22 August 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

21 August 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महफिल में, यह बहुत बड़ी महफिल है, इस महफिल में तुम परवाने शमा पर फिदा हो पावन बनते हो''

प्रश्नः-

यदि बच्चों का पुरुषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?

उत्तर:-

कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान से पकड़ लेती है इसलिए पुरुषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

महफिल में जल उठी शमा..

ओम् शान्ति। परमपिता परमात्मा शिव को शमा भी कहते हैं। नाम बहुत डाल देते हैं तो मनुष्य मूंझ गये हैं। आत्मा भी ज्योति स्वरूप है। अब तुम जागती ज्योत बन रहे हो। शमा आई है। यह महफिल तो बहुत बड़ी है। कोई तो आकर बाप का बनते हैं। बाप का बन जीते जी फिदा हो जाते हैं। देह-अभिमान छोड़ा तो आप मुये मर गई दुनिया। आप कौन? आत्मा। आत्मा शरीर को छोड़ देती है। तो सारी दुनिया उनके लिए जैसे मर गई। अभी बाप भी कहते हैं – अपने को आत्मा समझो। हम तो बाप के हैं। शरीर का भान मिटा देना है। मनुष्य मरते हैं तो देह सहित सब कुछ भूल जाते हैं। समझते हैं शरीर छोड़ा तो तैलुक टूटा। शरीर के साथ ही तैलुक (नाता) है। तुम शरीर होते हुए अशरीरी रहते हो क्योकि तुम्हारा तैलुक अब बाप से हो गया। तुमको राजयोग सिखलाने लिए बाप ने भी शरीर धारण किया है। महफिल में आये हैं। तुम्हारे में भी कोई पूरा जानते हैं कोई अधूरा, कोई तो कुछ नहीं जानते। बाप कहते हैं मैं इस रचना में आया हुआ हूँ। यह बातें मनुष्य ही समझेंगे। भारतवासी जानते हैं शिव जयन्ती भी है। शिव है परमपिता परमात्मा, सभी आत्माओं का बाप। वह आते हैं जरूर, मन्दिर भी हैं। मन्दिर तो ढेर बनते हैं। जैसे क्राइस्ट तो एक था, उनकी यादगार में जड़ चित्र कितने ढेर बनाये हैं। यह भी परमपिता परमात्मा, जिनको पतित-पावन कहते हैं, उनके मन्दिर हैं।

यह है अभी पतित दुनिया की महफिल, फिर होगी पावन दुनिया की महफिल। पावन दुनिया में तो वह आते नहीं। पावन दुनिया की महफिल बहुत छोटी होती और सुखी होते हैं इसलिए वहाँ आने की दरकार नहीं। आना है बड़ी महफिल में। उनका नाम ही है पतित-पावन। यह है पतित दुनिया, फिर पावन दुनिया भी है। उसी नई दुनिया में जरूर थोड़े होंगे। तुम बच्चों में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सच्ची-सच्ची सर्विस करते हैं। सच्चाई की सर्विस का सबूत भी निकलता है। तो बाप महफिल में आये हैं। वह है पतितों को पावन बनाने वाला। कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। भारत अविनाशी बाप का अविनाशी बर्थ प्लेस है। मनुष्य भूल गये हैं – शिवबाबा कब आया था? उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। आते भी हैं पतित शरीर में। उनकी महिमा कितनी भारी है – शिवाए नम:। तुम्हारी महिमा भी अपरमअपार है। वैकुण्ठ की कैसे स्थापना करते हैं, जिस वैकुण्ठ की भी महिमा अपरमअपार है। तुम बच्चे ही यह जानते हो और ऐसे वैकुण्ठ में जाने लिए पुरुषार्थ करते हो। परन्तु तुम्हारा पुरुषार्थ बड़ा ठण्डा चींटी मार्ग का देखते हैं।

माया किसको कान से, नाक से पकड़ती रहती है। किसको भी छोड़ती नहीं है। सोचते भी हैं ऐसे शिवबाबा को निरन्तर याद करें। जैसे पत्नि पति को कितना याद करती है, यह तो पतियों का पति है, बाबा है। ऐसे बाबा को कितना याद करना चाहिए, ऐसे बाबा की हम कितनी महिमा गायें, गीत आदि में भी शिवबाबा की कितनी महिमा करते हैं। तेरी महिमा अपरम-अपार है। इतनी महिमा क्यों गाई जाती, कोई कारण तो होगा ना। तुम जानते हो बाप ही भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत को कितना ऊंच बनाते हैं। रावण फिर नीच बना देते हैं। बाप आकर सुखी बनाते हैं। दोज़क से बहिश्त बना देते हैं। ऐसे बाप को कोई जानते नहीं। पतित तो सारी दुनिया है। भल अशोका होटल के सुख आदि हैं परन्तु यह सब तो अल्पकाल के लिए हैं। यह है मृगतृष्णा समान राज्य। पाई का भी इसमें सुख नहीं, दु:ख ही दु:ख है। सतयुग में राजा-रानी तथा प्रजा कितने सुखी रहते हैं। अभी तो कितना दु:खी हैं। कितनी रिश्वत खाते, कितने पाप आदि करते हैं। भारत दैवी सम्प्रदाय था। भारत की महिमा बड़ी जबरदस्त है, जो अब तुम जानते हो। भगवान् की महिमा गाते हैं। याद करते हैं परन्तु जानते नहीं। अरे, भगवान् कहते हो तो भगवान् का पूरा नाम चाहिए ना! उनका नाम है शिव। उनकी सारी महिमा है। मनुष्य उनके नाम, रूप, देश, काल को जानते नहीं। कह देते उनका नाम, रूप है नहीं। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा परमधाम का रहने वाला है। नाम, रूप, देश बतलाते भी हैं परन्तु देह-अभिमान होने कारण उनको याद नहीं करते हैं। याद करते भी हैं तो बिगर समझ। गाते हैं तुम मात-पिता…….। तुम समझा सकते हो लौकिक मात-पिता तो है ना, फिर यह कौन से मात-पिता हैं? पिता कैसे सृष्टि को रचते हैं, कैसे मुख वंशावली रच उन्हीं को राज्य-भाग्य देते हैं – सो तो तुम ही जानों, और न जाने कोई। तुम्हारे में भी नम्बर-वार हैं। तुम समझते हो शिवबाबा ब्रह्मा तन से आकर पढ़ाते हैं। शिवबाबा की ही इतनी भारी महिमा है। ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखाकर हमको बैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। जरूर ब्रह्मा-सरस्वती पहले-पहले जाकर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। जगत अम्बा और जगत पिता बैठे हैं। वही विश्व के मालिक बनेंगे। उनके साथ कुमार-कुमारियां भी हैं। यह देलवाड़ा मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है। यह मन्दिर आदि तो पहले के बने हुए हैं। अभी हम भेंट करते हैं। हमारे ही यादगार का पूरा यह मन्दिर है।

तो यह शिवाए नम: गीत तो जरूर रखना चाहिए। दो-चार गीत फर्स्ट क्लास रख लेने चाहिए। यह बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं – दिल होती है बाबा की याद में रहकर खायें परन्तु भूल जाते हैं। वो तो कहते हैं मैं अभोक्ता हूँ। उनको यह नहीं आता है कि यह अच्छा है वा बुरा है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुम बच्चों को पतित से पावन बनाने क्योंकि रावण ने तुम्हारे ऊपर जीत पहन ली है। अब फिर उस पर जीत पानी है। रावण तुमको कौड़ी जैसा बनाकर देवाला निकाल देते हैं। भारत का अब देवाला है ना। फिर तुमको सालवेन्ट बनाता हूँ। इनसालवेन्ट बुद्धि मनुष्य ही बनते हैं। तो यह शिवाए नम: का गीत बड़ा अच्छा है, नम्बरवन उनकी महिमा है। फिर भारत की भी महिमा है। वन्डरफुल भारत था। गाते तो हैं ना – स्वर्ग था। हीरे-जवाहरों के महल थे। फिर वह कहाँ गये? माया की कैसे प्रवेशता हुई? सतयुग में देवी-देवतायें धर्म श्रेष्ठ, कर्म श्रेष्ठ थे। भ्रष्ट कर्म कराने वाली माया वहाँ होती नहीं। और यहाँ के पुरुषार्थ की प्रालब्ध तुम पाते हो। तुमको कोई दु:ख होने की बात ही नहीं। पाप करने की दरकार नहीं। यहाँ तो पैसे के लिए कितने पाप करते हैं। वहाँ तो बहुत धन रहता है। बेहद की राजाई है ना। गाया जाता है भारत दैवी राजस्थान था। जब दैवी राजस्थान था तो देवी-देवताओं का धर्म श्रेष्ठ था। बाप आकर श्रेष्ठ देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। तुम जानते हो हम श्रेष्ठ बन रहे हैं, तो कोई पाप का काम नहीं करना है। डर रहना चाहिए। अच्छे-अच्छे बच्चों को माया नाक से पकड़ पाप करा देती है। अभी तुम जानते हो महफिल में बाप आये हैं, कैसे मुख वंशावली बनाए उनको श्रेष्ठ बनाते हैं। जरूर शरीर को तो लोन लेना ही पड़े। कहते हैं मैं साधारण तन में आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते, मैं बतलाता हूँ। इनका नाम ब्रह्मा रख दिया है। ब्रह्मा में ही प्रवेश करता हूँ क्योंकि ब्रह्मा द्वारा स्थापना करनी है। ऐसे थोड़ेही बौद्धी, इस्लामी वा सिक्ख में प्रवेश करेंगे। बाप कहते हैं मुझे उस तन में प्रवेश करना है, जो पहले-पहले सूर्यवंशी श्री नारायण था फिर उनको ही बनाता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। यह है ज्ञान काण्ड। ज्ञान बाप ही देते हैं। फिर वहाँ भक्ति का नाम-निशान नहीं। ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग कहा जाता है। आधाकल्प भक्ति काण्ड आधाकल्प ज्ञान काण्ड चलता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। पतित बनना ही है। बच्चों को अच्छे-अच्छे राज़ समझाये जाते हैं। गाते भी हैं भगवान् आकर भक्तों को साथ ले जाते हैं। परमपिता परमात्मा को याद करते हैं – बाबा आओ, माया रूपी जंजीरों से आकर छुड़ाओ, हमको लिबरेट करो। जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं सबको लिबरेट करते हैं। फिर वहाँ दैवी माँ-बाप मिलेंगे। तुम देवी-देवता बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा भी प्योर हो जायेगी। अभी तुम्हारी आत्मा पतित बनी है, सो फिर पावन बनेगी। अनेक प्रकार के चित्र हैं, जिसका आक्यूपेशन कुछ भी नहीं। जैसे गुड़ियों की पूजा करते हैं। मैं न गुड्डा हूँ, न गुड्डी हूँ, मैं तो हूँ ही निराकार। गुड्डा और गुड्डी मनुष्य हैं, मैं नहीं बनता हूँ। मुझे निराकार ही कहते हैं। तुम गुड्डे-गुड्डी अभी बहुत दु:खी हो, बैकुण्ठ में तुम बहुत सुखी थे। सुख की महिमा अपरमअपार है। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, रूठ पड़ते हैं। ब्राह्मणों में से भी बहुत रूठते हैं। रूठकर वर्सा पाने को ही छोड़ देते हैं। अरे, तुमको वर्सा बाप से लेना है ना! यह हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, पढ़ाई है। बाबा ने बड़ा सहज समझाया है। भल तुम कहाँ नहीं आ सकते हो, अच्छा, मुरली तो मंगाकर पढ़ सकते हो। इसमें ऩुकसान की कोई बात नहीं है। बाकी हाँ, पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। सर्विस का सबूत ही नहीं तो मुरली भेजकर क्या करेंगे? मुरली पढ़ी जाती है धारण करने के लिए। अगर एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं तो फिर क्या कर सकेंगे? बाबा को याद ही नहीं करते हैं। कोई पाप करते हैं तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। बाप कुछ नहीं करते हैं। बाप तो समझाते हैं – तुमको बहुत मीठा बनना है, कोई को दु:खी मत करो। अन्त में तुम बच्चे बहुत मीठा, बाप जैसे बन जायेंगे। पुरुषार्थ करना है। दिल से पूछना है – किसको तंग तो नहीं करते हैं? हमसे कोई नाराज़ तो नहीं होते? यूँ बाहर वाले तो बहुत नाराज़ होंगे।

तुम ब्राह्मण कुल भूषणों को मुरली रोज़ जरूर सुननी चाहिए। मुरली नहीं सुनेंगे तो धारणा कैसे होगी? मुरली नहीं सुनते हैं तो जरूर समझो – वह बख्तावर नहीं। मुरली को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। ब्राह्मणियों को भी मुरली शिवबाबा से मिलती है ना। उनसे कनेक्शन रखना है। डायरेक्ट मुरली तो भेजें लेकिन फिर आप समान भी बनाकर तो दिखाओ। बाप को याद करते रहो। बाप की याद औरों को दिलाते रहो। समाचार दो तो पता पड़े। नहीं तो कैसे समझेंगे कि बाप की सर्विस कर रहे हो? सबूत जरूर चाहिए सर्विस का। मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। टेप्स भी मुरलीधर बनती हैं ना। यह एक्यूरेट मुरली सुना सकती है। तुम नहीं सुना सकेंगे। तो क्या करना चाहिए? औंरों के कल्याण के लिए टेप रिकॉर्ड मशीन लेकर देनी चाहिए। इतने सब सुनेंगे तो उन सबका फल देने वाले को बहुत मिलेगा। ले करके देंगे भी वह जिनको इसके रहस्य का पता होगा। इस मुरली सुनने से तुम राजाई पद पाते हो। और कोई का भाषण सुनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे क्या? अथवा मनुष्य से देवता थोड़ेही बनेंगे। यह तो फर्स्टक्लास दान करना है, जिससे 21 जन्मों के लिये बहुतों का कल्याण होता है। टेप रिकॉर्ड लेकर देना वा मकान लेकर देना कितनी अच्छी सर्विस है। बच्चे बैठ सर्विस करेंगे। मकान फिर भी तुम्हारा ही रहेगा, उसका फल तुमको मिलेगा। वहाँ रिटर्न में बड़े-बड़े महल मिल जायेंगे। वह समय आयेगा जो तुम बच्चों को तो बहुत मकान मिलेंगे। चरणों मे झुकते रहेंगे। मकान भी हम क्या करेंगे? हमको तो सिर्फ सर्विस करनी है। मकान लो फिर मुफ्त में पैसा भरकर क्यों दो – सौदागर भी तो यह पक्का है। सेन्सीबुल सौदागर है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे लक्की ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।

2) पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है – धारण करने के लिए। एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।

वरदान:-

आप सबके निज़ी संस्कार अटेन्शन के हैं। जब टेन्शन रखना आता है तो अटेन्शन रखना क्या बड़ी बात है। तो अब अटेन्शन का भी टेन्शन न हो लेकिन नेचुरल अटेन्शन हो। आत्मा को न्यारा होने का नेचुरल अभ्यास है। न्यारी थी, न्यारी है फिर न्यारी बनेंगी। जैसे अभी वाणी में आने का अभ्यास पक्का हो गया है, ऐसे वाणी से परे, न्यारे होने का अभ्यास भी नेचुरल हो जाये तो न्यारेपन के शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा सेवा में सहज सिद्धि को प्राप्त करेंगे और यह नेचरल अभ्यास नेचर को भी बदल देगा।

स्लोगन:-

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