट मिला है। तो सारा ही अपना जब हो जायेगा फिर क्या करेंगे? आपेही ऑफर करेंगे आप सम्भालो। हमें भी सम्भालो, आश्रम भी सम्भालो। जिस समय जो पार्ट मिलता है, उसमें राज़ी रह करके पार्ट बजाओ। अच्छा।

चारों ओर के सर्व मिलन मनाने के, ज्ञान रतन धारण करने के चात्रक आत्माओं को आकार रूप में वा साकार रूप में मिलन मेला मनाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सर्व खजानों को सफल कर सफलता स्वरूप बनने वाली आत्माओं को, सदा मेरा बाबा और कोई हद का मेरापन अंशमात्र भी न रखने वाले ऐसे बेहद के वैरागी आत्माओं को सदा हर समय विधि द्वारा सम्पूर्णता की सिद्धि प्राप्त करने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- सदैव कोई नई सीन होनी चाहिए ना। यह भी ड्रामा में नई सीन थी जो रिपीट हुई। यह सोचा था कि यह हॉल भी छोटा हो जायेगा? सदा एक सीन तो अच्छी लगती नहीं। कभी-कभी की सीन अच्छी लगती है। यह भी एक रूहानी रौनक है ना! इन सभी आत्माओं का संकल्प पूरा होना था, इसलिए यह सीन हो गई। यहाँ से छुट्टी दे दी – भले आओ। तो क्या करेंगे? अभी तो नये और बढ़ने हैं। और पुराने तो पुराने हो गये। जैसे उमंग से आये हैं वैसे अपने को सेट किया है, यह अच्छा किया है। विशाल तो होना ही है। कम तो होना है ही नहीं। जब विश्व कल्याणकारी का टाइटल है तो विश्व के आगे यह तो कुछ भी नहीं हैं। वृद्धि भी होनी है और विधि भी नये से नई होनी है। कुछ न कुछ तो विधि होती रहनी है। अभी वृत्ति पॉवरफुल होगी। तपस्या द्वारा वृत्ति पॉवरफुल हो जायेगी तो स्वत: ही वृत्ति द्वारा आत्माओं की भी वृत्ति चेंज होगी। अच्छा, आप सब सेवा करते थकते तो नहीं हो ना। मौज में आ रहे हो। मौज ही मौज है। अच्छा।

वरदान:-

जो भी कर्म करो उसमें दुआयें लो और दुआयें दो। श्रेष्ठ कर्म करने से सबकी दुआयें स्वत: मिलती हैं। सबके मुख से निकलता है कि यह तो बहुत अच्छे हैं। वाह! उनके कर्म ही यादगार बन जाते हैं। भल कोई भी काम करो लेकिन खुशी लो और खुशी दो, दुआयें लो, दुआयें दो। जब अभी संगम पर दुआयें लेंगे और देंगे तब आपके जड़ चित्रों द्वारा भी दुआ मिलती रहेगी और वर्तमान में भी चैतन्य दर्शनीय मूर्त बन जायेंगे।

स्लोगन:-

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