19 September 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

19 September 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

18 September 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

दिलाराम बाप के दिलतख्त-जीत दिलरूबा बच्चों की निशानियाँ

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज दिलाराम बाप अपने दिलरूबा बच्चों से मिलने आये हैं। दिलाराम बाप के हर एक दिलरूबा अर्थात् जिसकी दिल में सदा दिलाराम की याद के मधुर साज स्वत: ही बजते रहते, ऐसे दिलरूबा दिलाराम बाप की दिल को अपने स्नेह के साज से जीतने वाले हैं। दिलाराम बाप भी ऐसे बच्चों के गुण गाते हैं। तो बाप के दिल-जीत सो स्वत: मायाजीत, जगत-जीत हैं ही। जैसे कोई हद के राज्य के तख्त को जीतते हैं तो जीतना अर्थात् तख्तनशीन बनना। ऐसे जो बाप के दिलतख्त को जीत लेते हैं, वह स्वत: ही सदा तख्तनशीन रहते हैं। उनकी दिल में सदा बाप है और बाप की दिल में सदा ऐसा विजयी बच्चा है। ऐसे दिल-जीत बच्चे श्वॉसों श्वाँस अर्थात् हर सेकण्ड सिवाए बाप और सेवा के और कोई गीत नहीं गाते हैं। सदा एक ही गीत बजता कि ‘मेरा बाबा और मैं बाप का’। इसको कहते हैं दिलाराम बाप के दिलतख्त जीत दिलरूबा।

बापदादा हर एक दिलरूबा बच्चों के सदा मधुर साज सुनते रहते हैं कि भिन्न-भिन्न साज है या एक ही साज है? कभी कोई अपनी कमजोरी के भी गीत गाते हैं और कभी बाप के बजाए अपने गीत भी गाते हैं। बाप की महिमा के साथ अपनी महिमा भी आप करते हैं। बाप में आप हैं अर्थात् बाप की महिमा में आप की महिमा है ही। यथार्थ साज बाप के गीत गाना ही श्रेष्ठ साज है। जो दिलतख्त-जीत बच्चे हैं उनके हर कदम में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में हर एक को बाप ही दिखाई देगा। चाहे मुख उसका हो लेकिन शक्तिशाली स्नेह भरे बोल स्वत: ही बाप को प्रत्यक्ष करेंगे कि यह बोल आत्मा के नहीं हैं। लेकिन श्रेष्ठ अथॉरिटी अर्थात् सर्वशक्तिमान के बोल हैं। इनके दृष्टि की रूहानियत रूहों को बाप की अनुभूति कराने वाली हैं, इनके कदम में परमात्म श्रेष्ठ मत के कदम हैं, यह साधारण व्यक्ति नहीं लेकिन अव्यक्त फरिश्ते है – ऐसी अनुभूति कराने वाले को कहते हैं दिल-जीत सो जगत-जीत।

वाणी से अनुभव कराना यह साधारण विधि है। वाणी से प्रभाव डालने वाले दुनिया में भी अनेक हैं। लेकिन आपके वाणी की विशेषता यही है कि आपका बोल बाप की याद दिलाये। बाप को प्रत्यक्ष करने की सिद्धि आत्माओं को सद्गति की राह दिखाये। यह न्यारापन है। अगर आपकी महिमा कर ली कि बहुत अच्छा है, बोलने का आर्ट है या अथॉरिटी के बोल हैं – यह तो और आत्माओं की भी महिमा होती है। लेकिन आपके बोल बाप की महिमा अनुभव करायें। यही विशेषता प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने का साधन है। तो जिसकी दिल में सदा दिलाराम है, उनके मुख द्वारा भी दिल का आवाज दिलाराम को स्वत: ही प्रत्यक्ष करेगा। तो यह चेक करो कि हर कदम में, बोल में मेरे द्वारा बाप की प्रत्यक्षता होती है, मेरा बोल बाप से सम्बन्ध जोड़ने वाला बोल है? क्योंकि अभी लास्ट सेवा का पार्ट ही है प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना। मेरा हर कर्म श्रेष्ठ कर्म की गति सुनाने वाले बाप को प्रत्यक्ष करने वाला है? जिसकी दिल में सदा बाप है, वह स्वत: ही ‘सन शोज फादर’ (बाप को प्रत्यक्ष करने वाला बच्चा) करने वाला समीप अर्थात् समान बच्चा है।

चारों ओर अभी यह आवाज गूँजे कि ‘हमारा बाबा’; ब्रह्माकुमारियों का बाबा नहीं, हमारा बाबा। जब यह आवाज गूँजेगा तभी स्वीट-होम (परमधाम) का गेट खुलेगा क्योंकि जब हमारा बाबा कहें तब मुक्ति का वर्सा मिले और आपके व बाप के साथ-साथ चाहे बराती बनके चलें लेकिन सबको वापिस जाना ही है, ले ही जाना है। ‘हमारा बाबा आ गया’ – कम से कम यह आवाज कानों से सुनने, बुद्धि से जानने के अधिकारी तो बनें। कोई भी वंचित न रह जाये। विश्व का बाप है, तो विश्व की आत्माओं को इतनी अंचली तो देनी है ना। आपने सागर को हप किया लेकिन वह एक बूँद के प्यासे, उन्हों को बूँद तो प्राप्त करायेंगे ना। इसके लिए क्या करना पड़े? हर कदम, हर बोल, बाप को प्रत्यक्ष करने वाले हों, तब यह आवाज गूँजेगा। तो ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चों को ही दिलाराम के दिलरूबा कहते हैं जिसकी दिल से एक ही बाप के साज बजते हैं। तो ऐसे दिलरूबा बने हो ना?

एक गीत गाओ तो दूसरे गीत स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे। सिर्फ दो शब्दों में खुशखबरी सुनाओ – ओ.के.। रूहरिहान करो। और गीत सुनाने लिए टाइम न दो, न लो। खुशखबरी सुनाने में समय नहीं लगता है लेकिन रामकथा सुनाने में टाइम लगता है। बापदादा ऐसी बातों को राम-कथा कहते हैं, कृष्ण कथा नहीं कहते। यह 14 कला वालों की कथा है, 16 कला वालों की नहीं। राम-कथा करने वाले तो नहीं हो ना?

अभी सेवा बहुत रही हुई है। अभी किया ही क्या है? सोचो, साढ़े पांच सौ करोड़ आत्मायें हैं, कम से कम एक बूँद ही दो लेकिन देना तो है। चाहे आपके भक्त बनें, चाहे आपकी प्रजा बनें। देवता बनेंगे तो भी देना ही है। भक्ति में देव बनके पूजे जायेंगे ना। तो देंगे तब तो देवता समझ पूजेंगे। प्रजा भी तब मानेगी जब कोई प्राप्ति होगी। ऐसे ही कैसे मानेगी कि आप मात-पिता हो? राजा भी मात-पिता ही हैं। दोनों ही रीति से ‘दाता’ के बच्चे दाता बन देना है। लेकिन देते हुए दाता की याद दिलानी है। समझा, क्या करना है? यह नहीं समझो विदेश में अथवा देश में इतने सेन्टर्स खुल गये, बहुत हो गया। लेकिन रहमदिल बाप के बच्चे हो ना। सभी अपने प्यासे, भटकते हुए भाई-बहनों के ऊपर रहम करना है, किसी का उल्हना नहीं रहना चाहिए। अच्छा!

विदेश से भी बहुत आशिक आ गये हैं। जब बहुत आते हैं तो बांटना तो पड़ेगा ना। समय भी बांटना पड़े। रात को दिन तो बनाते ही हैं, और क्या करेंगे। इसमें भी महादानी बनो। बाप का स्नेह नम्बरवार होते भी सबसे नम्बरवन है। कभी भी यह नहीं समझना कि मेरे से बाप का प्यार कम है, और किसी से ज्यादा है। नहीं। सबसे ज्यादा है। मुख के बोल में कभी किसी से ज्यादा भी बोल लेते हैं, कभी कम भी होता। लेकिन दिल का प्यार बोल में नहीं बंटता है। बाप की नजरों में हर एक बच्चा नम्बरवन है। अभी नम्बर आउट कहाँ हुए हैं? जब तक आउट हो, तब तक हर एक नम्बरवन है, कोई भी नम्बरवन हो सकता है। सुनाया ना – नम्बरवन तो ब्रह्मा सदा है ही। लेकिन फर्स्ट डिवीजन – बाप के साथ फर्स्ट नम्बर में आना अर्थात् फर्स्ट डिवीजन। उन्हों को भी नम्बरवन कहेंगे। तो जब तक फाइनल रिजल्ट आउट नहीं हुई है, तब तक बापदादा चाहे जानते भी है कि वर्तमान समय के प्रमाण लास्ट हैं लेकिन फिर भी लास्ट नहीं समझते। कभी भी लास्ट सो फर्स्ट बन सकता है, मार्जिन है। कभी-कभी क्या होता है – जो बहुत तेज चलते हैं, वह नजदीक पहुंचने पर थक जाते हैं, तो रूक जाते हैं और जो धीरे-धीरे चलते हैं, कभी रुकते नहीं, तरीके से चलते हैं। तो वह पहुँच जाते हैं इसलिए अभी बाप की नज़र में सब नम्बर-वन हैं। जब रिजल्ट आउट होगी तब कहेंगे – यह लास्ट है, यह फर्स्ट है। अभी नहीं कह सकते इसलिए सिर्फ अपने में निश्चय रख उड़ते चलो।

बापदादा का आगे उड़ाने का दिल का प्यार सभी से है। कभी दो शब्द किससे कम बोला तो कम प्यार नहीं है। दिल में भी बाप के प्यार की श्रेष्ठ शुभ कामनायें सदा भरी हुई हैं। दो बोल भी कहते – “उड़ते चलो”, तो इसमें भी प्यार का सागर समाया हुआ है। कोई नहीं कह सकता कि बाबा मुझे ज्यादा प्यार करता। अगर कोई कहता है तो कहो – मुझे आपसे भी ज्यादा करता! और करते हैं, ऐसे ही नहीं कहते। सिर्फ दिल खुश करने के लिए नहीं कहते। बाप तो जानते हैं कि कितने भटके हुए, थके हुए, उलझे हुए फिर से 5000 वर्ष के बाद मिले हैं! बाप ने ढूँढ-ढूँढ कर तो निकाला है। साउथ, नार्थ, ईस्ट, वेस्ट – सबसे निकाला है। तो जिसको ढूँढ कर निकाला हो तो उससे कितना प्यार होगा! नहीं तो ढूँढते ही नहीं। और सागर के पास प्यार की कमी है क्या? यह तो दिलाराम जाने कि हर एक का दिल से प्यार कितना है! क्या भी हो लेकिन प्यार में सभी पास हो। बाप से प्यार का सर्टिफिकेट तो बाप ने पहले ही दे दिया है। अच्छा!

चारों ओर के अति स्नेह भरे दिल के साज सुनाने वाले दिलाराम के दिलरूबाओं को, सदा हर कर्म में ‘सन शोज फादर’ करने वाले, सदा हर बोल द्वारा, बाप से सम्बन्ध जोड़ने वाले, सदा अपनी रूहानी दृष्टि से रूहों को बाप का अनुभव कराने वाले, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, बाप के दिलतख्त-जीत, मायाजीत, जगत-जीत बच्चों को दिलाराम बाप का यादप्यार और नमस्ते।

पर्सनल मुलाकात

1- याद की शक्ति सदा हर कार्य में आगे बढ़ाने वाली है। याद की शक्ति सदा के लिए शक्तिशाली बनाती है। याद के शक्ति की अनुभूति सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है। यही शक्ति हर कार्य में सफलता का अनुभव कराती है। इसी शक्ति के अनुभव से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ – यह स्मृति में रख जितना आगे बढ़ना चाहो बढ़ सकते हो। इसी शक्ति से विशेष सहयोग प्राप्त होता रहेगा।

2. सदा हर कार्य करते स्वयं को साक्षी स्थिति में स्थित रख कार्य कराने वाली न्यारी आत्मा हूँ – ऐसा अनुभव करते हो? साक्षीपन की स्थिति सदा हर कार्य सहज सफल करती है। साक्षीपन की स्थिति कितनी प्यारी लगती है! साक्षी बन कार्य करने वाली आत्मा सदा न्यारी और बाप की प्यारी है। तो इसी अभ्यास से कर्म करने वाली अलौकिक आत्मा हूँ, अलौकिक अनुभूति करने वाली, अलौकिक जीवन, श्रेष्ठ जीवन वाली आत्मा हूँ – यह नशा रहता है ना? कर्म करते यही अभ्यास बढ़ाते रहो। यही अभ्यास कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करा देगा। इसी अभ्यास को सदा आगे बढ़ाते, कर्म करते न्यारे और बाप के प्यारे रहना। इसको कहते हैं श्रेष्ठ आत्मा।

3. सदा श्रेष्ठ खजानों से भरपूर आत्मा हूँ – ऐसा अनुभव करते हो? जो अखुट खजानों से भरपूर होगा, उसको रूहानी नशा कितना होगा! सदा सर्व खजानों से भरपूर हूँ – इस रूहानी खुशी से आगे बढ़ते चलो। सर्व खजानों से आत्माओं को जगाए साथी बना देंगे तो भरपूर और शक्तिशाली आत्मा बन आगे बढ़ते रहेंगे।

4. सदा बुद्धि में यह स्मृति रहती है ना कि बाप करावनहार करा रहा है, हम निमित्त हैं। निमित्त बन करने वाले सदा हल्के रहते हैं क्योंकि जिम्मेवार करावनहार बाप है। जब ‘मैं करता हूँ’ – यह स्मृति रहती है तो भारी हो जाते और बाप करा रहा है – तो हल्के रहते। मैं निमित्त हूँ, कराने वाला करा रहा, चलाने वाला चला रहा है – इसको कहते बेफिकर बादशाह। तो करावनहार करा रहा है। इसी विधि से सदा आगे बढ़ते रहो।

5. बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ – यही अनुभूति होती है। जो अभी छत्रछाया में रहते, वही छत्रधारी बनते हैं। तो छत्रछाया में रहने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ – यह खुशी रहती है ना। छत्रछाया ही सेफ्टी का साधन है। इस छत्रछाया के अन्दर कोई आ नहीं सकता। बाप की छत्रछाया के अन्दर हूँ – यह चित्र सदा सामने रखो।

6. सदा अपना रूहानी फरिश्ता-स्वरूप स्मृति में रहता है? ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता – यह पहेली हल कर ली है ना! पहेलियाँ हल करना आता है! सेकण्ड में ब्राह्मण सो देवता, देवता सो चक्र लगाते ब्राह्मण, फिर देवता। तो ‘हम सो, सो हम’ की पहेली सदा बुद्धि में रहती है? जो पहेली हल करते उन्हें ही प्राइज़ मिलती है। तो प्राइज मिली है ना! जो अभी मिली है, वह भविष्य में भी नहीं मिलेगी! प्राइज में क्या मिला है? स्वयं बाप मिल गया, बाप के बन गये। भविष्य की राजाई के आगे यह प्राप्ति कितना ऊंची है! तो सदा प्राइज लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ – इसी नशे और खुशी से सदा आगे बढ़ते रहो। पहेली और प्राइज दोनों स्मृति में सदा रहें तो आगे स्वत: बढ़ते रहेंगे।

7. सदा ‘दृढ़ता सफलता की चाबी है’ – इस विधि से वृद्धि को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ, ऐसा अनुभव होता है ना। दृढ़ संकल्प की विशेषता कार्य में सहज सफल बनाए विशेष आत्मा बना देती है और कोई भी कार्य में जब विशेष आत्मा बनते हैं तो सबकी दुआयें स्वत: ही मिलती हैं। स्थूल में कोई दुआयें नहीं देता लेकिन यह सूक्ष्म है जिससे आत्मा में शक्ति भरती है और स्व-उन्नति में सहज सफलता प्राप्त होती है। तो सदा दृढ़ता की महानता से सफलता को प्राप्त करने वाली और सर्व की दुआयें लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ – इस स्मृति से आगे बढ़ते चलो।

वरदान:-

रूहानियत की सर्वशक्तियां स्वयं में धारण कर लो तो रूहानियत की खुशबू सहज ही अनेक आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित करेगी। जैसे मन्सा शक्ति से प्रकृति को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हो वैसे अन्य विश्व की आत्मायें जो आप लोगों के आगे नहीं आ सकेंगी उनको दूर रहते हुए भी आप रूहानियत की शक्ति से बाप का परिचय वा मुख्य सन्देश दे सकेंगे। यह सूक्ष्म मशीनरी जब तेज करो तब अनेक तड़फती हुई आत्माओं को अंचली मिलेगी और आप विश्व कल्याणकारी कहलायेंगे।

स्लोगन:-

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