26 July 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
25 July 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - यह अनादि ड्रामा फिरता ही रहता है, टिक-टिक होती रहती है, इसमें एक का पार्ट न मिले दूसरे से, इसे यथार्थ समझकर सदा हर्षित रहना है''
प्रश्नः-
किस युक्ति से तुम सिद्ध कर बता सकते हो कि भगवान् आ चुका है?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, सृष्टि तो यही है। बाप को भी यहाँ आना पड़ता है समझाने के लिए। मूलवतन में तो नहीं समझाया जाता। स्थूल वतन में ही समझाया जाता है। बाप जानते हैं बच्चे सब पतित हैं। कोई काम के नहीं रहे हैं। इस दुनिया में दु:ख ही दु:ख है। बाप ने समझाया है अभी तुम विषय सागर में पड़े हो। असुल में तुम क्षीरसागर में थे। विष्णुपुरी को क्षीरसागर कहा जाता है। अब क्षीर का सागर तो यहाँ मिल न सके। तो तलाव बना दिया है। वहाँ तो कहते हैं दूध की नदियाँ बहती थी, गायें भी वहाँ की फर्स्ट क्लास नामीग्रामी हैं। यहाँ तो मनुष्य भी बीमार हो पड़ते हैं, वहाँ तो गायें भी कभी बीमार नहीं पड़ती। फर्स्टक्लास होती हैं। जानवर आदि कोई बीमार नहीं होते। यहाँ और वहाँ में बहुत फ़र्क है। यह बाप ही आकर बताते हैं। दुनिया में दूसरा कोई जानता नहीं। तुम जानते हो यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, जबकि बाप आते हैं सबको वापिस ले जाते हैं। बाप कहते हैं जो भी बच्चे हैं कोई अल्लाह को, कोई गॉड को, कोई भगवान् को पुकारते हैं। मेरे नाम तो बहुत रख दिये हैं। अच्छा-बुरा जो आया सो नाम रख देते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। दुनिया तो यह समझ न सके। समझेंगे वही जिन्होंने 5 हज़ार वर्ष पहले समझा है इसलिए गायन है कोटों में कोई, कोई में भी कोई। मैं जो हूँ जैसा हूँ, बच्चों को क्या सिखाता हूँ, वह तो तुम बच्चे ही जानते हो और कोई समझ न सके। यह भी तुम जानते हो हम कोई साकार से नहीं पढ़ते हैं। निराकार पढ़ाते हैं। मनुष्य जरूर मूँझेंगे, निराकार तो ऊपर में रहते हैं, वह कैसे पढ़ायेंगे! तुम निराकार आत्मा भी ऊपर में रहती हो। फिर इस तख्त पर आती हो। यह तख्त विनाशी है, आत्मा तो अकाल है। वह कभी मृत्यु को नहीं पाती। शरीर मृत्यु को पाता है। यह है चैतन्य तख्त। अमृतसर में भी अकालतख्त है ना। वह तख्त है लकड़ी का। उन बिचारों को पता नहीं है अकाल तो आत्मा है, जिसको कभी काल नहीं खाता। अकाल-मूर्त आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। उनको भी रथ तो चाहिए ना। निराकार बाप को भी जरूर रथ चाहिए मनुष्य का क्योंकि बाप है ज्ञान का सागर, ज्ञानेश्वर। अब ज्ञानेश्वर नाम तो बहुतों के हैं। अपने को ईश्वर समझते हैं ना। सुनाते हैं भक्ति के शास्त्रों की बातें। नाम रखाते हैं ज्ञानेश्वर अर्थात् ज्ञान देने वाला ईश्वर। वह तो ज्ञान सागर चाहिए। उनको ही गॉड फादर कहा जाता है। यहाँ तो ढेर भगवान् हो गये हैं। जब बहुत ग्लानि हो जाती, बहुत गरीब हो जाते, दु:खी हो जाते हैं तब ही बाप आते हैं। बाप को कहा जाता है गरीब-निवाज़। आखरीन वह दिन आता है, जो गरीब-निवाज़ बाप आते हैं। बच्चे भी जानते हैं बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। वहाँ तो अथाह धन होता है। पैसे कभी गिने नहीं जाते। यहाँ हिसाब निकालते हैं, इतने अरब खरब खर्चा हुआ। वहाँ यह नाम ही नहीं, अथाह धन रहता है।
अभी तुम बच्चों को मालूम पड़ा है बाबा आया हुआ है, हमको अपने घर ले जाने लिए। बच्चों को अपना घर भूल गया है। भक्ति मार्ग के धक्के खाते रहते हैं, इसको कहा जाता है रात। भगवान् को ढूँढते ही रहते हैं, परन्तु भगवान् कोई को मिलता नहीं। अभी भगवान् आया हुआ है, यह भी तुम बच्चे जानते हो, निश्चय भी है। ऐसे नहीं सबको पक्का निश्चय है। कोई न कोई समय माया भुला देती है, तब बाप कहते हैं आश्चर्यवत् मेरे को देखन्ती, मेरा बनन्ती, औरों को सुनावन्ती, अहो माया तुम कितनी जबरदस्त हो जो फिर भी भागन्ती करा देती हो। भागन्ती तो ढेर होते हैं। फारकती देवन्ती हो जाते हैं। फिर वह कहाँ जाकर जन्म लेंगे! बहुत हल्का जन्म पायेंगे। इम्तहान में नापास हो पड़ते हैं। यह है मनुष्य से देवता बनने का इम्तहान। बाप ऐसे तो नहीं कहेंगे कि सब नारायण बनेंगे। नहीं, जो अच्छा पुरूषार्थ करेंगे, वे पद भी अच्छा पायेंगे। बाप समझ जाते हैं कौन अच्छे पुरूषार्थी हैं – जो औरों को भी मनुष्य से देवता बनाने का पुरूषार्थ कराते हैं अर्थात् बाप की पहचान देते हैं। आजकल आपोजीशन में कितने मनुष्य अपने को ही भगवान् कहते रहते हैं। तुमको अबलायें समझते हैं। अब उन्हों को कैसे समझायें कि भगवान् आया हुआ है, सीधा किसको कहेंगे भगवान् आया है, तो ऐसे कभी मानेंगे नहीं इसलिए समझाने की भी युक्ति चाहिए। ऐसे कभी किसी को कहना नहीं चाहिए कि भगवान् आया हुआ है। उनको समझाना है तुम्हारे दो बाप हैं। एक है पारलौकिक बेहद का बाप, दूसरा लौकिक हद का बाप। अच्छी रीति परिचय देना चाहिए, जो समझें कि यह ठीक कहते हैं। बेहद के बाप से वर्सा कैसे मिलता है – यह कोई नहीं जानते। वर्सा मिलता ही है बाप से। और कोई भी ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि मनुष्य को दो बाप होते हैं। तुम सिद्ध कर बतलाते हो, हद के लौकिक बाप से हद का वर्सा और पारलौकिक बेहद बाप से बेहद अर्थात् नई दुनिया का वर्सा मिलता है। नई दुनिया है स्वर्ग, सो तो जब बाप आये तब ही आकर देवे। वह बाप है ही नई सृष्टि का रचने वाला। बाकी तुम सिर्फ कहेंगे भगवान् आया हुआ है – तो कभी मानेंगे नहीं, और ही टीका करेंगे। सुनेंगे ही नहीं। सतयुग में तो समझाना नहीं होता। समझाना तब पड़ता है, जब बाप आकर शिक्षा देते हैं। सुख में सिमरण कोई नहीं करते हैं, दु:ख में सब करते हैं। तो उस पारलौकिक बाप को ही कहा जाता है दु:खहर्ता सुख कर्ता। दु:ख से लिबरेट कर गाइड बन फिर ले जाते हैं अपने घर स्वीट होम। उनको कहेंगे स्वीट साइलेन्स होम। वहाँ हम कैसे जायेंगे – यह कोई भी नहीं जानते। न रचता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। तुम जानते हो हमको बाबा निर्वाणधाम ले जाने के लिए आया हुआ है। सब आत्माओं को ले जायेंगे। एक को भी छोड़ेंगे नहीं। वह है आत्माओं का घर, यह है शरीर का घर। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना चाहिए। वह निराकार बाप है, उनको परमपिता भी कहा जाता है। परमपिता अक्षर राइट है और मीठा है। सिर्फ भगवान्, ईश्वर कहने से वर्से की खुशबू नहीं आती है। तुम परमपिता को याद करते हो तो वर्सा मिलता है। बाप है ना। यह भी बच्चों को समझाया है सतयुग है सुखधाम। स्वर्ग को शान्तिधाम नहीं कहेंगे। शान्तिधाम जहाँ आत्मायें रहती हैं। यह बिल्कुल पक्का करा लो।
बाप कहते हैं – बच्चे, तुमको यह वेद-शास्त्र आदि पढ़ने से कुछ भी प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र पढ़ते ही हैं भगवान् को पाने के लिए और भगवान् कहते हैं मैं किसको भी शास्त्र पढ़ने से नहीं मिलता हूँ। मुझे यहाँ बुलाते ही हैं कि आकर इस पतित दुनिया को पावन बनाओ। यह बातें कोई समझते नहीं हैं, पत्थरबुद्धि हैं ना। स्कूल में बच्चे नहीं पढ़ते हैं तो कहते हैं ना कि तुम तो पत्थरबुद्धि हो। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। पारसबुद्धि बनाने वाला है ही परमपिता बेहद का बाप। इस समय तुम्हारी बुद्धि है पारस क्योंकि तुम बाप के साथ हो। फिर सतयुग में एक जन्म में भी इतना ज़रा फ़र्क जरूर पड़ता है। 1250 वर्ष में 2 कला कम होती हैं। सेकण्ड बाई सेकण्ड 1250 वर्ष में कला कम होती जाती हैं। तुम्हारा जीवन इस समय एकदम परफेक्ट बनता है जबकि तुम बाप मिसल ज्ञान का सागर, सुख-शान्ति का सागर बनते हो। सब वर्सा ले लेते हो। बाप आते ही हैं वर्सा देने। पहले-पहले तुम शान्तिधाम में जाते हो, फिर सुखधाम में जाते हो। शान्तिधाम में तो है ही शान्ति। फिर सुखधाम में जाते हो, वहाँ अशान्ति की ज़रा भी बात नहीं। फिर नीचे उतरना होता है। मिनट बाई मिनट तुम्हारी उतराई होती है। नई दुनिया से पुरानी होती जाती है। तब बाबा ने कहा था हिसाब निकालो, 5 हज़ार वर्ष में इतने मास, इतने घण्टे……. तो मनुष्य वण्डर खायेंगे। यह हिसाब तो पूरा बताया है। एक्यूरेट हिसाब लिखना चाहिए, इसमें ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। मिनट बाई मिनट टिक-टिक होती रहती है। सारा रील रिपीट होता, फिरता-फिरता फिर रोल होता जाता है फिर वही रिपीट होगा। यह ह्यूज़ रोल बड़ा वण्डरफुल है। इनका माप आदि नहीं कर सकते। सारी दुनिया का जो पार्ट चलता है, टिक-टिक होती रहती है। एक सेकण्ड न मिले दूसरे से। यह चक्र फिरता ही रहता है। वह होता है हद का ड्रामा, यह है बेहद का ड्रामा। आगे तुम कुछ भी नहीं जानते थे कि यह अविनाशी ड्रामा है। बनी बनाई बन रही……. जो होना है वही होता है। नई बात नहीं है। अनेक बार सेकण्ड बाई सेकण्ड यह ड्रामा रिपीट होता आया है। और कोई यह बातें समझा न सके। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है, बेहद का बाप बेहद का वर्सा देते हैं। उनका एक ही नाम है शिव। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब अति धर्म ग्लानि होती है, इसको कहा जाता है घोर कलियुग। यहाँ बहुत दु:ख है। कई हैं, जो कहते हैं ऐसे घोर कलियुग में पवित्र कैसे रह सकते हैं! परन्तु उन्हों को यह पता ही नहीं है कि पावन बनाने वाला कौन है? बाप ही संगम पर आकर पवित्र दुनिया स्थापन करते हैं। वहाँ स्त्री-पुरूष दोनों पवित्र रहते हैं। यहाँ दोनों अपवित्र हैं। यह है ही अपवित्र दुनिया। वह है पवित्र दुनिया – स्वर्ग, हेविन। यह है दोज़क, नर्क, हेल। तुम बच्चे समझ गये हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। समझाने में भी मेहनत है। गरीब झट समझ जाते हैं। दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जाती है, फिर मकान भी इतना बड़ा चाहिए। इतने बच्चे आयेंगे क्योंकि बाप तो अब कहाँ जायेगा नहीं। आगे तो बिगर कोई के कहे भी बाबा आपेही चले जाते थे। अभी तो बच्चे यहाँ आते रहेंगे। ठण्डी में भी आना पड़े। प्रोग्राम बनाना पड़ेगा। फलाने-फलाने समय पर आओ, फिर भीड़ नहीं होगी। सभी इकट्ठे एक ही समय तो आ न सकें। बच्चे वृद्धि को पाते रहेंगे। यहाँ छोटे-छोटे मकान बच्चे बनाते हैं, वहाँ तो ढेर महल मिलेंगे। यह तो तुम बच्चे जानते हो – पैसे सब मिट्टी में मिल जायेंगे। बहुत ऐसे करते हैं जो खड्डे खोदकर भी अन्दर रख देते हैं। फिर या तो चोर ले जाते, या फिर खड्डों में ही अन्दर रह जाते हैं, फिर खेती खोदने समय धन निकल आता है। अब विनाश होगा, सब दब जायेगा। फिर वहाँ सब कुछ नया मिलेगा। बहुत ऐसे राजाओं के किले हैं जहाँ बहुत सामान दबा हुआ है। बड़े-बड़े हीरे भी निकल आते हैं तो हज़ारों-लाखों की आमदनी हो जाती है। ऐसे नहीं कि तुम स्वर्ग में खोदकर ऐसे कोई हीरे आदि निकालेंगे। नहीं, वहाँ तो हर चीज़ की खानियाँ आदि सब नई भरपूर हो जायेंगी। यहाँ कलराठी जमीन है तो ताकत ही नहीं है। बीज जो बोते हैं उनमें दम नहीं रहा है। किचड़पट्टी अशुद्ध चीज़ें डाल देते हैं। वहाँ तो अशुद्ध चीज़ का कोई नाम नहीं होता है। एवरी-थिंग इज़ न्यू। स्वर्ग का साक्षात्कार भी बच्चियाँ करके आती हैं। वहाँ की ब्यूटी ही नेचुरल है। अभी तुम बच्चे उस दुनिया में जाने का पुरूषार्थ कर रहे हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) इस समय ही बाप समान परफेक्ट बन पूरा वर्सा लेना है। बाप की सब शिक्षाओं को स्वयं में धारण कर उनके समान ज्ञान का सागर, शान्ति-सुख का सागर बनना है।
2) बुद्धि को पारस बनाने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है। निश्चयबुद्धि बन मनुष्य से देवता बनने का इम्त-हान पास करना है।
वरदान:-
बाप की पदमगुणा मदद के पात्र बच्चे माया के वार को चैलेन्ज करते हैं कि आपका काम है आना और हमारा काम है विजय प्राप्त करना। वे माया के शेर रूप को चींटी समझते हैं क्योंकि जानते हैं कि यह माया का राज्य अब समाप्त होना है, हम अनेक बार के विजयी आत्माओं की विजय 100 परसेन्ट निश्चित है। यह निश्चित का नशा बाप की पदमगुणा मदद का अधिकार प्राप्त कराता है। इस नशे से सहज ही मायाजीत बन जाते हो।
स्लोगन:-
➤ रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!