29 Mar 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

March 28, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - विचार सागर मंथन करने की आदत डालो, एकान्त में सुबह-सुबह विचार सागर मंथन करो तो अनेक नई-नई प्वाइन्ट बुद्धि में आयेंगी''

प्रश्नः-

बच्चों को अपनी अवस्था फर्स्ट क्लास बनानी है तो किन-किन बातों का सदा ध्यान रहे?

उत्तर:-

1- एक बाप जो सुनाते हैं वही सुनो, बाकी इस दुनिया का कुछ भी नहीं सुनो। 2- संग की सम्भाल रखो। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, धारणा करते हैं उनका ही संग करो तो अवस्था फर्स्ट क्लास हो जायेगी। कई बच्चों की अवस्था को देख बाबा को ख्याल आता कि ड्रामा में कुछ परिवर्तन हो जाये परन्तु फिर कहते – यह भी राजधानी स्थापन हो रही है।

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ओम् शान्ति। एक ही बेहद का बाप, बेहद के बच्चों को बैठ समझाते हैं वा पढ़ाते हैं। बाकी मनुष्य जो कुछ पढ़ते हैं, सुनते हैं वह तुमको सुनना, पढ़ना कुछ भी नहीं है क्योंकि यह तो समझ गये हो – एक ही यह ईश्वरीय पढ़ाई है, जो अभी तुम्हें पढ़नी है। तुमको सिर्फ एक ईश्वर से ही पढ़ना है। बाप जो पढ़ाये, सिखाये – ओरली पढ़ना है। वह तो अनेक प्रकार की किताब लिखते हैं, जो सारी दुनिया पढ़ती है। कितनी ढेर किताबें पढ़ते होंगे। सिर्फ तुम बच्चे ही कहते हो एक से ही सुनो और वही औरों को सुनाओ क्योंकि उनसे जो कुछ सुनेंगे उसमें ही कल्याण है। बाकी ढेर किताबे हैं। नई-नई निकलती रहती हैं। तुम जानते हो राइटियस तो एक बाप ही सुनाते हैं। बस, उनसे ही सुनना है। बाप तो बच्चों को बहुत थोड़ा समझाते हैं, उसको डिटेल में समझाकर फिर भी एक ही बात पर आ जाते हैं। भल मनमनाभव अक्षर बाबा राइट कहते हैं परन्तु बाबा ने ऐसे कहा नहीं है। बाप तो कहते हैं अपने को आत्मा समझो, मुझ बाप को याद करो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान जो सुनाता हूँ वह धारण करो। यह भी तुम जानते हो, हम जो देवता बनते हैं वही फिर वृद्धि को पाते हैं। बच्चों को मूलवतन भी याद है फिर नई दुनिया भी याद है।

पहले है ऊंचे ते ऊंचा बाप। फिर यह नई दुनिया, जिसमें यह लक्ष्मी-नारायण ऊंचे ते ऊंच राज्य करने वाले हैं। चित्र तो जरूर चाहिये। तो वह बाकी निशानी रह गई है। यही एक चित्र है। राम का भी है परन्तु राम राज्य को हेविन नहीं कहेंगे। वह है ही सेमी। अब ऊंच ते ऊंच बाप पढ़ा रहे हैं। इसमें किताब आदि की कोई जरूरत नहीं है। यह किताब आदि कुछ भी चलनी नहीं है, जो दूसरे जन्म में पढ़ सकें। यह पढ़ाई इस जन्म के लिये ही है। यह अमरकथा भी है। नर से नारायण बनने की शिक्षा भी बाप देते हैं नई दुनिया के लिये। बच्चे 84 के चक्र को भी जान गये हैं। यह पढ़ाई का समय है। बुद्धि में मंथन चलना चाहिये। तुमको औरों को भी पढ़ाना है। सवेरे उठ विचार सागर मंथन करना है। सवेरे ही विचार सागर मंथन अच्छा होता है। जो समझाने वाले होंगे उन्हों का ही मंथन होगा। टॉपिक्स, प्वाइन्ट्स आदि निकलती हैं। भक्ति की बातें जन्म-जन्मान्तर सुनी। यह ज्ञान जन्म-जन्मान्तर नहीं सुनेंगे। यह बाप एक बार सुनाते हैं, फिर यह नॉलेज तुमको भी भूल जाती है। भक्ति मार्ग की कितनी किताबे हैं। विलायत से भी आती हैं। यह सब खत्म होने वाली हैं। सतयुग में तो कोई किताब आदि की दरकार नहीं। यह सब है कलियुगी सामग्री। यहाँ जो कुछ तुम देखते हो – हॉस्पिटल, जेल, जज आदि वहाँ कुछ भी नहीं होंगे। वह दुनिया ही दूसरी होगी। दुनिया तो यही है परन्तु नई और पुरानी में फ़र्क तो जरूर होगा ना। उनको कहा जाता है स्वर्ग। वही दुनिया फिर नर्क बनती है। मुख से कहते हैं – फलाना स्वर्गवासी हुआ। संन्यासी के लिये कहेंगे ब्रह्म में लीन हुआ, निर्वाण गया। परन्तु निर्वाण में कोई जाता नहीं है। तुम जानते हो यह रूद्र माला कैसे बनी है? रूण्ड माला भी है। विष्णु की राजधानी की माला बनती है। अब माला के राज़ को तुम बच्चे ही जानते हो। नम्बरवार पढ़ाई अनुसार ही माला में पिरोये जाते हैं। पहले-पहले यह निश्चय चाहिये। यह ईश्वरीय पढ़ाई है। वह सुप्रीम बाप और सुप्रीम शिक्षक भी है। तुम्हारी बुद्धि में जो नॉलेज है वही औरों को देनी है। आप समान बनाना है। विचार सागर मंथन करना है। अखबारें भी सवेरे निकलती हैं। वह कॉमन बात है। यह तो एक-एक बात लाखों रूपये की है। कोई अच्छी तरह समझते हैं, कोई कम समझते हैं। समझने और समझाने के अनुसार ही फिर नई दुनिया में पद मिलता है। विचार सागर मंथन करने में बड़ा एकान्त चाहिये। रामतीर्थ के लिये बताते हैं – जब लिखता था, चेले को कहा दो माइल दूर हो जाओ, नहीं तो वायब्रेशन आयेगा।

तुम अब परफेक्ट बन रहे हो। सारी दुनिया की है डिफेक्टेड बुद्धि। तुम इस पढ़ाई से यह लक्ष्मी-नारायण बनते हो। कितनी ऊंच पढ़ाई है! परन्तु नम्बरवार बिठा नहीं सकते। पिछाड़ी मे बैठने से फंक हो जायेंगे, घुटका खायेंगे, वायुमण्डल खराब करेंगे। यूँ तो लॉ कहता है – नम्बरवार बिठाना चाहिये। परन्तु इन सब बातों को गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने। यह है बहुत ऊंच नॉलेज। तुम्हारी अलग-अलग क्लास तो नहीं कर सकते। वास्तव में तुमको क्लास में इस तरह बैठना चाहिये जो अंग, अंग से न लगे। माइक पर तो दूर भी आवाज़ सुन सकते हो। बाप कहते हैं – इस दुनिया का तुम और कुछ भी न सुनो, न पढ़ो। उन्हों का संग भी न करो। जो अच्छी तरह पढ़ते हैं उनका ही संग करना चाहिये। जहाँ अच्छी सर्विस है, जैसे म्युज़ियम आदि हैं, तो वहाँ बहुत तीखी और योगयुक्त बच्चियां चाहिये।

यह भी बाप समझाते हैं – ड्रामा बना हुआ है। कभी-कभी बाबा सोचते – कुछ ड्रामा में चेंज हो जाये। परन्तु चेन्ज हो नहीं सकता। यह बना-बनाया खेल है। बच्चों की अवस्था को देख ख्याल आता है कि कुछ चेन्ज हो जाये। क्या ऐसे-ऐसे स्वर्ग में चलेंगे? फिर ख्याल आता है – स्वर्ग में तो सारी राजधानी चाहिये। कोई दास-दासियां, चण्डाल आदि भी होंगे। ड्रामा में कुछ चेंज नहीं हो सकती। भगवानुवाच – यह ड्रामा बना हुआ है, इसको मैं भी चेंज नहीं कर सकता हूँ। भगवान के ऊपर तो कोई भी है नहीं। मनुष्य तो कह देते हैं – भगवान् क्या नहीं कर सकता! परन्तु भगवान् खुद कहता है – मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ। यह बना-बनाया खेल है। विघ्न पड़ते हैं, कुछ भी नहीं कर सकते। ड्रामा में नूँध है, मैं क्या कर सकता हूँ। बहुत बच्चियां पुकारती हैं – हमको नंगन होने से बचाओ। अब बाप क्या करेंगे। बाप सिर्फ कह देंगे – ड्रामा की भावी। यह तो बना-बनाया ड्रामा है। ऐसे मत समझो भगवान् की भावी। भगवान् के हाथ में होता तो समझो कोई अनन्य शरीर छोड़ देते हैं, उनको भी बचा लेते। ऐसे बहुतों को संशय आता है। भगवान् पढ़ाते हैं! अगर भगवान् के बच्चे हैं तो क्या भगवान् भी अपने बच्चों को नहीं बचा सकते! बहुत उल्हना देते हैं। कहते हैं ऐसे साधू लोग तो किसके प्राणों को बचा सकते हैं, प्राण फिर से आ जाते हैं। चिता से भी उठ जाते हैं। फिर कहेंगे ईश्वर ने लौटा दिया, काल ले गया, उस पर प्रभु ने रहम किया। बाप समझाते हैं – जो कुछ ड्रामा में नूँध है वही होता है। बाप भी कुछ नहीं कर सकता। इसको कहा जाता है ड्रामा की भावी। ड्रामा का अक्षर तुम जानते हो। वह कहेंगे जो कुछ होना था हुआ, फिक्र काहे का। तुमको बेफिक्र बनाते हैं। सेकण्ड बाई सेकण्ड जो कुछ होता है ड्रामा ही समझो। आत्मा ने शरीर छोड़ जाकर दूसरा पार्ट बजाया। अनादि पार्ट को तुम कैसे फेर सकते हो! भल अभी थोड़ी कच्ची अवस्था है, थोड़ा बहुत विचार आ जाता है। परन्तु भावी कुछ कर नहीं सकती। लोग भल क्या-क्या भी कहें परन्तु हमारी बुद्धि में ड्रामा का राज़ है। पार्ट बजाना है। फिक्र की बात नहीं। जब तक कच्ची अवस्था है थोड़ी-बहुत लहर आती है।

इस समय तुम सब पढ़ रहे हो। तुम सब देहधारी हो, मैं एक विदेही हूँ। सब देहधारियों को सिखलाता हूँ। बाप समझाते हैं – कोई-कोई समय तुम बच्चों को फिर यह ब्रह्मा भी बैठ समझाते हैं। यह बाप का पार्ट और प्रजापिता ब्रह्मा का पार्ट वन्डर-फुल है। यह बाप विचार सागर मंथन कर तुमको सुनाते रहते हैं। कितनी वन्डरफुल नॉलेज है! कितनी बुद्धि चलानी पड़ती है। बाबा का विचार सागर मंथन सुबह को चलता है। तुमको भी ऐसा बनना है, जैसा टीचर। फिर भी फ़र्क तो जरूर रहता है। टीचर स्टूडेन्ट को कभी 100 मार्क्स नहीं देंगे। कुछ कम देंगे। वह है ऊंचे ते ऊंचा। हम हैं देहधारी। तो बाबा मिसल 100 परसेन्ट कैसे बनेंगे? यह बड़ी गुह्य बातें हैं। कोई तो सुनकर धारण करते हैं, खुशी होती है। कोई-कोई कहते हैं बाबा की तो एक ही वाणी चलती है, रिपीटेशन होती है। अब कोई नये-नये बच्चे आते हैं तो मुझे पहली प्वाइन्ट उठानी पड़ती हैं। कोई नई प्वाइन्ट भी निकल आती हैं औरों को समझाने के लिये। बच्चों को फिर भी बाप को मदद करनी पड़ती है। मैगजीन निकालते हैं। कल्प पहले भी ऐसा लिखा होगा। अगर अखबार निकालें तो उस पर बहुत ध्यान देना पड़े। ऐसी कोई बात न हो जो मनुष्य पढ़कर नाराज़ हो जायें। मैगजीन तो तुम पढ़ते हो। कोई कच्ची-पक्की बात होगी कहेंगे अब तक सम्पूर्ण नहीं बने हैं। एक्यूरेट 16 कला सम्पूर्ण बनने में समय तो लगता है। अभी तो बहुत सर्विस करनी है। बहुत प्रजा बनानी है। यह भी बाप ने समझाया है – अनेक प्रकार की मार्क्स हैं। कोई निमित्त हैं, बहुतों को ज्ञान लेने के लिये प्रबन्ध करते हैं तो उनको भी फल मिल जाता है। अब तो पुरानी दुनिया ही खत्म होनी है। यहाँ है अल्पकाल का सुख। बीमारी आदि तो सबको होती है। बाबा सब बातों का अनुभवी है। दुनिया की बातें भी समझाते हैं। बाबा ने कहा था – अखबार वा मैगजीन में वन्डरफुल बातें लिखो जो समझें कि ब्रह्माकुमारियों ने यह बात बिल्कुल ठीक लिखी है। यह लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले हूबहू लगी थी। कैसे? यह आकर समझो। तुम्हारा नाम भी होगा, मनुष्य सुनकर खुश भी होंगे। बहुत बड़ी बात है! परन्तु जब किसकी बुद्धि में बैठे। जो लिखते हैं उनको फिर समझाना भी है। समझाना नहीं आता होगा इसलिये फिर लिखते भी नहीं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) एक बाप जो सुनाते व पढ़ाते हैं, वही सुनो व पढ़ो। बाकी कुछ भी पढ़ने-सुनने की दरकार नहीं। संग की बहुत-बहुत सम्भाल रखो। सवेरे-सवेरे एकान्त में बैठ विचार सागर मंथन करो।

2) ड्रामा की भावी निश्चित बनी हुई है इसलिये सदा बेफिक्र रहो। किसी भी बात में संशय मत उठाओ। लोग भल क्या भी कहेंगे लेकिन तुम ड्रामा पर अटल रहो।

वरदान:-

सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो सर्वशक्तियां प्राप्त हैं वह जैसी परिस्थिति, जैसा समय और जिस विधि से आप कार्य में लगाने चाहो वैसे ही रूप से यह शक्तियां आपके सहयोगी बन सकती हैं। इन शक्तियों को वा प्रभु-वरदान को जिस रूप में चाहो वह रूप धारण कर सकती हैं। अभी-अभी शीतलता के रूप में, अभी-अभी जलाने के रूप में। सिर्फ समय पर कार्य में लगाने की अथॉरिटी बनो। यह सर्वशक्तियां तो आप मास्टर सर्वशक्तिवान की सेवाधारी हैं।

स्लोगन:-

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