30 April 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

30 April 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

29 April 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हारा ज्ञान-योग से श्रृंगार करने, उस श्रृंगार को कायम रखने के लिए माया से कभी हार नहीं खाना''

प्रश्नः-

कौन सी एक छोटी बात निश्चयबुद्धि बच्चों के निश्चय को तोड़ संशयबुद्धि बना देती है?

उत्तर:-

निश्चयबुद्धि बच्चे अगर चलते-चलते किसी छोटी भी भूल के भ्रम में फँस जाते हैं तो निश्चय टूट जाता है। श्रीमत में भ्रम पैदा हुआ तो माया संशयबुद्धि बना देगी। जो संशयबुद्धि बनते हैं वह सर्विस भी नहीं कर सकते और उनसे विकारों को जीतने की मेहनत भी नहीं होती। ऐसे कमजोर बच्चों को भी रहमदिल बाप राय देते हैं बच्चे, अगर तुम्हें विकार सताते हैं, सर्विस भी नहीं करते तो बाप को तो याद करो।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

तुम्हीं हो माता पिता…..

ओम् शान्ति। यह किसकी महिमा है? मात-पिता की। तुम उस मात-पिता के बच्चे हो। उनको कहा जाता है बेहद का रचयिता। कितने ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। जगत अम्बा और जगत पिता, ब्रह्मा के भी चित्र हैं। सिर्फ भिन्न चित्र बना दिये हैं। तुम जानते हो विश्व के आदि अर्थात् सतयुग में अथाह सुख थे। अभी फिर से बेहद के बाप से बेहद के सुख का वर्सा ले रहे हैं। यह महिमा लौकिक माँ बाप की नहीं हो सकती। यह है बेहद के माँ बाप की बात। परमपिता परमात्मा को ही मात-पिता कहा जाता है। परन्तु वह है निराकार। यह तो बहुत बार समझाया है कि नई रचना, नये धर्म के लिए यह नया ज्ञान है। देवी देवता धर्म अभी है नहीं। कोई भी नहीं कहेंगे कि हमारा देवी देवता धर्म है, क्योंकि वह तो सम्पूर्ण निर्विकारी थे। अभी हैं सब विकारी और धर्म प्राय: लोप भी जरूर होने चाहिए, तब तो फिर से उस धर्म की स्थापना करने के लिए बाप को आना पड़े। अभी तुम बच्चों को बाप और वर्से को याद करना है। वर्से के लिए माँ के पेट से जन्म ले फिर बाप को याद करते हैं। जन्म तो लिया परन्तु थ्रू किसके? माँ से जन्म लेते हैं। यह भी ऐसे है – थ्रू माँ के तुम बच्चे बने हो। याद करते हो शिवबाबा को वर्सा लेने के लिए वाया माँ। परन्तु कोई को निश्चय है, कोई को नहीं है। ऐसे नहीं कि सभी को निश्चय है, माया घुटका दिलाती रहती है। कहाँ न कहाँ फँस पड़ते हैं। श्रीमत पर न चलने वाले अपनी ही भूलों के भ्रम में फँसते हैं, निश्चय है तो फिर और सब बातें छोड़ देते हैं। सुनना है और सुनाना है। कोई कहते हैं हम सर्विस नहीं कर सकते। प्रजा नहीं बनायेंगे तो राजा भी नहीं बनेंगे। अच्छा और कुछ नहीं करते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करो। स्वर्ग में आ जायेंगे। अच्छा विकारों को जीतने की मेहनत नहीं पहुँचती फिर भी बाप को याद करो तो स्वर्ग में आ जायेंगे, परन्तु पद कम मिलेगा।

बाप समझाते हैं – भक्ति का पार्ट अब खत्म होना है। भक्ति का फल देने बाप आये हैं। तुम ही नम्बरवार पूरी भक्ति करते हो। पहले-पहले करते हो शिवबाबा की फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर की। अभी तो देखो गली-गली में कितने मन्दिर बना दिये हैं, कितने सतसंग होते हैं। जहाँ यह सब चीजें बहुत हैं, वहाँ फिर यह कुछ भी नहीं रहेगा। एक भी मन्दिर नहीं रहेगा। अभी तो भक्ति की कितनी सामग्री है। द्वापर, कलियुग है भक्ति मार्ग का युग, तमोप्रधान बनने का युग। अब बाप इन सब झंझटों से छुड़ा देते हैं। कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल… देह सहित इन सबसे ममत्व मिटाओ। अब तुम्हें नये घर में चलना है। जब स्थापना हो जाए तब तो चलेंगे ना – यह है पुरानी दुनिया, दु:खधाम। यह अन्तिम जन्म है। अभी तुम ईश्वर की गोद में बैठे हो। मात-पिता की गोद में हो। लॉमुजीब बाप ब्रह्मा मुख से तुमको जन्म देते हैं तो यह माँ हो गई, लेकिन तुम्हारी बुद्धि फिर भी शिवबाबा तरफ चली जाती है। तुम मात-पिता हम बालक तेरे…. शिव-बाबा तरफ लव चला जाता है। तुम सजनियां भी हो। शिवबाबा आया है, तुमको श्रृंगार कर लायक बनाने। ज्ञान और योग से तुम बच्चों को श्रृंगारते हैं। सिर्फ तुम नहीं हो, यह आवाज तो सब सेन्टर्स पर सुनते हैं। हजारों सुनते रहेंगे। सभी का श्रृंगार होता रहता है। कितने श्रृंगार करते-करते फिर मैले हो जाते हैं। बाबा गधे का मिसाल देते हैं ना। तुम बच्चों को सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण …. बनना है। घड़ी-घड़ी माया से हार नहीं खानी है। कहते हैं बाबा आज माया ने थप्पड़ मार दिया। बाबा कहते हैं तुम कुल को कलंक लगाने वाले हो। बाप की भी निंदा तो बच्चों की भी निंदा कराते हो। तुम तो और ही गिर पड़ेंगे। इस काम महाशत्रु पर पूरी जीत पानी है। बाप से प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। बाप है स्वर्ग का रचयिता, सो तो जरूर स्वर्ग का मालिक बनायेंगे। जो यह सहज राजयोग सीखेंगे, वही स्वर्ग में आयेंगे। ऐसे नहीं कि सभी स्वर्ग में आयेंगे। भल यह समझते हैं कि नई दुनिया गॉड फादर रचते हैं। बाकी नई दुनिया में कौन राज्य करते हैं – यह राज़ तो जब कोई समझावे। भल जानते हैं भारत प्राचीन है, परन्तु यथार्थ रीति तो भारतवासी खुद ही नहीं जानते तो औरों को क्या बतायेंगे। तुम बतला सकते हो – भारत जैसा पवित्र खण्ड और कोई हो नहीं सकता। भारत जैसा मालामाल और कोई खण्ड नहीं। अभी अमेरिका आदि के पास भल बहुत धन है परन्तु भारत की भेंट में तो यह जैसे कौड़ियाँ हैं। भारत ही सब धर्मों का तीर्थ स्थान है। सभी आत्माओं का बाप भारत में आते हैं, नर्क को स्वर्ग बनाने। सबको लिबरेट करते हैं। महिमा है तो उनकी। फूल भी उन पर चढ़ाने चाहिए। परन्तु गीता में नाम गुम कर दिया है, इसलिए महत्व कम कर दिया है। क्रिश्चियन लोगों ने भी उल्टी सुल्टी बातें सुनी हैं तो वे भी फिर ग्लानी की बातें सुनाए अपने धर्म में बहुतों को कनवर्ट करते गये हैं। कितने क्रिश्चियन बनते होंगे। यह तो कल्प-कल्प होता ही रहेगा। बाप कहते हैं जब ऐसे धर्म ग्लानि होती है तब फिर मैं आकर भारत को हीरे जैसा बनाता हूँ। बेहद के बाप से बेहद का सुख मिलता है, स्वर्ग की स्थापना होती है। वह है शिवबाबा। तुम हो शिव शक्ति भारत मातायें और तुम हो गुप्त। तुम शिव शक्ति सेना को मनुष्य क्या जानें। तुम ही जानते हो बरोबर हम शिव शक्ति पाण्डव सेना हैं। यह नई राजधानी स्थापन हो रही है। यह है पुरानी पतित दुनिया, वह है पावन नई दुनिया। इस पतित दुनिया में पावन कोई हो नहीं सकता। शास्त्रों में क्या-क्या बातें लिख दी हैं। सुनाने वाले भी बड़े होशियार होते हैं। शास्त्र भी सुनते आये, 7 रोज़ का पाठ भी रखते आये। रुद्र यज्ञ आदि भी रचते आये हैं। फिर भी दुनिया को तमोप्रधान बनना ही है। चाहे कुछ भी करें, वापिस तो एक भी नहीं जा सकता। मनुष्यों को ज्ञान नहीं तो शास्त्रों का कनरस बहुत अच्छा लगता है। तुमको अभी वह अच्छा नहीं लगता इसलिए बाप कहते हैं हियर नो ईविल.. सिर्फ मुझे याद करो, श्रीमत पर चलो तो श्रेष्ठ बनेंगे। आसुरी मत पर चलने से असुर ही बनते जायेंगे। वह है रावण मत। मनुष्य रावण मत पर हैं तब तो रावण को जलाते रहते हैं। बाप हर एक बात अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। बीज और झाड़ की नॉलेज है, इसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। इनकी आयु 5 हजार वर्ष है। अगर सतयुग को लाखों वर्ष हुए हो फिर तो हिन्दू बहुत ढेर होने चाहिए।

अब तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो कि विनाश तो होना ही है, नेचुरल कैलेमिटीज़ भी आती जायेंगी। इनको फिर वह गॉडली कैलेमिटीज़ कह देते हैं। परन्तु गॉड थोड़ेही कैलेमिटीज़ लाते हैं। यह तो ड्रामा में नूँध है। विनाश न हो तो नई दुनिया कैसे रची जाए। महाभारत लड़ाई से ही तो गेट खुलेंगे। बच्चों ने साक्षात्कार किया है, मंजिल बहुत भारी है। तो कई हिम्मत नहीं रखते हैं। देखो, कल भी बाबा समझा रहे थे कि इस मृत्युलोक में तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। अब मैं अमरलोक का मालिक बनाने आया हूँ। यह अन्तिम जन्म बाप का कहना मानो। पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। लौकिक बाप का भी अगर बच्चा कहना न माने तो बाप कहेंगे ना तुम कपूत बच्चा हो। बाबा तो सर्वशक्तिमान् है, उनके फरमान पर चलने से मदद भी मिलेगी, फिर बच्चे कहते हैं अच्छा सोचेंगे। अरे कल शरीर छूट जाए तो वर्सा तो मिलेगा नहीं। 5 विकारों की बीमारी बहुत कड़ी है। माया ने सबको रोगी बनाया है। अब बाप कहते हैं मेरी श्रीमत पर चलो। माया तो बहुत विकल्पों में लायेगी, बहुत तूफान आयेंगे। देवाला निकल जायेगा। फिर कहेंगे यह क्या, बाबा का बना तो यह हाल हुआ! परन्तु बाप कहते हैं तुमने शिवबाबा को सब कुछ दे दिया, तुम तो ट्रस्टी हो गये। वह तुमको पूरा हिसाब दे देंगे। तुम चिंता क्यों करते हो।

तुम जानते हो अभी तो भारत का बेड़ा डूबा हुआ है, बाप सैलवेज करने आये हैं। बाप बिगर स्वर्ग कौन बनाये। कहते हैं द्वारिका नीचे चली गई, अब ऊपर कैसे आयेगी। कच्छ मच्छ लायेंगे क्या? यह ड्रामा का चक्र है, जिसको समझना है। सतयुग, त्रेता जब ऊपर हैं तब द्वापर कलियुग नीचे चले जायेंगे। सृष्टि चक्र का चित्र इतना बड़ा बनाना चाहिए जैसे आइना फुल साइज का भी बनाते हैं ना। बाप कहते हैं – बच्चे आइने में अपना मुँह देखते रहो, कहाँ बन्दर तो नहीं बन पड़ते हो! जिनमें विकार हैं वह बन्दर से भी बदतर हैं। देवतायें तो मन्दिर लायक हैं। वास्तव में संन्यासियों का कभी मन्दिर नहीं बनाया जाता। मन्दिर सिर्फ देवताओं का होता है क्योंकि उन्हों की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। यहाँ पवित्र शरीर तो मिल न सके। मनुष्य कितने यज्ञ रचते हैं, कथायें सुनते रहते हैं। बाप तो एक ही बेहद का यज्ञ रचते हैं, जिसको रुद्र यज्ञ कहते हैं। इस यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई, बाकी सब यज्ञ खलास हो जाते हैं। रुद्र ज्ञान यज्ञ मशहूर है। शिव ज्ञान यज्ञ मशहूर नहीं है। रुद्र की और सालिग्रामों की पूजा होती है। कितने सालिग्राम बनाते हैं। शिव तो एक ही बनाते हैं। प्रजा तो ढेर बनेगी, इतने थोड़ेही बना सकेंगे। शिवबाबा और तुम बच्चों की पूजा होती है क्योंकि तुम सारी दुनिया को लिबरेट करते हो। तुम हो शिव शक्तियाँ – सैलवेशन आर्मी। ऐसे बहुत हैं जो स्वयं को सर्वोदया लीडर कहते हैं। अब सारी दुनिया पर दया तो कोई कर न सके। सब पर रहम करने वाला रहमदिल शिवबाबा को ही कहा जायेगा। मनुष्य नाम तो बड़े-बड़े रखवाते हैं। सर्व पर दया वा कृपा करना अर्थात् सुखधाम में ले जाना – यह काम तो एक परमात्मा का ही है। सभी का गति सद्गति दाता एक ही शिवबाबा है। मनुष्य किसी की सद्गति नहीं कर सकते। एक की भी नहीं कर सकते, इम्पासिबुल है। तुमको कहते हैं कि तुम लोग शास्त्रों को नहीं मानते हो लेकिन जो चीज़ सामने है, आंखों से देखते हैं, मानते कैसे नहीं! परन्तु अभी हम श्रीमत पर चलते हैं, जिससे श्रेष्ठ बनेंगे। श्रीमत है भगवान की, श्रीकृष्ण की मत पर नहीं चलते। कृष्ण की आत्मा भी आगे जन्म में श्रीमत से ऐसा श्रेष्ठ देवता बनी थी, तत् त्वम्। उनकी राजधानी भी होगी ना। अकेला कृष्ण क्या करेगा! काँटों से फूल बाप के सिवाए और कोई बना न सके। बाप आया है तो जरूर स्वर्ग रचेंगे ना। नहीं तो अवतार लेने की क्या दरकार थी। जरूर भारत को स्वर्ग बनाया था और अब फिर से बना रहे हैं। वहाँ भी मन्दिर आदि होंगे नहीं। तुम जानते हो बाबा भारत में आया है, भारत को स्वर्ग बनाने। बाबा ने समझाया है माया के तूफान तो सभी को आयेंगे। बाबा से आकर पूछो। ज्ञान और योग का भी अनुभव पूछो। संकल्प जो विकल्प बन जाते हैं, उनका भी अनुभव पूछो। बाबा सबसे आगे हैं, तो इन तूफानों से पास जरूर होते हैं। हम बाबा को याद करते हैं फिर भी माया कम नहीं है। जितना रुसतम उतना माया पूरा सामना करेगी, डरना नहीं है। लिखते हैं बाबा माया को बोलो कि तंग न करे। परन्तु माया तूफान तो मचायेगी, डरना नहीं है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) बाप को पूरा हिसाब दे, ट्रस्टी बन सब चिंताओं से मुक्त हो जाना है। बाप के फरमान पर पूरा-पूरा चल मदद का पात्र बनना है।

2) मनुष्यों के डूबे हुए बेड़े को सैलवेशन आर्मी बन पार करना है। बाप का मददगार बन पूज्यनीय लायक बनना है।

वरदान:-

सफलता मूर्त बनने का विशेष साधन है – हर सेकण्ड को, हर श्वांस को, हर खजाने को सफल करना। यदि संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सर्व प्रकार की सफलता का अनुभव करना चाहते हो तो सफल करते जाओ, व्यर्थ नहीं जाये। चाहे स्व के प्रति सफल करो, चाहे और आत्माओं के प्रति सफल करो तो आटोमेटिकली सफलता की खुशी अनुभव करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान में सफलता प्राप्त करना और भविष्य के लिए जमा करना।

स्लोगन:-

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