9 March 2021 HINDI Murli Today – Brahma Kumaris

March 8, 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. This is the Official Murli blog to read and listen daily murlis.
पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - चुप रहना भी बहुत बड़ा गुण है, तुम चुप रहकर बाप को याद करते रहो तो बहुत कमाई जमा कर लेंगे''

प्रश्नः-

कौन से बोल कर्म संन्यास को सिद्ध करते हैं, वह बोल तुम नहीं बोल सकते?

उत्तर:-

ड्रामा में होगा तो कर लेंगे, बाबा कहते यह तो कर्म संन्यास हो गया। तुम्हें कर्म तो अवश्य करना है। बिना पुरूषार्थ के तो पानी भी नहीं मिल सकता, इसलिए ड्रामा कहकर छोड़ नहीं देना है। नई राजधानी में ऊंच पद पाना है तो खूब पुरूषार्थ करो।

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ओम् शान्ति। पहले-पहले बच्चों को सावधानी मिलती है – बाप को याद करो और वर्से को याद करो। मनमनाभव। यह अक्षर भी व्यास ने लिखा है। संस्कृत में तो बाप ने समझाया नहीं है। बाप तो हिन्दी में ही समझाते हैं। बच्चों को कहते हैं कि बाप को और वर्से को याद करो। यह सहज अक्षर है कि हे बच्चों मुझ बाप को याद करो। लौकिक बाप ऐसे नहीं कहेंगे कि हे बच्चों मुझ अपने बाप को याद करो। यह है नई बात। बाप कहते हैं हे बच्चों मुझ अपने निराकार बाप को याद करो। यह भी बच्चे समझते हैं रूहानी बाप हम रूहों से बात करते हैं। घड़ी-घड़ी बच्चों को कहना कि बाप को याद करो, यह शोभता नहीं है। जबकि बच्चे जानते हैं हमारा फर्ज है रूहानी बाप को याद करना, तब ही विकर्म विनाश होंगे। बच्चों को निरन्तर याद करने की कोशिश करनी पड़े। इस समय कोई निरन्तर याद कर न सके, टाइम लगता है। यह बाबा कहते हैं मैं भी निरन्तर याद नहीं कर सकता हूँ। वह अवस्था पिछाड़ी में ठहरेगी। तुम बच्चों को पहला पुरूषार्थ बाप को याद करने का ही करना है। शिवबाबा से वर्सा मिलता है। भारतवासियों की ही बात है। यह स्थापना होती है, दैवी राजधानी की और जो धर्म स्थापन करते, उसमें कोई डिफीकल्टी नहीं होती है, उनके पिछाड़ी आते ही रहते हैं। यहाँ देवी-देवता धर्म वाले जो हैं उनको ज्ञान से उठाना पड़ता है। मेहनत लगती है। गीता, भागवत शास्त्रों में यह नहीं है कि बाप संगम पर राजधानी स्थापन करते हैं। गीता में लिखा है कि पाण्डव पहाड़ों पर चले गये, प्रलय हुई आदि-आदि…। वास्तव में यह बात तो है नहीं। तुम अब पढ़ रहे हो भविष्य 21 जन्मों के लिए। और स्कूलों में यहाँ के लिए ही पढ़ाते हैं। साधू सन्त आदि जो भी हैं वह भविष्य के लिए ही पढ़ाते हैं क्योंकि वह समझते हैं हम शरीर छोड़ मुक्तिधाम में चले जायेंगे, ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। आत्मा परमात्मा में मिल जायेगी। तो वह भी हुआ भविष्य के लिए। परन्तु भविष्य के लिए पढ़ाने वाला एक ही रूहानी बाप है। दूसरा कोई नहीं। गाया हुआ भी है सर्व का सद्गति दाता एक ही है। वह तो सब अयथार्थ हो जाते हैं। यह बाप ही आकर समझाते हैं। वह भी साधना करते रहते हैं। ब्रह्म में लीन होने की साधना है अयथार्थ। लीन तो किसी को होना नहीं है। ब्रह्म महतत्व कोई भगवान नहीं है। यह सब हैं रांग। झूठखण्ड में हैं सब झूठ बोलने वाले। सचखण्ड में हैं सब सत्य बोलने वाले। तुम जानते हो सचखण्ड भारत में था, अब झूठखण्ड है। बाप भी भारत में ही आते हैं। शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु यह थोड़ेही जानते हैं कि शिव ने आकर भारत को सचखण्ड बनाया है। वह समझते हैं आता ही नहीं है। वह नाम रूप से न्यारा है। सिर्फ महिमा जो गाते हैं पतित-पावन, ज्ञान का सागर। सो ऐसे ही तोते मिसल कह देते हैं। बाप ही आकर समझाते हैं। कृष्ण जयन्ती मनाते हैं, गीता जयन्ती भी है। कहते हैं कृष्ण ने आकर गीता सुनाई। शिव जयन्ती के लिए किसको पता नहीं कि शिव क्या आकर करते हैं। आयेंगे भी कैसे? जबकि कहते हैं नाम रूप से न्यारा है। बाप कहते हैं मैं ही बैठ बच्चों को समझाता हूँ फिर यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। बाप खुद बतलाते हैं कि मैं आकर भारत को फिर से स्वर्ग बनाता हूँ। कोई तो पतित-पावन होगा ना। मुख्य भारत की ही बात है। भारत ही पतित है। पतित-पावन को भी भारत में ही पुकारते हैं। खुद कहते हैं – विश्व में शैतान का राज्य चल रहा है। बॉम्ब्स आदि बनाते रहते हैं। उनसे विनाश होना है। तैयारियाँ कर रहे हैं। जैसे वह रावण के प्रेरित किये हुए हैं। रावण का राज्य कब खलास होगा? भारतवासी कहेंगे जब कृष्ण आयेगा। तुम समझाते हो शिवबाबा आया हुआ है। वही सर्व का सद्गतिदाता है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। यह अक्षर दूसरा कोई कह न सके। बाप ही कहते हैं मुझे याद करो तो खाद निकलेगी। तुम सतोप्रधान थे, अब तुम्हारी आत्मा में खाद पड़ी है। वह याद से ही निकलेगी, इनको याद की यात्रा कहा जाता है। मैं ही पतित-पावन हूँ। मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, इनको योग अग्नि कहा जाता है। सोने को आग में डालकर उनसे किचड़ा निकालते हैं। फिर सोने में खाद डालने लिए भी आग में डालते हैं। बाप कहते हैं वह है काम चिता। यह है ज्ञान चिता। इस योग अग्नि से खाद निकलेगी और तुम कृष्ण पुरी में जाने के लायक बनेंगे। कृष्ण जयन्ती पर कृष्ण को बुलाते हैं। तुम जानते हो कृष्ण को भी बाप से वर्सा मिलता है। कृष्ण स्वर्ग का मालिक था। बाप ने कृष्ण को यह पद दिया। राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। राधे कृष्ण का जन्म दिन मनाते हैं। लक्ष्मी-नारायण का किसको पता नहीं। मनुष्य बिल्कुल मूँझे हुए हैं। अब तुम बच्चे समझते हो तो औरों को समझाना है। पहले-पहले पूछना है गीता में जो कहा है – मामेकम् याद करो, यह किसने कहा है? वह समझते हैं कृष्ण ने कहा है। तुम समझते हो भगवान निराकार है। उनसे ही ऊंच अर्थात् श्रेष्ठ मत मिलती है। ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा ही है। उनकी ही जरूर श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत हुई। उस एक की श्रीमत से ही सर्व की सद्गति होती है। गीता का भगवान ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी नहीं कह सकते। वह फिर शरीरधारी श्रीकृष्ण को कह देते। तो इससे सिद्ध है कहाँ भूल है जरूर। तुम समझते हो मनुष्यों की बड़ी भूल है। राजयोग तो बाप ने सिखाया है, वही पतित-पावन है। बड़ी भारी-भारी जो भूलें हैं उन पर जोर देना है। एक तो ईश्वर को सर्वव्यापी कहना, दूसरा फिर गीता का भगवान कृष्ण को कहना, कल्प लाखों वर्ष का कहना – यह बड़ी भारी भूले हैं। कल्प लाखों वर्षों का हो नहीं सकता है। परमात्मा सर्वव्यापी हो नही सकता। कहते हैं वह प्रेरणा से सब कुछ करते हैं, परन्तु नहीं। प्रेरणा से थोड़ेही पावन बना देंगे। यह तो बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं मामेकम् याद करो। प्रेरणा अक्षर रांग है। भल कहा जाता है शंकर की प्रेरणा से बॉम्ब्स आदि बनाते हैं। परन्तु यह ड्रामा में सारी नूँध है। इस यज्ञ से ही यह विनाश ज्वाला निकली है। प्रेरणा नहीं करते। यह तो विनाश अर्थ निमित्त बने हैं। ड्रामा में नूँध है। शिवबाबा का ही सारा पार्ट है। उनके बाद फिर पार्ट है ब्रह्मा विष्णु शंकर का। ब्रह्मा ब्राह्मण रचते हैं। वही फिर विष्णुपुरी के मालिक बनते हैं। फिर 84 जन्मों का चक्र लगाकर तुम आकर ब्रह्मा वंशी बने हो। लक्ष्मी-नारायण सो फिर आकर ब्रह्मा सरस्वती बनते हैं। यह भी समझाया है कि इन द्वारा एडाप्ट करते हैं इसलिए इसको बड़ी मम्मा कहते हैं। वह फिर निमित्त बनी हुई है। कलष माताओं को दिया जाता है। सबसे बड़ी सितार सरस्वती को दी है। सबसे तीखी है। बाकी सितार वा बाजा आदि कुछ है नहीं। सरस्वती की ज्ञान मुरली अच्छी थी। महिमा उनकी अच्छी थी। नाम तो बहुत डाल दिये हैं। देवियों की पूजा होती है। तुम अभी जानते हो हम ही यहाँ पूज्य बनते हैं फिर पुजारी बन अपनी ही पूजा करेंगे। अभी हम ब्राह्मण हैं फिर हम ही पूज्य देवी देवता बनेंगे, यथा राजा रानी तथा प्रजा। देवियों में जो ऊंच पद पाते हैं तो मन्दिर भी उन्हों के बहुत बनते हैं, नाम बाला भी उन्हों का होता है जो अच्छी रीति पढ़ते पढ़ाते हैं। तो अब तुम जानते हो पूज्य पुजारी हम ही बनते हैं। शिवबाबा तो सदैव पूज्य है। सूर्यवंशी देवी देवता जो थे वे ही पुजारी फिर भगत बनते हैं। आपेही पूज्य आपेही पुजारी की सीढ़ी बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। बिगर चित्र भी तुम किसको समझा सकते हो। जो सीखकर जाते हैं उनकी बुद्धि में सारी नॉलेज है। 84 जन्मों की सीढ़ी भारतवासी चढ़ते उतरते हैं। उन्हों के 84 जन्म हैं। पूज्य थे फिर हम पुजारी बनें। हम सो, सो हम का अर्थ भी तुमने बहुत अच्छी तरह समझा है। आत्मा सो परमात्मा हो न सके। बाप ने हम सो, सो हम का अर्थ समझाया है। हम सो देवता, सो क्षत्रिय…. बनें। हम सो का दूसरा कोई अर्थ है नहीं। पूज्य, पुजारी भी भारतवासी ही बनते हैं और धर्म में कोई पूज्य पुजारी नहीं बनते हैं। तुम ही सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनते हो। समझानी कितनी अच्छी मिली है। हम सो देवी देवता थे। हम आत्मा निर्वाणधाम में रहने वाली हैं। यह चक्र फिरता रहता है। जब दु:ख सामने आता है तो बाप को याद करते हैं। बाप कहते हैं मैं दु:ख के समय ही आकर सृष्टि को बदलता हूँ। ऐसे नहीं कि नई सृष्टि रचता हूँ। नहीं, पुरानी को नया बनाने मैं आता हूँ। बाप आते ही हैं संगम पर। अब नई दुनिया बन रही है। पुरानी खलास होनी है। यह है बेहद की बात।

तुम तैयार हो जायेंगे तो सारी राजधानी तैयार हो जायेगी। कल्प-कल्प जिन्होंने जो पद पाया है उस अनुसार पुरूषार्थ चलता रहता है। ऐसे नहीं ड्रामा में जो पुरूषार्थ किया होगा सो होगा। पुरुषार्थ करना होता है फिर कहा जाता है कल्प पहले भी ऐसे पुरूषार्थ किया था। हमेशा पुरूषार्थ को बड़ा रखा जाता है। प्रालब्ध पर बैठ नहीं जाना है। पुरूषार्थ बिगर प्रालब्ध मिल न सके। पुरूषार्थ करने बिगर पानी भी नहीं पी सकते। कर्म संन्यास अक्षर रांग है। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में भी रहो। बाबा सबको यहाँ तो नहीं बिठा देंगे। शरणागति गाई हुई है। भट्ठी बननी थी क्योंकि उन्हों को तंग किया गया। तो आकर बाप के पास शरण ली। शरण तो देनी पड़े ना। शरण एक परमपिता परमात्मा की ही ली जाती है। गुरू आदि की शरण नहीं ली जाती है। जब बहुत दु:ख होता है तो तंग होकर आकर शरण लेते हैं। गुरूओं के पास कोई तंग होकर नहीं जाते हैं। वहाँ तो ऐसे ही जाते हैं। तुम रावण से बहुत तंग हुए हो। अब राम आया है रावण से छुड़ाने। वह तुमको शरण में लेते हैं। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी शरण शिवबाबा की ली है। बाबा हम आपकी ही मत पर चलेंगे।

बाप श्रीमत देते हैं – गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे याद करो और सबकी याद छोड़ दो। मेरी याद से ही विकर्म विनाश होंगे। सिर्फ शरण लेने की बात नहीं है। सारा मदार याद पर है। बाप के सिवाए ऐसा कोई समझा न सके। बच्चे समझते हैं बाप के पास इतने लाखों कहाँ आकर रहेंगे। प्रजा भी अपने-अपने घर रहती है, राजा के पास थोड़ेही रहती है। तो तुमको सिर्फ कहा जाता है एक को याद करो। बाबा हम आपके हैं। आप ही सेकेण्ड में सद्गति का वर्सा देने वाले हो। राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाते हो। बाप कहते हैं जिन्होंने कल्प पहले बाप से वर्सा लिया है वही आकर लेंगे। पिछाड़ी तक सबको आकर बाप से वर्सा लेना है। अभी तुम पतित होने के कारण अपने को देवता कहला नहीं सकते। बाप सब बातें समझाते हैं। कहते हैं मेरे नूरे रत्न, जब तुम सतयुग में आते हो तो तुम वन-वन से राजाई करते हो। औरों की तो जब वृद्धि हो, लाखों की अन्दाज में हों तब राजाई चले। तुमको लड़ने करने की दरकार नहीं। तुम योगबल से बाप से वर्सा लेते हो। चुप रहकर सिर्फ बाप को और वर्से को याद करो। पिछाड़ी में तुम चुप रहेंगे फिर यह चित्र आदि काम नहीं आयेंगे। तुम होशियार हो जायेंगे। बाप कहते हैं – सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। अब करो, न करो तुम्हारी मर्जी। कोई देहधारी के नाम रूप में नहीं फँसना है। बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। तुम मेरे पास आ जायेंगे। फुल पास होने वाले को राजाई मिलेगी। सारा मदार याद की यात्रा पर है। आगे चल नये भी बहुत आगे निकलते जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) किसी देहधारी के नाम रूप में नहीं फंसना है। एक बाप की श्रीमत पर चलकर सद्गति को पाना है। चुप रहना है।

2) भविष्य 21 जन्मों के लिए अच्छी रीति पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना है। पढ़ने और पढ़ाने से ही नाम बाला होगा।

वरदान:-

आजकल के वातावरण में हर आत्मा किसी न किसी बात के बंधन वश है। कोई तन के दु:ख के वशीभूत है, कोई सम्बन्ध के, कोई इच्छाओं के, कोई अपने दुखदाई संस्कार-स्वभाव के, कोई प्रभू प्राप्ति न मिलने के कारण, पुकारने चिल्लाने के दु:ख के वशीभूत…ऐसी दुख-अशान्ति के वश आत्मायें अपने को लिबरेट करना चाहती हैं तो उन्हें दु:खमय जीवन से लिबरेट करने के लिए अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के स्वमान में स्थित रह, रहमदिल बन मास्टर लिबरेटर बनो।

स्लोगन:-

Daily Murlis in Hindi: Brahma Kumaris Murli Today in Hindi

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