29 December 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

December 28, 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम आधाकल्प के लिए सुखधाम में हॉली डे मनायेंगे क्योंकि वहाँ दु:ख का नाम निशान नहीं है''

प्रश्नः-

ब्राह्मण बच्चों को बाप ऐसी कौन सी युक्ति बताते हैं, जिस युक्ति से वे अपना जीवन सफल बना सकते हैं?

उत्तर:-

बाबा कहते – मीठे बच्चे अपना जीवन सफल करना है तो अपना तन-मन-धन सब ईश्वरीय सेवा में लगाओ। फालो फादर। फिर देखना – इसकी एवज में तुमको क्या मिलता है। आत्मा गोल्डन बन जायेगी। तन भी बहुत सुन्दर मिलेगा। धन तो अथाह मिल जायेगा।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

आखिर वह दिन आया आज..

ओम् शान्ति। जब बाप ओम् शान्ति कहते हैं तो दादा भी ओम् शान्ति कहते हैं। बच्चे भी अन्दर में कहते हैं ओम् शान्ति। जब कोई भाषण करते हैं तो ओम् शान्ति कहते हैं। वहाँ सब बैठे हुए भी कहते हैं ओम् शान्ति। रेसपान्ड जरूर देना होता है। अभी तुम बच्चे समझते हो आत्माओं और परमात्मा का अभी मिलन हो रहा है। गाया भी हुआ है – आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल… जिससे बहुत काल अलग रहते हैं, उनसे ही सम्मुख मिलते हैं। वह आते हैं अपना पार्ट बजाने। भक्ति मार्ग में जिसको इतना ढूँढते रहते हैं, आखिर वह दिन भी आता है जबकि बाप से मिलना होता है। सिर्फ एक भारत ही अविनाशी खण्ड है, बाकी सब हैं विनाशी खण्ड। नई दुनिया में तो सिर्फ भारत ही होता है। भारत का कभी विनाश नहीं होता है। यह तो है ही। अभी तो कितने खण्ड हैं। भारत में जब देवी-देवताओं का राज्य था तो वहाँ कोई खण्ड नहीं था, सिर्फ भारतवासी ही थे और कोई मनुष्य नहीं थे। भारत में सिर्फ सूर्यवंशी देवी-देवताओं का राज्य था। अभी उन्हों के सिर्फ चित्र रह गये हैं। यादगार तो रहना चाहिए ना। पहले कितना छोटा झाड़ होता है। उसको कहा जाता है रामराज्य, ईश्वरीय राज्य। ईश्वर की स्थापना है ना। अभी तो है आसुरी स्थापना और सतयुग की है दैवी स्थापना। ईश्वर की स्थापना आधाकल्प चलती है फिर आसुरी स्थापना होती है, जिसको रावणराज्य कहा जाता है। वह है निर्विकारी दुनिया और यह है विकारी दुनिया। दुनिया में कोई जानते नहीं कि यह दुनिया का चक्र कैसे फिरता है। देवी-देवता फिर कहाँ गये। पावन सो फिर पतित कैसे बनें। सीढ़ी उतरना होता है ना। कलायें कम होती जाती हैं। जैसे चन्द्रमा को ग्रहण लगता है तो कहा जाता है दे दान तो छूटे ग्रहण। अभी बाप कहते हैं 5 विकारों को छोड़ो। जब तुम रावण की जेल से छूटेंगे तो रामराज्य स्थापन हो जायेगा। वहाँ यह 5 विकार होते नहीं। यह भी किसको पता नहीं। मनुष्य समझते हैं यह सदा से ही चले आते हैं। दुनिया में मनुष्यों की हैं अनेक मत। तुम्हारी है एक मत, इसको कहा जाता है अद्वैत मत। यहाँ है आसुरी मत।

तुम जानते हो हम भारतवासी रामराज्य में थे। पूज्य सो पुजारी बने हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में यह नॉलेज अभी बैठी है। हम ही पूज्य थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते पुजारी बने हैं। वह समझते हैं परमात्मा ही पूज्य पुजारी बनते हैं, उनकी ही सारी लीला है, सभी परमात्मा ही परमात्मा हैं, यह सबसे बड़ी भूल है। अभी तुम बच्चों को तो खुशी होती है, जिस बाप को आधाकल्प याद किया है, अब वह मिला है। कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई। वही आत्मायें फिर दु:ख में आती हैं तो बाप को याद करती हैं। सतयुग में कोई भी बाप को बुलायेंगे नहीं। तो अभी आत्माओं का परमात्मा से, परमात्मा का हम आत्माओं से मेला होता है। बाप ही ज्ञान का सागर है, इसमें पानी के सागर की बात नहीं। संगम पर देखो कुम्भ का कितना बड़ा मेला लगता है, अभी सच्चा-सच्चा मेला तुम्हारा लगा हुआ है। सब तो इकट्ठे मिल नहीं सकते। कोई कहाँ से, कोई कहाँ से आते हैं। मेले पर कितने लाखों मनुष्य जाते हैं स्नान करने। जन्म-जन्मान्तर यह स्नान करते आये हैं। कहते हैं यह मेला लगता ही रहता है। छोटा और बड़ा कुम्भ भी कहते हैं। अब बाप तो एक ही बार आते हैं पतितों को पावन बनाने। गंगा पतित-पावनी है तो क्या वह ज्ञान सुनायेगी? यहाँ तो पतित-पावन बाप बैठ सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। बच्चे जानते हैं अभी दुनिया की हालत क्या है? विनाश तो बच्चों ने देखा है। अर्जुन तो यह ब्रह्मा ठहरा ना। यह तो है मनुष्य का रथ। यह बताते हैं हमने विनाश भी देखा, अपनी राजधानी भी देखी तब छोड़ा। घर आदि सब कुछ फट से छोड़ दिया। विनाश तो होना ही है। यह कोई नई बात नहीं है।

यह है ईश्वरीय दरबार, इसमें कोई पतित को बैठना नहीं चाहिए। नहीं तो वह एकदम रसातल में चला जायेगा पतित बनने से, इसलिए पतित को आने का हुक्म ही नहीं है। ऐसे कोई-कोई आ जाते हैं। समझते हैं इन्हों को क्या पता कि हम विकार में गये। यह बड़ी गन्दी चीज़ है। विलायत में 4-5 बच्चे पैदा करने वालों को इनाम मिलता है। सतयुग में तो एक ही बच्चा होता है, सो भी विकार की वहाँ बात नहीं। वहाँ तो रावण राज्य ही नहीं। वह है रामराज्य। कन्या शादी करती है तो कन्या को गुप्त रीति से बहुत कुछ देते हैं, जो किसको पता नहीं पड़ता। बाप भी कहते हैं बच्चे तुमको गुप्त दान देता हूँ। किसको पता पड़ता है क्या, हम क्या दे रहे हैं। यह है गुप्त। कोई समझ नहीं सकते कि यह बी.के. विश्व के मालिक बनेंगे। यह तुम अभी समझते हो, हम विश्व के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते हैं। हम कल्प-कल्प बाबा से वर्सा लेते हैं। कहते हैं बाबा हम कल्प-कल्प आपसे मिलते हैं। कल्प पहले भी मिले थे। बाबा को ही राम कहते हैं। राम त्रेता वाला नहीं, उनको तो सिर्फ उनका बच्चा ही बाबा कहेगा। यह तो है बेहद का बाप। अब बाप तुम बच्चों को कहते हैं। तुम बच्चों को दैवीगुण धारण कर ऐसा बनना है। इन देवी-देवताओं की कितनी महिमा करते हैं। परन्तु समझते कुछ भी नहीं। कहते हैं अचतम् केशवम्… अब कहाँ राम, कहाँ नारायण। सबको मिला देते हैं। अर्थ कुछ भी नहीं निकलता। अभी तुमको नटशेल में सब कुछ समझाया जाता है। द्वापर से लेकर यह भक्ति मार्ग शुरू होता है। 84 का चक्र लगाकर नीचे उतरना ही है। 84 जन्म गाये जाते हैं। बाबा ने पूछा – यहाँ तुम बैठे हो तो क्या सब 84 जन्म लेंगे या कोई 80-82 भी लेंगे? क्या सब पास होंगे? क्या भागन्ती हो जाने वालों के जन्म कम जास्ती नहीं होंगे? अवस्था अनुसार ही हर एक का पार्ट होगा ना। बहुत हैं जो आश्चर्यवत भागन्ती हो जायेंगे। फिर सतयुग में कैसे आयेंगे। वह तो प्रजा में भी बहुत देरी से आयेंगे क्योंकि ग्लानी करते हैं। इतने सब थोड़ेही सूर्यवंशी में आ सकते हैं। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार माला बनती है। बाप तो ज्ञान का सागर है। कौन सा उसमें ज्ञान है, यह भी कोई नहीं जानते हैं। तुमको अब ज्ञान मिल रहा है। वह तो सिर्फ स्तुति करते हैं, समझते कुछ भी नहीं। इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग। त्योहार भी जो मनाये जाते हैं वह हैं सब इस समय के, जो फिर बाद में मनाये जाते हैं। तुमको तो आधाकल्प सुख में हॉली डे मिल जाती है। कभी दु:ख का नाम नहीं देखेंगे। हॉली डे हो जाता है क्योंकि तुम पवित्र हो जाते हो ना। बाप समझाते हैं तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। जब रावणराज्य शुरू होता है, उसको मृत्युलोक कहा जाता है। मृत्युलोक मुर्दाबाद… अमरलोक जिंदाबाद होता है। सुख और दु:ख, राम और रावण का यह खेल है। राम द्वारा तुम राज्य पाते हो, रावण द्वारा तुम राज्य गँवाते हो। बाप कहते हैं – तुम अपने जीवन को नहीं जानते हो और कोई ऐसे कह न सके, बाप ही बतलाते हैं। वह तो 84 लाख कह देते हैं। फिर तो कल्प की आयु लाखों वर्ष हो जाती है। कुछ भी बुद्धि में नहीं आता, जो इन बातों को समझ सकें। कल्प की आयु भी रांग लिख दी है। यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं। तुम बच्चों को कितना सहज समझाया जाता है। आगे चलकर और अच्छी रीति समझायेंगे। जब कोई मरता है तो उस समय सिर्फ थोड़ा वैराग्य आता है, उसको कहा जाता है शमशानी वैराग्य। शमशान से बाहर निकल मार्केट में गये तो खलास, जाकर मास मदिरा खरीद करेंगे। तुम बच्चों को इस समय है सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य। बाबा समझाते हैं वैराग्य दो प्रकार का है। निवृत्ति मार्ग वालों का है हद का वैराग्य। वह प्रवृत्ति मार्ग के लिए ज्ञान देंगे ही नहीं। दोनों पवित्र बनो – यह वह कह नहीं सकते। गीता वह सुना न सकें। तुमको तो ज्ञान सागर से ज्ञान मिलता है। वह समझते भी हैं परन्तु उनको डर रहता है। आगे चलकर मान लेंगे बरोबर गीता कृष्ण ने नहीं सुनाई। अगर अब कहेंगे तो उनके सब फालोअर्स भाग जायेंगे। फट से कहेंगे इनको बी.के. का जादू लगा है।

अब बाप समझाते हैं अगर देवता बनना है तो दैवीगुण धारण करो। मुख्य बात है पवित्रता की। यहाँ मनुष्यों का खान पान ही देखो कितना आसुरी है। जन्म-जन्मान्तर की पाप आत्मायें हैं। पुण्य आत्मा एक भी नहीं है। अभी तुम बन रहे हो। सतयुग में सब पुण्य आत्मायें होती हैं। वहाँ हैं ही श्रेष्ठाचारी पावन। यहाँ है भ्रष्टाचारी पतित। सतयुग में 5 विकार होते नहीं। रामराज्य रावणराज्य में कितना फ़र्क पड़ जाता है, इनको तो रावण राज्य कहेंगे ना। पतित-पावन एक ही गॉड फादर है। तुम जानते हो वह हमारा बेहद का बाप है। बेहद के बाप, रचयिता को रचना याद करती है। बाबा ने समझाया है – सतयुग में है एक बाप। फिर होते हैं दो बाप। लौकिक और पारलौकिक। तुमको हैं तीन बाप। लौकिक, पारलौकिक, अलौकिक। भक्ति मार्ग में लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं। यहाँ तो यह वन्डरफुल है – बाप और दादा। दोनों बैठे हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो – फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। प्रजापिता ब्रह्मा तो गाया हुआ है ना। वह अभी ही मिलता है। प्रजापिता ब्रह्मा है साकार। वह है निराकार। निराकार और साकार दोनों इकट्ठे हैं। दोनों का हाइएस्ट पोजीशन है, इनसे बड़ा कोई होता नहीं और कितना साधारण रीति बैठे हैं। पढ़ाई भी कितनी सहज है बच्चों के लिए। बाप सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझो। आत्मा अविनाशी है, यह देह विनाशी है। एक शरीर से आत्मा निकल जाकर दूसरा शरीर लेती है, तुमको रोने की दरकार नहीं है। मनुष्य शरीर को याद करने से रोते हैं। तुमको रोने की दरकार नहीं। सतयुग में कभी रोते नहीं। वहाँ हैं ही मोहजीत। यह सब बातें तुमको संगम पर ही समझाई जाती हैं। तुमको यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र देखकर बहुत खुशी होनी चाहिए इसलिए बाप ने कहा है यह लक्ष्मी-नारायण, त्रिमूर्ति का बैज वा मेडल जेब में डाल दो। घड़ी-घड़ी पॉकेट से निकाल कर देखो। ओहो! हम तो यह बनने वाले हैं। बहुत खुशी होगी। औरों को भी दिखाकर खुश करो कि हम यह बन रहे हैं। देखने से खुशी होगी। मैं तो शिव बाबा का बच्चा हूँ। मुझे किसी बात की क्या परवाह करनी है। कुछ घाटा पड़ा सो क्या! हम तो भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमपति बनते हैं। देखो, बाबा ने सब कुछ दे दिया। फिर फायदे में हैं या घाटे में हैं? बाबा अब सम्मुख समझा रहे हैं। तुम्हारा यह धन दौलत सब कुछ मिट्टी में मिल जाने वाला है। अपना जीवन सफल करना है तो अपना तन-मन-धन इसमें लगाओ फिर इनके एवज में देखो तुमको क्या मिलता है! आत्मा भी गोल्डन बन जाती तो तन भी सुन्दर, धन तो अथाह रहता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) मैं शिवबाबा का बच्चा हूँ, मुझे भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमपति बनना है, इसी खुशी में रहना है और सबको खुश करना है। किसी बात की परवाह नहीं करनी है।

2) एक बाप की अद्वेत मत पर चलकर बेहद का वैरागी बनना है। एक बाप को फालो करना है।

वरदान:-

विश्व कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य दो धारणायें आवश्यक हैं एक ईश्वरीय रूहाब और दूसरा रहम। अगर रूहाब और रहम दोनों साथ-साथ और समान हैं तो रूहानियत की स्टेज बन जाती है। तो जब भी कोई कर्तव्य करते हो वा मुख से शब्द वर्णन करते हो तो चेक करो कि रहम और रूहाब दोनों समान रूप में हैं? शक्तियों के चित्रों में इन दोनों गुणों की समानता दिखाते हैं, इसी के आधार पर विश्व नव-निर्माण के निमित्त बन सकते हो।

स्लोगन:-

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