03 May 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

May 2, 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान मीठा बनना है, किसी को दु:ख नहीं देना है, कभी क्रोध नहीं करना है”

प्रश्नः-

कर्मो की गुह्य गति को जानते हुए तुम बच्चे कौन सा पाप कर्म नहीं कर सकते?

उत्तर:-

“बाप-दादा” का। तुम जानते हो यहाँ हम बापदादा के पास आये हैं। यह दोनों इकट्ठे हैं। शिव की आत्मा भी इसमें है, ब्रह्मा की आत्मा भी है। एक आत्मा है, दूसरा परम आत्मा। तो पहले-पहले यह गुह्य राज़ सबको समझाओ कि यह बापदादा इकट्ठे हैं। यह (दादा) भगवान नहीं है। मनुष्य भगवान होता नहीं। भगवान कहा जाता है निराकार को। वह बाप है शान्तिधाम में रहने वाला।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

इस पाप की दुनिया से…

ओम् शान्ति। अभी तुम बच्चे सामने बैठे हो। बाप कहते हैं हे जीव की आत्मायें सुनती हो। आत्माओं से बात करते हैं। आत्मायें जानती हैं – हमारा बेहद का बाप हमको ले चलते हैं, जहाँ दु:ख का नाम नहीं। गीत में भी कहते हैं इस पाप की दुनिया से पावन दुनिया में ले चलो। पतित दुनिया किसको कहा जाता है, यह दुनिया नहीं जानती। देखो, आजकल मनुष्यों में काम, क्रोध कितना तीखा है। क्रोध के वशीभूत होकर कहते हैं हम इसके देश को नाश करेंगे। कहते भी हैं हे भगवान हमको घोर अन्धियारे से घोर सोझरे में ले चलो क्योंकि पुरानी दुनिया है। कलियुग को पुराना युग, सतयुग को नया युग कहा जाता है। बाप बिगर नया युग कोई बना न सके। हमारा मीठा बाबा हमको अब दु:खधाम से सुखधाम में ले चलते हैं। बाबा आपके सिवाए हमको कोई भी स्वर्ग में ले जा नहीं सकते। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। फिर भी किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। इस समय बाबा की श्रेष्ठ मत मिलती है। श्रेष्ठ मत से हम श्रेष्ठ बनते हैं। यहाँ श्रेष्ठ बनेंगे तो श्रेष्ठ दुनिया में ऊंच पद पायेंगे। यह तो है भ्रष्टाचारी रावण की दुनिया। अपनी मत पर चलने को मनमत कहा जाता है। बाप कहते हैं श्रीमत पर चलो। तुमको फिर घड़ी-घड़ी आसुरी मत नर्क में ढकेलती है। क्रोध करना आसुरी मत है। बाबा कहते हैं एक दो पर क्रोध नहीं करो। प्रेम से चलो। हर एक को अपने लिए राय लेनी है। बाप कहते हैं बच्चे पाप क्यों करते हो, पुण्य से काम चलाओ। अपना खर्चा कम कर दो। तीर्थो पर धक्का खाना, संन्यासियों के पास धक्का खाना, इन सब कर्मकाण्ड पर कितना खर्चा करते हैं। वह सब छुड़ा देते हैं। शादी में मनुष्य कितना शादमाना करते हैं, कर्जा लेकर भी शादी कराते हैं। एक तो कर्जा उठाते, दूसरा पतित बनते। सो भी जो पतित बनने चाहते हैं जाकर बनें। जो श्रीमत पर चल पवित्र बनते हैं उनको क्यों रोकना चाहिए। मित्र सम्बन्धी आदि झगड़ा करेंगे तो सहन करना ही पड़ेगा। मीरा ने भी सब कुछ सहन किया ना। बेहद का बाप आया है राजयोग सिखलाए भगवान भगवती पद प्राप्त कराते हैं। लक्ष्मी भगवती, नारायण भगवान कहा जाता है। कलियुग अन्त में तो सभी पतित हैं फिर उन्हों को किसने चेन्ज किया। अब तुम बच्चे जानते हो बाबा कैसे आकर स्वर्ग अथवा राम-राज्य की स्थापना कराते हैं। हम सूर्यवंशी अथवा चन्द्रवंशी पद पाने के लिए यहाँ आये हैं। जो सूर्यवंशी सपूत बच्चे होंगे वह तो अच्छी तरह पढ़ाई पढ़ेंगे।

बाप सबको समझाते हैं – पुरुषार्थ कर तुम माँ बाप को फालो करो। ऐसा पुरुषार्थ करो जो इनके वारिस बनकर दिखाओ। मम्मा बाबा कहते हो तो भविष्य तख्तनशीन होकर दिखाओ। बाप तो कहते हैं इतना पढ़ो जो हमसे ऊंच जाओ। ऐसे बहुत बच्चे होते हैं जो बाप से ऊंच चले जाते हैं। बेहद का बाप कहते हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। मैं थोड़ेही बनता हूँ। कितना मीठा बाप है। उनकी श्रीमत मशहूर है। तुम श्रेष्ठ देवी-देवता थे फिर 84 जन्म लेते-लेते अभी पतित बन पड़े हो। हार और जीत का खेल है। माया से हारे हार, माया से जीते जीत। मन अक्षर कहना रांग है। मन, अमन थोड़ेही हो सकता है। मन तो संकल्प करेगा। हम चाहें संकल्प रहित होकर बैठ जाएं परन्तु कब तक? कर्म तो करना है ना। वह समझते हैं गृहस्थ धर्म में रहना, यह कर्म नहीं करना है। इन हठयोग संन्यासियों का भी पार्ट है। उनका भी एक यह निवृत्ति मार्ग वालों का धर्म है और कोई धर्म में घर-घाट छोड़ जंगल में नहीं जाते हैं। अगर कोई ने छोड़ा भी है तो भी संन्यासियों को देखकर। बाबा कोई घर से वैराग्य नहीं दिलाते। बाप कहते हैं भल घर में रहो परन्तु पवित्र बनो। पुरानी दुनिया को भूलते जाओ। तुम्हारे लिए नई दुनिया बना रहा हूँ। शंकराचार्य संन्यासियों को ऐसे नहीं कहते कि तुम्हारे लिए नई दुनिया बनाता हूँ, उनका है हद का संन्यास, जिससे अल्पकाल का सुख मिलता है। अपवित्र लोग जाकर माथा टेकते हैं। पवित्रता का देखो कितना मान है। अभी तो देखो कितने बड़े-बड़े फ्लैट आदि बनाते हैं। मनुष्य दान करते हैं अब इसमें पुण्य तो कुछ हुआ नहीं। मनुष्य समझते हैं हम जो कुछ ईश्वर अर्थ करते हैं वह पुण्य है। बाप कहते हैं मेरे अर्थ तुम किस-किस कार्य में लगाते हो! दान उनको देना चाहिए – जो पाप न करें। अगर पाप किया तो तुम्हारे ऊपर उनका असर पड़ जायेगा क्योंकि तुमने पैसे दिये। पतितों को देते-देते तुम कंगाल हो गये हो। पैसे ही सब बरबाद हो गये हैं। करके अल्पकाल का सुख मिल जाता है, यह भी ड्रामा। अभी तुम बाप की श्रीमत पर पावन बन रहे हो – पैसे भी तुम्हारे पास वहाँ ढेर होंगे। वहाँ कोई पतित होते नहीं हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। तुम हो ईश्वरीय औलाद। तुम्हारे में बड़ी रॉयल्टी होनी चाहिए। कहते हैं गुरू के निंदक ठौर न पायें। उन्हों में बाप टीचर गुरू अलग है। यहाँ तो बाप टीचर सतगुरू एक ही है। अगर तुम कोई उल्टी चलन चले तो तीनों के निंदक बन पड़ेंगे। सत बाप, सत टीचर, सतगुरू की मत पर चलने से ही तुम श्रेष्ठ बन जाते हो। शरीर तो छोड़ना ही है तो क्यों न इसे ईश्वरीय, अलौकिक सेवा में लगाकर बाप से वर्सा ले लेवें। बाप कहते हैं मैं इसे लेकर क्या करूंगा। मैं तुमको स्वर्ग की बादशाही देता हूँ। वहाँ भी मैं महलों में नहीं रहता, यहाँ भी मैं महलों में नहीं रहता हूँ। गाते हैं बम बम महादेव.. भर दे मेरी झोली। परन्तु वह कब और कैसे झोली भरते, यह कोई भी नहीं जानते हैं। झोली भरी थी तो जरूर चैतन्य में थे। 21 जन्म के लिए तुम बड़े सुखी, साहूकार बन जाते हो। ऐसे बाप की मत पर कदम-कदम चलना चाहिए। बड़ी मंजिल है। अगर कोई कहे मैं नहीं चल सकता। बाबा कहेंगे – तुम फिर बाबा क्यों कहते हो! श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो बहुत डन्डे खायेंगे। पद भी भ्रष्ट होगा। गीत में भी सुना – कहते हैं मुझे ऐसी दुनिया में ले चलो जहाँ सुख और शान्ति हो। सो तो बाप दे सकता है। बाप की मत पर नहीं चलेंगे तो अपने को ही घाटा डालेंगे। यहाँ कोई खर्चे आदि की बात नहीं है। ऐसे थोड़ेही कहते गुरू के आगे नारियल बताशे आदि ले आओ वा स्कूल में फी भरो। कुछ भी नहीं। पैसे भल अपने पास रखो। तुम सिर्फ नॉलेज पढ़ो। भविष्य सुधार करने में कोई नुकसान तो नहीं है। यहाँ माथा भी नहीं टेकना सिखाया जाता। आधाकल्प तो तुम पैसा रखते, माथा झुकाते-झुकाते कंगाल बन पड़े हो। अब बाप फिर तुमको ले जाते हैं शान्तिधाम। वहाँ से सुखधाम में भेज देंगे। अब नवयुग, नई दुनिया आने वाली है। नवयुग सतयुग को कहेंगे फिर कलायें कमती होती जाती हैं। अभी बाप तुमको लायक बना रहे हैं। नारद का मिसाल….। अगर कोई भी भूत होगा तो तुम लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। यह तो बच्चे तुम्हें अपना घर बार भी सम्भालना है और सर्विस भी करनी है। पहले यह भागे इसीलिए क्योंकि इन्हों पर बहुत मार पड़ी। बहुत अत्याचार हुए। मार की भी इन्हों को परवाह नहीं थी। भट्ठी में कोई पक्के, कोई कच्चे निकल गये। ड्रामा की भावी ऐसी थी। जो हुआ सो हुआ फिर भी होगा। गालियाँ भी देंगे। सबसे बड़े ते बड़ी गाली खाते हैं परमपिता परमात्मा शिव। कह देते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है, कुत्ते, बिल्ली, कच्छ-मच्छ सबमें है। बाप कहते हैं मैं तो परोपकारी हूँ। तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। श्रीकृष्ण स्वर्ग का प्रिन्स है ना। उनके लिए फिर कहते हैं सर्प ने डसा, काला हो गया। अब वहाँ सर्प कैसे डसेगा। कृष्णपुरी में भला कंस कहाँ से आया? यह सब हैं दन्त कथायें। भक्ति मार्ग की यह सामग्री है, जिससे तुम नीचे उतरते आये हो। बाबा तो तुमको गुल-गुल (फूल) बनाते हैं। कोई-कोई तो बहुत बड़े कांटे हैं। ओ गॉड फादर कहते हैं, परन्तु जानते कुछ भी नहीं हैं। फादर तो है परन्तु फादर से क्या वर्सा मिलेगा, कुछ भी मालूम नहीं है। बेहद का बाप कहते हैं मैं तुमको बेहद का वर्सा देने आया हूँ। तुम्हारा एक है लौकिक फादर, दूसरा है अलौकिक प्रजापिता ब्रह्मा, तीसरा है पारलौकिक शिव। तुमको 3 फादर हुए। तुम जानते हो हम दादे से ब्रह्मा द्वारा वर्सा लेते हैं, तो श्रीमत पर चलना पड़े, तब ही श्रेष्ठ बनेंगे। सतयुग में तुम प्रालब्ध भोगते हो। वहाँ न प्रजापिता ब्रह्मा को, न शिव को जानते हो। वहाँ सिर्फ लौकिक फादर को जानते हो। सतयुग में एक बाप है। भक्ति में हैं दो बाप। लौकिक और पारलौकिक बाप। इस संगम पर 3 बाप हैं। यह बातें और कोई समझा न सके। तो निश्चय बैठना चाहिए। ऐसे नहीं अभी-अभी निश्चय फिर अभी-अभी संशय। अभी-अभी जन्म लिया फिर अभी-अभी मर जाना। मर गया तो वर्सा खत्म। ऐसे बाप को फारकती नहीं देना चाहिए। जितना निरन्तर याद करेंगे, सर्विस करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाप यह भी बतलाते हैं मेरी मत पर चलो तो बच जायेंगे। नहीं तो खूब सजा खानी पड़ेगी। सब साक्षात्कार करायेंगे, यह तुमने पाप किया। श्रीमत पर नहीं चले। सूक्ष्म शरीर धारण कराए सजा दी जाती है। गर्भ जेल में भी साक्षात्कार कराते हैं। यह पाप कर्म किया है अब खाओ सजा। झाड़ वृद्धि को पाता जायेगा। जो इस धर्म के थे और-और धर्म में घुस गये हैं, वह सब निकल आयेंगे। बाकी अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। अलग-अलग सेक्शन हैं। झाड़ देखो कैसे बढ़ता है। छोटी-छोटी टालियां निकलती जायेंगी।

तुम जानते हो मीठा बाबा आया हुआ है हमको वापिस ले जाने, इसलिए उनको लिबरेटर कहते हैं। दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। गाइड बन फिर सुखधाम में ले जायेंगे। कहते भी हैं 5 हजार वर्ष पहले तुमको सुख के सम्बन्ध में भेजा था। तुमने 84 जन्म लिए। अब बाप से वर्सा ले लो। श्रीकृष्ण के साथ तो सबकी प्रीत है। लक्ष्मी-नारायण से इतनी नहीं, जितनी कृष्ण के साथ है। मनुष्यों को यह मालूम नहीं है। राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। कोई भी इस बात को नहीं जानते हैं। अब तुम जानते हो कि राधे कृष्ण अलग-अलग राजधानी के थे फिर स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बने। वह तो कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। कृष्ण को पतित-पावन कोई कह न सके। रेग्युलर पढ़ने बिगर ऊंच पद कोई पा न सके। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) अपनी चलन बहुत रॉयल रखनी है, बहुत कम और मीठा बोलना है। सजाओं से बचने के लिए कदम-कदम पर बाप की श्रीमत पर चलना है।

2) पढ़ाई बहुत ध्यान से अच्छी तरह पढ़नी है। माँ बाप को फालो कर तख्तनशीन, वारिस बनना है। क्रोध के वश होकर दु:ख नहीं देना है।

वरदान:-

जैसे असली हीरा कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, ऐसे आपकी जीवन हीरे तुल्य है। तो कैसे भी वातावरण में, कैसे भी संगठन में आपकी चमक अर्थात् वह झलक और फलक सबको दिखाई दे। भल काम साधारण करते हो लेकिन स्मृति और स्थिति ऐसी श्रेष्ठ हो जो देखते ही महसूस करें कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, यह सेवाधारी होते भी पुरूषोत्तम हैं।

स्लोगन:-

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