25 April 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
24 April 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - तुम घर बैठे वन्डरफुल रूहानी यात्रा पर हो, तुम्हारी है बुद्धि की यात्रा, कर्म करते इस यात्रा में कदम आगे बढ़ाते चलो तो पावन बन जायेंगे''
प्रश्नः-
इस ज्ञान मार्ग में पेचदार तथा महीन बातें कौन सी हैं जो तुम बच्चे अभी ही सुनते हो?
उत्तर:-
तुम जानते हो हम सभी मेल अथवा फीमेल एक शिव परमात्मा की सजनियां आत्मायें हैं। साजन है एक परमात्मा। फिर जिस्म के हिसाब से हम शिवबाबा के पोत्रे और पोत्रियां हैं। हमारा उनकी प्रापर्टी पर पूरा हक लगता है। हम 21 जन्म के लिए सदा सुख की प्रापर्टी दादे से लेते हैं – यह हैं पेचदार बातें।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं..
ओम् शान्ति। जिस्मानी यात्रा और रूहानी यात्रा पर यह गीत बनाया है भक्ति मार्ग वालों ने। जो पास्ट में हो गया है उसका गायन करते हैं। जो भी मनुष्य मात्र हैं उन सभी को जिस्मानी यात्रा का तो पता है। देखते हैं जन्म-जन्मान्तर से चक्र लगाते आये हैं। उन्हों की बुद्धि में बद्रीनाथ, श्रीनाथ … आदि ही याद रहता है। तुम बच्चों को भी यह जिस्मानी यात्रा आदि याद थी और अभी भी याद है। तुमने यात्रायें जन्म-जन्मान्तर की हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि में रूहानी यात्रा का ज्ञान है। मनुष्यों का बुद्धियोग है स्थूल जिस्मानी यात्रा तरफ। तुम्हारा बुद्धियोग है रूहानी यात्रा तरफ। रात-दिन का फ़र्क है। अभी तुम रूहानी यात्रा तरफ कदम बढ़ा रहे हो। यह वन्डरफुल यात्रा घर बैठे करते हो। कोई समझ सकेंगे इस यात्रा को? जब धन्धे-धोरी आदि में लग जाते हैं तो इतनी याद नहीं रहती है। परन्तु जब विचार सागर मंथन करने बैठेंगे तो अच्छी रीति याद आयेगी – हम यात्रा पर हैं। नॉलेज बड़ी सहज है। बच्चे समझते भी हैं बरोबर पतित-पावन बाप क्या करते होंगे? पावन बनाने लिए जरूर यात्रा होगी। वह है स्वीट निर्वाणधाम, जिसको सभी भक्त याद करते हैं। यह किसको मालूम नहीं है कि भगवान को हमारे पास आना है वा हमको भगवान के पास जाना है। समझते हैं हमारा गुरू अथवा हमारा बड़ा निर्वाणधाम अथवा अपने निराकारी वतन चला गया। अच्छा फिर वहाँ क्या किया? जाकर बैठ गया? क्या हुआ, वह कुछ भी पता नहीं है। सिर्फ कह देते पार निर्वाण गया। ज्योति ज्योत समाया। लहर सागर में समा गई। कुछ भी पता नहीं है कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। अब बाप समझाते हैं यह रूहानी यात्रा एक ही बार होती है – इस अन्तिम जन्म में। रूहानी यात्रा अथवा आत्माओं की यात्रा कहें। पहले-पहले तो बच्चों को यह निश्चय हुआ कि हम आत्मा हैं। कहा जाता है जीव आत्मा दु:ख पाती है तो इस समय जब आत्मा जीव के साथ है, सजनी है तो वह बाप को ढूंढती है। मेल अथवा फीमेल सभी सजनियां हैं। वैसे मेल्स को कोई सजनी थोड़ेही कहेंगे। परन्तु यह है बहुत गुह्य पेचदार बातें। तुम अपने को शिवबाबा के पोत्रे समझते हो – जबकि जिस्म में हो तो इस हिसाब से पोत्रे पोत्रियां ही ठहरे।
बाबा ने समझाया है तुम्हारा दादे की मिलकियत पर हक है। कोई बाप भल धनवान हो, बच्चे नालायक हों, उनको मिलकियत न दें, यह हो सकता है। परन्तु दादे की प्रापर्टी परमपरा से राजाई कुल में चली आई है। सतयुग त्रेता में तुम दादे की प्रापर्टी भोगेंगे। अभी तुम दादे से प्रापर्टी लेते हो। दादे की प्रापर्टी कितनी बड़ी जबरदस्त है! 21जन्म तुम सदा सुख की प्रापर्टी लेते हो। परमपिता परमात्मा है दादा (ग्रैण्ड फादर)। बाबा कहेंगे ब्रह्मा को। कहते हैं यह प्रापर्टी हम दादे से ले रहे हैं। तुम जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना दादे की प्रापर्टी मिलेगी। जैसे यह मात-पिता, जगत अम्बा, जगत पिता पुरुषार्थ करते हैं, ऐसे हम भी इस पुरुषार्थ से ऐसा ऊंच बनते हैं। दादे से फुल प्रापर्टी लेते हैं, राजाई प्राप्त करते हैं। तुम जानते हो वह बादशाही फिर कितना समय चलती है। प्वाइंट्स तो अथाह हैं। अगर इस प्रकार तुम कोई को भी समझाओ तो झट समझ जायेंगे। दो बाप तो जरूर हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को पिता तो सभी कहते हैं। गाड फादर को सभी मानते हैं। वह बड़ा है दादा, ब्रह्मा उनका बच्चा ठहरा। ब्रह्मा का नाम तो बाला है। विष्णु वा शंकर को प्रजापिता नहीं कहेंगे। सूक्ष्मवतन में तो रचना नहीं रचेंगे। ब्रह्मा ही जरूर यहाँ ब्राह्मण रचते होंगे। ब्रह्मा मुख कमल से परमपिता परमात्मा ने ब्राह्मण सम्प्रदाय रची। जैसे कहेंगे – क्राइस्ट ने क्रिश्चियन सम्प्रदाय रची, इब्राहम ने इस्लाम सम्प्रदाय रची। नाम आता है ना। शंकराचार्य ने भी रचना रची। हर एक झाड़ में टाल टालियां तो होती हैं। यह है बेहद का झाड़। इनका रचयिता अथवा बीजरूप तो मशहूर है, नामीग्रामी है। फाउन्डेशन ऊपर में है। बीज है ऊपर। बाकी टाल टालियां अभी यहाँ ही कहेंगे। यह सारे मनुष्यों की रची हुई रचना है। यह ब्रह्माकुमारी संस्था बीजरूप बाप ने स्वयं रची है, जो बीजरूप परमपिता परमात्मा ऊपर में रहते हैं। ऐसे नहीं सभी टाल टालियों का बीजरूप ऊपर में है। यह बड़ी महीन बातें हैं। परमपिता परमात्मा को हमेशा ऊपर में याद किया जाता है। क्राइस्ट को ऊपर में याद नहीं करेंगे। परमपिता परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल तो एक ही है। वह कभी बदलता नहीं। तो यह बाप बैठ अच्छी रीति समझाते हैं।
तुम बच्चे जानते हो – हम अब पतित से पावन बन रहे हैं। सदैव एकरस नहीं रहते हैं। पहले 16 कला सम्पूर्ण होते हैं, फिर 14 कला, फिर कलायें कम होती जाती हैं। सतयुग के बाद फिर हम नीचे आते रहते हैं। इस समय हम बिल्कुल ऊपर जाते हैं। यह हुआ ऊपर जाने का रास्ता। वह हुआ नीचे आने का रास्ता, इनकी महिमा बहुत भारी है। पतित-पावन एक है। याद भी सभी एक को करते हैं। परन्तु पूरा नहीं जानने के कारण देहधारियों को याद कर लेते हैं क्योंकि इस बात में भूले हुए हैं कि पतित-पावन कौन है, जरूर एक को कहना पड़े। सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में आ नहीं सकता। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। अब तुम समझते हो हम दादे के पोत्रे हैं और बाबा के घर में बैठे हैं। यहाँ दादा भी मौजूद है। अवतार भी जरूर यहाँ ही लेगा ना। तुम कहेंगे यहाँ हमारा दादा हमको पढ़ाते हैं। वह परमधाम से आते हैं। वह हमारा दादा है रूहानी और सब जिस्मानी दादे होते हैं। तो दादा कहते खुशी में एकदम उछल पड़ना चाहिए। भल राजे-रजवाड़े बहुत साहूकार हैं परन्तु वह दादा हमको क्या देते हैं? स्वर्ग की बादशाही। यह बातें अभी तुम समझते हो। सतयुग में फिर यह बातें भूल जाती हैं। वहाँ इन लक्ष्मी-नारायण आदि को भी पता थोड़ेही रहता है कि स्वर्ग के सुख हमको किसने दिये? अगर यह समझें तो फिर यह भी समझें कि इनसे पहले हम कौन थे? बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। लक्ष्मी-नारायण को यह पता नहीं रहता कि यह राजधानी हमको किसने दी है। सिवाए तुम ब्राह्मणों के और कोई नहीं जानते। तुम्हारा देवताओं से भी मर्तबा ऊंचा है, यहाँ तुमको दादे से प्रापर्टी मिलती है।
तुम जानते हो बरोबर यह ब्रह्मा बाप है, इनके तन में दादा (ग्रैन्ड फादर) आते हैं। नहीं तो पतितों को पावन बनाने कैसे आये। सभी आत्मायें ऊपर से नीचे आती हैं शरीर धारण करने। उनको अपना शरीर है नहीं। यह सभी बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं। उनको कहा ही जाता है परम आत्मा। इसका मतलब यह नहीं कि परमात्मा कोई बड़ा है, आत्मा छोटी है। परमात्मा और आत्मा में कोई फ़र्क नहीं है। ऐसे नहीं परमात्मा कोई छोटा-बड़ा होगा। बाप कहते हैं मैं कितना साधारण हूँ! मेरी महिमा बहुत बड़ी है क्योंकि सभी को आकर पतित से पावन बनाता हूँ। हूँ मैं भी आत्मा। मेरे में जो नॉलेज है वह तुमको देता हूँ। ऐसे नहीं आत्मा कोई छोटी-बड़ी होती है। आत्मा में नॉलेज न होने कारण वह मैली हो जाती है। मुरझा जाती है। दीवा बुझ जाता है, फिर उसमें ज्ञान घृत पड़ने से दीवा जगता है। बाकी आत्मा क्या है? ऐसे नहीं कोई आग है। आत्मा ऐसे ही शीतल है जैसे परमात्मा शीतल है। वह है ही सभी को शीतल करने वाला। गाया भी जाता है शीतल जिनके अंग…. इनके अंग शीतल हो जाते हैं उनकी प्रवेशता से। जिसमें प्रवेश करते हैं उनको भी कितना शीतल बनाते हैं! तुम जानते हो बाबा कितना शीतल है! शीतल और तत्तल (गर्म)। वह काम चिता पर जल मरे हैं, बात मत पूछो। कोई-कोई तो ऐसे पाप आत्मा हैं जो कितना ज्ञान छींटा डालते हैं तो भी शीतल होते ही नहीं हैं। कितनी मेहनत करनी पड़ती है एक-एक के ऊपर! बाबा पूछते हैं तुम शीतल बने हो? संन्यासी, उदासी थोड़ेही कभी ऐसे पूछते हैं। माया ही सबको पतित बना देती है। काम चिता पर जलते रहते हैं।
तो तुम बच्चे जानते हो कि प्रजापिता ब्रह्मा के हम बच्चे हैं, शिवबाबा है दादा तो वर्सा मिलना चाहिए ना। एक बाबा, एक दादा, उनसे प्रापर्टी अनेक बच्चों को मिलती है। और कोई भी मनुष्य को प्रजापिता नहीं कहेंगे। शिवबाबा आत्माओं का पिता तो है ही। अभी तुम बच्चे जबकि सम्मुख बैठे हो तो जानते हो – हम शिवबाबा के साथ बैठे हैं। वह हमारा दादा है जो स्वर्ग का रचयिता है, उनसे हम राजयोग सीख रहे हैं। दादे से हमको स्वर्ग की मिलकियत मिलती है जो फिर हम 21 जन्म कभी कंगाल नहीं बनेंगे। तुम बहुत साहूकार बनते हो। जो तुम पूज्य देवी-देवता थे वही फिर पुजारी बनते हो। तुम जानते हो हम बाबा से वर्सा लेते हैं 21 जन्म सुख भोगेंगे। कितने बार वर्सा लिया और गँवाया है। परसों वर्सा लिया था, कल गंवाया, फिर आज लेते हैं। कल फिर गंवा देंगे। यह बातें तुम अभी जानते हो। इस समय नॉलेजफुल, ज्ञान सागर बाप से तुम भी मास्टर ज्ञान सागर बनते हो। नॉलेज मिलती है। बाकी ऐसे नहीं कि कोई तेजोमय बिजली बन जाते हो। यह है सारी बड़ाई। जैसे श्रीकृष्ण की बड़ाई की जाती है – वह जन्मता है तो सारे घर में रोशनी-रोशनी हो जाती है। अब उस समय तो था ही स्वर्ग, दिन। रोशनी तो थी ही। बाकी ऐसे थोड़ेही कोई लाइट निकलेगी। यह भी सिर्फ महिमा की जाती है। वैसे ही परमपिता परमात्मा भी परम आत्मा है, बाकी महिमा सारी कर्तव्य पर निकलती है। महिमा तो बहुतों की निकली हुई है। मनुष्य कहते हैं – फलाना मरा स्वर्ग पधारा, तो स्वर्ग क्या ऊपर में है? देलवाड़ा मन्दिर में भी छत में वैकुण्ठ दिखाते हैं। नीचे में है आदि देव, आदि देवी, जगत पिता और जगत अम्बा। तो जरूर यह नीचे नर्क में बैठे हैं। स्वर्ग में जाने लिए राजयोग सीख रहे हैं। यह तुम बच्चे जानते हो हूबहू एक्यूरेट यादगार है। हम भी यहाँ आकर बैठे हैं। कितनी वन्डरफुल बातें हैं! बच्चे आकर दादा के बने हैं तो वह खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। हम पावन दुनिया के मालिक बनते हैं! मेहनत बिगर थोड़ेही विश्व का मालिक कोई बनेगा। वह मेहनत है स्थूल, यह है सूक्ष्म। आत्मा को मेहनत करनी पड़ती है। रोटी पकाना, धन्धा आदि करना.. यह सब आत्मा करती है। अब बाबा आत्माओं को इस रूहानी धन्धे में लगाते हैं। साथ-साथ जिस्मानी धन्धा भी करना है। बाल बच्चों को सम्भालना है। ऐसे नहीं बाबा हम आपके हैं, यह बच्चे आदि आपको सम्भालना होगा। सबको बाबा सम्भाले, तो इतना बड़ा मकान भी न मिल सके। देहली के किले जितने सैकड़ों किले हों तो भी इतने बच्चों को कहाँ रखेंगे। हो नहीं सकता। फिर तो इस मकान की कोई ताकत नहीं। कायदा ही है गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए अपना पुरुषार्थ करो। इतने सब बच्चे यहॉ आ जायें तो चल कैसे सके? तो बाप कहते हैं मुझे याद करो। दादे से अखुट खजाना मिलता है। कितनी खुशी की बात है! टाइम कोई जास्ती नहीं है। गाया जाता है राम गयो रावण गयो… आगे साक्षात्कार होता रहेगा कि इसके बाद क्या होना सम्भव है। अपने घर के नजदीक पहुँचते हैं तो वह झाड़ आदि देखने में आते हैं। तुम भी नजदीक होते जायेंगे तो समझेंगे अब क्या-क्या होगा। बाबा ज्ञान भी देता रहेगा। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) बाप समान शीतल बन ज्ञान छींटा डाल मनुष्य आत्माओं को भी शीतल बनाने की सेवा करनी है।
2) दादे की मिलकियत को याद कर अपार खुशी में रहना है। रूहानी धन्धा कर विश्व की बादशाही लेनी है।
वरदान:-
जो बच्चे सदा समीप सम्बन्ध में रहते हैं और सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते हैं उन्हें सहजयोग का अनुभव होता है। वे सदा यही अनुभव करते कि मैं हूँ ही बाप का। उन्हें याद दिलाना नहीं पड़ता कि मैं आत्मा हूँ, मैं बाप का बच्चा हूँ। लेकिन सदा इसी नशे में प्राप्ति स्वरूप अनुभव करते, सदा श्रेष्ठ उमंग-उत्साह और खुशी में एकरस रहते, सदा शक्तिशाली स्थिति में रहते इसलिए सर्व सिद्धि स्वरूप बन जाते हैं।
स्लोगन:-
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