28 July 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

July 27, 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - यह पुरुषोत्तम बनने का संगमयुग है, इसमें कोई भी पाप कर्म नहीं करना है''

प्रश्नः-

संगम पर तुम बच्चे सबसे बड़ा पुण्य कौन सा करते हो?

उत्तर:-

स्वयं को बाप के हवाले कर देना अर्थात् सम्पूर्ण स्वाहा हो जाना, यह है सबसे बड़ा पुण्य। अभी तुम ममत्व मिटाते हो। बाल बच्चे, घर-बार सबको भूलते हो, यही तुम्हारा व्रत है। आप मुये मर गई दुनिया। अभी तुम विकारी सम्बन्धों से मुक्त होते हो।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

जले न क्यों परवाना…

ओम् शान्ति। यह सब भक्ति मार्ग में बाप की महिमा करते हैं। यह है परवानों की शमा के लिए महिमा, जबकि बाप आये हैं तो क्यों न जीते जी उनके बन जायें। जीते जी कहा ही उनको जाता है जो एडाप्ट करते हैं। पहले तुम आसुरी परिवार के थे, अब तुम ईश्वरीय परिवार के बने हो। जीते जी ईश्वर ने आकर तुमको एडाप्ट किया है, जिसको फिर शरणागति कहा जाता है। गाते हैं ना – शरण पड़ी मैं तेरे…. अब प्रभू की शरण तब पड़ें, जबकि वह आये, अपनी ताकत दिखाये, जलवा दिखाये। वही सर्वशक्तिमान् है ना। बरोबर उनमें कशिश भी है ना। सब कुछ छुड़ा देते हैं। बरोबर जो बाप के बच्चे और बच्चियां बनते हैं वह आसुरी सम्प्रदाय के सम्बन्ध से तंग हो जाते हैं। कहते हैं – बाबा कब यह सम्बन्ध छूटेंगे। यहाँ यह पुराना सम्बन्ध भुलाना पड़ता है। आत्मा जब देह से अलग हो जाती है तो बंधन खलास हो जाते हैं। इस समय तुम जानते हो सबके लिए मौत है और यह जो बंधन हैं यह सब हैं विकारी। अब बच्चे निर्विकारी सम्बन्ध चाहते हैं। निर्विकारी सम्बन्ध में थे फिर विकारी सम्बन्ध में पड़े, फिर हमारा निर्विकारी सम्बन्ध होगा। यह बातें और किसकी बुद्धि में नहीं होती। बच्चे जानते हैं हम आसुरी बन्धन से मुक्त होने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। एक बाप से योग रखा जाता है। उस तरफ है एक रावण, इस तरफ है एक राम। यह बातें दुनिया नहीं जानती। कहते भी हैं राम-राज्य चाहिए, परन्तु सारी दुनिया रावण राज्य में है, यह कोई समझते नहीं हैं। रामराज्य में तो पवित्रता सुख-शान्ति थी। वह अब नहीं है। परन्तु जो कहते हैं उसको महसूस नहीं करते हैं। गाया भी जाता है यह आत्मायें सब सीतायें हैं। एक सीता की बात नहीं। न एक अर्जुन की, न एक द्रोपदी की बात है। यह तो अनेकों की बात है। दृष्टान्त एक का देते हैं। तुमको भी कहा जाता है तुम सब अर्जुन मिसल हो। तुम कहेंगे अर्जुन तो यह भागीरथ हो गया। बाप कहते हैं – मैं साधारण बूढ़े तन का यह रथ लेता हूँ। उन्होंने फिर चित्रों में घोड़ा-गाड़ी दिखाया है, इसको अज्ञान कहा जाता है। बच्चे समझते हैं यह शास्त्र आदि जो भी हैं सब भक्ति मार्ग के हैं। यह बातें कोई समझ न सकें, जब तक 7 रोज़ समझने का कोर्स न लें। भक्ति अलग है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य कहते हैं। वास्तव में संन्यासियों का वैराग्य कोई सच्चा नहीं है, वह तो जंगल में जाकर फिर आए शहरों में निवास कर बड़े-बड़े मकान आदि बनाते हैं। सिर्फ कहते हैं हमने घरबार छोड़ा है। तुम्हारा है सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य। यथार्थ बात यह है, वह है हद की बात इसलिए उनको हठयोग, हद का वैराग्य कहा जाता है।

तुम बच्चे जानते हो यह पुरानी दुनिया अब खत्म होनी है इसलिए जरूर इससे वैराग्य आना चाहिए। बुद्धि भी कहती है, नया घर बनता है तो पुराने को तोड़ा जाता है। तुम जानते हो अभी तैयारी हो रही है। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर आयेगा। अभी यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। पुरुषोत्तम मास भी होता है। तुम्हारा है पुरुषोत्तम युग। पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि करते हैं। तुम इस पुरुषोत्तम युग में सर्वस्व स्वाहा कर लेते हो। जानते हो – यह सारी दुनिया ही स्वाहा होनी है। तो सारी दुनिया का सर्वस्व स्वाहा होने के पहले हम अपने को क्यों न स्वाहा करें। इसका तुमको कितना न पुण्य मिलेगा। वह है हद का पुरुषोत्तम मास, यह तो बेहद की बात है। पुरुषोत्तम मास में बहुत कथायें सुनते हैं, व्रत नियम रखते हैं। तुम्हारा तो बड़ा भारी व्रत है। तुम्हारे भल बाल-बच्चे, घरबार आदि सब है परन्तु दिल से ममत्व मिट गया है। आप मुये मर गई दुनिया। तुम जानते हो यह सब खत्म हो जायेंगे। हम बाप के बने हैं – पुरुषोत्तम बनने के लिए। सर्व पुरुषों में अर्थात् मनुष्यों में उत्तम पुरुष यह लक्ष्मी-नारायण सामने खड़े हैं। इनसे उत्तम कोई भी मनुष्य हो नहीं सकता। लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। तुम आये हो ऐसे पुरुषोत्तम बनने। सभी मनुष्य मात्र सद्गति को पाते हैं। मनुष्यों की आत्मा पुरुषोत्तम बन जाती है तो फिर उनके रहने का स्थान भी ऐसा उत्तम होना चाहिए। जैसे प्रेजीडेंट सबसे ऊंच पद पर है तो उनको रहने के लिए राष्ट्रपति भवन मिला है। कितना बड़ा महल, बगीचा आदि है। यह हुई यहाँ की बात। रामराज्य को तो तुम जानते हो। तुम सतयुगी पुरुषोत्तम बनते हो फिर यह कलियुगी पुरुषोत्तम रहेंगे नहीं। तुम सतयुगी पुरुषोत्तम बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। तुम जानते हो हमारे महल कैसे बने हुए होंगे। कल रामराज्य होगा। तुम रामराज्य में पुरुषोत्तम होंगे। तुम चैलेन्ज करते हो कि हम रावण राज्य को बदल राम राज्य स्थापन करेंगे। अब चैलेन्ज किया है तो एक दो को पुरुषोत्तम बनाना है – भविष्य 21 जन्म के लिए। देवताओं की महिमा गाते हैं सर्व-गुण सम्पन्न…. अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म। तुम जानते हो और कोई मनुष्य नहीं जानते। तुम दूसरे जन्म में पुरुषोत्तम बनेंगे फिर इस रावण राज्य का कोई नहीं रहेगा। अभी तुमको सारा ज्ञान है। अब रावण राज्य ही खत्म होना है। आजकल तो समय का भी कोई भरोसा नहीं है, अकाले मृत्यु हो जाती है अथवा किसकी दुश्मनी हुई तो उड़ा देते हैं। तुमको तो कोई उड़ा न सके। तुम अविनाशी पुरुषोत्तम हो, यह है विनाशी, सो भी रावण राज्य में। इनको तुम्हारे दैवी-राज्य का पता ही नहीं है। तुम जानते हो – हम अपना दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। जिनकी पूजा होती है वह जरूर अच्छा कर्तव्य करके गये हैं। यह तुम जानते हो। देखो जगदम्बा की कितनी पूजा है। अब यह है ज्ञान-ज्ञानेश्वरी। तुम जगत अम्बा की बच्चियां हो ज्ञान-ज्ञानेश्वरी और राज-राजेश्वरी। दोनों में उत्तम कौन? ज्ञान-ज्ञानेश्वरी के पास जाकर अनेक प्रकार की मनोकामनायें सुनाते हैं। अनेक चीजें मांगते हैं। जगदम्बा के मन्दिर और लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुत फर्क है। जगदम्बा का मन्दिर बहुत छोटा है। छोटी जगह में भीड़ मनुष्य पसन्द करते हैं। श्रीनाथ के मन्दिर में भी बहुत भीड़ होती है, कपड़े का सोंटा लगाते रहते हैं – हटाने के लिए। कलकत्ते में काली का मन्दिर कितना छोटा है, अन्दर बहुत तेल और पानी रहता है। अन्दर बड़ी खबरदारी से जाना पड़ता है। बहुत भीड़ रहती है। लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर तो बहुत बड़ा होता है। जगदम्बा का छोटा क्यों? गरीब है ना। तो मन्दिर भी गरीबी का है। वह साहूकार है, तो मन्दिर में कब मेला नहीं लगता है। जगदम्बा के मन्दिर पर बहुत मेले लगते हैं। बाहर से बहुत लोग आते हैं। महालक्ष्मी का मन्दिर भी है, यह भी तुम जानते हो इसमें लक्ष्मी भी है तो नारायण भी है। उनसे सिर्फ धन मांगते हैं क्योंकि वह धनवान बनी है ना। यहाँ तो हैं अविनाशी ज्ञान रत्न। धन के लिए लक्ष्मी पास जाते हैं, बाकी अनेक आशायें रख जगदम्बा के पास जाते हैं। तुम जगत अम्बा के बच्चे हो। सबकी मनोकामनायें 21 जन्मों के लिए तुम पूरी करते हो। एक ही महामन्त्र से सब मनोकामनायें 21 जन्म के लिए पूरी हो रही है। दूसरे जो भी मन्त्र आदि देते हैं, उनमें अर्थ कुछ नहीं है। बाप समझाते हैं यह मन्त्र भी तुमको क्यों देता हूँ, क्योंकि तुम पतित हो ना। मामेकम् याद करेंगे तब ही पावन बनेंगे। यह सिवाए बाप के, आत्माओं को कोई कह न सके। इससे सिद्ध होता है, यह सहज राजयोग एक ही बाप सिखलाते हैं। मन्त्र भी वही देते हैं। पांच हजार वर्ष पहले भी मन्त्र दिया था। यह स्मृति आई है। अभी तुम सम्मुख बैठे हो। क्राइस्ट होकर गया फिर उनका बाइबल पढ़ते रहते हैं। वह क्या करके गये? धर्म की स्थापना करके गये। तुम जानते हो शिवबाबा क्या करके गये। कृष्ण क्या करके गये! कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स था, जो ही फिर नारायण बना फिर पुनर्जन्म लेते आये हैं। शिवबाबा भी कुछ करके गये हैं तब तो उनकी इतनी पूजा आदि होती है। अभी तुम जानते हो राजयोग सिखाकर गये हैं, भारत को स्वर्ग बनाकर गये हैं, जिस स्वर्ग का पहला नम्बर मालिक खुद नहीं बनें, वह तो श्रीकृष्ण बना। जरूर कृष्ण की आत्मा को पढ़ाया, तुम समझ गये हो। कृष्ण की वंशावली तुम बैठे हो। राजा-रानी को मात-पिता अन्न-दाता कहते हैं। राजस्थान में भी राजा को अन्न-दाता कहा जाता है। राजाओं की कितनी मान्यता होती है। आगे सब शिकायतें राजा के पास आती थी, दरबार लगती थी। कोई भूल करते थे तो बहुत पछताते थे। आजकल तो जेल बर्डस बहुत हैं। घड़ी-घड़ी जेल में जाते हैं। अभी तुम बच्चों को गर्भजेल में नहीं जाना है। तुमको तो गर्भ महल में आना है, इसलिए बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे फिर कब गर्भजेल में नहीं जायेंगे। वहाँ पाप होता नहीं है। सब गर्भ महल में रहते हैं, सिर्फ कम पुरुषार्थ के कारण कम पद पाते हैं। ऊंच पद वालों को सुख भी बहुत रहता है। यहाँ तो सिर्फ 5 वर्ष के लिए गवर्नर, प्रेजीडेन्ट मुकरर करते हैं। तुम समझा सकते हो कि भारत ही दैवी राजस्थान बना। अभी तो न राजस्थान है और न राजा रानी हैं। आगे कोई गवर्मेन्ट को पैसा देते थे तो महाराजा महारानी का टाइटिल मिल जाता था। यहाँ तुम्हारी तो है पढ़ाई। राजा रानी कब पढ़ाई से नहीं बनते हैं। तुम्हारी एम आबजेक्ट है, इस पढ़ाई से तुम विश्व का महाराजा महारानी बनते हो। राजा रानी भी नहीं। राजा रानी का टाइटिल त्रेता से शुरू होता है।

तुम अभी ज्ञान-ज्ञानेश्वरी बनते हो फिर राज-राजेश्वरी बनेंगे। कौन बनायेंगे? ईश्वर। कैसे? राजयोग और ज्ञान से। राजाई के लिए बाप को याद करना है। बाप तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, यह तो बहुत सहज है ना। हेविन स्थापन करने वाला है ही गॉड फादर। हेविन में तो हेविन की स्थापना नहीं करेंगे। जरूर उन्हों को संगम पर पद मिलता है, इसलिए इसको सुहावना कल्याणकारी संगमयुग कहा जाता है। बाप कितना बच्चों का कल्याण करते हैं, जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा नई दुनिया रचते हैं, परन्तु उसमें कौन राज्य करते हैं, यह किसको पता नहीं। तुम समझते हो रामराज्य किसको कहा जाता है। उन्होंने तो रामराज्य को लाखों वर्ष दे दिये हैं। कलियुग को 40 हजार वर्ष दे दिये हैं। बाप कहते हैं – मैं आता ही हूँ संगम पर। आकर ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना करता हूँ। सत्य नारायण की कथा भी यह है। सतयुग में तुम लक्ष्मी-नारायण सर्वगुण सम्पन्न… बनते हो। फिर कला कम होती जाती है। नया झाड़ तब कहा जाता है जबकि स्थापना होती है। नया मकान बनता है तो नया कहेंगे। तुम भी सतयुग में आयेंगे तो नई राजधानी होगी फिर कला कम होती जाती है। स्थापना यहाँ होती है। यह वन्डरफुल बातें कोई की भी बुद्धि में नहीं हैं। तो बाप ने समझाया है कि सभी आत्माओं के लिए यह युग है पुरुषोत्तम बनने का। जीवनमुक्ति को पुरुषोत्तम कहा जाता है। जीवनबन्ध को पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे। इस समय सब जीवनबन्ध में हैं। बाप आकर सबको जीवन-मुक्त बनाते हैं। तुम आधाकल्प जीवनमुक्त होंगे फिर जीवनबन्ध। यह तुम समझते हो। तुम्हारा व्रत नियम क्या है? बाबा ने आकर व्रत रखवाया है, खान-पान की बात नहीं है। सब कुछ करो सिर्फ एक तो बाप को याद करो और पवित्र बनो। पुरुषोत्तम मास में बहुत करके पवित्र भी रहते होंगे। वास्तव में इस पुरुषोत्तम युग का मान है तो तुमको कितनी खुशी, कितना नशा होना चाहिए। अब तुमसे कोई पाप कर्म नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) इस पुरुषोत्तम युग में जीवनमुक्त बनने के लिए पुण्य कर्म करने हैं। पवित्र जरूर रहना है। घरबार आदि सब होते दिल से ममत्व मिटा देना है।

2) श्रीमत पर अपने तन-मन-धन से दैवी राज्य स्थापन करना है। पुरुषोत्तम बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:-

हम सबसे श्रेष्ठ आलमाइटी बाप की अथॉरिटी से सब कार्य करने वाले हैं, यह इतना अटल निश्चय हो जो कोई टाल ना सके, इससे कितना भी कोई बड़ा कार्य करते अति सहज अनुभव करेंगे। जैसे आजकल साइंस ने ऐसी मशीनरी तैयार की है जो कोई भी प्रश्न का उत्तर सहज ही मिल जाता है, दिमाग चलाने से छूट जाते हैं। ऐसे आलमाइटी अथॉरिटी को सामने रखेंगे तो सब प्रश्नों का उत्तर सहज मिल जायेगा और सहज मार्ग की अनुभूति होगी।

स्लोगन:-

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