20 November 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
19 November 2022
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
आज्ञाकारी ही सर्व शक्तियों के अधिकारी
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज सर्व शक्तियों के दाता बापदादा अपने शक्ति सेना को देख रहे हैं। सर्वशक्तिवान बाप ने सभी ब्राह्मण आत्माओं को समान सर्व शक्तियों का वर्सा दिया है। किसको कम शक्ति वा किसको ज्यादा – यह अन्तर नहीं किया। सभी को एक द्वारा, एक साथ, एक समान शक्तियां दी हैं। तो रिजल्ट देख रहे थे कि एक समान मिलते हुए भी अन्तर क्यों है? कोई सर्व शक्ति सम्पन्न बने और कोई सिर्फ शक्ति सम्पन्न बने हैं, सर्व नहीं। कोई सदा शक्तिस्वरूप बने, कोई कभी-कभी शक्तिस्वरूप बने हैं। कोई ब्राह्मण आत्माएं अपनी सर्व-शक्तिवान की अथॉरिटी से जिस समय, जिस शक्ति को ऑर्डर करती हैं वह शक्ति रचना के रूप में मास्टर रचता के सामने आती है। ऑर्डर किया और हाज़िर हो जाती है। कोई ऑर्डर करते हैं लेकिन समय पर शक्तियां हाज़िर नहीं होतीं, ‘जी-हाज़िर’ नहीं होती। इसका कारण क्या? कारण है जो बच्चे सर्वशक्तिवान बाप, जिसको हज़ूर भी कहते हैं, हाज़िर-नाज़िर भी कहते हैं तो जो बच्चे हज़ूर अर्थात् बाप के हर क़दम की श्रीमत पर, हर समय ‘जी-हाज़िर’ वा हर आज्ञा में ‘जी-हाज़िर’ प्रैक्टिकल में करते हैं, तो ‘जी-हाज़िर’ करने वाले के आगे हर शक्ति भी ‘जी-हाज़िर’ वा ‘जी मास्टर हज़ूर’ करती है।
अगर कोई आत्मायें श्रीमत वा आज्ञा जो सहज पालन कर सकते हैं वह करते हैं और जो मुश्किल लगती है वह नहीं कर सकते – कुछ किया, कुछ नहीं किया, कभी ‘जी-हाज़िर’, कभी ‘हाज़िर’ इसका प्रत्यक्ष सबूत वा प्रत्यक्ष प्रमाण रूप है कि ऐसी आत्माओं के आगे सर्व शक्तियां भी समय प्रमाण हाज़िर नहीं होती हैं। जैसे कोई परिस्थिति प्रमाण समाने की शक्ति चाहिए तो संकल्प करेंगे कि हम अवश्य समाने की शक्ति द्वारा इस परिस्थिति को पार करेंगे, विजयी बनेंगे। लेकिन होता क्या है? सेकेण्ड नम्बर वाले अर्थात् कभी-कभी वाले समाने की शक्ति का प्रयोग करेंगे, 10 बार समायेंगे लेकिन समाते हुए भी एक-दो बार समाने चाहते भी समा नहीं सकेंगे। फिर क्या सोचते हैं? मैंने किसको नहीं सुनाया, मैंने समाया लेकिन यह साथ वाले थे, हमारे सहयोगी थे, समीप थे इसको सिर्फ इशारा दिया। सुनाया नहीं, इशारा दिया। कोई शब्द बोलने नहीं चाहते थे, सिर्फ एक-आधा शब्द निकल गया। तो इसको क्या कहा जायेगा? समाना कहेंगे? 10 के आगे तो समाया और एक-दो के आगे समा नहीं सकते, तो इसको क्या कहेंगे? समाने की शक्ति ने ऑर्डर माना? जबकि अपनी शक्ति है, बाप ने वर्से में दिया है, तो बाप का वर्सा सो बच्चों का वर्सा हो जाता। अपनी शक्ति अपने काम में न आये तो इसको क्या कहा जायेगा? ऑर्डर मानने वाले या ऑर्डर न मानने वाले कहा जायेगा?
आज बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं को देख रहे थे कि कहाँ तक सर्व शक्तियों के अधिकारी बने हैं। अगर अधिकारी नहीं बने, तो उस समय परिस्थिति के अधीन बनना पड़े। बापदादा को सबसे ज्यादा रहम उस समय आता है जब बच्चे कोई भी शक्ति को समय पर कार्य में नहीं लगा सकते हैं। उस समय क्या करते हैं? जब कोई बात सामना करती तो बाप के सामने किस रूप में आते हैं? ज्ञानी-भक्त के रूप में आते हैं। भक्त क्या करते हैं? भक्त सिर्फ पुकार करते रहते कि यह दे दो। भागते बाप के पास हैं, अधिकार बाप पर रखते हैं लेकिन रूप होता है रॉयल भक्त का। और जहाँ अधिकारी के बजाए ज्ञानी-भक्त अथवा रॉयल भक्त के रूप में आते हैं, तो जब तक भक्ति का अंश है, तो भक्ति का फल सद्गति अर्थात् सफलता, सद्गति अर्थात् विजय नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि जहाँ भक्ति का अंश रह जाता वहाँ भक्ति का फल ज्ञान अर्थात् सर्व प्राप्ति नहीं हो सकती, सफलता नहीं मिल सकती। भक्ति अर्थात् मेहनत और ज्ञान अर्थात् मुहब्बत। अगर भक्ति का अंश है तो मेहनत जरूर करनी पड़ती और भक्ति की रस्म-रिवाज है कि जब भीड़ (मुशीबत) पड़ेगी तब भगवान् याद आयेगा, नहीं तो अलबेले रहेंगे। ज्ञानी-भक्त भी क्या करते हैं? जब कोई विघ्न आयेगा तो विशेष याद करेंगे।
एक है सेवा प्रति याद में बैठना और दूसरा है स्व की कमजोरी को भरने लिए याद में बैठना। दोनों में अन्तर है। जैसे अभी भी विश्व पर अशान्ति का वायुमण्डल है तो सेवा प्रति संगठित रूप में विशेष याद के प्रोग्राम बनाते हो, वह अलग बात है। वह तो दाता बन देने के लिए करते हो। वह मांगने के लिए नहीं करते हो, औरों को देने के लिए करते हो। तो वह हुआ सेवा प्रति। लेकिन अपनी कमजोरी भरने के प्रति समय पर विशेष याद करते हो और वैसे अलबेलेपन की याद होती है। याद होती है, भूलते नहीं हो लेकिन अलबेलेपन की याद आती है – हम तो हैं ही बाबा के, और है ही कौन। लेकिन यथार्थ शक्तिशाली याद का प्रत्यक्ष-प्रमाण समय प्रमाण शक्ति हाज़िर हो जाए। कितना भी कोई कहे मैं तो याद में रहती ही हूँ वा रहता ही हूँ, लेकिन याद का स्वरूप है सफलता। ऐसे नहीं जिस समय याद में बैठते उस समय खुशी भी अनुभव होती, शक्ति भी अनुभव होती और जब कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते उस समय सदा सफलता नहीं होती। तो उसको कर्मयोगी नहीं कहा जायेगा। शक्तियां शस्त्र हैं और शस्त्र किस समय के लिए होता है? शस्त्र सदा समय पर काम में लाया जाता है।
यथार्थ याद अर्थात् सर्व शक्ति सम्पन्न। सदा शक्तिशाली शस्त्र हो। परिस्थिति रूपी दुश्मन आया और शस्त्र काम में नहीं आये, तो इसको क्या कहा जायेगा? शक्तिशाली या शस्त्रधारी कहेंगे? हर कर्म में याद अर्थात् सफलता हो। इसको कहा जाता है कर्मयोगी। सिर्फ बैठने के टाइम के योगी नहीं हो। आपके योग का नाम बैठा-बैठा योगी है या कर्मयोगी नाम है? कर्मयोगी हो ना। निरन्तर कर्म है और निरन्तर कर्मयोगी हो। जैसे कर्म के बिना एक सेकेण्ड भी रह नहीं सकते, चाहे सोये हुए हो तो वह भी सोने का कर्म कर रहे हो ना। तो जैसे कर्म के बिना रह नहीं सकते वैसे हर कर्म योग के बिना कर नहीं सकते। इसको कहा जाता है कर्मयोगी। ऐसे नहीं समझो कि बात ही ऐसी थी ना, सरकमस्टांश ही ऐसे थे, समस्या ही ऐसी थी, वायुमण्डल ऐसा था। यही तो दुश्मन है और उस समय कहो दुश्मन आ गया, इसलिए तलवार चला न सके, तलवार काम में लगा नहीं सके, या तलवार याद ही नहीं आये, या तलवार ने काम नहीं किया तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? शस्त्रधारी? शक्ति-सेना हो। तो सेना की शक्ति क्या होती है? शस्त्र। और शस्त्र हैं सर्व शक्तियां। तो रिजल्ट क्या देखा? मैजारिटी सदा समय पर सर्व शक्तियों को ऑर्डर पर चला सकें, इसमें कमी दिखाई दी। समझते भी हैं लेकिन सफलता-स्वरूप में समय प्रमाण या तो शक्तिहीन बन जाते हैं या थोड़ा-सा असफलता का अनुभव कर फौरन सफलता की ओर चल पड़ते हैं। तीन प्रकार के देखे।
एक – उसी समय दिमाग द्वारा समझते हैं कि यह ठीक नहीं है, नहीं करना चाहिए लेकिन उस समझ को शक्ति-स्वरूप में बदल नहीं सकते।
दूसरे हैं – जो समझते भी हैं लेकिन समझते हुए भी समय वा समस्या पूरी होने के बाद सोचते हैं। वह थोड़े समय में सोचते हैं, वह पूरा होने के बाद सोचते।
तीसरे – महसूस ही नहीं करते कि यह रांग है, सदा अपने रांग को राइट ही सिद्ध करते हैं अर्थात् सत्यता की महसूसता-शक्ति नहीं। तो अपने को चेक करो कि मैं कौन हूँ?
बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता किन बच्चों ने प्राप्त की है। उसमें भी अन्तर है। एक हैं सहज सफलता प्राप्त करने वाले और दूसरे हैं मेहनत और सहज – दोनों के बाद सफलता पाने वाले। जो सहज और सदा सफलता प्राप्त करते हैं उनका मूल आधार क्या देखा? जो आत्मायें सदा स्वयं को निर्मान-चित्त की विशेषता से चलाते रहते हैं, वही सहज सफलता को प्राप्त होते आये हैं। ‘निर्मान’ शब्द एक है लेकिन निर्मान-स्थिति का विस्तार और निर्मान-स्थिति के समय प्रमाण प्रकार… वह बहुत हैं। उस पर फिर कोई समय सुनायेंगे। लेकिन यह याद रखना कि निर्मान बनना ही स्वमान है और सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन है। निर्मान बनना झुकना नहीं है लेकिन सर्व को अपनी विशेषता और प्यार में झुकाना है। समझा?
सभी ने रिजल्ट सुनी। समय आपका इन्तज़ार कर रहा है और आप क्या कर रहे हो? आप समय का इन्तजार कर रहे हो? मालिक के बालक हो ना। तो समय आपका इन्तज़ार कर रहा है कि ये मेरे मालिक मुझ समय को परिवर्तन करेंगे। वह इन्तजार कर रहा है और आपको इन्तजाम करना है, इन्तजार नहीं करना है। सर्व को सन्देश देने का और समय को सम्पन्न बनाने का इन्तजाम करना है। जब दोनों कार्य सम्पन्न हों तब समय का इन्तजार पूरा हो। तो ऐसा इन्तजाम सब कर रहे हो? किस गति से? समय को देख आप भी कहते हो कि बहुत फास्ट समय बीत रहा है। इतने वर्ष कैसे पूरे हो गये, सोचते हो ना! अव्यक्त बाप की पालना को कितने वर्ष हो गये! कितना फास्ट समय चला! तो आपकी गति क्या है? फास्ट है? या फास्ट चलकर कभी-कभी थक जाते हो, फिर रेस्ट करते हो? कर रहे हैं यह तो ड्रामा के बंधन में बंधे हुए ही हो। लेकिन गति क्या है, इसको चेक करो। सेवा हो रही है, पुरुषार्थ हो रहा है, आगे बढ़ रहे हैं यह तो ठीक है। तो अब गति को चेक करो, सिर्फ चलने को चेक नहीं करो। गति को चेक करो, स्पीड को चेक करो। समझा? सभी अपना काम कर रहे हो ना। अच्छा!
चारों ओर के सदा बाप के आगे ‘जी-हाज़िर’ करने वाले, सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बन सर्व शक्तियों को स्वयं के आर्डर में चलाने वाले, सर्व शक्तियां ‘जी-हाज़िर’ का पार्ट बजाने वाली – ऐसे सदा सफलतामूर्त आत्मायें, सदा हर कर्म में याद का स्वरूप अनुभव करने वाले और कराने वाले – ऐसे अनुभवी आत्माओं को सदा हर कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में निर्मान बन विजयी-रत्न बनने वाले, ऐसे सहज सफलतामूर्त श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात – साधारण कर्म में भी ऊंची स्थिति की झलक दिखाना ही फॉलो फादर करना है
सदा संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हैं ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग का नाम ही है पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों से उत्तम पुरुष बनाने वाला युग। तो संगमयुगी हो? आप सभी पुरुषोत्तम बने हो ना। आत्मा पुरुष है और शरीर प्रकृति है। तो पुरुषोत्तम अर्थात् उत्तम आत्मा हूँ। सबसे नम्बरवन पुरुषोत्तम कौन है? (ब्रह्मा बाबा) इसीलिए ब्रह्मा को आदि देव कहा जाता है। ‘फरिश्ता ब्रह्मा’ भी उत्तम हो गया और फिर भविष्य में देव आत्मा बनने के कारण पुरुषोत्तम बन जाते। लक्ष्मी-नारायण को भी पुरुषोत्तम कहेंगे ना। तो पुरुषोत्तम युग है, पुरुषोत्तम मैं आत्मा हूँ। पुरुषोत्तम आत्माओं का कर्तव्य भी सर्वश्रेष्ठ है। उठा, खाया-पीया, काम किया यह साधारण कर्म नहीं, साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति हो। जो देखते ही महसूस करे कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। जैसे जो असली हीरा होगा वह कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, छिप नहीं सकता। तो आपकी जीवन हीरे तुल्य है ना।
कैसे भी वातावरण में हों, कैसे भी संगठन में हों लेकिन जैसे हीरा अपनी चमक छिपा नहीं सकता, ऐसे पुरुषोत्तम आत्माओं की श्रेष्ठ झलक सबको अनुभव होनी चाहिए। तो ऐसे है या दफ्तर में जाकर, काम में जाकर आप भी वैसे ही साधारण हो जाते हो? अभी गुप्त में हो, काम भी साधारण है इसीलिए पाण्डवों को गुप्त रूप में दिखाया है। गुप्त रूप में राजाई नहीं की, सेवा की। तो दूसरों के राज्य में गवर्मेन्ट-सर्वेन्ट कहलाते हो ना। चाहे कितना भी बड़ा आफिसर हो लेकिन सर्वेन्ट ही है ना। तो गुप्त रूप में आप सब सेवाधारी हो लेकिन सेवाधारी होते भी पुरुषोत्तम हो। तो वह झलक और फलक दिखाई दे।
जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी पुरुषोत्तम अनुभव होता था। सभी ने सुना है ना। देखा है या सुना है? अभी भी अव्यक्त रूप में भी देखते हो – साधारण में पुरुषोत्तम की झलक है! तो फॉलो फादर है ना। ऐसे नहीं साधारण काम कर रहे हैं। मातायें खाना बना रही हैं, कपड़े धुलाई कर रही हैं – काम साधारण हो लेकिन स्थिति साधारण नहीं, स्थिति महान हो। ऐसे है? या साधारण काम करते साधारण बन जाते हैं? जैसे दूसरे, वैसे हम – नहीं। चेहरे पर वो श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव होना चाहिए। यह चेहरा ही दर्पण है ना। इसी से ही आपकी स्थिति को देख सकते हैं। महान् हैं या साधारण हैं, यह इसी चेहरे के दर्पण से देख सकते हैं। स्वयं भी देख सकते हो और दूसरे भी देख सकते हैं। तो ऐसे अनुभव करते हो? सदैव स्मृति और स्थिति श्रेष्ठ हो। स्थिति श्रेष्ठ है तो झलक आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी।
जो समान स्थिति वाले हैं वे सदा बाप के साथ रहते हैं। शरीर से चाहे किसी कोने में बैठे हों, किनारे बैठे हों, पीछे बैठे हों लेकिन मन की स्थिति में साथ रहते हो ना। साथ वही रहेंगे जो समान होंगे। स्थूल में चाहे सामने भी बैठे हों लेकिन समान नहीं तो सदा साथ नहीं रहते, किनारे में रहते हैं। तो समीप रहना अर्थात् समान स्थिति बनाना इसलिए सदा ब्रह्मा बाप समान पुरुषोत्तम स्थिति में स्थित रहो। कई बच्चों की चलन और चेहरा लौकिक रीति में भी बाप समान होता है तो कहते हैं यह तो जैसे बाप जैसा है। तो यहाँ चेहरे की बात तो नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। तो हर चलन से बाप का अनुभव हो इसको कहते हैं बाप समान। तो समीप रहना चाहते हो या दूर? इस एक जन्म में संगम पर स्थिति में जो समीप रहता है, वह परम-धाम में भी समीप है और राजधानी में भी समीप है। एक जन्म की समीपता अनेक जन्म समीप बना देगी।
हर कर्म को चेक करो। बाप समान है तो करो, नहीं तो चेंज कर दो। पहले चेक करो, फिर करो। ऐसे नहीं, करने के बाद चेक करो कि यह ठीक नहीं था। ज्ञानी का लक्षण है – पहले सोचे, फिर करे। अज्ञानी का लक्षण है – करके फिर सोचते। तो आप “ज्ञानी तू आत्मा” हो ना। या कभी-कभी भक्त बन जाते हो? पंजाब वाले तो बहादुर हैं ना। मन से भी बहादुर। छोटी-सी माया चींटी के रूप में आये और घबरा जायें, नहीं। चैलेन्ज करने वाले। स्टूडेन्ट कभी पेपर से घबराते हैं? तो आप बहादुर हो या छोटे से पेपर में भी घबराने वाले हो? जो योग्य स्टूडेन्ट होते हैं वो आह्वान करते हैं कि जल्दी से पेपर हो और क्लास आगे बढ़े। जो कमजोर होते हैं वो सोचते हैं डेट आगे बढ़े। आप तो होशियार हो ना।
यह निश्चय पक्का हो कि हम ही कल्प-कल्प के विजयी हैं और हम ही बार-बार बनेंगे। इतना पुरुषार्थ किया है? आप नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे? आप ही विजयी बने थे, विजयी बने हैं और विजयी रहेंगे। ‘विजयी’ शब्द बोलने से ही कितनी खुशी होती है! चेहरा बदल जाता है ना। जो सदा विजयी रहते वो कितना खुश रहते हैं! इसीलिए जब भी कोई किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है तो खुशी के बाजे बजते हैं। आपके तो सदा ही बाजे बजते हैं। कभी भी खुशी के बाजे बन्द न हों। आधा कल्प के लिए रोना बन्द हो गया। जहाँ खुशी के बाजे बजते हैं वहाँ रोना नहीं होता। अच्छा!
वरदान:-
कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है – उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब – ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे।
स्लोगन:-
सूचनाः- आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें योग अभ्यास में यही शुभ संकल्प करें कि मुझ आत्मा द्वारा पवित्रता की किरणें निकलकर सारे विश्व को पावन बना रही हैं। मैं मास्टर पतित पावनी आत्मा हूँ।
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