5 March 2021 HINDI Murli Today – Brahma Kumaris

4 March 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. This is the Official Murli blog to read and listen daily murlis.
पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - जैसे बाप-दादा दोनों निरहंकारी हैं, देही-अभिमानी हैं, ऐसे फॉलो फादर करो, तो सदा उन्नति होती रहेगी''

प्रश्नः-

ऊंच पद की प्राप्ति के लिए कौन सी खबरदारी रखना जरूरी है?

उत्तर:-

ऊंच पद पाना है तो खबरदारी रखो कि मन्सा से भी किसी को मेरे द्वारा दु:ख न हो, 2- किसी भी परिस्थिति में क्रोध न आये, 3- बाप का बनकर बाप के कार्य में, इस रूद्र यज्ञ में विघ्न रूप न बनें। अगर कोई मुख से बाबा-बाबा कहे और चलन रॉयल न हो तो ऊंच पद नहीं मिल सकता।

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ओम् शान्ति। बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं कि बाप से वर्सा पाना है जरूर। कैसे? श्रीमत पर। बाप ने समझाया है एक ही गीता शास्त्र है जिसमें श्रीमत भगवानुवाच है। भगवान तो सबका बाप है। श्रीमत भगवानुवाच। तो जरूर भगवान ने आकर श्रेष्ठ बनाया होगा, तब तो उसकी महिमा है। श्रीमत भगवत गीता अर्थात् श्रीमत भगवानुवाच। भगवान तो जरूर ऊंच ते ऊंच ठहरा। श्रीमत भी उस ही एक शास्त्र में गाई हुई है और कोई शास्त्र में श्रीमत भगवानुवाच नहीं है। श्रीमत किसकी होनी चाहिए, वह लिखने वाले भी समझ न सकें। उसमें भूल क्यों हुई है? वह भी बाप आकर समझाते हैं। रावण राज्य शुरू होने से ही रावण मत पर चल पड़ते हैं। पहले कड़े ते कड़ी भूल इन रावण मत वालों ने की है। रावण की चमाट लगती है। जैसे कहा जाता है शंकर प्रेरक है, बॉम्बस आदि बनवाये हैं। वैसे 5 विकारों रूपी रावण प्रेरक है मनुष्य को पतित बनाने का, तब तो पुकारते हैं पतित-पावन आओ। तो पतित-पावन एक ही ठहरा ना। इससे सिद्ध है कि पतित बनाने वाला और है, पावन बनाने वाला और है। दोनों एक हो नहीं सकते। यह बातें तुम ही समझते हो – नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। ऐसे मत समझना कि सभी को निश्चय है। नम्बरवार हैं। जितना निश्चय है उतनी खुशी बढ़ती है। बाप की मत पर चलना होता है। श्रीमत पर हमको यह स्वराज्य पद पाना है। मनुष्य से देवता बनने में देरी नहीं लगती है। तुम पुरूषार्थ करते हो। मम्मा बाबा को फॉलो करते हो। जैसे वह आप समान बनाने की सर्विस कर रहे हैं, तुम भी समझते हो हम क्या सर्विस कर रहे हैं और मम्मा बाबा क्या सर्विस कर रहे हैं। बाबा ने समझाया था कि शिवबाबा और ब्रह्मा दादा दोनों इकट्ठे हैं। तो समझना चाहिए कि सबसे नजदीक हैं। इनका ही सम्पूर्ण रूप सूक्ष्मवतन में देखते हैं तो जरूर यह तीखा होगा। परन्तु जैसे बाप निरहंकारी है, देही-अभिमानी है वैसे यह दादा भी निरहंकारी है। कहते हैं कि शिवबाबा ही समझाते रहते हैं। जब मुरली चलती है तो बाबा खुद कहते हैं कि समझो कि शिवबाबा इन द्वारा सुना रहे हैं। यह ब्रह्मा भी जरूर सुनता होगा। यह न सुने और न सुनाये तो ऊंच पद कैसे पाये। परन्तु अपना देह-अभिमान छोड़ कहते हैं कि ऐसे समझो कि शिवबाबा ही सुनाते हैं। हम पुरूषार्थ करते रहते हैं। शिवबाबा ही समझाते हैं। इसने तो पतित-पना पास किया हुआ है। मम्मा तो कुमारी थी। तो मम्मा ऊंच चली गई। तुम भी कुमारियाँ मम्मा को फॉलो करो। गृहस्थियों को बाबा को फॉलो करना चाहिए। हर एक को समझना है कि मैं पतित हूँ, मुझे पावन बनना है। मुख्य बात बाप ने याद के यात्रा की सिखलाई है। इसमें देह-अभिमान नहीं रहना चाहिए। अच्छा कोई मुरली नहीं सुना सकते तो याद की यात्रा पर रहो। यात्रा पर रहते मुरली चला सकते हैं। परन्तु यात्रा भूल जाते हैं तो भी हर्जा नहीं। मुरली चलाकर फिर यात्रा पर लग जाओ क्योंकि वह वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था है। मूल बात है देही-अभिमानी हो बाप को याद करते रहें और चक्र को याद करते रहें। किसी को दु:ख न दें। यही समझाते रहें बाप को याद करो। यह है यात्रा। मनुष्य जब मरते हैं तो कहते हैं – स्वर्ग पधारा। अज्ञान काल में कोई स्वर्ग को याद नहीं करते हैं। स्वर्ग को याद करना माना यहाँ से मरना। ऐसे तो कोई याद नहीं करते। अभी तुम बच्चे जानते हो हमको वापिस जाना है। बाप कहते हैं – जितना तुम याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा, वर्सा याद रहेगा। जितना बाप को याद करेंगे उतना हर्षित भी रहेंगे। बाप को याद न करने से मूँझते हैं। घुटका खाते रहते हैं। तुम इतना समय याद कर नहीं सकते। बाबा ने आशिक माशूक का मिसाल बताया है। वह भल धंधा करते हैं और वह भल चर्खा चलाती रहती तो भी उसके सामने माशूक आकर खड़ा हो जाता। आशिक माशूक को याद करते, माशूक फिर आशिक को याद करते। यहाँ तो सिर्फ तुमको एक बाप को याद करना है। बाप को तो तुमको याद नहीं करना है। बाप सबका माशूक है। तुम बच्चे लिखते हो कि बाबा आप हमको याद करते हो? अरे जो सबका माशूक है वह फिर तुम आशिकों को याद कैसे कर सकेंगे? हो नहीं सकता। वह है ही माशूक। आशिक बन नही सकता। तुमको ही याद करना है। तुम हर एक को आशिक बनना है, उस एक माशूक का। अगर वह आशिक बने तो कितने को याद करे। यह तो हो नहीं सकता। कहता है कि मेरे ऊपर पापों का बोझ थोड़ेही है जो किसको याद करूं। तुम्हारे ऊपर बोझा है। बाप को याद नहीं करेंगे तो पापों का बोझा नहीं उतरेगा। बाकी मुझे क्यों किसको याद करना पड़े। याद करना है तुम आत्माओं को। जितना याद करेंगे उतना पुण्य आत्मा बनेंगे, पाप कटते जायेंगे। बड़ी मंजिल है। देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। यह नॉलेज सारी तुमको मिल रही है। तुम त्रिकालदर्शी बने हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सारा चक्र तुम्हारी बुद्धि में रहना चाहिए। बाप समझाते हैं तुम लाईट हाउस हो ना। हर एक को रास्ता बताने वाले हो, शान्तिधाम और सुखधाम का। यह सब नई बातें तुम सुनते हो। जानते हो कि बरोबर हम आत्मायें शान्तिधाम के रहवासी हैं। यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। हम एक्टर हैं। यही चिंतन बुद्धि में चलता रहे तो मस्ती चढ़ जाये। बाप ने समझाया है आदि से लेकर अन्त तक तुम्हारा पार्ट है। अभी कर्मातीत अवस्था में जरूर जाना है फिर गोल्डन एज़ में आना है। इस धुन में रहते अपना कल्याण करना है। सिर्फ पण्डित नहीं बनना है। दूसरे को सिखाते रहेंगे, खुद उस अवस्था में नहीं रहेंगे तो असर पड़ेगा नहीं। अपना भी पुरूषार्थ करना है। बाप भी बताते हैं कि हम भी याद करने की कोशिश करता हूँ। कभी माया का तूफान ऐसा आता है जो बुद्धि का योग तोड़ देते हैं। बहुत बच्चे चार्ट भेज देते हैं। वन्डर खाता हूँ कि यह तो हमसे भी तीखे जाते हैं। शायद वेग आता है तो चार्ट लिखने में लग जाते हैं परन्तु ऐसी अगर तीखी दौड़ी पहनें तो नम्बरवन में चले जायें। परन्तु नहीं वह सिर्फ चार्ट लिखने तक है। ऐसे नहीं लिखते कि बाबा इतनों को आप समान बनाया। और वह भी लिखे बाबा हमको इसने यह रास्ता बताया है। ऐसा समाचार नहीं आता है। तो बाबा क्या समझेंगे? सिर्फ चार्ट भेजने से काम नहीं चलता। आप समान भी बनाना है। रूप और बसन्त दोनों बनना है। नहीं तो बाप समान नहीं ठहरे। रूप भी बसन्त भी एक्यूरेट बनना है, इसमें ही मेहनत है। देह-अभिमान मार डालता है। रावण ने देह-अभिमानी बनाया है। अभी तुम देही-अभिमानी बनते हो। फिर आधाकल्प के बाद माया रावण देह-अभिमानी बनाती है। देही-अभिमानी तो बहुत मीठा बन जाते हैं। सम्पूर्ण तो अभी कोई भी बना नहीं है इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं कि किसी के भी दिल को रंज नहीं करना है, दु:ख नहीं देना है। सबको बाप का परिचय दो। बोलने करने की भी बड़ी रॉयल्टी चाहिए। ईश्वरीय सन्तान के मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। तुम मनुष्यों को जीयदान देते हो। रास्ता बताना है और समझाना है। तुम परमात्मा के बच्चे हो ना। उनसे तुमको स्वर्ग की राजाई मिलनी चाहिए। फिर अब वह क्यों नहीं है। याद करो बरोबर बाप से वर्सा मिला था ना। तुम भारतवासी देवी देवतायें थे, तुमने ही 84 जन्म लिए। तुम समझो कि हम ही लक्ष्मी नारायण के कुल के थे। अपने को कम क्यों समझते हो। अगर कहते कि बाबा सब थोड़ेही बनेंगे। तो बाबा समझ जाता कि यह इस कुल का नहीं। अभी से ही थिरकने लग पड़ा है। तुमने 84 जन्म लिए हैं। बाप ने 21 जन्मों की प्रालब्ध जमा कराई वह खाया फिर ना (समाप्त) होना शुरू हो गई। कट चढ़ते-चढ़ते तमोप्रधान कौड़ी मिसल बन पड़े हो। भारत ही 100 प्रतिशत सॉलवेन्ट था। इन्हों को यह वर्सा कहाँ से मिला? एक्टर्स ही बता सकेंगे ना। मनुष्य ही एक्टर हैं। उनको यह पता होना चाहिए कि इन लक्ष्मी-नारायण को बादशाही मिली कहाँ से? कितनी अच्छी-अच्छी प्वाईट्स हैं। जरूर आगे जन्म में ही यह राज्य भाग्य पाया होगा।

बाप ही पतित-पावन है। बाप कहते हैं कि मैं तुमको कर्म, अकर्म और विकर्म की गति समझाता हूँ। रावण राज्य में मनुष्य के कर्म विकर्म हो जाते हैं। वहाँ तुम्हारे कर्म अकर्म होते हैं। वह है दैवी सृष्टि। मैं रचता हूँ तो जरूर मुझे संगम पर आना पड़े। यह है रावण राज्य। वह है ईश्वरीय राज्य। ईश्वर अब स्थापना करा रहे हैं। तुम सब ईश्वर के बच्चे हो, तुमको वर्सा मिल रहा है। भारतवासी ही सॉलवेन्ट थे, अब इनसॉलवेन्ट बन गये हैं। यह बना बनाया ड्रामा है, इसमें फ़र्क नहीं हो सकता। सबका झाड़ अपना-अपना है। वैराइटी झाड़ है ना। देवता धर्म वाले ही फिर देवता धर्म में आयेंगे। क्रिश्चियन धर्म वाले अपने धर्म में खुश हैं औरों को भी अपने धर्म में खींच लिया है। भारतवासी अपने धर्म को भूलने के कारण वह धर्म अच्छा समझ चले जाते हैं। विलायत में नौकरी के लिए कितने जाते हैं क्योंकि वहाँ कमाई बहुत है। ड्रामा बड़ा वण्डरफुल बना हुआ है। इसको समझने की अच्छी बुद्धि चाहिए। विचार सागर मंथन करने से सब कुछ समझ में आ जाता है। यह बना बनाया अनादि ड्रामा है। तो तुम बच्चों को आपसमान सदा सुखी बनाना है। यह तुम्हारा धन्धा है पतितों से पावन बनाना। जैसे बाप का धंधा वैसे तुम्हारा। तुम्हारा मुखड़ा सदैव देवताओं जैसा हर्षित होना चाहिए खुशी में। तुम जानते हो हम विश्व के मालिक बनते हैं। तुम हो लवली चिल्ड्रेन। क्रोध पर बड़ी खबरदारी रखनी है। बाप आये हैं बच्चों को सुख का वर्सा देने। स्वर्ग का रास्ता सबको बताना है। बाप सुख कर्ता, दु:ख हर्ता है। तो तुमको भी सुख कर्ता बनना है। किसको दु:ख नहीं देना है। दु:ख देंगे तो तुम्हारी सज़ा 100 गुणा बढ़ जायेगी। कोई भी सजा से बच नहीं सकता। बच्चों के लिए तो खास ट्रिब्युनल बैठती है। बाप कहते कि तुम विघ्न डालेंगे तो बहुत सजा खायेंगे। कल्प-कल्पान्तर तुम साक्षात्कार करेंगे कि फलाने यह बनेंगे। आगे जब देखते थे तो बाबा मना करते थे कि न सुनाओ। अन्त में तो एक्यूरेट मालूम पड़ता जायेगा। आगे चलकर जोर से साक्षात्कार होंगे। वृद्धि तो होती जायेगी। आबू तक क्यू लग जायेगी। बाबा से कोई भी मिल नहीं सकेंगे। कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला। यह भी गाया हुआ तो है ना। विद्वान, पण्डित आदि भी पीछे आयेंगे। उन्हों के सिंहासन भी हिलेंगे। तुम बच्चे तो बहुत खुशी में रहेंगे। अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार। ऐसी यादप्यार एक ही बार मिलती है। जितना तुम याद करते हो उतना तुम प्यार पाते हो। विकर्म विनाश होते हैं और धारणा भी होती है। बच्चों को खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए। जो भी आये उनको रास्ता बतायें। बेहद का वर्सा बेहद के बाप से पाना है। कम बात है क्या? ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए। अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) बोलने चलने में बहुत रॉयल बनना है। मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। आप समान बनाने की सेवा करनी है। किसी की दिल को रंज नहीं करना है।

2) क्रोध पर बड़ी खबरदारी रखनी है। मुखड़ा सदैव देवताओं जैसा हर्षित रखना है। स्वयं को ज्ञान योगबल से देवता बनाना है।

वरदान:-

जो बच्चे बाप को अपने जीवन की नैया देकर मैं पन को मिटा देते हैं। श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करते वह सदा पश्चाताप से परे प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हैं। उन्हें ही सद्-बुद्धिवान कहा जाता है। ऐसे सद्-बुद्धि वाले तूफानों को तोफा समझ, स्वभाव-संस्कार की टक्कर को आगे बढ़ने का आधार समझ, सदा बाप को साथी बनाते हुए, साक्षी हो हर पार्ट देखते सदा हर्षित होकर चलते हैं।

स्लोगन:-

Daily Murlis in Hindi: Brahma Kumaris Murli Today in Hindi

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