9 February 2021 HINDI Murli Today – Brahma Kumaris
8 February 2021
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. This is the Official Murli blog to read and listen daily murlis.
➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - तुम अभी अमरलोक स्थापन करने के निमित्त हो, जहाँ कोई भी दु:ख वा पाप नहीं होगा, वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड''
प्रश्नः-
गॉडली फैमिली का वन्डरफुल प्लैन कौन सा है?
उत्तर:-
गॉडली फैमिली का प्लैन है – “फैमिली प्लैनिंग करना”। एक सत धर्म स्थापन कर अनेक धर्मों का विनाश करना। मनुष्य बर्थ कन्ट्रोल करने के प्लैन्स बनाते, बाप कहते उनके प्लैन्स चल न सकें। मैं ही नई दुनिया की स्थापना करता हूँ तो बाकी सब आत्मायें ऊपर घर में चली जाती हैं। बहुत थोड़ी आत्मायें ही रहती हैं।
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। यह घर भी है, युनिवर्सिटी भी है और इन्स्टीट्युशन भी है। तुम बच्चों की आत्मा जानती है कि वह है शिवबाबा। आत्मायें हैं सालिग्राम। जिनका यह शरीर है, शरीर नहीं कहेगा हमारी आत्मा। आत्मा कहती है हमारा शरीर। आत्मा है अविनाशी, शरीर है विनाशी। अभी तुम अपने को आत्मा समझते हो। हमारा बाबा शिव है, वह है सुप्रीम फादर। आत्मा जानती है वह हमारा सुप्रीम बाबा भी है। सुप्रीम टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है। भक्तिमार्ग में भी बुलाते हैं – ओ गॉड फादर। मरने समय भी कहते हैं – हे भगवान, हे ईश्वर। पुकारते हैं ना। परन्तु किसकी बुद्धि में यथार्थ रीति बैठता नहीं है। फादर तो सब आत्माओं का एक हो गया, फिर कहा जाता है – हे पतित-पावन। तो गुरू भी हो गया। कहते हैं दु:ख से हमको लिबरेट कर शान्तिधाम में ले जाओ। तो बाप भी हुआ फिर पतित-पावन सतगुरू भी हुआ, फिर सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, मनुष्य 84 जन्म कैसे लेते हैं, वह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं इसलिए सुप्रीम टीचर भी हुआ। अज्ञानकाल में बाप अलग, टीचर अलग, गुरू अलग होते हैं। यह बेहद का बाप, टीचर, गुरू एक ही है। कितना फ़र्क हो गया। बेहद का बाप बेहद का वर्सा देते हैं बच्चों को। वह भी हद का वर्सा देते हैं। पढ़ाई भी हद की है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तो कोई जानते नहीं। यह किसको पता नहीं है – लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे पाया? कितना समय वह राज्य चला? फिर त्रेता के राम-सीता ने कितना समय राज्य किया? कुछ नहीं जानते। अभी तुम बच्चे समझते हो बेहद का बाप आये हैं हमको पढ़ाने। फिर बाबा सद्गति का रास्ता बताते हैं। तुम 84 जन्म लेते-लेते पतित बनते हो। अब पावन बनना है। यह है तमोप्रधान दुनिया। सतो, रजो, तमो में हर चीज़ आती है। यह जो सृष्टि है, उनकी भी आयु है नई सो पुरानी, पुरानी सो फिर नई होती है। यह तो सब जानते हैं। सतयुग में भारत ही था, उनमें देवी-देवताओं का राज्य था। गॉड गॉडेज का राज्य था। अच्छा फिर क्या हुआ? उन्होंने पुनर्जन्म लिया। सतोप्रधान से सतो, सतो से रजो तमो में आये। इतने-इतने जन्म लिए। भारत में 5 हज़ार वर्ष पहले जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो वहाँ मनुष्यों की आयु एवरेज 125-150 वर्ष होती है। उसको अमरलोक कहा जाता है। अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। यह है मृत्युलोक। अमरलोक में मनुष्य अमर रहते हैं, आयु बड़ी रहती है। सतयुग में पवित्र गृहस्थ आश्रम था। वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। अभी है विशश वर्ल्ड। अभी तुम बच्चे जानते हो हम शिवबाबा की सन्तान हैं। वर्सा शिवबाबा से मिलता है। यह दादा, वह डाडा (ग्रैन्ड-फादर) वर्सा डाडे का मिलता है। डाडे की प्रापर्टी पर सबका हक रहता है। ब्रह्मा को कहा जाता है प्रजापिता। एडम और ईव, आदम बीबी। वह है निराकार गॉड फादर। यह (प्रजापिता) हो गया साकारी फादर। इनको अपना शरीर है। शिवबाबा को अपना शरीर नहीं है। तो तुमको वर्सा मिलता है शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा। डाडे की मिलकियत मिलेगी तो बाप द्वारा ना। शिवबाबा से भी ब्रह्मा द्वारा तुम फिर मनुष्य से देवता बन रहे हो। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार….. किसने बनाया? भगवान ने। महिमा करते हैं ना ग्रंथ में। महिमा बहुत है। जैसे बाबा कहते हैं अल्फ को याद करो तो बे बादशाही तुम्हारी। गुरूनानक भी कहते जप साहेब को तो सुख मिले। उस निराकार अकालमूर्त बाप की ही महिमा गाते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सुख मिले। अभी बाप को ही याद करते हैं। लड़ाई पूरी होगी फिर लक्ष्मी-नारायण के राज्य में एक ही धर्म होगा। यह समझने की बातें हैं। भगवानुवाच – पतित-पावन ज्ञान का सागर भगवान को कहा जाता है। वही दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। जब हम बाप के बच्चे हैं तो जरूर हम सुख में होने चाहिए। बरोबर भारतवासी सतयुग में थे। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में थी। अभी तो सब आत्मायें यहाँ आ रही हैं। फिर हम जाकर देवी-देवता बनेंगे। स्वर्ग में पार्ट बजाते हैं। यह पुरानी दुनिया है दु:खधाम, नई दुनिया है सुखधाम। पुराना घर होता है तो फिर उनमें चूहे सर्प आदि निकलते हैं। यह दुनिया भी ऐसी है। इस कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष है। अभी है अन्त। गांधी जी भी चाहते थे नई दुनिया नई देहली हो, रामराज्य हो। परन्तु यह तो बाप का ही काम है। देवताओं के राज्य को ही रामराज्य कहते हैं। नई दुनिया में तो जरूर लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा। पहले तो राधे-कृष्ण दोनों अलग-अलग राजधानी के हैं फिर उन्हों की सगाई हुई तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। जरूर इस समय ऐसे कर्म करते होंगे। बाप तुमको कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बैठ समझाते हैं। रावण राज्य में मनुष्य जो कर्म करेंगे वह कर्म विकर्म बन जाते हैं। सतयुग में कर्म अकर्म होते हैं। गीता में भी है परन्तु नाम बदल लिया है। यह है भूल। कृष्ण जयन्ती तो होती है सतयुग में। शिव है निराकार परमपिता। कृष्ण तो साकार मनुष्य है। पहले शिवजयन्ती होती है फिर कृष्ण जयन्ती भारत में ही मनाते हैं। शिवरात्रि कहते हैं। बाप आकर भारत को स्वर्ग का राज्य देते हैं। शिवजयन्ती के बाद है कृष्ण जयन्ती। उनके बीच में होती है राखी क्योंकि पवित्रता चाहिए। पुरानी दुनिया का विनाश भी चाहिए। फिर लड़ाई लगती है तो सब खत्म हो जाते हैं फिर तुम आकर नई दुनिया में राज्य करेंगे। तुम इस पुरानी दुनिया, मृत्युलोक के लिए नहीं पढ़ते हो। तुम्हारी पढ़ाई है नई दुनिया अमरलोक के लिए। ऐसा तो कोई कॉलेज नहीं होगा। अब बाप कहते हैं इस मृत्युलोक का अन्त है इसलिए जल्दी पढ़कर होशियार होना है। वह बाप भी है, पतित-पावन भी है, पढ़ाते भी हैं। तो यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। भगवानुवाच है ना। कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है। वह भी शिवबाबा से वर्सा लेते हैं। इस समय सब भविष्य के लिए वर्सा ले रहे हैं फिर जितना पढ़ेंगे उतना वर्सा मिलेगा। नहीं पढ़ेंगे तो पद कम हो जायेगा। कहाँ भी रहो, पढ़ते रहो। मुरली तो विलायत में भी जा सकती है। बाबा रोज़ सावधानी भी देते रहते हैं। बच्चे बाप को याद करो इससे तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। आत्मा में जो खाद पड़ी है वह निकल जायेगी। आत्मा 100 परसेन्ट प्योर बननी है। अभी तो इमप्योर है। भक्ति तो मनुष्य बहुत करते हैं, तीर्थों पर, मेलों पर लाखों मनुष्य जाते हैं। यह तो जन्म-जन्मान्तर से चला आता है। कितने मन्दिर आदि बनाते, मेहनत करते हैं। फिर भी सीढ़ी उतरते आते हैं। अभी तुम जानते हो – हम चढ़ती कला से सुखधाम में जायेंगे, फिर हमको उतरना है। फिर कला कमती होती जाती है। नये मकान का 10 वर्ष के बाद भभका जरूर कम हो जायेगा। तुम नई दुनिया सतयुग में थे। 1250 वर्ष के बाद रामराज्य शुरू हो गया, अभी तो बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं। मनुष्य कितने हो गये हैं। दुनिया पुरानी हो गई है। वे लोग तो फैमिली प्लैनिंग के प्लैन बनाते रहते हैं। कितना मूँझते रहते हैं। हम लिखते हैं यह तो गॉड फादर का ही काम है। सतयुग में 9-10 लाख मनुष्य जाकर रहेंगे। बाकी सब अपने घर स्वीटहोम में चले जायेंगे। यह गॉडली फैमिली प्लैनिंग है। एक धर्म की स्थापना, बाकी सब धर्मों का विनाश। यह तो बाप अपना काम कर रहे हैं। वह कहते हैं विकार में भल जाओ परन्तु बच्चा न हो। ऐसे करते-करते होगा कुछ भी नहीं। यह प्लैनिंग तो बेहद बाप के हाथ में हैं। बाप कहते हैं मैं ही दु:खधाम से सुखधाम बनाने आया हूँ। हर 5 हज़ार वर्ष बाद मैं आता हूँ। कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि में। अभी यह है संगम जबकि पतित दुनिया से पावन दुनिया बनती है। पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना यह तो बाप का ही काम है। सतयुग में था ही एक धर्म। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक, महाराजा-महारानी थे। यह भी तुम जानते हो, यह माला किसकी बनी हुई है। ऊपर में है फूल शिवबाबा फिर है युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती। उन्हों की यह माला है जो विश्व को नर्क से स्वर्ग, पतित से पावन बनाते हैं। जो सर्विस करके जाते हैं, उन्हों की ही याद रहती है। तो बाप समझाते हैं – यह सतयुग में पवित्र थे ना। प्रवृत्ति मार्ग पवित्र था। अभी तो पतित हैं। गाते भी हैं पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ। सतयुग में थोड़ेही ऐसे पुकारेंगे। सुख में कोई भी बाप का सिमरण नहीं करते हैं। दु:ख में सब सिमरण करते हैं। बाप है ही लिबरेटर, रहम-दिल, ब्लिसफुल, आकर सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं। बुलाते भी उनको हैं, आकर स्वीट होम में ले चलो। अभी सुख है नहीं। यह है प्रजा का प्रजा पर राज्य। सतयुग में तो राजा, रानी, प्रजा होते हैं। बाप बताते हैं – तुम कैसे विश्व के मालिक बनते हो। वहाँ तुम्हारे पास अथाह, अनगिनत धन रहता है। सोने की ईटों के मकान बनते हैं। मशीन से सोने की ईटें निकलती रहती हैं। फिर उसमें भी हीरे-जवाहरों की जड़ित करते हैं। द्वापर में भी कितने हीरे थे, जो लूटकर ले गये। अभी तो कुछ सोना दिखाई ही नहीं पड़ता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद आता हूँ। पुरानी दुनिया के विनाश के लिए यह एटॉमिक बॉम्ब्स आदि बने हैं। यह है साइन्स। बुद्वि से ऐसी-ऐसी चीजें निकाली हैं, जिससे अपने ही कुल का विनाश करेंगे। यह कोई रखने के लिए थोड़ेही बनाते हैं। यह रिहर्सल होती रहेगी। जब तक राजधानी स्थापन नहीं हुई है तब तक लड़ाई नहीं लग सकती। तैयारियां तो हो रही हैं, उसके साथ नेचुरल कैलेमिटीज भी होगी। इतने आदमी होंगे नहीं।
अब बच्चों को इस पुरानी दुनिया को भूल जाना है। बाकी स्वीट होम स्वर्ग की बादशाही को याद करना है। जैसे नया घर बनाते हैं तो फिर बुद्धि में नया घर ही याद रहता है ना। अब भी नई दुनिया की स्थापना हो रही है। बाप है सर्व का सद्गति दाता। आत्मायें सब चली जायेंगी। बाकी शरीर यहाँ खत्म हो जायेंगे। आत्मा पवित्र बनेगी, बाप की याद से। पवित्र जरूर बनना है। देवतायें पवित्र हैं ना। उन्हों के आगे कब बीड़ी तम्बाकू आदि नहीं रखी जाती है, वह वैष्णव हैं। विष्णुपुरी कहा जाता है। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। यह है विशश वर्ल्ड। अब वाइसलेस वर्ल्ड में जाना है। समय बाकी थोड़ा है। यह तो खुद भी समझते हैं – एटामिक बॉम्ब्स से सब खत्म हो जायेंगे। लड़ाई तो लगनी ही है। बोलते हैं हमको कोई प्रेरणा करने वाला है, जो हम बना रहे हैं। जानते भी हैं अपने कुल का विनाश हो रहा है। परन्तु बनाने बिगर रह नहीं सकते। शंकर द्वारा विनाश, यह भी ड्रामा में नूँध है। विनाश सामने खड़ा है। ज्ञान यज्ञ से यह विनाश ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई है। अभी तुम स्वर्ग का मालिक बनने लिए पढ़ रहे हो। यह पुरानी दुनिया खत्म हो नई बन जायेगी। यह चक्र फिरता रहता है। हिस्ट्री मस्ट रिपीट। पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म था फिर चन्द्रवंशी क्षत्रिय धर्म फिर उसके बाद इस्लामी बौद्धी आदि आये फिर जरूर पहले नम्बर वाला आयेगा और सब विनाश हो जायेंगे। तुम बच्चों को कौन पढ़ा रहे हैं? वह निराकार शिवबाबा। वही शिक्षक है, सतगुरू है। आने से ही पढ़ाई शुरू करते हैं, इसलिए लिखा हुआ है शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती। गीता जयन्ती सो श्रीकृष्ण जयन्ती। शिवबाबा सतयुग की स्थापना करते हैं। कृष्णपुरी सतयुग को कहा जाता है। अभी तुमको पढ़ाने वाला कोई साधू, सन्त, मनुष्य नहीं है। यह तो दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, बेहद का बाप है। 21 जन्मों के लिए तुमको वर्सा देते हैं। विनाश तो होना ही है, इस समय के लिए ही कहा जाता है – किनकी दबी रही धूल में, किनकी राजा खाए….. चोराकारी भी बहुत होगी। आग भी लगनी है। इस यज्ञ में सब स्वाहा हो जायेंगे। अभी थोड़ी-थोड़ी आग लगेगी फिर बन्द हो जायेगी। थोड़ी अजुन देरी है। सब आपस में लड़ेंगे। छुड़ाने वाला कोई रहेगा नहीं। रक्त की नदियों के बाद फिर दूध की नदियां बहेंगी। इसको कहा जाता है खूने नाहेक खेल। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है फिर इन आंखों से भी देखेंगे। विनाश के पहले बाप को याद करना है तो तमोप्रधान से आत्मा सतोप्रधान बन जाए। बाप नई दुनिया स्थापन करने के लिए तुमको तैयार कर रहे हैं। राजधानी पूरी स्थापन हो जायेगी फिर विनाश होगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) विष्णुपुरी में चलने के लिए स्वयं को लायक बनाना है। सम्पूर्ण पावन बनना है, अशुद्ध खान-पान त्याग कर देना है। विनाश के पहले अपना सब कुछ सफल करना है।
2) जल्दी-जल्दी पढ़कर होशियार होना है। कोई भी विकर्म न हो इसका ध्यान रखना है।
वरदान:-
सेवा में सफलता का मुख्य साधन है त्याग और तपस्या। त्याग अर्थात् मन्सा संकल्प से भी त्याग, किसी परिस्थिति के कारण, मर्यादा के कारण, मजबूरी से त्याग करना यह त्याग नहीं है लेकिन ज्ञान स्वरूप से, संकल्प से भी त्यागी बनो और तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लगन में लवलीन, ज्ञान, प्रेम, आनंद, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए। ऐसे त्यागी, तपस्वी ही सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी हैं।
स्लोगन:-
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Om Shanti. Thanks for murli..