20 September 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

19 September 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना है, संगम पर बाप आते हैं तुम बच्चों की खिदमत (सेवा) करने''

प्रश्नः-

यह पुरूषोत्तम संगमयुग ही सबसे सुहावना और कल्याणकारी है – कैसे?

उत्तर:-

इसी समय तुम बच्चे स्त्री और पुरूष दोनों ही उत्तम बनते हो। यह संगमयुग है ही कलियुग अन्त और सतयुग आदि के बीच का समय। इस समय ही बाप तुम बच्चों के लिए ईश्वरीय युनिवर्सिटी खोलते हैं, जहाँ तुम मनुष्य से देवता बनते हो। ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में कभी नहीं होती। इसी समय सबकी सद्गति होती है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं। यहाँ बैठे-बैठे एक तो तुम बाप को याद करते हो क्योंकि वह पतित-पावन है, उनको याद करने से ही पावन सतोप्रधान बनने की तुम्हारी एम है। ऐसे नहीं, सतो तक एम है। सतोप्रधान बनना है इसलिए बाप को भी जरूर याद करना है फिर स्वीट होम को भी याद करना है क्योंकि वहाँ जाना है फिर माल-मिलकियत भी चाहिए इसलिए अपने स्वर्ग धाम को भी याद करना है क्योंकि यह प्राप्ति होती है। बच्चे जानते हैं हम बाप के बच्चे बने हैं, बरोबर बाप से शिक्षा लेकर हम स्वर्ग में जायेंगे – नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। बाकी जो भी जीव की आत्मायें हैं वह शान्तिधाम में चली जायेंगी। घर तो जरूर जाना है। बच्चों को यह भी मालूम हुआ, अभी है रावण राज्य। इसकी भेंट में सतयुग को फिर नाम दिया जाता है राम राज्य। दो कला कम हो जाती हैं। उनको सूर्यवंशी, उनको चन्द्रवंशी कहा जाता है। जैसे क्रिश्चियन की डिनायस्टी एक ही चलती है, वैसे यह भी है एक ही डिनायस्टी। परन्तु उसमें सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी हैं। यह बातें कोई भी शास्त्रों में नहीं हैं। बाप बैठ समझाते हैं, जिसको ही ज्ञान अथवा नॉलेज कहा जाता है। स्वर्ग स्थापन हो गया फिर नॉलेज की दरकार नहीं। यह नॉलेज बच्चों को पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही सिखलाई जाती है। तुम्हारे सेन्टर्स पर वा म्युज़ियम में बहुत बड़े-बड़े अक्षरों में जरूर लिखा हुआ हो कि बहनों और भाइयों यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, जो एक ही बार आता है। पुरूषोत्तम संगमयुग का अर्थ भी नहीं समझते हैं तो यह भी लिखना है – कलियुग अन्त और सतयुग आदि का संगम। तो संगमयुग सबसे सुहावना, कल्याणकारी हो जाता है। बाप भी कहते हैं मैं पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही आता हूँ। तो संगमयुग का अर्थ भी समझाया है। वेश्यालय का अन्त, शिवालय का आदि – इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग। यहाँ सब हैं विकारी, वहाँ सब हैं निर्विकारी। तो जरूर उत्तम तो निर्विकारी को कहेंगे ना। पुरूष और स्त्री दोनों उत्तम बनते हैं इसलिए नाम ही है पुरूषोत्तम। इन बातों का बाप और तुम बच्चों के सिवाए किसको पता नहीं कि यह संगमयुग है। किसके ख्याल में नहीं आता कि पुरूषोत्तम संगमयुग कब होता है। अभी बाप आये हुए हैं, वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। उनकी ही इतनी महिमा है, वह ज्ञान का सागर, आनंद का सागर है, पतित-पावन है। ज्ञान से सद्गति करते हैं। ऐसे तुम कभी नहीं कहेंगे कि भक्ति से सद्गति। ज्ञान से सद्गति होती है और सद्गति है ही सतयुग में। तो जरूर कलियुग का अन्त और सतयुग आदि के संगम पर आयेंगे। कितना क्लीयर कर बाप समझाते हैं। नये भी आते हैं, हूबहू जैसे कल्प-कल्प आये हैं, आते रहते हैं। राजधानी ऐसे ही स्थापन होनी है। तुम बच्चों को मालूम है – हम खुदाई खिदमतगार सच्चे-सच्चे ठहरे। एक को थोड़ेही पढ़ायेंगे। एक पढ़ते हैं फिर इन द्वारा तुम पढ़कर औरों को पढ़ाते हो इसलिए यहाँ यह बड़ी युनिवर्सिटी खोलनी पड़ती है। सारी दुनिया में और कोई युनिवर्सिटी है ही नहीं। न कोई दुनिया में जानता है कि ईश्वरीय युनिवर्सिटी भी होती है। अभी तुम बच्चे जानते हो – गीता का भगवान शिव आकर यह युनिवर्सिटी खोलते हैं। नई दुनिया का मालिक देवी-देवता बनाते हैं। इस समय आत्मा जो तमोप्रधान बन गई है, फिर उसको ही सतोप्रधान बनना है। इस समय सब तमोप्रधान हैं ना। भल कई कुमार भी पवित्र रहते हैं, कुमारियाँ भी पवित्र रहती हैं, संन्यासी भी पवित्र रहते हैं परन्तु आजकल वह पवित्रता नहीं है। पहले-पहले जब आत्मायें आती हैं, वह पवित्र रहती हैं। फिर अपवित्र बन जाती हैं क्योंकि तुम जानते हो सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो से सबको पास होना होता है। अन्त में सब तमोप्रधान बन जाते हैं। अभी बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं – यह झाड़ तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है, पुराना हो गया है तो जरूर इनका विनाश होना चाहिए। यह है वैराइटी धर्मों का झाड़, इसलिए कहते हैं विराट लीला। कितना बड़ा बेहद का झाड़ है। वह तो जड़ झाड़ होते हैं, जो बीज डालो वह झाड़ निकलता है। यह फिर है वैराइटी धर्मों का वैराइटी चित्र। हैं सब मनुष्य, परन्तु उनमें वैराइटी बहुत है, इसलिए विराट लीला कहा जाता है। सब धर्म कैसे नम्बरवार आते हैं, यह भी तुम जानते हो। सबको जाना है फिर आना है। यह ड्रामा बना हुआ है। है भी कुदरती ड्रामा। कुदरत यह है जो इतनी छोटी सी आत्मा अथवा परम आत्मा में कितना पार्ट भरा हुआ है। परम – आत्मा को मिलाकर परमात्मा कहा जाता है। तुम उनको बाबा कहते हो क्योंकि सभी आत्माओं का वह सुप्रीम बाप है ना। बच्चे जानते हैं आत्मा ही सारा पार्ट बजाती है। मनुष्य यह नहीं जानते। वह तो कह देते आत्मा निर्लेप है। वास्तव में यह अक्षर रांग है। यह भी बड़े-बड़े अक्षरों में लिख देना चाहिए – आत्मा निर्लेप नहीं है। आत्मा ही जैसे-जैसे अच्छे वा बुरे कर्म करती है तो ऐसा वह फल पाती है। बुरे संस्कारों से पतित बन पड़ती है, तब तो देवताओं के आगे जाकर उनकी महिमा गाते हैं। अभी तुमको 84 जन्मों का पता पड़ गया है, और कोई भी मनुष्य नहीं जानता। तुम उनको 84 जन्म सिद्ध कर बतलाते हो तो कहते हैं – क्या शास्त्र सब झूठे हैं? क्योंकि सुना है मनुष्य 84 लाख योनियां लेते हैं। अभी बाप बैठ समझाते हैं वास्तव में सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है ही गीता। बाप अभी हमको राजयोग सिखला रहे हैं जो 5 हज़ार वर्ष पहले सिखलाया था।

तुम जानते हो हम पवित्र थे, पवित्र गृहस्थ धर्म था। अभी इनको धर्म नहीं कहेंगे। अधर्मी बन पड़े हैं अर्थात् विकारी बन गये हैं। इस खेल को तुम बच्चे समझ गये हो। यह बेहद का ड्रामा है जो हर 5 हज़ार वर्ष बाद रिपीट होता रहता है। लाखों वर्ष की बात तो कोई समझ भी न सके। यह तो जैसे कल की बात है। तुम शिवालय में थे, आज वेश्यालय में हो फिर कल शिवालय में होंगे। सतयुग को कहा जाता है शिवालय, त्रेता को सेमी कहा जाता है। इतने वर्ष वहाँ रहेंगे। पुनर्जन्म में तो आना ही है। इनको कहा जाता है रावण राज्य। तुम आधाकल्प पतित बनें, अब बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो। कुमार और कुमारियां तो हैं ही पवित्र। उन्हों को फिर समझाया जाता है – ऐसे गृहस्थ में फिर जाना नहीं है जो फिर पवित्र होने का पुरूषार्थ करना पड़े। भगवानुवाच है कि पावन बनो, तो बेहद के बाप का मानना पड़े ना। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रह सकते हो। फिर बच्चों को पतित बनने की आदत क्यों डालते हो। जबकि बाप 21 जन्मों के लिए पतित होने से बचाते हैं। इसमें लोक लाज कुल की मर्यादा भी छोड़नी पड़े। यह है बेहद की बात। बैचलर्स (कुमार) तो सब धर्मों में बहुत रहते हैं परन्तु सेफ्टी से रहना ज़रा मुश्किल होता है, फिर भी रावण राज्य में रहते हैं ना। विलायत में भी ऐसे बहुत मनुष्य शादी नहीं करते हैं फिर पिछाड़ी में कर लेते हैं कम्पैनियनशिप के लिए। क्रिमिनल आई से नहीं करते हैं। ऐसे भी दुनिया में बहुत होते हैं। पूरी सम्भाल करते हैं, फिर जब मरते हैं तो कुछ उनको देकर जाते हैं। कुछ धर्माऊ लगा देते हैं। ट्रस्ट बनाकर जाते हैं। विलायत में भी बड़े-बड़े ट्रस्ट होते हैं जो फिर यहाँ भी मदद करते हैं। यहाँ ऐसा ट्रस्ट नहीं होगा जो विलायत को भी मदद करे। यहाँ तो गरीब लोग हैं, क्या मदद करेंगे! वहाँ तो उन्हों के पास पैसे बहुत हैं। भारत तो गरीब है ना। भारतवासियों की क्या हालत है! भारत कितना सिरताज था, कल की बात है। खुद भी कहते हैं 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था। बाप ही बनाते हैं। तुम जानते हो बाप कैसे ऊपर से नीचे आते हैं – पतितों को पावन बनाने। वह है ही ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता अर्थात् सबको पावन बनाने वाला। तुम बच्चे जानते हो मेरी महिमा तो सब गाते हैं। मैं यहाँ पतित दुनिया में ही आता हूँ तुमको पावन बनाने। तुम पावन बन जाते हो तो फिर पहले-पहले पावन दुनिया में आते हो। बहुत सुख उठाते हो फिर रावण राज्य में गिरते हो। भल गाते तो हैं परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर, पतित-पावन है। परन्तु पावन बनाने के लिए कब आयेंगे – यह कोई भी जानते ही नहीं हैं। बाप कहते हैं तुम मेरी महिमा करते हो ना। अब मैं आया हूँ तुमको अपना परिचय दे रहा हूँ। मैं हर 5 हज़ार वर्ष के बाद इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर आता हूँ, कैसे आता हूँ वह भी समझाता हूँ। चित्र भी हैं। ब्रह्मा कोई सूक्ष्मवतन में नहीं होता है। ब्रह्मा यहाँ है और ब्राह्मण भी यहाँ हैं, जिसको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है, जिसका फिर सिजरा बनता है। मनुष्य सृष्टि का सिजरा तो प्रजापिता ब्रह्मा से ही चलेगा ना। प्रजापिता है तो जरूर उनकी प्रजा होगी। कुख वंशावली तो हो न सके, जरूर एडप्टेड होंगे। ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर है तो जरूर एडाप्ट किया होगा। तुम सब एडाप्टेड बच्चे हो। अभी तुम ब्राह्मण बने हो फिर तुमको देवता बनना है। शूद्र से ब्राह्मण फिर ब्राह्मण से देवता, यह बाजोली का खेल है। विराट रूप का भी चित्र है ना। वहाँ से सबको यहाँ आना है जरूर। जब सब आ जाते हैं फिर क्रियेटर भी आते हैं। वह क्रियेटर डायरेक्टर है, एक्ट भी करते हैं। बाप कहते हैं – हे आत्मायें तुम मुझे जानते हो। तुम आत्मायें मेरे सब बच्चे हो ना। तुमने पहले सतयुग में शरीरधारी बन कितना अच्छा सुख का पार्ट बजाया फिर 84 जन्म बाद तुम कितना दु:ख में आ गये हो। ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रोड्युशर होते हैं ना। यह है बेहद का ड्रामा। बेहद ड्रामा को कोई भी जानते नहीं हैं। भक्ति मार्ग में ऐसी-ऐसी बातें बताते हैं जो मनुष्यों की बुद्धि में वही बैठ गयी हैं।

अब बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, यह सब भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं। भक्ति मार्ग की ढेर सामग्री है, जैसे बीज की सामग्री झाड़ है, इतने छोटे बीज से झाड़ कितना अथाह फैल जाता है। भक्ति का भी इतना विस्तार है। ज्ञान तो बीज है, उसमें कोई भी सामग्री की दरकार नहीं रहती है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और कोई व्रत नेम नहीं है। यह सब बन्द हो जाता है। तुमको सद्गति मिल जायेगी फिर कोई बात की दरकार नहीं। तुमने ही बहुत भक्ति की है। उसका फल तुमको देने के लिए आया हूँ। देवतायें शिवालय में थे ना, तब तो मन्दिर में जाकर उन्हों की महिमा गाते हैं। अब बाप समझाते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, मैंने 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुमको समझाया था कि अपने को आत्मा समझो। देह के सब सम्बन्ध छोड़ मुझ एक बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे। बाप जो कुछ अभी समझाते हैं, कल्प-कल्प समझाते आये हैं। गीता में भी कोई-कोई अक्षर अच्छे हैं। मनमनाभव अर्थात् मुझे याद करो। शिवबाबा कहते हैं मैं यहाँ आया हूँ। किसके तन में आता हूँ, वह भी बताता हूँ। ब्रह्मा द्वारा सब वेदों-शास्त्रों का सार तुमको सुनाता हूँ। चित्र भी दिखाते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। अभी तुम समझते हो – शिवबाबा कैसे ब्रह्मा तन द्वारा सब शास्त्रों आदि का सार सुनाते हैं। 84 जन्मों के ड्रामा का राज़ भी तुमको समझाते हैं। इनके ही बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ। यही फिर पहले नम्बर का प्रिन्स बनते हैं फिर 84 जन्मों में आते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) इस रावण राज्य में रहते पतित लोकलाज़ कुल की मर्यादा को छोड़ बेहद बाप की बात माननी है, गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान रहना है।

2) इस वैराइटी विराट लीला को अच्छी तरह समझना है, इसमें पार्ट बजाने वाली आत्मा निर्लेप नहीं, अच्छे-बुरे कर्म करती और उसका फल पाती है, इस राज़ को समझकर श्रेष्ठ कर्म करने हैं।

वरदान:-

अभी तक कई बच्चों में फीलिंग के, किनारा करने के, परचिंतन करने वा सुनने के भिन्न-भिन्न संस्कार हैं, जिन्हें कह देते हो कि क्या करें मेरे ये संस्कार हैं…ये मेरा शब्द ही पुरुषार्थ में ढीला करता है। यह रावण की चीज़ है, मेरी नहीं। लेकिन जो बाप के संस्कार हैं वही ब्राह्मणों के ओरिज्नल संस्कार हैं। वह संस्कार हैं विश्वकल्याणकारी, शुभ चिंतन-धारी। सबके प्रति शुभ भावना, शुभकामनाधारी।

स्लोगन:-

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