23 October 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

22 October 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हारी यात्रा बुद्धि की है, इसे ही रूहानी यात्रा कहा जाता है, तुम अपने को आत्मा समझते हो, शरीर नहीं, शरीर समझना अर्थात् उल्टा लटकना''

प्रश्नः-

माया के पाम्प में मनुष्यों को कौन-सी इज्जत मिलती है?

उत्तर:-

आसुरी इज्जत। मनुष्य किसी को भी आज थोड़ी इज्जत देते, कल उसकी बेइज्जती करते हैं, गालियाँ देते हैं। माया ने सबकी बेइज्जती की है, पतित बना दिया है। बाप आये हैं तुम्हें दैवी इज्जत वाला बनाने।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहों से पूछते हैं – कहाँ बैठे हो? तुम कहेंगे विश्व की रूहानी युनिवर्सिटी में। रूहानी अक्षर तो वो लोग जानते नहीं। विश्व विद्यालय तो दुनिया में अनेक हैं। यह है सारे विश्व में एक ही रूहानी विद्यालय। एक ही पढ़ाने वाला है। क्या पढ़ाते हैं? रूहानी नॉलेज। तो यह है स्प्रीचुअल विद्यालय अर्थात् रूहानी पाठशाला। स्प्रीचुअल अर्थात् रूहानी नॉलेज पढ़ाने वाला कौन है? यह भी तुम बच्चे ही अभी जानते हो। रूहानी बाप ही रूहानी नॉलेज पढ़ाते हैं, इसलिए उनको टीचर भी कहते हैं, स्प्रीचुअल फादर पढ़ाते हैं। अच्छा, फिर क्या होगा? तुम बच्चे जानते हो इस रूहानी नॉलेज से हम अपना आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। एक धर्म की स्थापना बाकी जो इतने सब धर्म हैं, उनका विनाश हो जायेगा। इस स्प्रीचुअल नॉलेज का सब धर्मों से क्या तैलुक है – यह भी तुम अब जानते हो। एक धर्म की स्थापना इस रूहानी नॉलेज से होती है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे ना! उनको कहेंगे रूहानी दुनिया (स्प्रीचुअल वर्ल्ड) इस स्प्रीचुअल नॉलेज से तुम राजयोग सीखते हो। राजाई स्थापन होती है। अच्छा, फिर और धर्मों से क्या तैलुक है? और सभी धर्म विनाश को पायेंगे क्योंकि तुम पावन बनते हो तो तुमको नई दुनिया चाहिए। इतने सब अनेक धर्म खत्म हो जाते हैं, एक धर्म रहेगा। उसको कहा जाता है विश्व में शान्ति का राज्य। अभी है पतित अशान्ति का राज्य फिर होगा पावन शान्ति का राज्य। अभी तो अनेक धर्म हैं। कितनी अशान्ति है। सब पतित ही पतित हैं। रावण का राज्य है ना। अब बच्चे जानते हैं 5 विकारों को जरूर छोड़ना है। यह साथ में नहीं ले जाने हैं। आत्मा अच्छे वा बुरे संस्कार ले जाती है ना। अब बाप तुम बच्चों को पवित्र बनने की बात बताते हैं। उस पावन दुनिया में कोई भी दु:ख होता नहीं। यह स्प्रीचुअल नॉलेज पढ़ाने वाला कौन है? स्प्रीचुअल फादर। सभी आत्माओं का बाप। स्प्रीचुअल फादर क्या पढ़ायेंगे? स्प्रीचुअल नॉलेज, इसमें कोई भी किताब आदि की दरकार नहीं। सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। पावन बनना है। बाप को याद करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। यह है याद की यात्रा। यात्रा अक्षर अच्छा है। वह हैं जिस्मानी यात्रायें, यह है रूहानी। उसमें तो पैदल जाना पड़ता है, हाथ-पांव चलाते हैं, इसमें कुछ नहीं। सिर्फ याद करना है। भल कहाँ भी घूमो फिरो, उठो बैठो, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। डिफीकल्ट बात नहीं है, सिर्फ याद करना है। यह तो रीयल्टी है ना। आगे तुम उल्टे चल रहे थे। अपने को आत्मा के बदले शरीर समझना, इसको कहा जाता है उल्टा लटकना। अपने को आत्मा समझना – यह है सुल्टा। अल्लाह जब आते हैं तब आकर पावन बनाते हैं। अल्लाह की पावन दुनिया है, रावण की पतित दुनिया है। देह-अभिमान में सभी उल्टे हो गये हैं। अब एक ही बार देही-अभिमानी बनना है। तो तुम अल्लाह के बच्चे हो। अल्लाह हूँ, नहीं कहेंगे। अंगुली से हमेशा ऊपर की तरफ ईशारा करते हैं, तो सिद्ध होता है अल्लाह वह है। तो यहाँ जरूर दूसरी चीज़ है। हम उस अल्लाह बाप का बच्चा हूँ। हम भाई-भाई हैं। अल्लाह हूँ, कहने से फिर उल्टा हो जायेगा कि हम सब बाप हैं। परन्तु नहीं, बाप एक है। उनको याद करना है। अल्लाह एवर प्योर है। अल्लाह खुद बैठ पढ़ाते हैं। थोड़ी-सी बात में मनुष्य कितना मूँझते हैं। शिव जयन्ती भी मनाते हैं ना।

श्रीकृष्ण है स्वर्ग का पहला राजकुमार, यह बेहद का बाप इनको राज्य-भाग्य देते हैं। बाप जो नई दुनिया स्वर्ग स्थापन करते हैं उसमें श्रीकृष्ण नम्बरवन प्रिन्स है। बाप बच्चों को पावन बनने की युक्ति बैठ बताते हैं। बच्चे जानते हैं स्वर्ग जिसको वैकुण्ठ, विष्णुपुरी कहते हैं, वह पास्ट हो गया है फिर फ्युचर होगा। चक्र फिरता रहता है ना। यह ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिलता है। यह धारण कर और फिर कराना है। हरेक को टीचर बनना है। ऐसे भी नहीं कि टीचर बनने से लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। नहीं। टीचर बनने से तुम प्रजा बनायेंगे, जितना बहुतों का कल्याण करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। स्मृति रहेगी। बाप कहते हैं ट्रेन में आते हो तो भी बैज पर समझाओ। बाप पतित-पावन, लिब्रेटर है। पावन बनाने वाला है। बहुतों को याद करना पड़ता है। जानवर, हाथी, घोड़े आदि, कच्छ, मच्छ को भी अवतार कह देते हैं। उनको भी पूजते रहते हैं। समझते हैं भगवान सर्वव्यापी अर्थात् सबमें हैं। सबको खिलाओ। अच्छा, कण-कण में भगवान कहते हैं फिर उनको कैसे खिलायेंगे। बिल्कुल ही समझ से जैसे बाहर हैं। लक्ष्मी-नारायण आदि देवी-देवतायें थोड़ेही यह काम करेंगे। चीटिंयों को अन्न देंगे, फलाने को देंगे। तो बाप समझाते हैं तुम हो रिलीजो पोलीटिकल। तुम जानते हो हम धर्म स्थापन कर रहे हैं। राज्य स्थापन करने के लिए मिलेट्री रहती है। परन्तु तुम हो गुप्त। तुम्हारी है स्प्रीचुअल युनिवर्सिटी। सारी दुनिया के जो भी मनुष्य मात्र हैं सब इन धर्मों से निकल, अपने घर जायेंगे। आत्मायें चली जायेंगी। वह है आत्माओं के रहने का घर। अभी तुम संगमयुग पर पढ़ रहे हो फिर सतयुग में आकर राज्य करेंगे और कोई धर्म नहीं होगा। गीत में भी है ना – बाबा आप जो देते हो वह और कोई दे न सके। सारा आसमान, सारी ही धरनी तुम्हारी रहती है। सारे विश्व के मालिक तुम बन जाते हो। यह भी अभी तुम समझते हो, नई दुनिया में यह सभी बातें भूल जायेंगी। इसको कहा जाता है रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम हर 5 हजार वर्ष बाद राज्य लेते हैं फिर गँवाते हैं। यह 84 का चक्र फिरता ही रहता है। तो पढ़ाई पढ़नी पड़े तब ही जा सकेंगे ना! पढ़ेंगे नहीं तो नई दुनिया में जा नहीं सकेंगे। वहाँ का तो लिमिटेड नम्बर है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार वहाँ जाकर पद पायेंगे। इतने सब तो पढ़ेंगे नहीं। अगर सभी पढ़ें तो फिर दूसरे जन्म में राज्य भी पावें। पढ़ने वालों की लिमिट है। सतयुग-त्रेता में आने वाले ही पढ़ेंगे। तुम्हारी प्रजा बहुत बनती रहती है। देरी से आने वाले पाप तो भस्म कर न सकें। पाप आत्मायें होंगी तो फिर सजायें खाकर बहुत थोड़ा पद पा लेंगी। बेइज्जती होगी। जो अभी माया की बहुत इज्जत वाले हैं, वह बेइज्जत बन जायेंगे। यह है ईश्वरीय इज्जत। वह है आसुरी इज्जत। ईश्वरीय अथवा दैवी इज्जत और आसुरी इज्जत में रात-दिन का फ़र्क है। हम आसुरी इज्जत वाले थे अब फिर दैवी इज्जत वाले बनते हैं। आसुरी इज्जत से बिल्कुल बेगर बन जाते हो। यह है कांटों की दुनिया तो बेइज्जती हुई ना। फिर कितनी इज्जत वाले बनते हो। यथा राजा रानी तथा प्रजा। बेहद का बाप तुम्हारी इज्जत बहुत ऊंच बनाते हैं तो इतना पुरूषार्थ भी करना है। सब कहते हैं हम अपनी इज्जत ऐसी बनावें अर्थात् नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बन जावें। इनसे ऊंच इज्जत कोई की है नहीं। कथा भी नर से नारायण बनने की ही सुनते हैं। अमरकथा, तीजरी की कथा यह एक ही है। यह कथा अभी ही तुम सुनते हो।

तुम बच्चे विश्व के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते नीचे उतरते आये हो। फिर पहला नम्बर का जन्म होगा। पहले नम्बर जन्म में तुम बहुत ऊंच पद पाते हो। राम इज्जत वाला बनाते हैं, रावण बेइज्जतवान बना देते हैं। इस नॉलेज से ही तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पाते हो। आधाकल्प रावण का नाम नहीं रहता है। यह बातें अभी तुम बच्चों की बुद्धि में आती हैं सो भी नम्बरवार। कल्प-कल्प ऐसे ही तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझदार बनते हो। माया ग़फलत कराती है। बेहद के बाप को याद करना ही भूल जाते हैं। भगवान पढ़ाते हैं, वह हमारा टीचर बना है। फिर भी अबसेन्ट रहते हैं, पढ़ते नहीं हैं। दर-दर धक्के खाने की आदत पड़ी हुई है। पढ़ाई पर जिनका ध्यान नहीं रहता है तो उनको फिर नौकरी में लगा देना होता है। धोबी आदि का काम करते हैं। उसमें पढ़ाई की क्या दरकार है। व्यापार में मनुष्य मल्टीमिल्युनर बन जाते हैं। नौकरी में इतना नहीं बनेंगे। उसमें तो फिक्स पगार मिलेगी। अब तुम्हारी पढ़ाई है विश्व की बादशाही के लिए। यहाँ कहते हैं ना हम भारतवासी हैं। पीछे फिर तुमको कहेंगे विश्व के मालिक। वहाँ देवी-देवता धर्म के सिवाए दूसरा कोई धर्म होता नहीं। बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं तो उनकी मत पर चलना चाहिए। कोई भी विकार का भूत नहीं होना चाहिए। ये भूत बहुत खराब हैं। कामी की हेल्थ बिगड़ती रहती है। ताकत कम हो जाती है। इस काम विकार ने तुम्हारी ताकत बिल्कुल खत्म कर दी है। नतीजा यह हुआ है आयु कम होती गई है। भोगी बन पड़े हो। कामी, भोगी, रोगी सब बन जाते हैं। वहाँ विकार होता नहीं। तो योगी होते हैं सदैव तन्दुरूस्त और आयु भी 150 वर्ष होती है। वहाँ काल खाता नहीं। इस पर एक कथा भी बताते हैं – कोई से पूछा गया पहले सुख चाहिए या पहले दु:ख चाहिए? तो उनको कोई ने इशारा दिया बोलो पहले सुख चाहिए क्योंकि सुख में चले जायेंगे तो वहाँ कोई काल आयेगा नहीं। अन्दर घुस न सके। एक कथा बना दी है। बाप समझाते हैं तुम सुखधाम में रहते हो तो वहाँ कोई काल होता नहीं। रावणराज्य ही नहीं। फिर जब विकारी बनते हैं तो काल आता है। कथायें कितनी बना दी है, काल ले गया फिर यह हुआ। न काल देखने में आता है, न आत्मा दिखाई पड़ती है, इनको कहा जाता है दन्त कथायें। कनरस की बहुत कहानियां हैं। अब बाप समझाते हैं वहाँ अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। आयु बड़ी होती है और पवित्र रहते हैं। 16 कला फिर कला कम होते-होते एकदम नो कला हो जाते हैं। मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। एक निर्गुण संस्था भी बच्चों की है। कहते हैं हमारे में कोई गुण नाहीं। हमको गुणवान बनाओ। सर्वगुण सम्पन्न बनाओ। अब बाप कहते हैं पवित्र बनना है। मरना भी है सबको। इतने ढेर मनुष्य सतयुग में नहीं होते। अभी तो कितने ढेर हैं। वहाँ बच्चा भी योगबल से होता है। यहाँ तो देखो कितने बच्चे पैदा करते रहते हैं। बाप फिर भी कहते हैं बाप को याद करो। वह बाप ही पढ़ाते हैं, टीचर पढ़ाने वाला याद पड़ता है। तुम जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। क्या पढ़ाते हैं, वह भी तुमको मालूम है। तो बाप अथवा टीचर से योग लगाना है। नॉलेज बहुत ऊंची है। अभी तुम सबकी स्टूडेन्ट लाइफ है। ऐसी युनिवर्सिटी कभी देखी, जहाँ बच्चे बूढ़े, जवान सब इकट्ठे पढ़ते हो। एक ही स्कूल, एक ही पढ़ाने वाला टीचर हो और जिसमें ब्रह्मा स्वयं भी पढ़ता हो। वन्डर है ना। शिवबाबा तुमको पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा भी सुनते हैं। बच्चा चाहे बुढ़ा, कोई भी पढ़ सकते हैं। तुम भी पढ़ते हो ना यह नॉलेज। अब पढ़ाना शुरू कर दिया है। दिन-प्रतिदिन टाइम कम होता चला जाता है। अभी तुम बेहद में चले गये हो। जानते हो यह 5 हज़ार वर्ष का चक्र कैसे पास हुआ। पहले एक धर्म था। अभी कितने ढेर धर्म हैं। अभी सावरन्टी नहीं कहेंगे। इनको कहा जाता है प्रजा का प्रजा पर राज्य। पहले-पहले बहुत पावरफुल धर्म था। सारे विश्व के मालिक थे। अभी अधर्मी बन पड़े हैं। कोई धर्म नहीं है। सबमें 5 विकार हैं। बेहद का बाप कहते हैं – बच्चों अब धीर्य धरो, बाकी थोड़ा समय तुम इस रावणराज्य में हो। अच्छी रीति पढ़ेंगे तो फिर सुखधाम में चले जायेंगे। यह है दु:खधाम। तुम अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूलते जाओ। आत्माओं का बाप डायरेक्शन देते हैं – हे रूहानी बच्चों! रूहानी बच्चों ने इन आरगन्स द्वारा सुना। तुम आत्मायें जब सतयुग में सतोप्रधान थी तो तुम्हारा शरीर भी फर्स्टक्लास सतोप्रधान था। तुम बड़े धनवान थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते क्या बन गये हो! रात-दिन का फर्क है। दिन में हम स्वर्ग में थे, रात में हम नर्क में हैं। इनको कहा जाता है ब्रह्मा का सो ब्राह्मणों का दिन और रात। 63 जन्म धक्के खाते रहते हैं, अन्धियारी रात है ना। भटकते रहते हैं। भगवान् कोई को मिलता ही नहीं। इसको कहा जाता है भूलभुलैया का खेल। तो बाप तुम बच्चों को सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार सुनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) दर-दर धक्के खाने की आदत छोड़ भगवान की पढ़ाई ध्यान से पढ़नी है। कभी अबसेन्ट नहीं होना है। बाप समान टीचर भी जरूर बनना है। पढ़कर फिर पढ़ाना है।

2) सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है, ऐसा इज्जतवान स्वयं को स्वयं ही बनाना है। कभी भूतों के वशीभूत हो इज्जत गॅवानी नहीं है।

वरदान:-

सहजयोग का आधार है – संबंध और प्राप्ति। संबंध के आधार पर प्यार पैदा होता है और जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ मन-बुद्धि सहज ही जाता है। तो संबंध में मेरेपन के अधिकार से याद करो, दिल से कहो मेरा बाबा और बाप द्वारा जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आंनद, प्रेम का खजाना मिला है उसे स्मृति में इमर्ज करो, इससे अपार खुशी रहेगी और सहजयोगी भी बन जायेंगे।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top