27 August 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

28 August 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बड़ा बाबा तुम बड़े आदमियों को ज्यादा मेहनत नहीं देते, सिर्फ दो अक्षर याद करो अल्फ़ और बे''

प्रश्नः-

रूहानी बाप का मुख्य कर्तव्य कौन-सा है, जिसमें ही बाप को मजा आता है?

उत्तर:-

रूहानी बाप का मुख्य कर्तव्य है पतितों को पावन बनाना। बाप को पावन बनाने में ही बहुत मजा आता है। बाप आते ही हैं बच्चों की सद्गति करने, सबको सतोप्रधान बनाने क्योंकि अब घर जाना है। सिर्फ एक पाठ पक्का करो – हम देह नहीं आत्मा हैं। इसी पाठ से बाप की याद रहेगी और पावन बनेंगे।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं – तुमको स्मृति आई है कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे, हम राज्य करते थे, हम बरोबर विश्व के मालिक थे। उस समय दूसरा कोई धर्म नहीं था। हमने ही सतयुग से लेकर जन्म लेते 84 का चक्र पूरा किया। सारे झाड़ की स्मृति आई है। हम देवता थे फिर रावण राज्य में आ गये तो देवी-देवता कहलाने के लायक न रहे इसलिए धर्म ही दूसरा समझ लिया। और किसका भी धर्म बदलता नहीं है। जैसे क्राइस्ट का क्रिश्चियन धर्म, बुद्ध का बौद्ध धर्म ही चला आता है। सबकी बुद्धि में है बुद्ध ने फलाने टाइम धर्म स्थापन किया। हिन्दुओं को अपने धर्म का पता ही नहीं है कि हमारा हिन्दू धर्म कब से शुरू हुआ, किसने बनाया? लाखों वर्ष कह देते। सारे सृष्टि चक्र का नॉलेज तुम बच्चों को ही है, इसको कहते हैं ज्ञान-विज्ञान। उन्होंने विज्ञान भवन नाम भल रखा है परन्तु बाप उसका अर्थ समझाते हैं – ज्ञान और योग, रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान, अभी तुम समझते हो कि हम भी नहीं जानते थे, नास्तिक थे। सतयुग में तो यह ज्ञान हो नहीं सकता। अभी तुमको टीचर ने पढ़ाया है। पढ़कर तुमको राज्य-भाग्य मिलता है क्योंकि तुमको रहने के लिए नई सृष्टि चाहिए। इस पुरानी सृष्टि में तो पवित्र देवी-देवतायें पैर रख न सकें। बाप आकर तुम्हारे लिए पुरानी दुनिया का विनाश कर नई दुनिया स्थापन करते हैं। हमारे लिए विनाश जरूर होना है। कल्प-कल्पान्तर हम यह पार्ट बजाते हैं। बाबा पूछते हैं आगे कब मिले हो? तो कहते हैं – बाबा, हर कल्प मिलते हैं, आप से राज्य भाग्य लेने। कल्प पहले भी बेहद सुख का राज्य भाग्य मिला था। यह सब बातें जो स्मृति में आई हैं, अब उनका सिमरण होना चाहिए, जिसको बाबा स्वदर्शन चक्र कहते हैं। हम पहले सतो-प्रधान थे। यह भी तुम्हें स्मृति आई कि हरेक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। हम आत्मा छोटी अविनाशी हैं, उनमें पार्ट भी अविनाशी है जो चलता ही रहेगा। यह बनी बनाई बन रही….. इसमें नई बात कोई एड वा कट नहीं हो सकती है। कोई भी मोक्ष को पा नहीं सकते। कोई मुक्ति मांगते हैं, मुक्ति अलग है, मोक्ष अलग है। यह भी स्मृति में रखना है। स्मृति में होगा तो औरों को भी स्मृति दिलायेंगे। तुम्हारा धन्धा ही यह है। बाप ने जो स्मृति में लाया है, वह फिर औरों को भी स्मृति दिलाओ तब ऊंच पद पा सकेंगे। ऊंच पद पाने के लिए बहुत मेहनत करनी है। मुख्य मेहनत है योग की। यह है याद की यात्रा, जो बाप के सिवाए और कोई सिखला नहीं सकते। अभी तुम मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ते हो। तुम जानते हो कि हम फिर से नई दुनिया में जायेंगे। उसका नाम ही है अमरलोक। यह है मृत्युलोक। यहाँ तो अचानक बैठे-बैठे मौत आ जाता है। वहाँ मृत्यु का नाम-निशान नहीं क्योंकि आत्मा को तो वास्तव में काल खाता नहीं। कोई मिठाई की चीज़ थोड़ेही है। ड्रामा अनुसार जब समय होता है तो आत्मा चली जाती है। जिस समय जिसको जाना होता है, वह चला जाता है। काल कोई पकड़ता नहीं है। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। काल कुछ भी नहीं है। यह तो कथायें बैठ बनाई हैं। वह है अमरलोक, वहाँ निरोगी काया रहती है। सतयुग में भारतवासियों की आयु भी बड़ी थी, योगी थे। योगी और भोगी का फर्क भी अब मालूम पड़ता है। तुम्हारी आयु वृद्धि को पा रही है। जितना तुम योग में रहेंगे, उतना पाप भस्म होंगे और पद भी ऊंच मिलेगा, आयु भी बड़ी होगी। यथा राजा रानी आयु पूरी कर शरीर छोड़ते हैं, प्रजा का भी ऐसा होता है। परन्तु पद का फर्क है।

अब बाप तुमको कहते हैं – स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों, यह अलंकार तुम्हारे हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान तुम रहते हो। सिवाए तुम्हारे और कोई रह न सकें। यह भी स्मृति आई है कि इस जन्म में हमने कितने पाप किये हैं इसलिए बाबा कहते हैं वह सब अविनाशी सर्जन के आगे रखो तो हल्के हो जायेंगे। बाकी जन्म-जन्मान्तर के पाप जो सिर पर हैं, उसके लिए योग में रहना है। योग से ही पाप कटेंगे और खुशी भी रहेगी। बाप की याद से सतोप्रधान बन जायेंगे। मालूम है कि हम याद से यह बनेंगे तो कौन याद नहीं करेगा। परन्तु यह युद्ध का मैदान है, मेहनत करनी पड़ती है इतना ऊंच पद पाने के लिए। यह भी बच्चों को स्मृति आई है कि बेहद के बाप से हम ऊंच ते ऊंच वर्सा लेते हैं, कल्प-कल्प लेते हैं। तुम्हारे पास बहुत आयेंगे, आकर महामन्त्र लेंगे मनमनाभव का। मनमनाभव का अर्थ है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। यह है महान् मन्त्र, महान् आत्मा बनने के लिए। वह कोई महात्मा है नहीं। महात्मा तो वास्तव में श्रीकृष्ण को कहा जाता है क्योंकि वह पवित्र है। देवतायें सदैव पवित्र रहते हैं। देवताओं का है प्रवृत्ति मार्ग, संन्यासियों का है निवृति मार्ग। स्त्रियाँ तो धक्के खा न सकें। यह सब अभी कलियुग में खराबियाँ हो गई हैं। स्त्रियों को भी संन्यासी बनाकर ले जाते हैं। फिर भी उन्हों की पवित्रता पर भारत थमा रहता है। जैसे पुराने मकान को पोची आदि लगाई जाती है तो जैसे नया बन जाता है। यह संन्यासी भी पोची दे कुछ बचाव करते हैं। परन्तु बाप कहते हैं वह धर्म ही अलग है, पवित्र बनते हैं।

भारत खण्ड में ही इतने देवी-देवताओं के मन्दिर भक्ति आदि है। यह भी खेल है, जिसका वृतान्त तुम बताते हो। भक्ति मार्ग के लिए यह सब भी चाहिए ना। एक शिव के ही कितने नाम रख दिये हैं। नाम पर मन्दिर बनता गया है। ढेर के ढेर मन्दिर हैं। कितना खर्चा होता है। मिलता फिर भी आधाकल्प का सुख है। बस, बहुत पैसे लगाते हैं, मूर्तियाँ टूट फूट जाती हैं। वहाँ तो मन्दिर आदि की दरकार नहीं है। यह भी अभी स्मृति आई है कि आधाकल्प भक्ति चलती है, आधाकल्प फिर भक्ति का नाम नहीं। बाप कितनी स्मृति दिलाते हैं – इस वैराइटी झाड़ की। सिर्फ कलियुग की आयु ही 40 हजार वर्ष हो फिर तो क्रिश्चियन आदि की आयु भी बहुत बढ़ जाये। बाप समझाते हैं क्रिश्चियन धर्म की इतनी ही लिमिट है। यह जानते हैं, क्राइस्ट को इतना समय हुआ है, फलाने को इतना समय हुआ धर्म स्थापन किये, लेकिन फिर जायेंगे कब? यह पता नहीं है। कल्प की आयु ही लम्बी कर दी है। अभी तुम जानते हो यह तो विनाश की तैयारियाँ हो रही हैं। उन्हों की है साइन्स, तुम्हारी है साइलेन्स। तुम जितना साइलेन्स में जायेंगे उतना वह विनाश के लिए अच्छी-अच्छी चीजें तैयार करते रहेंगे। दिन-प्रतिदिन महीन चीजें बनाते रहते हैं। तुमको अन्दर में खुशी होती है – बाबा तो हमारे लिए नई दुनिया बनाने आये हैं। तो अब हम पुरानी दुनिया में थोड़ेही रहेंगे। कमाल है बाबा की। बाबा आपके स्वर्ग स्थापन करने की तो कमाल है। अभी तुमको सारी स्मृति आई है। वह तो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते ही नहीं हैं। तुम जानते हो। तुम कितनी रोशनी में हो। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में है। फर्क है ना। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश। भक्ति वाले ज्ञान को नहीं जानते हैं। अभी तुम भक्ति को भी जानते हो तो ज्ञान को भी जानते हो। सारी स्मृति आई है – भक्ति कब शुरू होती है, फिर कब पूरी होती है। बाप कब ज्ञान देते हैं, पूरा कब होगा, सब स्मृति है। नम्बरवार तो हैं ही। किसको बहुत स्मृति है, किसको कम। जिन्हों को बहुत स्मृति रहती है, वह ऊंच पद पायेंगे। स्मृति रहे तब औरों को भी समझायें। वन्डरफुल स्मृति है ना। आगे तुम्हारी बुद्धि में क्या था। भक्ति, जप, तप, तीर्थ करना, माथा टेकना, सारी टिप्पड़ ही घिस गई है। भक्ति की स्मृति और ज्ञान में कितना फर्क है। तुम अभी भक्ति को जानते हो क्योंकि शुरू से भक्ति की है। जानते हो हमने पहले-पहले शिव की भक्ति की, फिर देवताओं की। और कोई को भी यह स्मृति नहीं है, तुमको रचना के आदि-मध्य-अन्त, भक्ति आदि की सब स्मृति है। आधाकल्प भक्ति करते-करते गिरते ही आये हो।

अभी तो दु:ख के पहाड़ गिरने हैं। तुम बच्चों को पुरूषार्थ करना है, यह गिरने से पहले हम याद की यात्रा से विकर्म विनाश करें। सबको तुम यही समझाते हो, तुम्हारे पास हज़ारों आते हैं। तुम मेहनत करते हो भाई-बहिनों को रास्ता बताने की। ज्ञान और भक्ति की स्मृति आई है। गोया तुम सारे ड्रामा को नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जान गये हो। जो जितना अच्छी रीति जानते हैं वह समझा भी सकते हैं। समझाना तो बच्चों को ही है। गायन भी है सन शोज़ फादर। बाप बच्चों को समझायेंगे, बच्चे फिर और भाइयों को समझायेंगे। आत्माओं को समझाते हो ना। भक्ति से यह ज्ञान बिल्कुल न्यारा है। गायन भी है ना – एक भगवान आकर सब भक्तों को फल देते हैं। एक बाप के सब बच्चे हैं। बाप कहते मैं सब बच्चों को शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाता हूँ। कल्प-कल्प का यह ज्ञान भी तुमको अभी है, वहाँ नहीं होगा। तुम पतित बनते हो तो पावन बनाने के लिए बाप तुम पर कितनी मेहनत करते हैं इसलिए गायन है कुर्बान जाऊं…. वारी जाऊं….। किस पर? बाप पर। फिर बाप मिसाल बताते हैं – यह कुर्बान कैसे गया। फालो इस सैम्पुल को करो। यही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अगर इतना ऊंच पद पाना है तो ऐसा कुर्बान जाना है। साहूकार कभी कुर्बान हो न सकें। यहाँ तो स्वाहा करना पड़े। साहूकार को स्मृति जरूर आयेगी। गायन भी है ना अन्तकाल जो स्त्री सिमरे….. इतने सब पैसे क्या करेंगे। कोई लेगा ही नहीं क्योंकि सब खत्म हो जाने हैं। मैं भी लेकर क्या करूंगा। शरीर सहित सब कुछ खलास होना है। आप मुये मर गई दुनिया। यह धन आदि कुछ भी नहीं रहेगा। बाकी गरूड़ पुराण आदि में तो रोचक बातें डाल दी हैं, डराने के लिए।

बाप कहते हैं यह शास्त्र आदि हैं भक्ति मार्ग के। आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है। जबकि रावणराज्य होता है। कोई से पूछो रावण कब से जलाते हो? तो कहेंगे परम्परा से। अरे परम्परा से तो रावण होता ही नहीं। मालूम ही नहीं है तो कह देते हैं परम्परा से। तुम बच्चों को अब स्मृति आई है – रावण राज्य कब से शुरू होता है। रचता, रचना का राज़ भी तुम समझते हो। अब बाप कहते हैं – बच्चे, मामेकम् याद करो तो पाप कटें। एक-दो को यही सावधानी देते रहो। घूमने-फिरने आपस में जाओ तो भी यह बातें करो। सारा झुण्ड तुम्हारा इस याद की अवस्था में चक्र लगाये तो तुम्हारे शान्ति का प्रभाव बहुत पड़ेगा। पादरी लोग भी बहुत साइलेन्स मे जाते हैं, क्राइस्ट की याद में। कोई तरफ देखते भी नहीं हैं। तुम तो यहाँ बहुत याद में रह सकते हो, कोई गोरखधन्धा नहीं है। बहुत अच्छा वायुमण्डल है। बाहर में तो बहुत छी-छी वायुमण्डल रहता है इसलिए संन्यासियों के आश्रम भी बहुत दूर-दूर होते हैं। तुम्हारा तो है ही बेहद का संन्यास। पुरानी दुनिया अब गई की गई। यह कब्रिस्तान है फिर परिस्तान होना है। वहाँ हीरे-जवाहरों के महल बनेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण परिस्तान के मालिक थे ना। अब नहीं हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ। यह सारा चक्र रिपीट होता ही रहता है। इस समय तुमको सब स्मृति आई है, जबकि बाप ने स्मृति दिलाई है। आगे कुछ भी बुद्धि में नहीं था। इस स्मृति के नशे में जब रहेंगे तो किसको उस खुशी से समझा भी सकेंगे। स्मृति में रहते तुम्हें घरबार सम्भालना है। अच्छा!

सदा स्मृति के नशे में रहने वाले मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) फुल मार्क्स से पास होने के लिए अपनी बुद्धि को सतोप्रधान पारस बनाना है। मोटी बुद्धि से महीन बुद्धि बन ड्रामा के विचित्र राज़ को समझना है।

2) अभी बाप समान दिव्य और अलौकिक कर्म करने हैं। डबल अहिंसक बन योगबल से अपने विकर्म विनाश करने हैं।

वरदान:-

कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो। कर्मयोगी आत्मा सदा ही कर्म और योग का साथ अर्थात् बैलेन्स रखने वाली होगी। कर्म और योग का बैलेन्स होने से हर कर्म में बाप द्वारा तो ब्लैसिंग मिलती ही है लेकिन जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं। कोई अच्छा काम करता है तो दिल से उसके लिए दुआयें निकलती हैं कि बहुत अच्छा है। बहुत अच्छा मानना ही दुआयें हैं।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top