17 September 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

16 September 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“व्यर्थ बोल, डिस्टर्ब करने वाले बोल से स्वयं को मुक्त कर बोल की एकॉनॉमी करो''

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज बापदादा चारों ओर की आत्माओं को आप सभी के साथ देख रहे हैं। चारों ओर के बच्चे आकार रूप से बापदादा के सामने हैं। डबल सभा, साकारी और आकारी दोनों कितनी बड़ी सभा है। बापदादा दोनों सभा के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बापदादा हर बच्चे को विशेष दो रूपों से देख रहे हैं। एक – हर एक बच्चा इस सर्व मनुष्यात्माओं के पूर्वज, सारे वृक्ष का फाउण्डेशन हैं, क्योंकि जड़ से सारा वृक्ष निकलता है और दूसरे रूप में पूर्वज बड़े को भी कहते हैं। तो सृष्टि के आदि में आप आत्माओं का ही पार्ट है इसलिए बड़े ते बड़े हो, इस कारण सर्व आत्माओं के पूर्वज हो। साथ-साथ ऊंचे ते ऊंचे बाप की पहली रचना आप ब्राह्मण आत्मायें हो। तो जैसे ऊंचे ते ऊंचा भगवन है वैसे बड़े ते बड़े पूर्वज आप हो। तो इतने सारे पूर्वज बच्चों को देख बाप हर्षित होते हैं। आप भी हर्षित होते हो कि हम पूर्वज हैं – उसी निश्चय और नशे में रहते हो? तो बापदादा आज पूर्वजों की सभा देख रहे हैं।

आप सभी जो भी बाप के बच्चे हो, माया से बचे हुए हो। बच्चे का अर्थ ही है बाप का बनना अर्थात् बच्चे बनना। तो माया से बचे हुए बाप के बच्चे बनते हैं। आप सभी माया से बचे हुए हो ना? कि कभी चक्कर में आ जाते हो? कहते हैं ना ऐसा भी पाव्युह होता है जो बहुत तरीके से निकलना होता है। तो कोई भी माया के पाव्युह में फंसने वाले तो नहीं हो? क्या कोई चक्कर है? बचे हुए हो? (हाँ जी) ऐसे नहीं करना कि यहाँ हाँ जी करके जाओ और वहाँ जाकर कहो ना जी। जब एक बार चक्कर से निकलने का रास्ता या विधि आ गई, तो फिर फंसने की तो बात ही नहीं है। माया को भी अच्छी तरह से जान गये हो ना कि कभी अनजान बन जाते हो? फिर कहते हैं हमको तो पता ही नहीं पड़ा कि ये माया है क्योंकि जैसे आजकल का फैशन है भिन्न-भिन्न फेस बहुत पहन लेते हैं। अभी-अभी क्या बनेंगे, अभी-अभी क्या बनेंगे। तो माया के पास भी ये फंसाने के फेस बहुत हैं। उसके पास अच्छा बड़ा दुकान है। जिस समय जो रूप धारण करना चाहे उस समय कर लेती है। और अगर जाने-अनजाने फंस गये तो निकलने में बहुत टाइम लगता है। और संगम का एक सेकेण्ड व्यर्थ जाना अर्थात् एक वर्ष गँवाना है, सेकेण्ड नहीं। आप सोचो संगमयुग कितना छोटा है। अभी तो डायमण्ड जुबली मना रहे हो और इस थोड़े से समय में जो बनना है, जो जमा करना है वो अभी बन सकते हैं। तो बापदादा देख रहे थे कि बनने का समय कितना थोड़ा है और बनते हो सारा कल्प। तो कहाँ 5 हज़ार और कहाँ अभी 60 वर्ष, चलो आगे कितना भी समय होगा लेकिन हज़ारों के गिनती में तो नहीं होगा ना!

तो इस थोड़े से समय में राज्य अधिकारी बनने वा रॉयल फैमिली में आने के लिए क्या करना होगा? वैसे संख्या के हिसाब से सतयुग में विश्व का तख्त सभी को तो मिल भी नहीं सकता। मानों पहले लक्ष्मी-नारायण तो तख्त पर बैठेंगे लेकिन जो पहले लक्ष्मी-नारायण की रॉयल फैमिली है, उन्हों को भी इतना ही सभी द्वारा स्नेह और सम्मान मिलता है। तो अगर पहली राजधानी के रॉयल फैमिली में भी आते हैं तो वो पहला नम्बर हैं। चाहे बड़े तख्त पर नहीं बैठते लेकिन प्रालब्ध नम्बरवन के हिसाब से ही है। नहीं तो आप सभी लोगों को त्रेता तक भी तख्त थोड़ेही मिलेगा। लेकिन विश्व राज्य अधिकारी का लक्ष्य सभी का है ना? कि वहाँ भी एक स्टेट के राजा बन जायेंगे? तो पहले नम्बर के रॉयल फैमिली में आना ये भी श्रेष्ठ पुरुषार्थ है। कोई को तख्त मिलता और किसको रॉयल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं।

जो सदा संगम पर बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है, कभी-कभी नहीं, जो सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भी, संकल्प मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा है, स्वप्न तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन हो सकती हैं। जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स (नंबर्स) लिये हैं, आदि से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैं, उसी को ही पास विद् ऑनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया है, मेकप वाला नहीं लेकिन आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द है वो तख्त ले सकता है। साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के प्यारे, सर्व के सहयोगी रहे हैं, ब्राह्मण परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, ऐसा सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता है। अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रॉयल फैमिली में आ सकता है। चाहे पहली में आवे, चाहे आठवीं में आए, चाहे त्रेता में आए। तो अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो। अगर सेवा में 100 मार्क्स जमा हैं और धारणा में 25 परसेन्ट तो क्या होगा? वो अधिकारी बनेगा? कई बच्चे और सब्जेक्ट में आगे चले जाते हैं लेकिन प्रैक्टिकल धारणा में जैसा समय है वैसा अपने को मोल्ड करना वो है रीयल गोल्ड। कहाँ-कहाँ माया बच्चों से भी होशियार हो जाती है। वो फट से समय प्रमाण स्वरूप धारण कर लेती है और बच्चे क्या कहते हैं? बाप के पास तो सबकी बातें आती हैं ना! मानो एक राँग है और दूसरा राइट है। ऐसे भी होता है कि दोनों तरफ की कोई ना कोई कमी होती है लेकिन मानों आप बिल्कुल ही अपने को राइट समझते हो और दूसरा बिल्कुल ही राँग है, तो आप राइट हो और वो राँग है फिर भी जैसा समय, जैसा वायुमण्डल देखा जाता है वैसे अपने को ही, चाहे समाना पड़ता है, चाहे मिटाना पड़ता है, चाहे किनारा करना पड़ता है, लेकिन बच्चे क्या कहते हैं कि क्या हर बात में हर समय हमको ही मरना है क्या! मरने के लिये हम हैं और मौज मनाने के लिए ये हैं! सदा ही मरना है, ये मरना तो बहुत मुश्किल है, मरजीवा तो बन गये वो तो सहज है। ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी बन गये ये भी तो मरजीवा बने ना! ये मरना तो बहुत सहज हो गया। मर गये, ब्रह्माकुमारी बन गये। लेकिन ये बार-बार का मरना ये बहुत मुश्किल है! मुश्किल है ना? छोटियाँ कहती हैं कि हमको ही ज्यादा मरना पड़ता है और बड़े कहते हैं कि हमको ही ज्यादा सुनना पड़ता है। तो आपको सहन करना पड़ता, उन्हों को सुनना पड़ता, तो मरना किसको है? कौन मरें? एक मरे, दोनों मरें? दोनों ही मर गये तो बात खत्म, खेल खत्म। तो मरना आता है या थोड़ा मुश्किल लगता है? थोड़ा सांस हांफता है, मुश्किल सांस निकलता है। तकलीफ होती है? उस समय जब कहते हो ना कि क्या हमें ही मरना है, हमें ही बदलना है, क्या मेरी ही जिम्मेवारी है बदलने की? दूसरे की भी तो है! आधा-आधा बांट लो – तुम इतना मरो, मैं इतना मरुँ। बापदादा को तो उस समय रहम भी बहुत आता है लेकिन ये मरना, मरना नहीं है। ये मरना सदा के लिये जीना है। लोग कहते हैं ना कि बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलेगा। तो उस मरने से तो स्वर्ग मिलता नहीं लेकिन इस मरने से स्वर्ग का अधिकार ज़रूर मिलेगा इसलिए ये मरना अर्थात् स्वर्ग का अधिकारी बनना। डर जाते हो ना – मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, सहन करना पड़ेगा तो छोटी बात बड़ी हो जाती है। आप सोचो कोई भी डाकू या चोर है नहीं लेकिन आपको डर बैठ गया कि डाकू है, चोर है तो भय से क्या होता है? भय से या तो हार्ट नीचे-ऊपर होगी या ब्लड प्रेशर नीचे-ऊपर होगी। डर से होता है ना? तो डर जाते हो। मरना बड़ी बात नहीं है लेकिन आपका डर बड़ी बात बना देता है फिर कहते हैं पता नहीं हमको क्या होता है, पता नहीं! लेकिन जैसे हिम्मत से मरजीवा बनने में भय नहीं किया, खुशी-खुशी से किया, ऐसे खुशी-खुशी से परिवर्तन करना है। मरना शब्द नहीं है लेकिन आपने मरना-मरना शब्द कह दिया है इसलिए डर जाते हैं। वास्तव में ये मरना नहीं है लेकिन अपने धारणा की सब्जेक्ट में नम्बर लेना है। सहन करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो? क्योंकि समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करें? लेकिन सहन करने की आज्ञा किसने दी है? झूठ बोलने वाले ने दी है? कई बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मज़बूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना, इसमें अन्तर है। बात के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो। तो बाप की आज्ञा मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मज़बूरी है? तो कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता है, मोहब्बत भी होती है, मज़बूरी भी होती है। सहन कर ही रहे हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मज़बूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता है ना तो मज़बूरी लगती है और बाप सामने आवे, कि बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्ब्त लगेगी, मज़बूरी नहीं। तो ये शब्द नहीं सोचो। आजकल ये थोड़ा कॉमन हो गया है – मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, कब तक मरना पड़ेगा, अन्त तक या दो साल, एक साल, 6 मास, फिर तो अच्छा मर जायें… लेकिन कब तक मरना है? लेकिन यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या करेंगे? मरेंगे? यह मरना शब्द खत्म कर दो। मरना सोचते हो ना तो मरने से तो डर लगता है ना। देखो अपना मृत्यु तो छोड़ो, कोई-कोई तो दूसरे का मृत्यु देखकर भी डर जाते हैं। तो ये शब्द परिवर्तन करो, ऐसे-ऐसे बोल नहीं बोलो। शुद्ध भाषा बोलो। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में यह शब्द है ही नहीं। पता नहीं किसने शुरू किया है! किया तो आप लोगों में से ही है ना! आप माना जो सामने बैठे हैं, वह नहीं। ब्राह्मणों ने ही किया है। बापदादा ने ये तो एक मिसाल सुनाया लेकिन सारे दिन में ऐसे व्यर्थ बोल या मज़ाक के बोल बहुत बोलते हैं, अच्छे शब्द नहीं बोलेंगे, लेकिन कहेंगे मेरा भाव नहीं था, यह तो मज़ाक में कह दिया। तो ऐसा मज़ाक क्या ब्राह्मण जीवन में आपके नियमों में है? लिखा हुआ तो नहीं है? कभी पढ़ा है कि मज़ाक कर सकते हैं! मज़ाक करो लेकिन ज्ञानयुक्त, योगयुक्त। बाकी व्यर्थ मज़ाक जिसको आप मज़ाक समझते हो लेकिन दूसरे की स्थिति डगमग हो जाती है, तो वह मज़ाक हुआ या दु:ख देना हुआ?

तो आज बापदादा ने देखा कि एक तो सभी पूर्वज हैं और दूसरा सबसे बड़े ते बड़े पूज्य आत्मायें भी आप हो। आप जैसी पूजा सारे कल्प में किसकी नहीं होती। तो पूर्वज भी हो और पूज्य भी। लेकिन पूज्य भी नम्बरवार हैं। जो भी ब्राह्मण बनते हैं उनकी पूजा होती ज़रूर है लेकिन किसकी विधिपूर्वक होती है और किसकी काम चलाऊ होती है। तो जो ब्राह्मण यहाँ भी योग में बैठते हैं लेकिन काम चलाऊ, कुछ नींद किया, कुछ योग किया, कुछ व्यर्थ सोचा और कुछ शुभ सोचा। तो यह काम चलाऊ हुआ ना! सफेद बत्ती जल गई, काम पूरा हो गया। ऐसे धारणा में भी काम चलाऊ बहुत होते हैं। कोई भी सरकमस्टांश आयेगा तो कहेंगे अभी तो ऐसे करके चलाओ, पीछे देखा जायेगा। तो ऐसों की पूजा काम चलाऊ होती है। देखो लाखों सालिग्राम बनाते हैं लेकिन क्या होता है? विधिपूर्वक पूजा होती है? काम चलाऊ होती है ना! पाइप से नहला दिया और तिलक भी कटोरी भरके पण्डित लोग ऐसे-ऐसे कर देते हैं। (छिड़क देते हैं) तिलक लग गया। तो ये क्या हुआ? काम चलाऊ हुआ ना। पूज्य सभी बनते हो लेकिन कैसे पूज्य बनते हो वो नम्बरवार है। किसकी हर कर्म की पूजा होती है। दातुन (दतून) का भी दर्शन होता है, दातुन हो रहा है। मथुरा में जाओ तो दातुन का भी दर्शन कराते हैं, इस समय दातुन का समय है। तो काम चलाऊ नहीं बनना। नहीं तो पूजा भी ऐसी होगी।

अच्छा-सभी टीचर्स खुश हो? या कोई-कोई इच्छा अभी भी मन में है? कोई भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके हाथ में है। और देखा जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज़ है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करो, तो पकड़ी जायेगी? और आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगी? आपके पीछे-पीछे आयेगी। तो इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रुलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो इच्छा आपके पीछे-पीछे आयेगी। मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रॉयल मांग तो बहुत है। जानते हो ना – रॉयल मांग क्या है? अल्पकाल का कुछ नाम मिल जाये, कुछ शान मिल जाये, कभी हमारा भी नाम विशेष आत्माओं में आ जाये, हम भी बड़े भाइयों में गिने जायें, हम भी बड़ी बहनों में गिने जायें, आखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए। लेकिन जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खज़ाने से सम्पन्न नहीं हो सकते। ये मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। छोटे शुभान अल्लाह हैं क्योंकि बापदादा के दिल पर नम्बर आगे हैं। अल्पकाल की इच्छा का अनुभव करके देखा होगा, तो रुलाती है या हंसाती है? रुलाती है ना! तो रावण की आज्ञा है रुलाओ, आप तो बाप के हो ना, तो बाप हंसाने वाला है या रुलाने वाला?

आज बापदादा विशेष इस पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि व्यर्थ बोल जो किसको भी अच्छे नहीं लगते, आपको अच्छा लगता है लेकिन दूसरे को अच्छा नहीं लगता, तो सदा के लिए उस शब्द को समाप्त कर दो। ऐसे सारे दिन में अगर बापदादा अपने पास बच्चों के शब्द नोट करे तो काफी फाइल बन सकती है। यह अपशब्द, व्यर्थ शब्द, ज़ोर से बोलना… ये ज़ोर से बोलना भी वास्तव में अनेकों को डिस्टर्ब करना है। ये नहीं बोलो – मेरा तो आवाज़ ही बड़ा है। मायाजीत बन सकते हो और आवाज़ जीत नहीं बन सकते! तो ऐसे किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल और व्यर्थ बोल नहीं बोलो। बात होती है दो शब्दों की लेकिन आधा घण्टा उस बात को बोलते रहेंगे, बोलते रहेंगे। तो ये जो लम्बा बोल बोलते हो, जो चार शब्दों में काम हो सकता है वो 12-15 शब्द में नहीं बोलो। आप लोगों का स्लोगन है “कम बोलो, धीरे बोलो”। तो जो कहते हैं ना हमारा आवाज़ बहुत बड़ा है, हम चाहते नहीं हैं लेकिन आवाज़ ही बड़ा है, तो वो गले में एक स्लोगन लगाकर डाल लेवे। होता क्या है? आप लोग तो अपनी धुन में ज़ोर से बोल रहे हो लेकिन आने-जाने वाले सुन करके ये नहीं समझते हैं कि इसका आवाज़ बड़ा है। वो समझते हैं पता नहीं झगड़ा हो रहा है। तो ये भी डिससर्विस हुई। इसलिए आज का पाठ दे रहे हैं – व्यर्थ बोल या किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल से अपने को मुक्त करो। व्यर्थ बोल मुक्त। फिर देखो अव्यक्त फरिश्ता बनने में आपको बहुत मदद मिलेगी। बोल, बोल, बोल, बोलते ही रहते हो। अगर बापदादा टेप भरकर आपको सुनाये ना तो आपको भी हंसी आयेगी। तो क्या पाठ पक्का किया है? बोल की इकॉनॉमी करो, अपने बोल की वैल्यु रखो। जैसे महात्माओं को कहते हैं ना – सत्य वचन महाराज तो आपके बोल सदा सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन हो। किसको चलते-फिरते हंसी में कह देते हो – ये तो पागल है, ये तो बेसमझ है, ऐसे कई शब्द बाप-दादा अभी भूल गये हैं लेकिन सुनते हैं। तो ब्राह्मणों के मुख से ऐसे शब्द निकलना ये मानों आप सतवचन महाराज वाले, किसी को श्राप देते हो। किसको श्रापित नहीं करो, सुख दो। युक्तियुक्त बोल बोलो और काम का बोलो, व्यर्थ नहीं बोलो। तो जब बोलना शुरू करते हो तो एक घण्टे में चेक करो कि कितने बोल व्यर्थ हुए और कितने सत वचन हुए? आपको अपने बोल की वैल्यु का पता नहीं, तो बोल की वैल्यु समझो। अपशब्द नहीं बोलो, शुभ शब्द बोलो क्योंकि अभी लास्ट मास है और आदि का मास डायमण्ड जुबली है, तो सारा साल डायमण्ड बनेंगे या 6 मास बनेंगे? सारा साल बनेंगे ना! इसलिए बापदादा डायमण्ड जुबली के पहले बच्चों को विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं। बापदादा चारों ओर के दृश्य तो देखते ही रहते हैं। सारा दिन नहीं देखते रहते हैं, सेकेण्ड में सब देख सकते हैं। तो पाठ पक्का किया – मुक्त बनना है? या थोड़ा-थोड़ा युक्त और थोड़ा-थोड़ा मुक्त? हर एक अपने को देखो। ये नहीं शुरू करना कि बाबा ने वाणी चलाई फिर भी बोल रहा है, दूसरे को नहीं देखना। अपने को देखो – मैंने बाप की श्रीमत को कितना अपनाया है? अभी तो एक-दो को देखते हैं – ये कर रहा है… लेकिन जब अधिकार मिलने में वो नीचे पद में जायेगा तो उस समय आप साथ देंगे? उस समय देखेंगे? उस समय नहीं देखेंगे। फिर अभी क्यों देखते हो। अच्छा, सभी मुक्त बनेंगे ना? सभी को पाठ याद है? कौन सा पाठ? व्यर्थ बोल मुक्त… याद है? भूल तो नहीं गया? अच्छा!

चारों ओर के पूर्वज आत्माओं को, सदा इस निश्चय और नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कर्म करने वाले कर्मयोगी आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प से बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले फॉलो फादर बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते। डबल विदेशियों को डबल नमस्ते।

 

वरदान:-

प्रवृत्ति में रहते घर के वायुमण्डल को ऐसा बनाओ जिसमें कोई भी लौकिकता न हो। कोई भी आये तो अनुभव करे कि यह अलौकिक हैं, लौकिक नहीं। यह साधारण घर नहीं लेकिन मन्दिर है। यह है पवित्र प्रवृत्ति वालों की सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप। स्थान भी सेवा करे, वायुमण्डल भी सेवा करे। जैसे मन्दिर का वायुमण्डल सबको आकर्षित करता है ऐसे आपके घर से पवित्रता की खुशबू आये तो वह खुशबू स्वत: चारों ओर फैलेगी और सबको आकर्षित करेगी।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Scroll to Top