24 Jan 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

January 23, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो तो विकारी ख्यालात उड़ जायेंगे, बाप की याद रहेगी, आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी''

प्रश्नः-

मनुष्यों को दुनिया में किस रास्ते का बिल्कुल ही पता नहीं है?

उत्तर:-

बाप से मिलने वा जीवनमुक्ति प्राप्त करने के रास्ते का किसको भी पता नहीं है। सिर्फ शान्ति, शान्ति करते रहते हैं। कानफ्रेन्स करते रहते। जानते नहीं कि विश्व में शान्ति कब थी और कैसे हुई। तुम पूछ सकते हो कि आपने विश्व में शान्ति देखी है? शान्ति कैसे होती है? विश्व में शान्ति तो बाप द्वारा स्थापन हो रही है। तुम आकर समझो।

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ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। पहले-पहले तो यह दृष्टि पक्की करो कि हम आत्मा हैं। हम भाई-भाई को देखते हैं। जैसे बाप कहते हैं मैं बच्चों (आत्माओं) को देखता हूँ। आत्मा ही शरीर की कर्मेन्द्रियों द्वारा सुनती है, बोलती है। आत्मा का तख्त है भ्रकुटी। तो बाप आत्माओं को देखते हैं। यह भाई भी अपने भाईयों को देखते हैं। तुमको भी भाईयों को देखना है। पहले यह दृष्टि पक्की चाहिए। फिर क्रिमिनल ख्यालात बन्द हो जायेंगे। यह आदत पड़ जायेगी। आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही चुरपुर करती है। यह दृष्टि पक्की होने से और ख्याल सब उड़ जायेंगे। यह है नम्बरवन सबजेक्ट। इसमें दैवीगुण भी ऑटोमेटिकली धारण होते रहेंगे। कर्मेन्द्रियाँ चलायमान देह-अभिमान में आने से ही होती हैं। देही-अभिमानी बनने की बहुत कोशिश करो तो तुम्हारे में ताकत आयेगी। सर्व शक्तिमान् बाप की ताकत से ही आत्मा सतोप्रधान बनती है। बाप तो है ही सतोप्रधान। तो पहले-पहले यह दृष्टि पक्की हो तब समझें कि हम आत्म-अभिमानी हैं। आत्म-अभिमानी और देह-अभिमानी में रात दिन का फ़र्क है। हम आत्माओं को अब वापिस घर जाना है। आत्म-अभिमानी बनने से ही हम पवित्र सतोप्रधान बनेंगे। यह प्रैक्टिस करने से विकारी ख्यालात उड़ जायेंगे।

मनुष्य कहते हैं – धरती के सितारे। बरोबर हम आत्मा सितारा हैं, यह शरीर मिला है कर्म करने के लिए। अब हम तमोप्रधान बने हैं फिर हमको सतोप्रधान बनना है। बाप को आना भी पुरूषोत्तम संगमयुग पर है। ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट के शरीर में आते हैं। वह आते ही रजोप्रधान में हैं। कोई बुद्ध वा क्राइस्ट के तन में भगवान आये, यह तो हो न सके। वह आते ही एक बार हैं और आते हैं पुरानी दुनिया में नई दुनिया स्थापन करने। तमोप्रधान दुनिया को बदल सतोप्रधान बनाने। वह ज़रूर संगम पर आयेंगे। और कोई समय पर वह आ न सके। उनको आकर नई दुनिया स्थापन करनी है। उनको कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। ड्रामा अनुसार संगम का भी नाम है, श्रीकृष्ण को तो बाप वा पतित-पावन नहीं कहेंगे। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। बाबा समझाते रहते हैं पहले-पहले कोई को एम-आबजेक्ट समझाओ। भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो एक धर्म, एक राज्य था। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। एक ही अद्वेत धर्म था। हेविन स्थापन करना तो बाप का ही काम है। कैसे करते हैं वह भी क्लीयर है। संगम पर ही बाप आकर समझाते हैं कि देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर ही सारी समझानी देनी है। शिवबाबा का चित्र भी है। महिमा वाला चित्र बहुत अच्छा बना हुआ है। यह है ही नर से नारायण बनने की सत्य कथा। राधे-कृष्ण की कथा नहीं कहते हैं। सत्य नारायण की कथा। तुमको नर से नारायण बनाते हैं। पहले तो छोटा बच्चा होगा। छोटे बच्चे को नर नहीं कहा जाता है। नर नारायण, नारी लक्ष्मी कहा जाता है। तुम बच्चों को इस चित्र पर ही समझाना है। संन्यासी तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर न सकें। शंकराचार्य तो आते ही हैं रजोप्रधान के समय। वह राजयोग सिखा न सके। बाप आते हैं संगम पर। कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ। ऊपर त्रिमूर्ति भी है। ब्रह्मा योग में बैठा है, शंकर की तो बात ही अलग है। बैल पर सवारी हो न सके। बाप को तो यहाँ आकर समझाना है। विनाश भी यहाँ ही होता है। लोग कहते हैं विश्व में शान्ति हो। वह तो होने वाली है तब बुद्धि में आता है। चित्रों पर तुम अच्छी तरह समझा सकते हो। जो शिव की वा देवताओं की भक्ति करते हैं उनको समझाना है। वह झट मानेंगे। बाकी नेचर वा साइंस आदि को मानने वालों की बुद्धि में बैठेगा नहीं। दूसरे धर्म वालों की भी बुद्धि में नहीं आयेगा, जो कनवर्ट हुए होंगे वही निकल आयेंगे। उनकी क्या फिकरात करनी है। देवता धर्म वाले वा बहुत भक्ति करने वाले अपने धर्म में बहुत पक्के होंगे। तो देवताओं के पुजारियों को समझाओ, बड़े आदमी कभी आयेंगे नहीं। समझो बिरला है, इतने मन्दिर बनाते हैं, उनके पास ज्ञान सुनने की फुर्सत ही कहाँ है। सारा दिन बुद्धि धन्धे में लगी रहती है। पैसे बहुत मिलते हैं तो समझते हैं मन्दिर बनाने से धन मिलता है। यह देवताओं की कृपा है।

तुम्हारे पास कोई आये तो लक्ष्मी-नारायण का चित्र उन्हें दिखाओ। बोलो, तुम विश्व में शान्ति चाहते हो तो विश्व में शान्ति का राज्य इस दुनिया में था। फलानी तारीख से फलानी तारीख तक सूर्यवंशी राजधानी में बहुत शान्ति थी फिर दो कला कम हो जाती हैं। इस चित्र पर ही सारा मदार है। अब तुम विश्व में शान्ति चाहते हो। कहाँ चलेंगे? घर को तो जानते ही नहीं हैं। हम आत्मा शान्त स्वरूप हैं। मूल वतन में रहते हैं, वही शान्तिधाम है। वह इस दुनिया में नहीं है। उनको कहा जाता है निराकारी दुनिया। बाकी विश्व इसको ही कहा जाता है। विश्व में शान्ति नई दुनिया में होगी। विश्व के मालिक यह बैठे हैं। गरीब इन बातों को अच्छी रीति समझते हैं। कोई कहते हैं यह रास्ता बहुत अच्छा है। हम रास्ता ढूँढ़ते थे। रास्ते का मालूम ही नहीं तो ढूँढ़ेंगे क्या? ऐसा कोई नहीं जिसको बाप और जीवनमुक्ति के रास्ते का पता हो। शान्ति-शान्ति… कहते रहते हैं परन्तु शान्ति कब थी, कैसे हुई, किसको भी पता नहीं है। कितनी कानफ्रेन्स आदि करते हैं। उनसे पूछना चाहिए तुमने कभी विश्व में शान्ति देखी है कि विश्व में शान्ति कैसे होती है? तुम प्रजा आपस में क्यों मूँझते हो! कानफ्रेन्स करते रहते हो, जवाब कहाँ से मिलता नहीं। विश्व में शान्ति तो अब बाप द्वारा स्थापन हो रही है। तुम कहते हो क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले हेविन था तो वहाँ ही शान्ति थी। अगर वहाँ भी अशान्ति होती तो बाकी शान्ति कहाँ से मिलेगी। अच्छी तरह से समझाना है। इस समय तो तुमको इतना समय बात करने नहीं देते क्योंकि अभी उनके सुनने का समय नहीं आया है। सुनने का भी सौभाग्य चाहिए। तुम पदमापदम भाग्यशाली बच्चे ही बाप से सुनने के हकदार बनते हो। बाप बिगर और कोई सुना न सके। बाप तुम बच्चों को ही सुनाते हैं। यह है ही रावण राज्य तो यहाँ शान्ति कैसे हो सकती। रावण राज्य में सब पतित हैं। पुकारते हैं कि हमको पावन बनाओ। पावन दुनिया तो इन लक्ष्मी-नारायण की थी। रामराज्य और रावण राज्य में कितना फ़र्क है। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर होते हैं रावण वंशी। इस समय है कलियुग, रावण सम्प्रदाय। बड़े-बड़े लोग भी एक दो को गुर्र-गुर्र करते रहते हैं। बहुत अहंकार है कि मैं फलाना हूँ। तो इस लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर समझाना बहुत सहज है। बोलो इनके राज्य में ही विश्व में शान्ति थी, कोई और धर्म नहीं था। विश्व में शान्ति सो तो यहाँ ही होती है। तो मुख्य यह चित्र है। बाकी ढेर चित्रों पर समझाने से मनुष्यों के ख्यालात और तरफ चले जाते हैं। जो समझा है वह भी भूल जाता है। तब कहा जाता है टू मैनी कुक्स.. बहुत चित्र होते हैं और हंसीकुडी के मॉडल अथवा डायलाग आदि होते हैं तो मूल बात बुद्धि से निकल जाती है। कोई विरला ही समझ पाते हैं कि बाप यह स्थापना कर रहे हैं। 84 जन्म भी इसके लिए ही हैं। दिखायेंगे ज़रूर एक का। सबको कैसे रखेंगे। शास्त्रों में भी एक अर्जुन का नाम रखा है ना। स्कूल में मास्टर एक को थोड़ेही पढ़ायेंगे। यह भी स्कूल है।

यह तुम्हारे बैज भी बहुत काम कर सकते हैं। यह सबसे अच्छा है। पहले शिवबाबा के चित्र के सामने लाना चाहिए। और फिर लक्ष्मी-नारायण के चित्र के आगे। तुम शान्ति माँगते हो वह कल्प, कल्प बाप द्वारा ही स्थापन होती है। तुम इस चक्र को जान गये हो। पहले तुम भी तुच्छ बुद्धि थे। अब बाप स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं। लिखना चाहिए सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई भी किसकी सद्गति कर नहीं सकते। विश्व में शान्ति कर नहीं सकते। बाप ही सब कुछ कर रहे हैं। याद भी उनको ही करते हैं। मुख्य चित्र यह दोनों हैं। इससे हिलना नहीं चाहिए, जब तक पूरा न समझें। यह नहीं समझा तो कुछ भी नहीं समझा। टाइम वेस्ट हो जाता है। देखो बुद्धि में नहीं बैठता तो चला देना चाहिए। इसमें समझाने वाले बहुत अच्छे चाहिए। अगर माता हो तो बहुत अच्छा, इसमें कोई नाराज़ नहीं होगा। यह तो सब जानते हैं कि कौन-कौन समझाने में तीखे हैं। मोहिनी है, मनोहर है, गीता है – बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे हैं। तो पहले लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर एकदम पक्का कराना चाहिए। बोलो, इन बातों को अच्छी रीति समझो तब शान्ति की दुनिया में जा सकेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों ही मिल जायेंगी। मुक्ति में तो सब जायेंगे फिर आयेंगे नम्बरवार पार्ट बजाने। समझाना भी भभके से है। नम्बरवन यह चित्र है। विश्व में शान्ति के मालिक यही थे। यह बातें समझदार की बुद्धि में बैठती हैं। भल अच्छा-अच्छा कहते हैं, पाँव में गिरते हैं। परन्तु बाप को थोड़ेही जाना। उनको भी माया छोड़ती नहीं है। बाप जो इतना ऊंचा बनाते हैं उनको तो कितना याद करना चाहिए इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। सतोप्रधान बन जायेंगे। यहाँ अन्दर आने से खुशी में रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। मैं यह बनता हूँ। मैं अन्दर (हिस्ट्री हाल में) आता हूँ और इन लक्ष्मी-नारायण को देखता हूँ, (सामने लक्ष्मी-नारायण की ट्रांसलाइट रखी है) इन्हें देखकर बड़ा खुश होता हूँ। ओहो! बाबा हमको यह बनाते हैं! वाह बाबा वाह! लौकिक घर में किसका बाप बड़े मर्तबे पर होता है तो बच्चों को खुशी होती है मेरा बाप वजीर है। तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए कि बाप हमको यह बनाते हैं। परन्तु माया भुला देती है, बड़ा सामना करती है। तुम बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए, दैवीगुण भी धारण करने चाहिए। आत्म-अभिमानी भव। भाई-भाई को देखो, तो स्त्री को भी आत्मा के रूप में ही देखेंगे। क्रिमिनल आई होगी नहीं। मन्सा तूफान तब आते हैं जब तुम भाई-भाई की दृष्टि से नहीं देखते हो, इसमें बड़ी मेहनत है। प्रैक्टिस अच्छी चाहिए। आत्म-अभिमानी बनना है। कर्मातीत अवस्था तो पिछाड़ी में ही होगी। सर्विस करने वाले बच्चे ही बाप की दिल पर चढ़ सकते हैं। भल देरी से आते हैं, वह भी गैलप कर सकते हैं। तीखे जा सकते हैं। तुम बच्चों ने पहले की हिस्ट्री तो सुनी है कि इन्होंने घरबार कैसे छोड़ा। रात-रात में भागे। फिर इतने बच्चों को पाला। इसको कहा जाता है भट्ठी। फिर भट्ठी से नम्बरवार निकले। यह तो वन्डर है, जो बाबा तुमको वन्डरफुल स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। गॉड फादर तुमको पढ़ाते हैं। कितना साधारण है, कितना रोज़-रोज़ बच्चों को समझाते रहते हैं और बच्चों को कहते हैं नमस्ते। बच्चे तुम मेरे से भी ऊंचे जाते हो। तुम ही कंगाल से डबल सिरताज विश्व के मालिक बनते हो, तो बाप बड़ी रूची से आते हैं। अनगिनत बार आये होंगे। आज तुम मुझ राम से राज्य लेते हो फिर रावण से तुम राज्य हराते हो, यह खेल है। अच्छा!

मीठे-मीठे लकी सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) आत्मा को सतोप्रधान बनाने के लिए एक सर्वशक्तिमान् बाप से ताकत लेनी है। देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करो। हम आत्मा भाई-भाई हैं, यह प्रैक्टिस निरन्तर करते रहो।

2) बाप और लक्ष्य (लक्ष्मी-नारायण) के चित्र पर हरेक को विस्तार से समझाओ। बाकी बातों में टाइम वेस्ट मत करो।

वरदान:-

बाप का यह नया ज्ञान, सत्य ज्ञान है, इस नये ज्ञान से ही नई दुनिया स्थापन होती है, यह अथॉरिटी और नशा स्वरूप में इमर्ज हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आते ही किसी को नये ज्ञान की नई बातें सुनाकर मुंझा दो। धरनी, नब्ज और समय सब देख करके ज्ञान देना – यह नॉलेजफुल की निशानी है। आत्मा की इच्छा देखो, नब्ज देखो, धरनी बनाओ लेकिन अन्दर सत्यता के निर्भयता की शक्ति जरूर हो, तब सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकेंगे।

स्लोगन:-

अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो

जिम्मेवारी को निभाना यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मवारी उतना ही डबल लाइट। जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे रहो, इसको कहते हैं बाप का प्यारा। घबराओ नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ वा नहीं यह तो बड़ा मुश्किल है। यह महसूसता अर्थात् बोझ है। डबल लाइट अर्थात् इससे भी न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म की हलचल का बोझ न हो।

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