17 November 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
16 November 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“रिटर्न शब्द की स्मृति से समान बनो और रिटर्न-जर्नी के स्मृति स्वरूप बनो"
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज बापदादा अपने चारों ओर के दिल तख्तनशीन, भ्रकुटी के तख्त नशीन, विश्व के राज्य के तख्त नशीन, स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। परमात्म दिल तख्त सारे कल्प में अब आप सिकीलधे, लाडले बच्चों को ही प्राप्त होता है। भ्रकुटी का तख्त तो सर्व आत्माओं को है लेकिन परमात्म दिल तख्त ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए किसी को प्राप्त नहीं है। यह दिल तख्त ही विश्व का तख्त दिलाता है। वर्तमान समय स्वराज्य अधिकारी बने हो, हर एक ब्राह्मण आत्मा का स्वराज्य गले का हार है। स्वराज्य आपके जन्म का अधिकार है। ऐसे स्वयं को ऐसा स्वराज्य अधिकारी अनुभव करते हो? दिल में यह दृढ़ संकल्प है कि हमारे इस बर्थ राइट को कोई छीन नहीं सकता। साथ-साथ यह भी रूहानी नशा है कि हम परमात्म दिल तख्तनशीन भी हैं। मानव जीवन में, तन में भी विशेष दिल ही महान गाई जाती है। दिल रूक गई तो जीवन समाप्त। तो आध्यात्मिक जीवन में भी दिल तख्त का बहुत महत्व है। जो दिल तख्तनशीन हैं वही आत्मायें विश्व में विशेष आत्मायें गाई जाती हैं। वही आत्मायें भक्तों के लिए माला के मणकों के रूप में सिमरी जाती हैं। वही आत्मायें कोटों में कोई, कोई में भी कोई गाई जाती है। तो वह कौन हैं? आप हो? पाण्डव भी हैं? मातायें भी हैं? (हाथ हिला रहे हैं) तो बाप कहते हैं हे लाडले बच्चे कभी-कभी दिल तख्त को छोड़कर देह रूपी मिट्टी से क्यों दिल लगाते हो? देह मिट्टी है। तो लाडले बच्चे कभी मिट्टी में पांव नहीं रखते हैं, सदा तख्त पर, गोदी में या अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हैं। आपके लिए बापदादा ने भिन्न-भिन्न झूले दिये हैं, कभी सुख के झूले में झूलो, कभी खुशी के झूले में झूलो। कभी आनंदमय झूले में झूलो।
तो आज बापदादा ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे थे कि कैसे नशे से झूलों में झूल रहे हैं। झूलते रहते हो? झूलते हो? मिट्टी में तो नहीं जाते! कभी-कभी दिल होती है क्या, मिट्टी में पांव रखने की? क्योंकि 63 जन्म मिट्टी में ही पांव रखते, मिट्टी से ही खेलते। तो अभी तो नहीं मिट्टी से खेलते? कभी-कभी मिट्टी में पांव जाता है कि नहीं जाता है? कभी-कभी चला जाता है। देहभान भी मिट्टी में पांव रखना है। देह अभिमान तो बहुत गहरी मिट्टी में पांव है। लेकिन देह भान अर्थात् बॉडी-कॉन्सेसनेस यह भी मिट्टी है। जितना संगम का समय ज्यादा से ज्यादा तख्तनशीन होंगे उतना ही आधाकल्प सूर्यवंश की राजधानी में और चन्द्रवंश में भी सूर्य-वंश के राज्य घराने में होंगे। अगर अभी संगम पर कभी-कभी तख्तनशीन होंगे तो सूर्यवंश के रॉयल फैमिली में इतना ही थोड़ा समय होंगे। तख्तनशीन चाहे टर्न बाई टर्न होंगे लेकिन रॉयल फैमिली, राज्य घराने की आत्माओं के सदा सम्बन्ध में होंगे। तो चेक करो कि संगमयुग के आदि समय से अब तक चाहे 10 साल हुए हैं, चाहे 50, चाहे 66 साल हो गये, लेकिन जब से ब्राह्मण बनें तब आदि से अब तक कितना समय दिल तख्तनशीन स्वराज्य तख्त नशीन रहे? बहुतकाल रहा, निरन्तर रहा वा कभी-कभी रहा? जो परमात्म तख्त नशीन होगा उसकी निशानी – प्रत्यक्ष चलन और चेहरे से सदा बेफिकर बादशाह होगा। अपने मन में, स्थूल बोझ तो सिर पर होता है लेकिन सूक्ष्म बोझ मन में होता है। तो मन में कोई बोझ नहीं होगा। फिकर है बोझ, बेफिकर है डबल लाइट। अगर किसी भी प्रकार का चाहे सेवा का, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क का, चाहे स्थूल सेवा का, रूहानी सेवा का भी बोझ नहीं, क्या होगा, कैसा होगा…. सफलता होगी या नहीं होगी! सोचना, प्लैन बनाना अलग चीज़ है, बोझ अलग चीज़ है। बोझ वाले की निशानी सदा चेहरे में बहुत या थोड़ा थकावट के चिन्ह होंगे। थकावट होना अलग चीज़ है, थकावट के चिन्ह थोड़ा भी, यह भी बोझ की निशानी है। और बेफिकर बादशाह का यह अर्थ नहीं कि अलबेले रहें, हो अलबेलापन और कहे हम तो बेफिकर रहते हैं। अलबेलापन, यह बहुत धोखा देने वाला है। तीव्र पुरुषार्थ के भी वही शब्द हैं और अलबेलेपन के भी वही शब्द हैं। तीव्र पुरुषार्थी सदा दृढ़ निश्चय होने के कारण यही सोचता है – हर कार्य हिम्मत और बाप की मदद से सफल हुआ ही पड़ा है और अलबेलेपन के भी यही शब्द हैं, हो जायेगा, हो जायेगा, हुआ ही पड़ा है। कोई कार्य रहा है क्या, हो जायेगा। तो शब्द एक है लेकिन रूप अलग-अलग है।
वर्तमान समय माया के विशेष दो रूप बच्चों का पेपर लेते हैं। एक व्यर्थ संकल्प, विकल्प नहीं, व्यर्थ संकल्प। दूसरा – “मैं ही राइट हूँ”। जो किया, जो कहा, जो सोचा…. मैं कम नहीं, राइट हूँ। बापदादा समय के प्रमाण अब यही चाहते हैं कि एक शब्द सदा स्मृति में रखो – बाप से हुई सर्व प्राप्तियों का, स्नेह का, सहयोग का रिटर्न करना है। रिटर्न करना अर्थात् समान बनना। दूसरा – अब हमारी रिटर्न-जर्नी (वापिसी यात्रा) है। एक ही शब्द रिटर्न सदा याद रहे। इसके लिए बहुत सहज साधन है – हर संकल्प, बोल और कर्म को ब्रह्मा बाप से टैली (मिलान) करो। बाप का संकल्प क्या रहा? बाप का बोल क्या रहा? बाप का कर्म क्या रहा? इसको ही कहा जाता है फालो फादर। फालो करना तो सहज होता है ना! नया सोचना, नया करना उसकी आवश्यकता है ही नहीं, जो बाप ने किया वह फालो फादर। सहज है ना!
टीचर्स हाथ उठाओ। – फालो करना सहज है या मुश्किल है? सहज है ना! बस फालो फादर। पहले चेक करो, जैसे कहावत है पहले सोचो फिर करो, पहले तोलो फिर बोलो। तो सभी टीचर्स इस वर्ष में, अभी इस वर्ष का लास्ट मंथ है, पुराना जायेगा नया आयेगा। नये आने के पहले क्या करना है, उसकी तैयारी कर लो। यह संकल्प करो कि सिवाए बाप के कदम पर कदम रखने के और कोई भी कदम नहीं उठायेंगे। बस फुट स्टेप। कदम पर कदम रखना तो इजी है ना! तो नये वर्ष के लिए अभी से संकल्प में प्लैन बनाओ, जैसे ब्रह्मा बाप सदा निमित्त और निर्माण रहे, ऐसे निमित्त भाव और निर्माण भाव। सिर्फ निमित्त भाव नहीं, निमित्त भाव के साथ निर्माण भाव, दोनों आवश्यक हैं क्योंकि टीचर्स तो निमित्त हैं ना! तो संकल्प में भी, बोल में भी और किसी के भी संबंध में, सम्पर्क में, कर्म में, हर बोल में निर्माण। जो निर्माण है वही निमित्त भाव में है। जो निर्माण नहीं है उसमें थोड़ा बहुत सूक्ष्म, महान रूप में अभिमान नहीं भी हो तो रोब होगा। ये रोब, यह भी अभिमान का अंश है और बोल में सदा निर्मल भाषी, मधुर भाषी। जब सम्बन्ध-सम्पर्क में आत्मिक रूप की स्मृति रहती है तो सदा निराकारी और निरहंकारी रहते हैं। ब्रह्मा बाप के लास्ट के तीनों शब्द याद रहते हैं? निराकारी, निरहंकारी वही निर्विकारी। अच्छा, फालो फादर। पक्का रहा ना!
अगले वर्ष की मुख्य लक्ष्य स्वरूप की स्मृति है – यह तीन शब्द, निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी। अंश भी नहीं हो। मोटा-मोटा रूप तो ठीक हो गया है लेकिन अंश भी नहीं हो क्योंकि अंश ही धोखा देता है। फालो फादर का अर्थ ही है – इन तीन शब्दों को सदा स्मृति में रखें। ठीक है? अच्छा।
डबल फारेनर्स उठो – अच्छा ग्रुप आया है। बापदादा को डबल फारेनर्स की एक बात पर खुशी है, जानते हो कौन सी? देखो, कितना दूरदेश से आते हो, डायरेक्शन मिला कि इस टर्न में भी आना है तो पहुंच गये ना। कैसे भी पुरुषार्थ कर बड़ा ही ग्रुप पहुंच गया है। दादी का डायरेक्शन ठीक माना है ना! इसकी मुबारक हो। बापदादा एक-एक को देख रहा है, दृष्टि दे रहा है। ऐसे नहीं कि स्टेज पर ही दृष्टि मिलती है। दूर से और ही अच्छा दिखाई दे रहा है। डबल फारेनर्स हाँ जी का पाठ अच्छा पढ़े हुए हैं। बापदादा को डबल फारेनर्स के ऊपर प्यार तो है ही लेकिन नाज़ भी है, क्योंकि विश्व के कोने-कोने में सन्देश पहुंचाने के लिए डबल फारेनर्स ही निमित्त बने हैं। विदेश में अभी कोई विशेष स्थान रहा है, गांव-गांव रहे हैं या विशेष स्थान रह गया है? गांव-गांव, कोने-कोने के छोटे स्थान रह गये हैं या विशेष स्थान रह गया है? कौन सा स्थान रहा है? (मिडिल ईस्ट के कुछ देश रहे हुए हैं) फिर भी देखो यह भी ग्रुप जो आया है, कितने देशों का ग्रुप है? फिर भी बापदादा जानते हैं कि विश्व के अनेक भिन्न-भिन्न देशों में आप आत्मायें निमित्त बने हो। बापदादा हमेशा कहते ही हैं कि विश्व कल्याणकारी का टाइटल बाप का डबल विदेशियों ने ही प्रत्यक्ष किया है। अच्छा है। हर एक अपने-अपने स्थान पर खुद अपने पुरुषार्थ में और सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सफलता के सितारे हैं ही। बहुत अच्छा।
कुमारों से:- मधुबन के कुमार भी हैं। देखो, कुमारों की संख्या देखो कितनी है? आधा क्लास तो कुमारों का है। कुमार अभी साधारण कुमार नहीं हैं। कौन से कुमार हो? ब्रह्माकुमार तो हो ही। लेकिन ब्रह्माकुमारों की विशेषता क्या है? कुमारों की विशेषता है कि सदा जहाँ भी अशान्ति होगी उसमें शान्ति फैलाने वाले शान्तिदूत हैं। न मन की अशान्ति, न बाहर की अशान्ति। कुमारों का कार्य ही है मुश्किल काम करना, हार्ड वर्कर होते हैं ना! तो आज सबसे हार्ड में हार्ड वर्क है – अशान्ति को मिटाए शान्तिदूत बन शान्ति फैलाना। ऐसे कुमार हो? अशान्ति का नाम निशान नहीं रहे – न विश्व में, न आपके सम्बन्ध-सम्पर्क में। ऐसे शान्तिदूत हो? जैसे आग बुझाने वाले कहाँ भी आग होगी तो आग बुझायेंगे ना। तो शान्तिदूत का कार्य ही है अशान्ति को शान्ति में बदलना। तो शान्तिदूत हो ना! पक्का! पक्का? पक्का? बहुत अच्छा लग रहा है, बापदादा इतने कुमारों को देख खुश होते हैं। पहले भी बापदादा ने प्लैन दिया था कि दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा कुमार, जो गवर्मेन्ट समझती है कुमार (यूथ) अर्थात् झगड़ा करने वाले, डरती है कुमारों से। ऐसे डरने वाली गवर्मेन्ट, हर ब्रह्माकुमार का शान्तिदूत के टाइटल से स्वागत करे, तब है कुमारों की कमाल। सारे विश्व में छा जावें कि ब्रह्माकुमार शान्तिदूत हैं। हो सकता है ना? दिल्ली में करना। करना है ना – दादियां करेंगे? एक ग्रुप में इतने कुमार हैं तो सभी ग्रुप में कितने होंगे? विश्व में कितने होंगे? (लगभग 1 लाख) तो कुमार करो कमाल। गवर्मेन्ट में जो कुमारों (युवकों) के प्रति उल्टा भरा हुआ है वह सुल्टा कर दो। लेकिन मन में भी अशान्ति नहीं, साथियों में भी अशान्ति नहीं और अपने स्थान पर भी अशान्ति नहीं। अपने शहर में भी अशान्ति नहीं। बस कुमारों के चेहरे में बोर्ड लगाने की जरूरत नहीं लेकिन मस्तक में आटोमेटिक लिखा हुआ अनुभव हो कि यह शान्तिदूत हैं। ठीक है ना!
कुमारियों से:- कुमारियां भी बहुत हैं। इन सब कुमारियों का लक्ष्य क्या है? नौकरी करनी है या विश्व सेवा करनी है? ताज सिर पर रखना है या टोकरी रखनी है? क्या रखना है? देखो, सब कुमारियों को रहमदिल बनना है। विश्व की आत्माओं का कल्याण हो जाए, कुमारियों के लिए गायन है 21 कुल का उद्धार करने वाली, तो आधाकल्प 21 कुल हो जायेंगे। तो ऐसी कुमारियां हो? जो 21 कुल का कल्याण करेंगी वह हाथ उठाओ। एक परिवार का नहीं, 21 परिवारों का। करेंगी? देखो, आपका नाम नोट होगा और फिर देखा जायेगा कि रहमदिल है या कोई हिसाब-किताब रहा हुआ है? अभी समय सूचना दे रहा है कि समय के पहले तैयार हो जाओ। समय को देखते रहेंगे तो समय बीत जायेगा, इसीलिए लक्ष्य रखो कि हम सभी विश्व कल्याणी रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल हैं। ठीक हैं ना? रहमदिल हो ना! रहमदिल और बनो। थोड़ा और तीव्रगति से बनो। कुमारियों को तो बाप का बहुत सहज तख्त मिलता है। देखेंगे, नये वर्ष में क्या कमाल करके दिखाती हो। अच्छा।
मीडिया के 108 रत्न आये हैं:- अच्छा है, मीडिया वाले कमाल करके दिखावें जो सबके बुद्धि में आवे कि बाप से वर्सा लेना ही है। कोई वंचित नहीं रह जाए। मीडिया का काम ही है आवाज फैलाना। तो यह आवाज फैलाओ कि बाप से वर्सा ले लो। कोई वंचित नहीं रह जाए। अभी विदेश में भी मीडिया का प्रोग्राम चलता रहता है ना! अच्छा है। भिन्न-भिन्न रूप से जो प्रोग्राम रखते हैं तो अच्छे इन्ट्रेस्टेड होते हैं। अच्छा कर रहे हैं और करते रहेंगे और सफलता तो है ही। सभी वर्ग वाले जो भी सेवा कर रहे हैं बापदादा के पास समाचार आता रहता है। हर वर्ग की अपनी-अपनी सेवा के साधन और सेवा की रूपरेखा है लेकिन यह देखा कि वर्ग अलग-अलग होने से हर वर्ग एक दो से रेस भी करते हैं, अच्छा है। रीस नहीं करना, रेस भले करो। हर वर्ग की रिजल्ट, वर्ग की सेवा के बाद आई.पी. और वी.आई.पी. सम्पर्क में काफी आये हैं, अभी माइक नहीं लाये हैं लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में आये हैं। अच्छा।
बापदादा वाली एक्सरसाइज़ याद है? अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता… यह है चलते फिरते बाप और दादा के प्यार का रिटर्न। तो अभी-अभी यह रूहानी एक्सरसाइज़ करो। सेकण्ड में निराकारी, सेकण्ड में फरिश्ता। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा – चलते-फिरते सारे दिन में यह एक्सरसाइज बाप की सहज याद दिलायेगी।
चारों ओर के बच्चों की याद सभी तरफ से बापदादा को पहुंची है। हर एक बच्चा समझता है हमारी याद देना, हमारी याद देना। कोई पत्र द्वारा भेजते, कोई कार्डों द्वारा, कोई मुख द्वारा लेकिन बापदादा चारों ओर के बच्चों को, एक एक को नयनों में समाते हुए याद का रेसपान्ड पदमगुणा यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं कि इस समय कितना भी बजा है लेकिन मैजारिटी सबके मन में मधुबन और मधुबन का बापदादा है। अच्छा!
चारों ओर के तीनों तख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, सदा बापदादा को रिटर्न बाप समान बनने वाले बच्चों को, सदा रिटर्न जर्नी के स्मृति स्वरूप बच्चों को, सदा संकल्प, वाणी और कर्म में फालो फादर करने वाले हर एक बच्चे को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- |
फल का इन्तजार न कर आप अपनी शुभ भावना का बीज हर आत्मा में डालते चलो। समय पर सर्व आत्माओं को जगना ही है। कोई आपोजीशन भी करता है तो भी आपको रहम की भावना नहीं छोड़नी है, यह आपोजीशन, इनसल्ट, गालियां खाद का काम करेंगी और अच्छा फल निकलेगा। जितना गाली देते हैं उतना गुण गायेंगे, इसलिए हर आत्मा को अपनी वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन द्वारा, वाणी द्वारा मास्टर दाता बन देते चलो।
स्लोगन:-
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