31 March 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

30 March 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - अपना मिजाज़ बहुत मीठा बनाओ, भूले-चूके भी किसी को दु:ख मत दो, बुरे वचन कहना, क्रोध करना, डांटना.... यह सब दु:ख देना है''

प्रश्नः-

माया बच्चों की परीक्षा किस रूप में लेती है? उस परीक्षा में अडोल रहने की विधि क्या है?

उत्तर:-

मुख्य परीक्षा आती है काम और क्रोध के रूप में। यह दोनों मुश्किल ही पीछा छोड़ते हैं। क्रोध का भूत घड़ी-घड़ी दरवाजा खड़काता है। देखता है यह कहाँ भौं-भौं तो नहीं करते। अनेक प्रकार के तूफान दीपक को हिलाने की कोशिश करते हैं। इन परीक्षाओं में अडोल रहने के लिए एक सर्वशक्तिमान् बाप से योग रखना है। अन्दर खुशी के नगाड़े बजते रहें। ज्ञान और योगबल ही इन परीक्षाओं से पास करा सकता है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

निर्बल की लड़ाई बलवान से..

ओम् शान्ति। बच्चे समझते हैं और बाप भी समझाते हैं कि तुम फिर से आये हो पारलौकिक बाप के पास और सब हैं लौकिक बाप। यहाँ हैं सब आसुरी बुद्धि, सतयुग में हैं दैवी बुद्धि। आसुरी के बाद फिर दैवी जरूर बनना है। आसुरी और दैवी, पतित और पावन में फ़र्क बहुत है। तुम जानते हो हम पावन थे फिर रावण ने पतित बनाया है। अभी फिर बाप द्वारा हम फिर से पावन दुनिया का वर्सा ले रहे हैं, सतयुगी राज्य-भाग्य का – वह भी 21 जन्मों के लिए। जब बाबा बच्चों को कहते हैं तब याद करते हैं, फिर भूल जाते हैं। जो बात याद रहती है वह फिर औरों को समझाने के लिए दिल टपकती है। याद नहीं होगी तो दिल टपकेगी नहीं। फिर वह खुशी की उछल नहीं आयेगी। मुरझाई हुई शक्ल दिखाई देगी। अभी तुम जानते हो हम फिर से गॅवाया हुआ सतयुग का राज्य-भाग्य ले रहे हैं। वह जो क्रिश्चियन से राज्य गँवाया था वह तो ले लिया। परन्तु माया ने हमारा राज्य छीना है, यह कोई को पता नहीं है। क्रिश्चियन से तो राज्य ले लिया हठ से, भूख हड़ताल आदि करके। यहाँ तो वह कोई बात नहीं। तुम्हारी दिल में है हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से राज्य-भाग्य प्राप्त करते हैं, बाप की श्रीमत पर चलने से। इसमें तलवार आदि कुछ भी चलाने की मत नहीं देते। कहते हैं बच्चे स्वीट टेम्पर बनो। बहुत मीठे बनो। सतयुग में शेर बकरी भी इकट्ठे जल पीते थे। एक दो के प्यार में रहते थे। दु:ख का वार नहीं होता। यहाँ दु:ख का वार बहुत होता है। काम कटारी चलाना, यह भी दु:ख का वार है। किसको बुरे वचन कहना वा क्रोध करना, डांटना यह भी दु:ख देना है। बाप कहते हैं किसको भी यह दु:ख नहीं देना है। अपना मिजाज़ बहुत मीठा बनाओ। भूले-चूके भी दु:ख देने का काम नहीं करो। श्रीकृष्ण के लिए कहते हैं इतनी रानियों को भगाया। तो भी कहते हैं भगाया सुख देने के लिए। अभी तुम समझ गये हो श्रीकृष्ण की बात नहीं है। भागवत के साथ गीता का, गीता के साथ फिर महाभारत लड़ाई का कनेक्शन है। अभी वही संगमयुग है। श्रीकृष्ण का तो नाम ही नहीं। श्रीकृष्ण की राजधानी है सतयुग में। श्रीकृष्ण ने कोई पतित को पावन बनाने के लिए कभी राखी नहीं बांधी। यह है पतित को पावन बनाने का उत्सव। सो तो पतित-पावन परमात्मा ही है न कि श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण का जन्म तो सतयुग में हुआ। वहाँ तो कंस, रावण, सूपनखा आदि हो न सकें। यह इस समय हैं आसुरी सम्प्रदाय। इन सब बातों को तुम अभी समझते हो। तुम्हारी बुद्धि में है हमने बेहद के बाप से अनेक बार राजयोग सीखा और 21 जन्म राज्य पद पाया है फिर माया से राज्य-भाग्य गँवाया है। जो मॉ बाप दादे के दिल पर चढ़े हुए बच्चे हैं, वही तख्तनशीन बनेंगे। जो फरमानबरदार नहीं वह क्या पद पायेंगे। पद पाना चाहिए सूर्यवंशी। नहीं तो पाई पैसे के दास दासी जाकर बनेंगे। बापदादा की आज्ञा पर नहीं चलते हैं। ब्रह्मा की मत भी मशहूर है। शिवबाबा की श्रीमत भी मशहूर है। तो ब्रह्मा और शिवबाबा के साथ उन्हों के औलाद की भी मत मशहूर होनी चाहिए। तुमको शिवबाबा और ब्रह्मा दोनों की मत पर चलना चाहिए तब तो श्रेष्ठ बनेंगे। मात-पिता भी श्रेष्ठ बनने के लिए कितनी अच्छी धारणा करते हैं, सब बच्चों को पढ़ाते हैं। मुरली सब बच्चों के पास जाती है। इनका पार्ट ही है पढ़ाने का। कई बच्चे ऐसे भी हैं जो मॉ बाप से भी अच्छा पढ़ाते हैं। शिवबाबा की तो बात ही ऊंच ठहरी। परन्तु मम्मा बाबा से भी इस समय होशियार बच्चे हैं। भल सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है। कुछ न कुछ कांटे भी लगते हैं, माया का वार होता है। दीवे को तूफान लगते हैं। जितना ज्ञान और योग में रहेंगे तो इस घृत से तुम्हारी ज्योति जगी रहेगी। कोई दीपक में घृत थोड़ा कम हो जाता है तो लाइट कम हो जाती है। कोई का दीवा बहुत अच्छा जलता रहता है। आत्मा रूपी दीवे को ही तूफान लगता है। तूफान तो लगेंगे, बाबा कहते हैं नम्बरवन अनुभवी मैं हूँ। रुसतम से जरूर माया रुसतम होकर लड़ेगी।

बाप समझाते हैं हे दीवे ऐसे-ऐसे तूफान आयेंगे, परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई पाप कर्म नहीं करना। कोई ने कुछ कहा तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया, ऐसा अभ्यास करना पड़े। क्रोध भी मनुष्य की पूरी ही सत्यानाश कर देता है। यह भी बड़ी परीक्षा होती है। क्रोध का भूत आकर दरवाजा ठोकते हैं, देखें भौं-भौं करते हैं। अगर कोई भौं-भौं करने लग पड़ते हैं तो दीवा बुझ जाता है। माया सबकी परीक्षा लेती रहती है। समझा जाता है इनमें तो क्रोध था नहीं। अब फिर इनमें क्रोध आ गया है। बाबा के पास बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे थे, माया का तूफान सहन नहीं कर सके तो गिर पड़े फिर कहा जाता है किस्मत। हम परीक्षा में ठहर नहीं सकते। बच्चों को तो परीक्षा में बड़ा अड़ोल रहना है, अंगद मिसल। यह भी एक मिसाल है।

तुम बच्चों के अन्दर खुशी के नगाड़े बजने चाहिए। सर्वशक्तिमान बाबा के साथ योग रखने से मदद आपेही मिलती रहती है। कोई हथियार पंवार नहीं लेते। बाबा सब युक्ति सिखलाते हैं। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। क्रोध की भी स्टेजेस होती हैं। काम का भूत तो बड़ा खराब है। शल कोई में काम का भूत फिर से प्रवेश न करे। उनको योगबल से निकाल देना है। योग से ही क्रोध का भूत भी निकलता है। घड़ी-घड़ी दरवाजा खटकाते हैं। कहाँ मार्जिन देखी और घुस पड़ते। यह 5 चोर अन्दर बहुत घाटा डाल देते हैं। हम कितने साहूकार थे, 5 विकारों ने कितना कंगाल बना दिया है। इनका बड़ा सरदार है काम, सेकेण्ड नम्बर है क्रोध। काम बच्चू बादशाह है। बड़ा मुश्किल से पीछा छोड़ते हैं। बड़ा भारी दुश्मन है, बहुत तंग करते हैं। बिचारी अबलायें कितनी मार खाती हैं। उन्हों की फरियाद सुनी नहीं जाती। यह फरियाद सिर्फ एक बाप ही सुनने वाला है। परन्तु वह भी सच्चे जो होंगे उन्हों की सुनेंगे। झूठों की नहीं। तो यह विकार मनुष्य को एकदम डर्टी बना देते हैं। क्रोध की बीमारी उथल पड़ी तो क्रोध अपनी भी सत्यानाश कराते हैं, दूसरे की भी खुराक बन्द हो जाती है। हंगामा होता है। तो बाप से जो खुराक लेने आते हैं उन्हों का वह बन्द हो जाता है। उन्हों पर बंधन आ जाता है। फिर उनकी अविनाशी भविष्य जन्म-जन्मान्तर की आजीविका बंद हो जाती है। ऐसे जो परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने में विघ्न डालते हैं उन पर कितना पाप पड़ेगा। बात मत पूछो। वह जैसे कि अपने ऊपर कृपा के बदले श्राप डालते हैं। कोई ट्रेटर बन जाते हैं तो कितने का नुकसान करते हैं। भविष्य हीरे जैसा जीवन बनाने में रूकावट पड़ती है इसलिए बाप कहते हैं महापापी, महा-बेसमझ, महा-कमबख्त देखना हो तो यहाँ देखो। कोई अखबार में उल्टा-सुल्टा डाल लेते हैं तो बिचारी माताओं पर कितनी आपदायें आ जाती हैं। जानते हुए और फिर कुछ करते हैं तो उन पर धर्मराज की कितनी मार पड़ेगी। बाप कहते हैं ऐसा काम कोई नहीं करे जो ट्रेटर बने और अबलाओं पर अत्याचार हो। उनको गाजी भी कहा जाता है। माथे में खून का टेप्रेचर चढ़ जाता है तो फिर तलवार उठाकर मारने लग पड़ते हैं। फिर उनको फांसी पर चढ़ा देते हैं। यहाँ भी ऐसे बन पड़ते हैं। कोई में क्रोध का भूत आ जाता है तो कितनों की आजीविका बन्द कर देते हैं। बाप कहते हैं ऐसे के लिए फिर बहुत कड़ी सजा है। जो ट्रेटर बन विघ्न डालते हैं उनके ऊपर बड़ा पाप चढ़ता है। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो एकदम चकनाचूर….. या तो वैकुण्ठ का मालिक या तो नौकर चाकर। ऐसा काम जो करेगा तो इतना ही पाप आत्मा भी बनेगा। बहुतों को दु:ख देने के निमित्त बन जाते हैं। बाबा को तरस पड़ता है। माताओं का तो रिगार्ड रखना है। वन्दे मातरम् गाई जाती है। बाप आकर कलष माताओं पर रखते हैं, उन पर अत्याचार बहुत होते हैं। तो सिकीलधे बच्चों को मदद बहुत देनी चाहिए। अगर कोई मदद के बदले और ही उल्टा काम करते हैं तो कितना नुकसान हो जायेगा। बहुत सपूत बनना है। असुर को देवता बनाना है।

बाबा तुम्हारा जीते जी नया चित्र बनाते हैं। आर्टिस्ट लोग चित्र बनाते हैं ना। फिर जो बहुत अच्छा बनाते हैं उनको इनाम मिलता है। यह बाप कहते हैं मैं ज्ञान और योगबल से तुम्हारे चित्र ऐसे बना रहा हूँ जो तुमको यह शरीर छोड़ने के बाद एकदम फर्स्टक्लास शरीर मिल जायेगा। तो मनुष्य से देवता बन जायेंगे। ज्ञान योगबल से तुम कितने गोरे बन जाते हो। बाबा जैसा फर्स्टक्लास कारीगर कोई होता नहीं। यह बाप का ही काम है मनुष्य को देवता बनाना। यह है नम्बरवन सर्विस, जिससे सारी दुनिया पलट जाती है। उस स्वीट फादर को कोई जानते नहीं। सर्वव्यापी कह देते हैं। मनुष्यों की बुद्धि में यह भी नहीं है कि यह नर्क पतित दुनिया है। यह सिर्फ तुम बच्चों की ही बुद्धि में है। बड़े-बड़े करोड़पति सबका धन मिट्टी में मिल जायेगा। बड़े दु:खी हो मरेंगे। आजकल तो बड़े-बड़े आदमियों को भी मारते रहते हैं। दुश्मनी कड़ी हो जाती है तो बात मत पूछो। बड़ा खराब समय आना है। अब तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो भविष्य के लिए और कोई भी भविष्य के लिए पुरुषार्थ नहीं करते हैं। पुरुषार्थ में फिर माया भुला देती है फिर जैसे के वैसे बन जाते हैं। माया एकदम मुंह फेर देती है, इसलिए बहुत सम्भाल करनी है। जितना हो सके खुशी से बाबा को याद करना है। हम बाप से 21 जन्म सुख का फिर से वर्सा ले रहे हैं। बाप को याद करने से खुशी होगी। वह इन आंखों से महल आदि देखते हैं तब खुशी होती है। तुम दिव्य दृष्टि से अथवा ज्ञान के तीसरे नेत्र से जानते हो कि हम बाप से सदा सुख का वर्सा लेते हैं। अगर बाप की मत पर चलेंगे तो। सावधान तो करते रहते हैं – बच्चे श्रीमत पर बहुत मीठे बनो, चुप रहो और बाप को याद करो।

तुम बच्चों जैसा सौभाग्यशाली इस सृष्टि पर कोई नहीं है। तुम स्वर्ग का मालिक बनते हो। वहाँ बड़ा सुख है। यह भी जानते हैं राजयोग वही सीखेंगे जो कल्प पहले सीखे होंगे। तुम देखते हो पण्डे सर्विस कर फूलों को वा कलियों को बागवान के पास ले आते हैं। फिर उन्हों को सर्विस की आफरीन भी मिलती है। ज्ञान है बहुत सहज। इस जीवन को मोस्ट वैल्युबुल कहा जाता है। पत्थर से हीरे जैसा, गरीब से साहूकार बनते हैं। गाया हुआ भी है अतीन्द्रिय सुखमय जीवन गोप गोपियों से पूछो। कौन से गोप गोपियां? जैसे बाबा ने सुनाया यह है बड़ी लाटरी। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो बाप और स्वर्ग को याद करना बहुत सहज है। विश्व का मालिक बनना कम बात थोड़ेही है। वहाँ दूसरा कोई धर्म होता नहीं। बच्चे जान गये हैं कि हमने आधाकल्प अनेक प्रकार के दु:ख देखे हैं। अब बहुत अच्छा पुरुषार्थ करना चाहिए। इस दुनिया में कोई सुखी हो नहीं सकता। वहाँ तो सब सुखी होंगे। ऐसे सुख के राज्य में ऊंच पद पाने में मजा बहुत है। बाक्सिंग में घड़ी-घड़ी थप्पड़ खाते गिरते नहीं रहना है। विकार में गिरा तो एकदम जोर से चोट लग जाती है। क्रोध भी बहुत खराब है। घड़ी-घड़ी चोट नहीं खानी चाहिए, नहीं तो गिर पड़ेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) ऐसा कोई भी कर्म नहीं करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाए। कोई भी भूत के वश हो ट्रेटर कभी नहीं बनना है।

2) श्रीमत पर बहुत-बहुत मीठा बनना है, चुप रहना है। बहुत मीठे मिजाज़ से बात करनी है। कभी काम या क्रोध के वश नहीं होना है।

वरदान:-

अपने संस्कारों को ऐसा इज़ी (सरल) बनाओ तो हर कार्य करते भी इज़ी रहेंगे। यदि संस्कार टाइट हैं तो सरकमस्टांश भी टाइट हो जाते हैं, सम्बन्ध सम्पर्क वाले भी टाइट व्यवहार करते हैं। टाइट अर्थात् खींचातान में रहने वाले इसलिए सरल संस्कारों द्वारा ड्रामा के हर दृश्य को देखते हुए अच्छे और बुरे की आकर्षण से परे रहो, न अच्छाई आकर्षित करे और न बुराई – तब हर्षित रह सकेंगे।

स्लोगन:-

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