25 July 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
24 July 2021
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
तन, मन की थकावट मिटाने का साधन - “शक्तिशाली याद''
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज परदेशी बाप अपने अनादि देशवासी और आदि देशवासी सेवा-अर्थ सभी विदेशी, ऐसे बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। बापदादा जानते हैं कि यही मेरे सिकीलधे लाडले बच्चे हैं, अनादि देश परमधाम के निवासी हैं और साथ-साथ सृष्टि के आदि के इसी भारत भूमि में जब सतयुगी स्वदेश था, अपना राज्य था जिसको सभी भारत कहते हैं, तो आदि में इसी भारतदेश-वासी थे। इसी भारत भूमि में ब्रह्मा बाप के साथ-साथ राज्य किया है। अनेक जन्म अपने राज्य में सुख-शान्ति सम्पन्न अनेक जीवन व्यतीत किये हैंइसलिए आदि देशवासी होने के कारण भारत भूमि से दिल का स्नेह है। चाहे कितना भी अभी अन्त में भारत गरीब वा धूल-मिट्टी वाला बन गया है, फिर भी अपना देश सो अपना ही होता है। तो आप सभी की आत्मा का अपना देश और शरीरधारी देवता जीवन का अपना देश कौन सा था? भारत ही था ना। कितने जन्म भारत भूमि में रहे हो, वह याद है? 21 जन्मों का वर्सा सभी ने बाप से प्राप्त कर लिया है, इसलिए 21 जन्म की तो गैरन्टी है ही है। बाद में भी हर एक आत्मा के कई जन्म भारत भूमि में ही हुए हैं क्योंकि जो ब्रह्मा बाप के समीप आत्मायें हैं, समान बनने वाली आत्मायें हैं, वह ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी का पार्ट भी साथ में बजाती हैं। द्वापर युग के पहले भक्त आप ब्राह्मण आत्मायें बनती हो। आदि स्वर्ग में इसी देश के वासी थे और अनेक बार भारत-भूमि के देशवासी हो। इसलिए ब्राह्मणों के अलौकिक संसार ‘मधुबन’ से अति प्यार है। यह मधुबन ब्राह्मणों का छोटा-सा संसार है। तो यह संसार बहुत अच्छा लगता है ना। यहाँ से जाने को दिल नहीं होती है ना। अगर अभी-अभी ऑर्डर कर लें कि मधुबन निवासी बन जाओ, तो खुश होंगे ना। वा यह संकल्प आयेगा कि सेवा कौन करेगा? सेवा के लिए तो जाना ही चाहिए। बापदादा कहे – बैठ जाओ, फिर भी सेवा याद आयेगी? सेवा कराने वाला कौन है? जो बाप का डॉयरेक्शन हो, श्रीमत हो, उसको उसी रूप में पालन करना – इसको कहते हैं सच्चा आज्ञाकारी बच्चा। बापदादा जानते हैं – मधुबन में बिठाना है वा सेवा पर भेजना है। ब्राह्मण बच्चों को हर बात में एवररेडी रहना है। अभी-अभी जो डॉयरेक्शन मिले उसमें एवररेडी रहना। संकल्प मात्र भी मनमत मिक्स न हो, इसको कहते हैं श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मा।
यह तो जानते हो ना कि सेवा के जिम्मेवार बापदादा है। वा आप हैं? इस जिम्मेवारी से तो आप हल्के हो ना कि जिम्मेवारी का थोड़ा-थोडा बोझा है? इतना बड़ा प्रोग्राम करना है, यह करना है – बोझ तो नहीं समझते हो ना। करावनहार करा रहा है। करावनहार एक ही बाप है, किसी की भी बुद्धि को टच कर विश्व-सेवा का कार्य कराते रहे हैं और कराते रहेंगे। सिर्फ निमित्त बच्चों को इसलिए बनाते हैं कि जो करेगा सो पायेगा। पाने वाले बच्चे हैं, बाप को पाना नहीं है। प्रालब्घ पाना या सेवा का फल अनुभव होना – यह आत्माओं का काम है, इसलिए निमित्त बच्चों को बनाते हैं। साकार रूप में भी सेवा कराने का कार्य देखा और अभी अव्यक्त रूप में भी करावनहार बाप अव्यक्त ब्रह्मा द्वारा भी कैसे सेवा करा रहा है यह भी देख रहे हो। अव्यक्त सेवा की गति और ही तीव्रगति है! कराने वाला करा रहा है और आप कठपुतली के समान नाच रहे हो। यह सेवा भी एक खेल है। कराने वाला करा रहा है और आप निमित्त बन एक कदम का पद्मगुणा प्रालब्ध बना रहे हो। तो बोझ किसके ऊपर है? कराने वाले पर या करने वाले पर? बाप तो जानते हैं – यह भी बोझ नहीं है। आप बोझ कहते हो तो बाप भी बोझ शब्द कहते हैं। बाप के लिए तो सब हुआ ही पड़ा है। सिर्फ जैसे लकीर खींची जाती है, लकीर खींचना बड़ी बात लगती है क्या? तो ऐसे बापदादा सेवा कराते हैं। सेवा भी इतनी ही सहज है जैसे एक लकीर खींचना। रिपीट कर रहे हैं, निमित्त खेल कर रहे हैं।
जैसे माया का विघ्न खेल है, तो सेवा भी मेहनत नहीं लेकिन खेल है – ऐसे समझने से सेवा में सदा ही रिफ्रेशमेन्ट अनुभव करेंगे। जैसे कोई खेल किसलिए करते हैं? थकने के लिए नहीं, रिफ्रेश होने के लिए खेल करते हैं। चाहे कितना भी बड़ा कार्य हो लेकिन ऐसा ही अनुभव करेंगे जैसे खेल करने से रिफ्रेश हो जाते हैं। चाहे कितना भी थकाने वाला खेल हो लेकिन खेल समझने से थकावट नहीं होती क्योंकि अपने दिल की रूचि से खेल किया जाता है। चाहे खेल में कितना भी हार्ड-वर्क करना पड़े लेकिन वह भी मनोरंजन लगता है क्योंकि अपनी दिल से करते हो। और कोई लौकिक कार्य बोझ मिसल होता है, निर्वाह अर्थ करना ही पड़ेगा। ड्यूटी समझ करते हैं, इसलिए मेहनत लगती है। चाहे शारीरिक मेहनत का, चाहे बुद्धि की मेहनत का काम है, लेकिन ड्यूटी समझ करने से थकावट अनुभव करेंगे क्योंकि वह दिल की खुशी से नहीं करते, जो अपने मन के उमंग से, खुशी से कार्य किया जाता है, उसमें थकावट नहीं होती, बोझ अनुभव नहीं होता। कहाँ-कहाँ बच्चों के ऊपर सेवा के हिसाब से ज्यादा कार्य भी आ जाता है, इसलिए भी कभी-कभी थकावट फील (अनुभव) होती है। बापदादा देखते हैं कि कई बच्चे अथक बन सेवा करने के उमंग-उत्साह में भी रहते हैं। फिर भी हिम्मत रख आगे बढ़ रहे हैं – यह देख बापदादा हर्षित भी होते हैं। फिर भी सदा बुद्धि को हल्का जरूर रखो।
बापदादा बच्चों के सब प्लैन, प्रोग्राम वतन में बैठे भी देखते रहते हैं। हर एक बच्चे की याद और सेवा का रिकार्ड बापदादा के पास हर समय का रहता है। जैसे आपकी दुनिया में रिकार्ड रखने के कई साधन हैं। बाप के पास साइन्स के साधनों से भी रिफाइन साधन है, स्वत: ही कार्य करते रहते। जैसे साइन्स के साधन जो भी कार्य करते, वह लाइट के आधार से करते। सूक्ष्मवतन तो है ही लाइट का। साकार वतन की लाइट के साधन फिर भी प्रकृति के साधन है, लेकिन अव्यक्त वतन के साधन प्रकृति के नहीं हैं। और प्रकृति रूप बदलती है, सतो, रजो, तमो में परिवर्तन होती हैं। इस समय तो है ही तमो-गुणी प्रकृति, इसलिए यह साधन आज चलेंगे, कल नहीं चलेंगे। लेकिन अव्यक्त वतन के साधन प्रकृति से परे हैं, इसलिए वह परिवर्तन में नहीं आते। जब चाहो, जैसे चाहो सूक्ष्म साधन सदा ही अपना कार्य करते रहते हैं इसलिए सब बच्चों के रिकार्ड देखना बापदादा के लिए बड़ी बात नहीं है। आप लोगों को तो साधनों को सम्भालना ही मुश्किल हो जाता है ना। तो बापदादा याद और सेवा का – दोनों ही रिकार्ड देखते हैं क्योंकि दोनों का बैलेन्स एकस्ट्रा ब्लैसिंग दिलाता है।
जैसे सेवा के लिए समय निकालते हो, तो उसमें कभी नियम से भी ज्यादा लगा देते हो। सेवा में समय लगाना बहुत अच्छी बात है और सेवा का बल भी मिलता है, सेवा में बिजी होने के कारण छोटी-छोटी बातों से बच भी जाते हो। बापदादा बच्चों की सेवा पर बहुत खुश हैं, हिम्मत पर बलिहार जाते हैं, लेकिन जो सेवा याद में, उन्नति में थोड़ा भी रूकावट करने के निमित्त होती है, तो ऐसी सेवा के समय को कम करना चाहिए। जैसे रात्रि को जागते हो, 12.00 वा 1.00 बजा देते हो तो अमृतवेला फ्रेश नहीं होगा। बैठते भी हो तो नियम प्रमाण। और अमृतवेला शक्तिशाली नहीं तो सारे दिन की याद और सेवा में अन्तर पड़ जाता है। मानो सेवा के प्लैन बनाने में वा सेवा को प्रैक्टिकल लाने में समय भी लगता है। तो रात के समय को कट करके 12.00 के बदले 11.00 बजे सो जाओ। वही एक घण्टा जो कम किया और शरीर को रेस्ट दी तो अमृतवेला अच्छा रहेगा, बुद्धि भी फ्रेश रहेगी। नहीं तो दिल खाती है कि सेवा तो कर रहे हैं लेकिन याद का चार्ट जितना होना चाहिए, उतना नहीं है। जो संकल्प दिल में वा मन में बार-बार आता है कि यह ऐसा होना चाहिए लेकिन हो नहीं रहा है, तो उस संकल्प के कारण बुद्धि भी फ्रेश नहीं होती। और बुद्धि अगर फ्रेश है तो फ्रेश बुद्धि से 2-3 घण्टे का काम 1 घण्टे में पूरा कर सकते हो। थकी हुई बुद्धि में टाइम ज्यादा लग जाता है, यह अनुभव है ना। और जितनी फ्रेश बुद्धि रहती, शरीर के हिसाब से भी फ्रेश और आत्मिक उन्नति के रूप में भी फ्रेश – डबल फ्रेशनेस (ताजगी) रहती तो एक घण्टे का कार्य आधा घण्टे में कर लेंगे, इसलिए सदैव अपनी दिनचर्या में फ्रेश बुद्धि रहने का अटेन्शन रखो। ज्यादा सोने की भी आदत न हो लेकिन जो आवश्यक समय शरीर के हिसाब से चाहिए उसका अटेन्शन रखो। कभी-कभी कोई सेवा का चांस होता है, मास दो मास में दो-चार बार देरी हो गई, वह दूसरी बात है, लेकिन अगर नियमित रूप से शरीर थका हुआ होगा तो याद में फ़र्क पड़ेगा। जैसे सेवा का प्रोग्राम बनाते हो, 4 घण्टे का समय निकालना है तो निकाल लेते हो। ऐसे याद का भी समय निश्चित निकालना ही है – इसको भी आवश्यक समझ इस विधि से अपना प्रोग्राम बनाओ। सुस्ती नहीं हो लेकिन शरीर को रेस्ट देना है – इस विधि से चलो क्योंकि दिन-प्रतिदिन सेवा का तो और ही तीव्रगति से आगे बढ़ने का समय आता जा रहा है। आप समझते हो – अच्छा, यह एक वर्ष का कार्य पूरा हो जायेगा, फिर रेस्ट कर लेंगे, ठीक कर लेंगे, याद को फिर ज्यादा बढ़ा लेंगे। लेकिन सेवा के कार्य तो दिन-प्रतिदिन नये से नये और बड़े से बड़े होने हैं इसलिए सदा बैलेन्स रखो। अमृतवेले फ्रेश हो, फिर वही काम सारे दिन में समय प्रमाण करो तो बाप की ब्लैसिंग भी एकस्ट्रा मिलेगी और बुद्धि भी फ्रेश होने के कारण बहुत जल्दी और सफलता-पूर्वक कार्य कर सकेगी। समझा?
बापदादा देख रहे हैं – बच्चों में उमंग बहुत है, इसलिए शरीर का भी नहीं सोचते। उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। आगे बढ़ाना बापदादा को अच्छा लगता है, फिर भी बैलेन्स अवश्य चाहिए। भल करते रहते हो, चलते रहते हो लेकिन कभी-कभी जैसे बहुत काम होता है तो बहुत काम में एक तो बुद्धि की थकावट होने के कारण जितना चाहते उतना नहीं कर पाते और दूसरा – बहुत काम होने के कारण थोड़ा-सा भी किसी द्वारा थोड़ी हलचल होगी तो थकावट के कारण चिड़चिड़ापन हो जाता। उससे खुशी कम हो जाती है। वैसे अन्दर ठीक रहते हो, सेवा का बल भी मिल रहा है, खुशी भी मिल रही है, फिर भी शरीर तो पुराना है ना इसलिए टू-मच में नहीं जाओ। बैलेन्स रखो। याद के चार्ट पर थकावट का असर नहीं होना चाहिए। जितना सेवा में बिजी रहते हो, भल कितना भी बिजी रहो लेकिन थकावट मिटाने का विशेष साधन हर घण्टे वा दो घण्टे में एक मिनट भी शक्तिशाली याद का अवश्य निकालो! जैसे कोई शरीर में कमजोर होता है तो शरीर को शक्ति देने के लिए डॉक्टर्स दो-दो घण्टे बाद ताकत की दवाई पीने लिए देते हैं। टाइम निकाल दवाई पीनी पड़ती है ना। तो बीच-बीच में एक मिनट भी अगर शक्तिशाली याद का निकालो तो उसमें ए. बी. सी. …. सब विटामिन्स आ जायेंगे।
सुनाया था ना कि शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती? जब हैं ही बाप के और बाप आपका, सर्व सम्बन्ध हैं, दिल का स्नेह है, नॉलेजफुल हो, प्राप्ति के अनुभवी हो, फिर भी शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती, उसका कारण क्या? अपनी याद का लिंक नहीं रखते। लिंक टूटता है, इसलिए फिर जोड़ने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते। विस्मृति तो हो नहीं सकती, याद रहती है। लेकिन सदा शक्तिशाली याद स्वत: रहे – उसके लिए यह लिंक टूटना नहीं चाहिए। हर समय बुद्धि में याद का लिंक जुटा रहे – उसकी विधि यह है। यह भी आवश्यक समझो। जैसे वह काम समझते हो कि आवश्यक है, यह प्लैन पूरा करके ही उठना है इसलिए समय भी देते हो, एनर्जी भी लगाते हो। वैसे यह भी आवश्यक है, इनको पीछे नहीं करो कि यह काम पहले पूरा करके फिर याद कर लेंगे, नहीं। इसका समय अपने प्रोग्राम में पहले एड करो। जैसे सेवा के प्लैन के लिए दो घण्टे का टाइम फिक्स करते हो – चाहे मीटिंग करते हो, चाहे प्रैक्टिकल करते हो, तो दो घण्टे के साथ-साथ यह भी बीच-बीच में करना ही है – यह एड करो। जो एक घण्टे में प्लैन बनायेंगे, वह आधा घण्टे में हो जायेगा। करके देखो। आपेही फ्रेशनेस से दो बजे आंख खुलती है, वह दूसरी बात है। लेकिन कार्य के कारण जागना पड़ता है तो उसका इफेक्ट (प्रभाव) शरीर पर आता है इसलिए बैलेन्स के ऊपर सदा अटेन्शन रखो।
बापदादा तो बच्चों को इतना बिजी देख यही सोचते कि इन्हों के माथे की मालिश होनी चाहिए। लेकिन समय निकालेंगे तो वतन में बापदादा मालिश भी कर देंगे। वह भी अलौकिक होगी, ऐसे लौकिक मालिश थोड़ेही होगी। एकदम फ्रेश हो जायेंगे। एक सेकेण्ड भी शक्तिशाली याद तन और मन – दोनों को फ्रेश कर देती है। बाप के वतन में आ जाओ, जो संकल्प करेंगे वह पूरा हो जायेगा। चाहे शरीर की थकावट हो, चाहे दिमाग की, चाहे स्थिति की थकावट हो – बाप तो आये ही हैं थकावट उतारने।
आज डबल विदेशियों से पर्सनल रुहरिहान कर रहे हैं। बहुत अच्छी सेवा की है और करते ही रहना है। सेवा बढ़ना – यह ड्रामा अनुसार बना हुआ ही है। कितना भी आप सोचो – अभी तो बहुत हो गया, लेकिन ड्रामा की भावी बनी हुई है इसलिए सेवा के प्लैन्स निकलने ही हैं और आप सबको निमित्त बन करनी ही है। यह भावी कोई बदल नहीं सकते। बाप चाहे एक वर्ष सेवा से रेस्ट दे देवें, नहीं बदल सकता। सेवा से फ्री हो बैठ सकेंगे? जैसे याद ब्राह्मण जीवन की खुराक है, ऐसे सेवा भी जीवन की खुराक है। बिना खुराक के कभी कोई रह सकता है क्या? लेकिन बैलेन्स जरूरी है। इतना भी ज्यादा नहीं करो जो बुद्धि पर बोझ हो और इतना भी नहीं करो जो अलबेले हो जाओ। न बोझ हो, न अलबेलापन हो – इसको कहते हैं बैलेन्स। अच्छा।
सदा याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग के अधिकारी, सदा बाप के समान डबल लाइट रहने वाले, सदा निरन्तर शक्तिशाली याद का लिंक जोड़ने वाले, सदा शरीर और आत्मा को रिफ्रेश रखने वाले, हर कर्म विधिपूर्वक करने वाले, सदा श्रेष्ठ सिद्धि प्राप्त करने वाले – ऐसे श्रेष्ठ, समीप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
जो अपनी श्रेष्ठ तकदीर को सदा स्मृति में रखते हैं वह समर्थ स्वरूप में रहते हैं। उन्हें सदा अपना अनादि असली स्वरूप स्मृति में रहता है। कभी नकली फेस धारण नहीं करते। कई बार माया नकली गुण और कर्तव्य का स्वरूप बना देती है। किसको क्रोधी, किसको लोभी, किसको दु:खी, किसको अशान्त बना देती है – लेकिन असली स्वरूप इन सब बातों से परे है। जो बच्चे अपने असली स्वरूप में स्थित रहते हैं वह सूर्यवंशी पद के अधिकारी बन जाते हैं।
स्लोगन:-
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