26 August 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

26 August 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

25 August 2022

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - निरन्तर एक बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करो - यही है बेहद का सतोप्रधान पुरूषार्थ''

प्रश्नः-

तुम बच्चों को कौन सा संग करना है, कौन सा नहीं?

उत्तर:-

जो ज्ञान की रूहरिहान करते हैं, सर्विसएबुल हैं उनका ही संग करो बाकी जो झरमुई झगमुई करते हैं, फालतू बातें सुनाते हैं, उनके संग से दूर रहो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल…

प्रश्नः-

ग़फलत करने से कौन से नुकसान होते हैं?

उत्तर:-

जो गफलत में रहते उनसे हर समय भूलें होती रहती हैं। वह बाप का नाम बदनाम करते रहते हैं। उनसे सभी को ऩफरत आती है। वह गोल्डन एज में नहीं पहुँचते फिर बहुत कड़ी सजा के भागी बनते हैं।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

माता ओ माता..

ओम् शान्ति। यह है माताओं की महिमा। तुम सब मातायें हो। भारत माता शक्ति अवतार – ऐसे कहा जाता है क्योंकि अवतार एक का ही गाया जाता है। वह विश्व को पावन बनाने के लिए अवतार लेते हैं। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि परमपिता परमात्मा हमको पतित से पावन बनाने आये हैं। ब्रह्मा के तन में हैं। यह जो दिलवाला मन्दिर है – यह पूरा यादगार है। जो भी भक्तिमार्ग के यादगार हैं, यादगार होते ही इस संगम के हैं। सतयुग त्रेता में तो ऐसी बात होती नहीं, फिर रावण-राज्य में मनुष्य दु:खी होते हैं। रावण ही रजो तमो बनाते हैं। अब इस समय यह सृष्टि है तमोप्रधान। जब सृष्टि सतोप्रधान थी तो तुम बच्चे वहाँ राज्य करते थे। तुम्हारी बुद्धि में यह स्वदर्शन चक्र है। तुम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। ज्ञान देने वाला एक ही ज्ञान सागर है, जिसकी निशानी यह देलवाड़ा मन्दिर है और फिर अचलगढ़ और गुरूशिखर भी है। तुमको मालूम है – शिखर चोटी को कहा जाता है। पहाड़ी पर शिवबाबा का मन्दिर है। जिसके लिए कहा जाता है – ज्ञान अजंन… ज्ञान का सागर हुआ ना। यह बिल्कुल एक्यूरेट यादगार है। तुम बैठे भी यहाँ ही हो – चोटी पर चढ़ने लिए। परमपिता परमात्मा के गले की रूद्र माला बनने लिए। तुमको यहाँ ज्ञान मिलता है। फिर जब तुम अचल, स्थेरियम बनते हो तो तुम जाकर रूद्र माला बनते हो। जब तुम सतोप्रधान बन जाते हो तो तुम बाप के साथ निवास करते हो। यह जैसे डबल पियरघर है। प्रजापिता ब्रह्मा का भी है और शिवबाबा भी यहाँ आया है, तुम बच्चों को ज्ञान श्रृंगार कराने। यह है बेहद का पियरघर, ससुरघर, वह तो हद के होते हैं, कन्या ससुरघर जाकर जेवर आदि पहनती है, उसमें सुख समझती है। तुम अभी समझ गये हो कि हम बेहद के बाप के घर में बैठे हैं। ससुरघर जाने के लिए अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा कर रहे हैं। 21 जन्मों के लिए तुम्हारी झोली भर रही है। परन्तु तीव्रवेगी इतने नहीं हैं, सतोप्रधान को तीव्रवेगी कहा जाता है। कोई सतोगुणी और कोई अब तक भी रजोगुणी हैं। 3 प्रकार के पुरूषार्थी होते हैं। ऊंच ते ऊंच पुरूषार्थी सदैव बुद्धि में एक बाप को ही याद रखते हैं। ऊंच ते ऊंच है वह बाप। अभी तुम जानते हो हम बच्चे बेहद सुख में जा रहे हैं तो उसके लिए पुरूषार्थ भी बहुत अच्छा करना पड़े – बेहद का। आत्मा कहती है मैं आइरन एज में आ गई हूँ। अब परमपिता परमात्मा मिला है – कहते हैं बच्चे तुमको यहाँ पुरूषार्थ कर गोल्डन एज में जाना है। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब गोल्डन एज में आयेंगे। तमोप्रधान से फिर सतोप्रधान बनना है। सतोप्रधान भी सबको बनना है। तुम्हारा पार्ट ही सतयुग में है, इसलिए तुम सतोप्रधान बनते हो, परन्तु जाना तो सबको है ना। सबको नम्बरवार रूद्र माला में आना है। यह रूद्र माला कितनी बड़ी है। फिर है 8 और 108 रत्नों की वैजयन्ती माला, जो विष्णु के गले में दिखाते हैं।

तुम्हारा यादगार कितना एक्यूरेट दिलवाला मन्दिर बना हुआ है। नीचे तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में राजाई दिखाई है और मन्दिर में मुख्य जगदम्बा का भी नाम है। पार्ट तो तुम माताओं का है ना। बाप आकर गुरू पद तुम माताओं को ही देते हैं। यहाँ भी मैजारिटी माताओं की है इसलिए भारत माता शक्ति अवतार गाया जाता है। सेना भी कहा जाता है क्योंकि आपस में बहुत हैं ना। तुम देखते हो वृद्धि को पाते रहते हैं। संन्यासी घरबार छोड़ते हैं पवित्र बनने लिए, रावण राज्य शुरू होता है तो पवित्रता की जरूरत रहती है। उस समय हाहाकार हो जाता है। अर्थक्वेक आदि हुआ होगा। इतने सब महल आदि कहाँ गये! सब विनाश को पाते हैं वा सागर में चले जाते हैं। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, यह समझने की बात है। आइरन एज से फिर गोल्डन एज में जाना है। स्वर्ग है तुम्हारा बेहद का ससुरघर, जिसके लिए तुम पुरूषार्थ करते हो। पूरा ज्ञान हो, पूरा पुरूषार्थ करें तब खुशी का पारा चढ़े। अतीन्द्रिय सुख अन्त का गाया हुआ है। पिछाड़ी में तुमको पता पड़ जायेगा कि किस-किस ने कितना पुरूषार्थ किया! क्या पद पायेंगे! पिछाड़ी में समझेंगे, जब तक पुरूषार्थ कर गोल्डन एज तक पहुँच जायेंगे। जो नहीं पहुँचते हैं वह फिर सजा खाते हैं। अभी तो कयामत का समय है। सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। तुम चुक्तू करते रहते हो ज्ञान और योगबल से। गाया भी जाता है चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस… क्योंकि विकार में गिर पड़ते हैं। देह-अभिमान में आने के बाद ही विकार में गिरते हैं, फिर चढ़ न सकें। चढ़ते हैं फिर गिरते हैं, टाइम तो लगता है ना। ऐसा हो नहीं सकता जो सीधा चलता जाए। थोड़ी भी अवस्था अच्छी होती है फिर देह-अभिमान आ जाता है। महसूसता आती है कोई ग्रहचारी है। मन्सा में तूफान बहुत आते हैं। चढ़ने में तो टाइम लगता है। बाबा रोज़ समझाते रहते हैं कि बच्चे पढ़ाई रोज़ पढ़ो। प्वाइंट्स दिन-प्रतिदिन बहुत मिलती रहती हैं। बाप और वर्से को याद करो। यह नाटक पूरा होता है। हमको फिर से वर्सा लेना है। सतयुग में राजा रानी, प्रजा सब होंगे। जैसे कर्म अथवा जो पुरूषार्थ करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। लक्ष्मी-नारायण से ही राज्य शुरू होगा। वह होता है विकर्माजीत संवत, विकर्मों पर जीत पहनकर तुम अपना राज्य-भाग्य लेते हो। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पायेंगे। हर एक अपने पुरूषार्थ की रिजल्ट देखते चलो। हम कितना पुरूषार्थ करते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान में जाना है। आत्मा कहती है मुझे पुरूषार्थ करके सूर्यवंशी राजाई पानी है। हम तो पूरा पढ़कर बाप को पूरा याद करेंगे। तुमको अभी सारे ज्ञान की रोशनी मिलती है। भविष्य में तुम क्या बनेंगे! बहुत बच्चे ग़फलत करने के कारण भूल जाते हैं। अवज्ञा भी करते रहते हैं। बेहद बाप की निंदा कराने के निमित्त बन पड़ते हैं। क्रोध के कारण भी कितना नुकसान कर देते हैं। समझते हैं इनमें तो क्रोध का भूत है इसलिए कामी और क्रोधी से बहुत दूर रहना चाहिए, उनका संग नहीं करना चाहिए। संग उनका होना चाहिए जो ज्ञान की टिकलू-टिकलू करते हैं। ऐसे नहीं जो झरमुई झगमुई करते, किसकी निंदा करते – उनका संग हो। सिवाए ज्ञान के कोई बात नहीं सुनना चाहिए। यह बातें भी नामीग्रामी हैं। दिखाते भी हैं धूतियों के कारण राम-सीता को वनवास मिला। धूतीपना नुकसान कर देता है। हियर नो ईविल… उल्टी-सुल्टी बातें करने वालों के संग में कभी नहीं फँसना। बहुत नुकसान कर देते हैं। बेहद के बाप से बुद्धियोग तुड़ा देते हैं। पूरा योग नहीं तो फेल हो चन्द्रवंशी में चले जाते हैं। बाकी ऐसे नहीं कि रामराज्य में कोई रावण सीता को चुरा ले गया। नहीं, यह सब गिरावट की बातें हैं। द्वापर से लेकर पुकारते आते हैं क्योंकि गिरते हैं तब तो भगवान को आना पड़ता है। अगर सद्गति होती तो भगवान को आने की दरकार नहीं होती। सतयुग त्रेता में सद्गति है तो कोई भगवान को याद नहीं करते, कोई बुलाते ही नहीं। ड्रामा के राज़ को, चढ़ती कला, उतरती कला को कोई जानते ही नहीं। बाप सन्मुख बैठ समझाते हैं। सारी दुनिया को तो पढ़ना नहीं है। पढ़ेंगे वही जो कल्प पहले पढ़े थे। बाप सावधान करते रहते हैं। इस पढ़ाई से तुम्हारी आत्मा को पता पड़ा है कि हम कितना ऊंच थे। अब गिरे हैं। बाप कहते हैं पतित से पावन बन फिर गोल्डन एज में जाना है। याद के बल से एवरहेल्दी, ज्ञान के बल से एवरवेल्दी बनना है। पवित्रता का आर्डीनेंस निकाला है। पवित्र बनने से ही तुम अमरपद को पाते हो। तुम्हारा विनाश नहीं होता है। बाकी सब विनाश हो जाते हैं, हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे।

शिवबाबा कहते हैं पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। नहीं तो फिर सजायें खाकर जायेंगे। कितना बड़ा आर्डीनेंस है। तुम समझते हो बरोबर विनाश सामने खड़ा है, इसलिए हमको मजबूत हो जाना है। किसम-किसम की प्वाइंट्स बाबा सुनाते रहते हैं, सुननी चाहिए। अगर सुनेंगे नहीं तो माला में आ नहीं सकेंगे। माला में नम्बरवार आने हैं। बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। अच्छे स्टूडेन्ट अच्छी तरह पढ़ाई में लग जाते हैं। बाबा सेन्टर का रजिस्टर भी मंगाते हैं। बाबा सबको खबरदार भी करते हैं। पढ़ना जरूर है, इसमें कोई कारण दे नहीं सकते हैं। टाइम तो बच्चों को बहुत है। 8 घण्टा भी गवर्मेन्ट की नौकरी करो, बाकी टाइम में मेहनत करनी है। ख्याल करना है – सारे दिन में हम बाबा की सर्विस में कितना समय रहा? बाबा की याद में कितना समय रहा? कोई कोई बच्चों का चार्ट आता है परन्तु वह चार्ट जब सदैव के लिए रहे। ऐसे भी नहीं बाबा एक-एक का बैठ देखेंगे। यह फिर सेन्टर की ब्राह्मणियों का काम है। ब्राह्मणियों में भी नम्बरवार हैं। गोल्डन एज में कोई पहुँची नहीं हैं। उसमें अजुन समय पड़ा है। कोई तो और ही श्रीमत पर न चलने के कारण खिसक पड़ते हैं फिर उनको कोई मान भी नहीं देते हैं। कोई भी उनको पसन्द नहीं करते हैं।

तुम बच्चों को दुनियावी बातें बिल्कुल नहीं करनी है। कोई झरमुई झगमुई करते हैं तो समझो हमारा दुश्मन है। यह हमको गिराने वाला है। फालतू बातें नहीं करनी हैं। अपने को देखना है – कहाँ तक पहुँचे हैं। सतगुरू एक बाप है, उसमें यह ज्ञान भरा हुआ है। तुमको तो ऊपर गुरूशिखर (परमधाम) में जाना है। यह सब ज्ञान की बातें हैं। पहाड़ आदि की कोई बात नहीं है। सबसे पार चले जाना है। इन बातों को कोई जानते नहीं हैं। बाप कहते हैं – तुम पहले तमोप्रधान थे। अब तुमको सतोप्रधान बनना है। बहुत हैं जिनको यह भी निश्चय नहीं है, पूरा योग नहीं है। दूसरों को समझाते हैं, उन्हों का कल्याण हो जाता है। ऐसे नहीं वह कल्याण करते हैं। नहीं, वह तो अपने भाग्य अनुसार राज़ को समझ जाते हैं। ऐसे बहुत हैं जो ब्राह्मणी से भी तीखे चले जाते हैं। कई बच्चों में अभी तक देह-अभिमान बहुत है, पिछाड़ी में देह भी याद न रहे। संन्यासियों में भी कोई विरले ऐसे होते हैं जो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं और सन्नाटा हो जाता है। फिर भी गृहस्थियों के पास जाकर जन्म लेते हैं। फिर श्रेष्ठाचारी बनने के लिए जंगल में चले जाते हैं। माया का राज्य है ना। यह चक्र कैसे फिरता है उनको भी समझना है। बहुत बच्चियां हैं जिन्होंने बाबा को कब देखा भी नहीं है तो भी याद करती रहती हैं, तो जरूर ऊंच पद पायेंगे। सारा पुरूषार्थ का खेल है ना। कोई तो रात-दिन बहुत मेहनत करते हैं। तुम जानते हो इस पतित दुनिया में इस ही शरीर में तुमको सतोप्रधन बनना है। टाइम लगता है पावन बनने में। जब तक यह दुनिया है, यह पढ़ाई है तब तक पढ़ना है। जहाँ तक जीना है – वहाँ तक पीना है, ताकि कर्मातीत अवस्था में चले जायेंगे। इस देह से, दुनिया से बिल्कुल ममत्व निकल जाए। राजा रानी बनने में मेहनत है। जो पढ़ेंगे वह दिल रूपी तख्त पर बैठेंगे। अन्दर में समझते हैं, कहाँ तक मददगार हैं। बेहद का बाप अवस्था देख प्यार करेंगे ना! बाप कहते हैं अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। ऐसा काम नहीं करो जो दूसरे को ऩफरत आ जाए। बॉक्सिंग है ना। तुमको इस युद्ध में कितना टाइम लगता है। अच्छा!

मीठे-मीठे ज्ञान गुल्जारी, ज्ञान योग के पुरूषार्थी बच्चों को मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर अपना श्रृंगार करना है। अतीन्द्रिय सुख के लिए बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करना है।

2) धूतीपना बहुत नुकसान करता है इसलिए ज्ञान के सिवाए कोई भी बात सुननी सुनानी नहीं है। उल्टी बात सुनाने वालों के संग से बहुत दूर रहना है।

वरदान:-

ब्राह्मण जीवन में आदि से अब तक जो भी प्राप्तियां हुई हैं-उनकी लिस्ट स्मृति में लाओ तो सार रूप में यही कहेंगे कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मण जीवन में, और यह सब अविनाशी प्राप्तियां हैं। इन प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज रूप में रहे अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो तो खुशी में उड़ते मंजिल पर सहज ही पहुंच जायेंगे। प्राप्ति की खुशी कभी नीचे हलचल में नहीं लायेगी क्योंकि सम्पन्नता अचल बनाती है।

स्लोगन:-

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